Here is an essay on ‘Privatisation’ for class 9, 10, 11 and 12. Find paragraphs, long and short essays on ‘Privatisation’ especially written for school and college students in Hindi language.
Essay on Privatisation
Essay Contents:
- निजीकरण का परिचय (Introduction to Privatisation)
- निजीकरण का अर्थ (Meaning of Privatisation)
- निजीकरण का उद्देश्य (Objectives of Privatisation)
- निजीकरण की किस्में (Types of Privatisation)
- निजीकरण की समस्याएं (Problems of Privatisation)
- निजीकरण की सफलता की शर्तें (Conditions for the Success of Privatisation)
- भारत में निजीकरण (Privatisation in India)
- निजीकरण-वैश्विक प्रभाव (Privatisation-Global Impact)
Essay # 1. निजीकरण का परिचय (Introduction to Privatisation):
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हाल ही में विश्व के लगभग सभी देशों में निजीकरण एक अति क्रान्तिकारी नव प्रवर्तन के रूप में उभर कर सामने आया है सर्वप्रथम मार्गरेट थैचर (Margaret Thatcher) ने ग्रेट ब्रिटेन में इसे अपनी आर्थिक नीति के केन्द्रीय भाग के रूप में प्रस्तुत किया तथा सरकार ने व्यापारिक इकाइयों को बेच दिया ।
वर्ष 1981 से यह प्रवृत्ति प्रोत्साहित हुई तथा शीघ्र ही सभी विचारधाराओं की सरकारों के इसे अपना नहीं लिया अर्थात् पूंजीवादी सरकारों से लेकर समाजवादी सरकारों ने यहाँ तक कि साम्यवादी सरकारों ने और उच्च औद्योगिक प्रगतिपूर्ण देशों से लेकर गरीब से गरीब देश की सरकारों ने इस प्रवृत्ति का अनुकरण किया । अर्थशास्त्रियों अनुसार, ”सार्वजनिक उपक्रमों का निजीकरण एशिया को ज्वर की भान्ति जकड़ रहा है ।”
उनका विचार है कि निजीकरण को सैद्धान्तिक और व्यावहारिक आधारों पर समर्थन प्राप्त हुआ है । सैद्धान्तिक रूप में, उदारवादी, इसलिये निजीकरण के पक्ष में है क्योंकि इसमें निर्णय सरकार के स्थान पर निजी व्यक्तियों द्वारा लिये जाते हैं जिससे अधिक प्रजातान्त्रिक समाज जन्म लेता है ।
तथापि, आजकल, इसे अधिक समर्थन इसके व्यवहारवादी आधार के कारण प्राप्त हुआ है । तदानुसार, यह लागतें कम करेगा तथा संसाधनों को अन्य कार्यों के लिये छोड़ देगा । इस सबसे स्पष्ट है, कि निजीकरण को उन सब का समर्थन प्राप्त है जो इसे सरकारी घाटे को कम करने का साधन मानते हैं ।
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Essay # 2. निजीकरण का अर्थ (Meaning of Privatisation):
शब्द ”प्राइवेटाइजेशन” सर्वप्रथम वर्ष 1983 में एक शब्दकोष में प्रकट हुआ । इसकी परिभाषा दो प्रकार अर्थात् एक संकीर्ण रूप तथा एक उदार रूप में दी जा सकती है । एक संकीर्ण भाव में इसका अर्थ है नियन्त्रण अथवा स्वामित्व को सार्वजनिक से निजी बनाना ।
