लोक प्रशासन पर निबंध: अर्थ और उद्देश्य | Essay on Public Administration: Meaning and Objectives in Hindi!
लोक प्रशासन पर निबंध | Essay on Public Administration
Essay # 1. लोक प्रशासन का प्रारम्भ (Introduction to Public Administration):
हम प्रतिदिन अनेक ऐसे कार्यों से रूबरू होते हैं, जो सार्वजनिक सेवाओं का एक भाग होता है- मसलन नगरपालिका की पानी आपूर्ति योजना द्वारा घरों में पेयजल का पहुंचाया जाना, विद्युत व्यवस्था की देखभाल द्वारा घरों, सड़कों आदि को रौशन रखना, सरकार नियंत्रित परिवहन के साधनों द्वारा व्यक्तियों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंचाने की जवाबदारी का निर्वहन, अपराधों की रोकथाम के लिए पुलिस द्वारा गश्त देना- ये और ऐसे बहुत से कार्य किसी एक व्यक्ति विशेष के लिए नहीं होते अपितु सारी जनता को ध्यान में रखकर सम्पन्न किये जाते है ।
जो तंत्र इन गतिविधियों को सम्पन्न करने में लगा हुआ है उसे ही लोक प्रशासन कहा जाता है । चूंकि इन कार्यों को सम्पन्न करने के लिए भी बहुत से अन्य कार्य यथा, सिद्धांतों, नियमों, कानूनों का निर्माण, उनकी व्याख्या, कार्य करने का ढंग, उपर्युक्त कार्मिकों की व्यवस्था आदि निर्धारित करना होता है, अतएव लोक प्रशासन एक व्यवस्थित संगठन के साथ ही एक प्रकार्य के रूप में भी हमारे सामने उपस्थित होता है ।
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इन कार्यों की जवाबदारी वस्तुत: वह राजनीतिक प्रणाली ओढ़ती है, जो जनता से तत् संबंधी किये गये वादों के बल पर टिकी होती है । राजनैतिक सत्ता अपने कार्यों को जनता तक पहुंचाने हेतु जिस प्रशासनिक मशीनरी का गठन करती है वही लोक प्रशासन का संगठन कहलाता है ।
इस प्रकार राजनीतिक नेतृत्व लोक प्रशासन का एक आधारभूत लक्षण है और यही लोक प्रशासन में लोक को ‘सरकार’ का अर्थ प्रदान करता है । अत: लोक प्रशासन का अर्थ है- ‘सरकारी प्रशासन’ । यहां सरकार राजशाही हो या प्रजातंत्रवादी, साम्यवादी हो या पूंजीवादी, समाजवादी हो या कुलीन तंत्रीय या फिर वह सैनिक तानाशाही से ही क्यों न ग्रस्त हो, लोक प्रशासन का यह लक्षण सबके साथ संबंद्ध है, भले ही उसके संगठन तथा उसके द्वारा संपादित कार्यों की प्रकृति में देश से देश, सरकार से सरकार में कुछ भिन्नतायें दृष्ट्रव्य हो सकती हैं ।
कहीं वह नियामिकीय कार्यों में अधिक उलझा दिखाई देता है तो कहीं विकास कार्यों में अधिक संलग्न है लेकिन हर ऐसी गतिविधि से जुड़ा प्रशासन लोक प्रशासन है जिसका सदैव एक मात्र उद्देश्य सार्वजनिक घटनाओं का प्रबंध करना है ।
इसीलिए प्राचीन समाजों में राजतंत्र के अंतर्गत कार्यरत प्रशासन भी लोक प्रशासन था- यद्यपि वह जनहित के कार्यों को मामूली तौर पर, ऐच्छिक आधार पर करता था । तथा मुख्य रूप से शांति व्यवस्था, कर वसूली जैसे नियामिकीय कार्यों को ही करता था ।
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चूंकि उक्त कार्य व्यक्ति विशेष के स्थान पर संपूर्ण जनता को केंद्र में रखकर किये जाते थे अत: तब का प्रशासन भी सार्वजनिक या लोक प्रशासन था । स्पष्टतः “सार्वजनिक चरित्र” लोक प्रशासन का अत्यंत महत्वपूर्ण लक्षण है । अत: लोक प्रशासन की एक संज्ञा “सार्वजनिक प्रशासन” भी है।
प्राचीन और आधुनिक लोक प्रशासन में फर्क उद्देश्यों के साथ उनके चरित्र को लेकर भी है । राजतंत्रीय प्रशासन निरंकुश, पितृ सत्तात्मक और कुलीन वर्गीय था जबकि आधुनिक प्रशासन लोक तांत्रिक, सर्वसत्तावादी और योग्यता आधारित है ।
प्रत्येक देश की सरकार के प्राय: तीन अंग होते हैं:
(i) विधायिका,
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(ii) कार्यपालिका और
(iii) न्यायपालिका ।
यूं तो सरकार के प्रत्येक अंग में कार्यों प्रक्रियाओं आदि को सम्पन्न करने के लिए एक प्रशासनिक तंत्र या ढांचा मौजूद होता है, लेकिन इसका विस्तृत, व्यापक और वास्तविक दिग्दर्शन कार्यपालिका में होता है । यह प्रशासनिक तंत्र कार्यपालिका का अधीनस्थ लेकिन उससे बड़ा भाग होता है । कार्यपालिका का उच्च स्तर उन राजनीतिक मंत्रियों से बनता है, जो संसदीय देशों में विधायिका के ही सदस्य होते हैं ।
अध्यक्षीय प्रणाली वाले प्रजातंत्रीय राष्ट्रों तथा साम्यवादी देशों में यह व्यवस्थापिका से अमूमन असम्बन्धित होते है । बहरहाल यह राजनीतिक कार्यपालिका चार या पाँच वर्षों की अल्पावधि के लिए सत्तारूढ होती है, इन्हें शासन चलाने में मदद करने हेतु पहले से मौजूद प्रशासन तमाम अनुभव और योग्यता के साथ तैयार मिलता है, क्योंकि इसकी प्रकृति स्थायी होती है ।
यह स्थायित्व इस बात में है कि इन्हें राजनीतिक कार्यपालिका की भांति आना जाना नहीं पड़ता है, अपितु लम्बी अवधि तक कार्यरत लोकसेवकों में से कुछ हर साल निवृत्त होते हैं, और उनका स्थान नयों से भर लिया जाता है- इस प्रकार एक निरंतर और स्थायी प्रशासन बना रहता है । इसे स्थायी कार्यपालिका या अराजनीतिक कार्यपालिका भी कहते हैं ।
हम राजनीतिक सत्ता के लिए शासन और प्रशासनिक सत्ता के लिए प्रशासन शब्द का इस्तेमाल आमतौर पर करते हैं । शासन को सरकार का भी पर्याय मानते है । किसी अच्छी या खराब नीति के लिए शासन या सरकार को ही दोषी ठहराते हैं, जैसे कहते है, कि शासन यदि मुस्तैद है, तो अधिकारीगण लापरवाही नहीं कर सकते । इस दृष्टांत से हम शासन और प्रशासन के भेद को समझ सकते हैं । प्रशासन का निर्माण, सेवाशर्तें, नियुक्ति, स्थानांतरण, पदमुक्ति तथा अन्य अनुशासनिक कार्यवाहियाँ राजनीतिक कार्यपालिका तय करती हैं ।
स्थायी कार्यपालिका में वे सब असैनिक कार्मिक शामिल है, जो जनता की सेवा में लगे हैं, चाहे वे केन्द्र की सेवा में हों या राज्य की सेवा में या स्थानीय सरकार की सेवा में । इस कार्मिक ढांचे को ही मोटे तौर पर लोक प्रशासन के स्थूल स्वरूप की संज्ञा दी जाती है, यद्यपि इसका अर्थ ढांचे के बजाय इसके द्वारा संपादित कार्यों के संदर्भ में ही युक्तिपूर्ण ढंग से परिभाषित किया जा सकता है ।
दूसरे शब्दों में लोक प्रशासन एक संस्थागत ढांचे के बनिस्बत विभिन्न गतिविधियों, प्रक्रियाओं के लिए एक ”प्रकार्य” के रूप में अधिक महत्वपूर्ण है, क्योंकि ढांचा तो साधनमात्र है, जबकि उसके कार्य स्वयं में साध्य हैं । ध्यान रखना होगा कि लोक प्रशासन भी स्वयं में एक साधन है उन उद्देश्यों की प्राप्ति का, जिन्हें राजनीतिक तंत्र ने निर्धारित किया है ।
Essay # 2.
लोक प्रशासन के अर्थ (Meaning of Public Administration):
लोक प्रशासन के पारम्परिक अर्थ:
1950 के पूर्व लोक प्रशासन को सरकार और मुख्यत: कार्यपालिका भाग के कार्यों के रूप में परिभाषित किया लोक प्रशासन के पारम्परिक अर्थ प्रकार है-
(i) यह मात्र सरकारी कार्यों का पर्याय है ।
(ii) यह कार्यपालिका के कार्यों का ही प्रतीक है ।
(iii) लोक प्रशासन मात्र नीति क्रियान्वयन है । नीति निर्माण उसक क्षेत्र से बाहर है ।
(iv) लो प्र. का अर्थ सीमित और विशिष्ट है ।
(v) लो प्र. सामाजिक पर्यावरण से प्रथक है ।
(vi) लोक और निजी प्रशासन जैसी कोई पृथक चीजें नहीं होती क्योंकि सभी का उद्देश्य “सेवाएं” देना है और सेवा करने के तरीके, प्रक्रियाएं सर्वत्र समान होती हैं ।
(