परन्तु एक उदार रूप में, निजीकरण सम्पत्ति के स्वामित्व की एक क्रिया में सरकार की भूमिका को पढ़ने का कार्य है अथवा निजी क्षेत्र की भूमिका को बढ़ाने का कार्य है । इसलिये, यह सम्पत्ति और सेवा कार्यों का सार्वजनिक से निजी हाथों में स्थानान्तरण है । इसमें, राज्य के स्वामित्व वाले उद्यमों को बेचने से लेकर सार्वजनिक सेवाओं को निजी ठेकेदारों को ठेके पर देना सम्मिलित है ।
ब्रिटेन में निजीकरण का अर्थ है राज्य के ऐसे उद्योगों के स्वामित्व को निजी संस्थाओं की ओर हस्तांतरित करना जो मुख्यता निजी क्रेताओं के लिये उत्पादन कर रहे हैं । कुछ वर्षों में, अनेक निजी उद्योगों का, क्रमिक श्रमिक दल की सरकारों (Labour Government) द्वारा समाजीकरण कर दिया गया था । इन उद्यमों में ब्रिटिश स्टील, कोयला बोर्ड, ब्रिटिश गैस, ब्रिटिश वायु सेवाएं ब्रिटिश टेलकम और अन्य सेवाएं सम्मिलित हैं ।
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इन सरकारी उद्योगों ने एक दूसरे की सेवा की तथा सरकार ने अधिकतर निजी फर्मों और निजी परिवारों से व्यापार किया । संयुक्त राज्यों में, निजीकरण का अर्थ सरकार का उन सेवाओं के लिये मुख्यता निजी उत्पादन कर्ताओं पर निर्भरता से लिया गया है जिनके लिये सरकार उत्तरदायी है यह ठेके पर काम देने का नया नाम बन गया है । ठेके पर काम खुद अमरीका के लिये एक नई बात है ।
सार्वजनिक कार्यों के सभी स्तरों पर यह एक परम्परा है और 1960 से मानवीय सेवाओं की तीव्र वृद्धि में यह एक सामान्य बात है । प्रथा को विस्तृत करना तथा इसे ऐसे सेवा क्षेत्रों में लागू करना जिनमें पहले इस सम्बन्ध में नहीं सोचा जाता था, यह नया है ।
अतः निजीकरण की परिभाषाएँ निम्नलिखित प्रकार है:
”निजीकरण में सरकारी भूमिका को केवल कम किया गया है; इसका विलोपन नहीं ।”
”निजीकरण वह सामान्य प्रक्रिया है जिसके द्वारा निजी क्षेत्र किसी सरकारी उपक्रमों का मालिक बन जाता है या उनका प्रबन्ध करता है ।”
”निजीकरण से अभिप्राय उस प्रक्रिया से है जिसके फलस्वरूप सरकार के प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष स्वामित्व या नियन्त्रण वाले कार्य, क्रियाएं परिसम्पत्तियां या संगठन, पूर्णतया अथवा आशिक रूप से किसी गैर सरकारी संगठन को हस्तांतरित हो जाते हैं ।”
”निजीकरण से अभिप्राय है सार्वजनिक क्षेत्र के कार्यों, क्रियाओं या संगठनों का निजी क्षेत्र को हस्तांतरण ।”
उपरोक्त विवरण से स्पष्ट हो जाता है कि निजीकरण से केवल यह अभिप्राय नहीं है कि निजी क्षेत्र सार्वजनिक उद्यमों का मालिक बन जाये बल्कि बिना मालिक बने हुये भी यदि सार्वजनिक उद्यमों का प्रबन्ध या संचालन निजी क्षेत्र द्वारा किया जाता है तो इसे भी निजीकरण ही कहा जाता है । इस प्रकार ”निजीकरण वह प्रक्रिया है जो राष्ट्र की आर्थिक गतिविधियों में राज्य अथवा सार्वजनिक क्षेत्र के योगदान को कम करती है ।”
इसलिये इसमें सम्मिलित होंगे:
1. अधिकार-हरण और अराष्ट्रीयकरण;
2. सार्वजनिक क्षेत्र के कुछ उलझाव सहित, इस इरादे से किया गया कोई भी उपाय, जो निजी क्षेत्र के ऐसे सार्वजनिक क्षेत्र में प्रवेश को सुविधापूर्ण बनाता है जो पहले पूर्णतया सार्वजनिक क्षेत्र के लिये आरक्षित थे ।
3. विशेषाधिकार पूर्ण वित्त व्यवस्था जिसके अन्तर्गत एक निजी क्षेत्र की संस्था संरचनात्मक परियोजना का निर्माण और संचालन करती है ।
4. राज्य के स्वामित्व वाले उद्यम को बन्द करना अथवा उनका समापन ।
5. राज्य के स्वामित्व वाले उद्योगों को निजी क्षेत्र को लीक पर देना अथवा निजी उद्यम की ओर प्रबन्ध अथवा नियन्त्रण का स्थानान्तरण ।
6. राज्य के स्वामित्व वाला कोई नया उद्योग आरम्भ न करने सम्बन्धी सरकार का निर्णय अथवा ऐसी वर्तमान इकाईयों को विस्तृत अथवा विविधीकरण न करना ।
यह उदार परिभाषा विशेषतया भारतीय संदर्भ में अधिक उचित है । निजीकरण के लिये नियोजन की तैयारी सम्बन्धी उपायों का विश्लेषण करते समय उपरोक्त सभी संघटकों को ध्यान में रखा जाना चाहिये ।
Essay # 3. निजीकरण का उद्देश्य (Objectives of Privatisation):
”निजीकरण का मुख्य उद्देश्य प्रबन्ध की गुणवत्ता, उद्यम के कार्यकरण में सुधार करके सभी क्षेत्रों के उत्पादन में व्यावसायिक भावना को प्रोत्साहित करना तथा देश की अर्थव्यवस्था का विश्व-अर्थव्यवस्था से समन्वय करके उसे विकास की ऊँची दर पर पहुँचाना है ।”
सामान्य दृष्टि के अनुसार निजीकरण के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं:
1. सैद्धान्तिक उद्देश्य (Ideological Objectives):
निजीकरण का मुख्य उद्देश्य स्वामित्व के विस्तृत अंश द्वारा, अन्तर्राष्ट्रीयकरण और उदारीकरण, उपभोक्ता को अधिक चुनाव तथा स्वतन्त्रता उपलब्ध करके पूंजीवाद को दृढ़ तथा गहरा करना है ।
2. आर्थिक उद्देश्य (Economic Objectives):
निजीकरण प्रतियोगिता द्वारा दक्षता को बढ़ाने का लक्ष्य रखता है ।
3. राजकोषीय उद्देश्य (Fiscal Objective):
निजीकरण का एक अन्य उद्देश्य अर्थव्यवस्था में विभिन्न राजकोषीय उपायों द्वारा राजस्व घाटे को कम करना है ।
4. प्रशासनिक उद्देश्य (Administrative Objectives):
प्रशासकीय की लागतों को कम करने के लिये प्रशासनिक कार्य साधकता एक अन्य उद्देश्य है ।
5. समाज-राजनीतिक उद्देश्य (Socio-Political Objectives):
निजीकरण शक्ति सन्तुलनों को परिवर्तित करने का लक्ष्य भी रखता है जैसे व्यवस्थित संघों के विपरीत अथवा उपभोक्ताओं की वित्तीय श्रेणी के पक्ष में ।
6. तीव्र गति का विकास (Fast Growth Rate):
राष्ट्र का तीव्र गति से आर्थिक विकास करना व औद्योगिक प्रबन्ध को शक्तिशाली बनाना ऐसा करने से निवेश पर पर्याप्त लाभ होगा एवं राष्ट्रीय साधनों का अधिकाधिक उपयोग होगा ।
Essay # 4. निजीकरण की किस्में (Types of Privatisation):
विश्व के भिन्न-भिन्न देशों में विभिन्न प्रकार का निजीकरण विद्यमान है परशु सामान्य रूप में, निजीकरण की धारणा को सरलतापूर्वक समझने के लिये निम्नलिखित श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है ।
1. महा-निजीकरण (Mega Privatisation):
महा-निजीकरण का वर्णन ”राज्य शक्ति की वापसी” के रूप में भी किया जाता है । इसमें व्यक्तिगत स्वतन्त्रता, उदारता और दक्षता को हानि पहुंचाने वाले राज्य के सभी कार्य सम्मिलित हैं । अन्य शब्दों में यह सभी क्षेत्रों में सरकार की शक्ति को कम करती है ।
2. सुक्ष्म निजीकरण (Micro Privatisation):
सूक्ष्म निजीकरण का अर्थ है सार्वजनिक सम्पत्ति के स्वामित्व का निजी क्षेत्र की ओर स्थानान्तरण । यह सार्वजनिक उद्यमों में बेहतर निष्पादन का लक्ष्य रखता है । जिससे अर्थव्यवस्था का कार्य सुचारू ढंग से हो, साधनों की गतिशीलता बनी रहे और वित्तीय अतिरेक की रचना हो ।
3. समष्टि निजीकरण (Macro Privatisation):
समष्टि निजीकरण सिद्धान्त और नीति के उस ढांचे से सम्बन्धित होता है जो राज्य और बाजार की नई सीमाओं को प्रभावित करता है । इसमें बाजार शक्तियों का बड़ा प्रयोग सम्मिलित है जो प्रतियोगिता सुनिश्चित करता है । इसका अर्थ है राज्य की एक नियामक, एक सुविधा उपलब्ध कर्ता, कल्याण कर्ता और उत्पादक के रूप में भूमिका कम होती है ।
4. समाजवादी निजीकरण (Socialist Privatistaion):
समाजवादी निजीकरण आर्थिक अभिकर्ताओं के बीच प्रतियोगिता बढ़ाने के लिये अनियन्त्रण से सम्बन्धित है । अतः संक्षेप में यह नियामक राज्य पर बल देता है ।
निजीकरण की उपरोक्त किस्मों को जलरुद्ध कक्षों की भान्ति नहीं देखा जाना चाहिये । निजीकरण, राज्य शक्ति से जानबूझ कर दिये जाने वाले परिवर्तन की प्रक्रिया है । वास्तव में, यह परिवर्तन एक सन्तुलन की विद्यमान वास्तविकता से आरम्भ होता है । एक उप प्रमेय यह है कि निजीकरण के माप के लिये परिभाषित मानक लक्ष्य नहीं है ।
निजीकरण कोई लक्ष्य नहीं है जिस पर पहुंचा जाये । परन्तु इसके विपरीत यह राज्य की कम शक्ति की ओर एक चेष्टा है । इस प्रकार यह राज्य शक्ति से सम्बन्धित है जो बदले में संस्थागत ढांचे और राजनीतिक विचारधारा से सम्बन्धित है क्योंकि इसने समय-समय पर देश के वातावरण पर निर्भर करते हुये समग्र प्रक्रिया को उच्च रूप में प्रासंगिक बनाना होता है । संक्षेप में, यह एक अत्यधिक राजनीतिक प्रक्रिया है जिसमें पारदर्शिता की मात्रा की पर्याप्त अनुवर्ती समस्याएं होती हैं ।
Essay # 5. निजीकरण की समस्याएं (Problems of Privatisation):
अल्प विकसित देशों में निजीकरण की उन्नति औद्योगिक देशों की तुलना में बहुत कम है । इसलिये, विश्व बैंक ने सरकार के मार्ग में कुछ बाधाओं का वर्णन किया है जब वह राज्य के स्वामित्व वाली अधिकारों से वंचित करना चाहती है ।
उनमें से कुछ का वर्णन नीचे किया गया है:
1. सबसे कम लाभप्रद इकाइयों की बिक्री (Sale of Least Profitable Enterprises):
निजीकरण के मार्ग में सबसे पहली और सबसे बड़ी बाधा यह है कि सरकार सब कम लाभ देने वाली इकाइयों को बेचना चाहती है । सरकार द्वारा इन इकाइयों की रखी गई कीमत निजी क्षेत्र की पहुंच के बाहर होती है । इससे निजीकरण के मार्ग में बाधा पड़ती है ।
2. अल्प विकसित पूंजी बाजार (Underdeveloped Capital Market):
अल्प विकसित पूजी बाजार कभी-कभी सरकार के लिये शेयर जारी करने कठिन बना देते हैं । इसके अतिरिक्त, व्यक्तिगत क्रेता भारी ख़रीदों के लिये धन जुटाने में कठिनाई का अनुभव करते हैं ।
3. अधिकार-हरण (Divestiture):
इससे, कर्मचारियों की ओर से विरोध का सामना करना अपनी नौकरियों से हाथ धोना पड सकता है, राजनीतिज्ञों की ओर से विरोध होता है क्योंकि होने से लघु-कालिक रोजगार परिणामों का भय होता है अथवा निजी स्वामियों द्वारा लागत कम करने का भय होता है, अधिकारी इसलिये विरोध करते हैं इकाइयों में उनका प्रभाव कम हो जाता है तथा भी विरोध करते हैं जिनको भय होता है कि विदेशी समृद्ध तथा एक विशेष धर्म के लोग उनका शोषण करेंगे ।
Essay # 6. निजीकरण की सफलता की शर्तें (Conditions for the Success of Privatization):
निजीकरण की सफलता निम्नलिखित शर्तें पूर्वापेक्षित हैं:
1. औद्योगिक प्रबन्ध (Industrial Arrangement):
निजीकरण कि सफलता के लिये सबसे पहली और आवश्यक शर्त यह है कि पूर्तिकर्त्ताओं के बीच प्रतियोगिता को किसी वैकल्पिक संस्थागत प्रबन्ध द्वारा रोकना नहीं चाहिये । निजी पूर्तिकर्ताओं की बहुलता का होना एकाधिकार द्वारा अधिक प्रतिस्थापन सार्वजनिक कल्याण को नहीं बढ़ायेगा, परन्तु जहां योग्य पूर्तिकर्ता कम होंगे वहां यह महान् कठिनाई उत्पन्न कर सकता है ।
यद्यपि यदि केवल एक या दो योग्य ठेकेदार हैं तो सरकार सेवा को ठेके पर देना पसन्द करेगी, प्रतियोगिता के लाभों की न होने की सम्भावना है । इस सम्बन्ध में, अधिकांश विकासशील देशों की नियामक प्रणाली में मुख्य परिवर्तन लाने की आवश्यकता है ।
2. प्रवेश की स्वतन्त्रता (Freedom of Entry):
निजीकरण की सफलता की अन्य शर्त यह है कि वस्तु एवं सेवाओं को उपलब्ध करने हेतु प्रवेश की स्वतन्त्रता का होना आवश्यक है क्योंकि लम्बे समय तक ठेके और विशेषाधिकार प्रतियोगिता और उपभोक्ता की पसन्द को सीमित करते हैं ।
पूंजी गहन सेवाओं में ऐसी स्वतन्त्रता प्राप्त करना एक कठिन कार्य है । परन्तु इसके विपरीत स्वास्थ्य सेवाओं जैसी सेवाओं के सम्बन्ध में लोगों को अनेक निजी पूर्तिकर्ताओं से ऐसे एकाधिकारिक अभिकरणों की तुलना में बेहतर सेवा प्राप्त होती है जिन्होंने लम्बे समय के लिये ठेका लिया होता है ।
3. धोखे के लिये अति संवेदनशील (Susceptible to Fraud):
यदि निजीकरण ने प्रभावी होना है, तो निजी तौर पर उपलब्ध सेवाओं को सरकारी सेवाओं की तुलना में धोखे के प्रति कम संवेदनशील होना होगा । इस सम्बन्ध में, सामाजिक स्तर पर सांझे अथवा सहकारी कार्य द्वारा उपलब्ध की गई सेवाएं धोखों को कम से कम आमन्त्रित करती हैं ।
4. लाभों को सम्बन्धित करने के योग्य होना (Able to Link Benefits):
उपभोक्ता इस योग्य होने चाहिये कि वे किसी सेवा से प्राप्त लाभ की तुलना उस सेवा की लागत से कर सकें । इसका अर्थ है कि वह विभिन्न सेवाओं की खरीद पहले से अधिक बुद्धिमत्ता से करेंगे । यह केवल प्रयोग करने वाले का खर्चा है जो ऐसा सम्बन्ध स्थापित करता है ।
5. निष्पक्षता (Equity):
निष्पक्षता को जन सेवा का एक अन्य तत्त्व माना जाता है । निजीकरण के लाभ पूंजी स्वामी, उपभोक्ता और लोगों को प्राप्त हो सकते है । परन्तु निजीकरण अनुत्यादक होगा यदि लोगों की भुगतान करने की योग्यता वर्तमान आय द्वारा निर्धारित की जाती है क्योंकि सेवाओं की उपलब्धता के यह मुख्य मार्गदर्शक हैं । इससे अतिरिक्त यदि निजीकरण के लाभ मुख्यता स्थानीय विशिष्ट वर्ग द्वारा उठाने हैं तो सुधार के लिये राजनैतिक रुकावट बढने की सम्भावना है ।
6. मापयोग्य परिणाम (Measurable Outcome):
निजी क्षेत्र द्वारा उपलब्ध की गयी सार्वजनिक सेवाओं का माप योग्य परिणाम होना आवश्यक है । उदाहरण के रूप में भौतिक निर्माण उपयोगिता सेवाओं का माप किया जा सकता है, परन्तु शिक्षा और पुलिस सेवाओं की गणना सरल नहीं है । इस प्रकार, विशिष्टता का अभाव निजीकरण द्वारा उपलब्ध सेवाओं के नियन्त्रण को अधिक कठिन बना देता है ।
7. राजनैतिक तत्परता (Political Willingness):
जब तक देश के राजनैतिक नेतृत्व की निजीकरण के प्रति प्रतिबद्धता नहीं होगी तब तक निजीकरण सफल नहीं हो सकता । वास्तव में यह लोगों के निष्पादन में प्रतिबिम्बित होता जो अन्य विकल्पों के निष्पादन से असन्तोष से उत्पन्न होता है ।
वर्ष 1929-30 की विश्वस्तरीय मन्दी से पहले निजीकरण ने बहुत अच्छा कार्य किया क्योंकि सरकार दृढतापूर्वक वचनबद्ध थी । हाल ही में, आधुनिक सरकारों की अभिवृति निजीकरण की ओर हुई है जब उन्होंने बजटीय घाटों में तीव्र आर्थिक संकट का सामना किया ।
Essay # 7. भारत में निजीकरण (Privatisation in India):
अन्तर्राष्ट्रीय मौद्रिक कोष और विश्व बैंक द्वारा प्रस्तावित आर्थिक सुधारों के आरम्भण से बहुत पहले, राज्य स्तरीय सार्वजनिक उद्यमों के निजीकरण कुछ उदाहरण थे । यद्यपि, हमारे देश में निजीकरण के कुछ थोड़े ही मामले थे । अभी तक इस सम्बन्ध में कोई स्पष्ट नीति निर्णय नहीं लिया गया ।
परन्तु श्री राजीव गांधी द्वारा प्रधानमन्त्री का पद सम्भालने के पश्चात् कुछ क्षेत्रों में मतान्धता को परिणामवादिता द्वारा बदलने की लहर देखी गई । तथापि नये राजनैतिक सन्तुलन की खोज के सन्दर्भ में, स्थिति अस्पष्ट और दिशाहीन दिखाई देती थी ।
भारत में केन्द्र एवं राज्यों में सार्वजनिक क्षेत्र का बहुत विस्तार हुआ है । इसका विस्तार अनावश्यक क्षेत्र की ओर हो गया, यहां तक कि ऐसे क्षेत्रों में जहां निजी क्षेत्र बेहतर कार्य कर सकते थे । बहुत सी राज्य सरकारें निजीकरण से प्रसन्न हो रही हैं ।
परन्तु राजनैतिक हितों में भिन्नता के कारण, प्रशासन के पास दृढ़ इरादे का अभाव है । अतः स्थिति ऐसी है कि देश में इस प्रकार के परिवर्तन की आशा नहीं की जा सकती । केरला और कर्नाटका दो प्रान्त हैं जिन्होंने इस दिशा में कदम उठाये । यह देखा गया कि केरला सरकार ‘राज्य पर्यटन विकास निगम’ द्वारा संचालित होटलों के निजीकरण का विचार रखती थी परन्तु राजनीतिक दलों और व्यापार संघों के विरोध के कारण यह विचार छोड़ना पड़ा ।
इसके अतिरिक्त कर्नाटक सरकार ने घाटे में चल रहे राज्य के स्त्रामित्व विरोध के कारण यह विचार छोड़ना पड़ा । इसके अतिरिक्त कर्नाटक सरकार ने घाटे में चल रहे राज्य के स्वामित्व वाले उद्यमों से छुटकारा पाने का साहसिक निर्णय लिया । उस समय के उद्योग मन्त्री जे.एच.पटेल ने विधान परिषद् में स्पष्ट किया कि हानि उठा कर साबुन, साफ सफाई का सामान तथा चमड़े की वस्तुओं को बनाने वाली इकाइयों आदि को चलाने में कोई तर्क नहीं है ।
नई औद्योगिक नीति भी निजीकरण की ओर एक महत्त्वपूर्ण पग है । यह अनेक उद्योगों में एकाधिकार को समाप्त करता है । नई औद्योगिक नीति में, अब आठ ऐसे उद्योग हैं जो केवल सार्वजनिक क्षेत्र के लिये आरक्षित हैं जबकि पहले ऐसे उद्योगों की संख्या 17 थी । अतः निजी क्षेत्र के लिये निर्धारित उद्योगों में सम्मिलित हैं-लोहा और इस्पात, ऊर्जा, टैलीकॉम और टैलीफोन की तारें, टैलीग्राफ और वायरलैस, वायुयान और वायु परिवहन, भारी उद्योग और मशीनरी आदि ।
सूची B की समाप्ति जिसमें 12 उद्योगों की सूची है जिसमें सार्वजनिक क्षेत्र द्वारा प्रभुत्वपूर्ण भूमिका का प्रस्ताव था भी एक महत्वपूर्ण नीति परिवर्तन है । गोला-बारूद और रक्षा से सम्बन्धित साज-सामान, परमाणु ऊर्जा और खनिज पदार्थों के अतिरिक्त सरकार सार्वजनिक क्षेत्र के लिये आरक्षित बहुत से उद्योग निजी क्षेत्र के लिये खोलना चाहती है ।
इसके अतिरिक्त, नीति म्यूच्युल फण्डों, कर्मचारियों और लोगों को शेयर बेचकर निजीकरण का प्रस्ताव भी रखती हैं । केन्द्रीय सरकार लोगों के निवेश की वर्तमान सूची पर पुनर्विचार के सम्बन्ध में भी सोच रही है क्योंकि वह निम्नलिखित स्थितियों वाले क्षेत्रों से लोगों के निवेश को कम करना चाहती है ।
(i) तकनीक पर आधारित उद्योग
(ii) लधु क्षेत्र तथा गैर महत्वपूर्ण क्षेत्र
(iii) अदक्ष एवं अनुत्पादक क्षेत्र
(iv) कम अथवा शून्य सामाजिक दायित्व वाले क्षेत्र
(v) ऐसे क्षेत्र जहां निजी क्षेत्र ने पर्याप्त विशेषज्ञता और साधन विकसित कर लिये हैं संक्षेप में, केन्द्रीय सरकार और प्रान्तीय सरकारें सभी व्यवहार्य सार्वजनिक इकाइयों में स्थिति अनुसार निवेश करके बडे स्तर पर निजीकरण के लिये तैयारी कर रही है ।
Essay # 8. निजीकरण-वैश्विक प्रभाव (Privatisation-Global Impact):
निजीकरण, अब एक विश्व स्तरीय परिदृश्य है, इसकी सीमा और प्रभाव बहू रहे हैं । यह विश्व के 70 से अधिक देशों में घटित हो रहा है । यह चलन ब्रिटेन में आरम्भ हुआ और अनेक देशों ने इसका अनुकरण किया, इस प्रकार वोलटेर के (Voltair) प्रश्न का सकारात्मक उत्तर प्राप्त हुआ ”कोई इतना बुद्धिमान है जो अन्यों के अनुभव से सीखे ?”
निजीकरण की प्रवृत्ति का विकसित एवं विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में अवलोकन किया गया है, बाजार प्रवृतिक और समाजवादी देशों में तथा साम्यवादी देशों में इसका चलन समाज-आर्थिक व्यवस्था की अनदेखी करता है ।
ब्रिटिश सरकार ने प्रधानमन्त्री मारग्रेट थैचर (Margaret Thatcher) के नेतृत्व में अनुभव किया कि निजीकरण, सार्वजनिक क्षेत्र की अधिक मौलिक समस्याओं का समाधान कर सकता है । इसलिये, सार्वजनिक क्षेत्र की संस्थाओं का आशिक सूचीयन, जिनका ब्रिटेन में निजीकरण किया गया है अत्यधिक उन्नति दर्शाता है ।
इसमें सम्मिलित हैं- अमेरशाम इंटरनैश्नल (Amersham International), ब्रिटिश रेल होटल, इंगलिश चैनल फैरी सर्विस, ब्रिटिश पैट्रोलियम, ब्रिटिश एअरोपेस, ब्रिटोयल, केबल एण्ड वायरलैस, एसोसिएटिड ब्रिटिश पार्टस, जैगूर कारज, नैशनल फ्रंट कार्पोरेशन, सैवरल शिपयार्डप्त, ब्रिटिश टैलीकॉम, रायल ओर्डीनैंस फैक्टरीज, गिबरालटर डॉकयार्ड आदि । निजीकरण की सूची पर आगे हैं ब्रिटिश गैस जिसका अनुकरण ब्रिटिश एयरवेज द्वारा किया जायेगा ।
फ्रांस में पहली तीन निजीकरण होने वाली कम्पनियां थीं- सेंट गोबेन, एक शीशे और इंजीनियरिंग का ग्रूप, बानाक्यू पारीबास तथा ग्रूप देस एश्योरैंस जर्नलक डी फ्रांस । इसके पश्चात् बहुत से बैंकों, वित्तीय संस्थाओं, बीमा कम्पनियों तथा बड़े-बड़े उद्योग गुप्तों का निजीकरण हुआ । निजीकरण ने प्रायः तीन सामान्य क्षेत्रों पर ध्यान केन्द्रित किया है अर्थात् उद्योग, परिवहन और बैंक ।
वर्ष 1984 में पश्चिमी जर्मनी ने वेबा एनर्जी ग्रूप (Veba Energy Group) में शेयरों की संख्या 43.7 प्रतिशत से घटा कर 30 प्रतिशत कर दी, इसके लिये 44 प्रतिशत शेयरों की बिक्री की गई । चीन ने सार्वजनिक उद्यमों पर से सरकारी नियन्त्रण स्थापित करने का प्रयत्न किया ।
चीन सरकार ने ठेका देने के मार्ग को प्राथमिकता दी । चीन के दक्षिणी प्रान्तों में वास्तव में पूंजीवाद विद्यमान है । वहाँ तीन राज्यों के स्वामित्व वाली कम्पनियों से श्रमिकों ने भारी निवेश द्वारा 30 प्रतिशत शेयर खरीदे ।
नवम्बर 1986 में, सोवियत यूनियन ने निजी क्षेत्र की गतिविधियों की सीमा को वैध रूप देने के लिये एक नये कानून का निर्माण किया । इसने नागरिकों को व्यापार में प्रवेश और निर्माण की इजाजत दी । पुराने यू.एस.एस.आर. के पूर्ण पतन के पश्चात्, नये स्वतन्त्र गणराज्य निजीकरण की योजनाओं का अनुसरण कर रहे हैं । वर्ष 1991 में, मुक्त अर्थव्यवस्था के पक्ष में नये आर्थिक सुधार आरम्भ किये गये ।
कोलम्बिया सरकार ने चार बैंकों के निजीकरण के लिये कानून पास किया है- लोक, स्टोक और बैरल । ब्राजील में 20 सार्वजनिक क्षेत्र की कम्पनियां बेची गई और 27 अन्यों का स्थानीय प्राधिकरणों में विलय किया गया । इसके अतिरिक्त निजीकरण करने वाली अन्य कम्पनियों की पहचान की गई ।
जापान में निजीकरण को उच्च महत्व दिया जाता है । विमानन विभाग के मन्त्री ने प्रस्तावित किया कि जापान वायु मार्गों में निजीकरण का अपनाया जाये ताकि 1985 में बोइंग 747 के विनाश के पश्चात् लोगों का विश्वास फिर से प्राप्त किया जा सके । इसके अतिरिक्त जापान राष्ट्रीय रेल मार्गों का निजीकरण आरम्भ किया गया तथा जापान में निजीकरण के फलस्वरूप अच्छे परिणाम प्राप्त हुये हैं । अप्रैल 1987 में सात रेलमार्ग कम्पनियों में निजीकरण के पश्चात् 1.50 बिलियन यैन (Yen) के कुल लाभ प्राप्त हुये ।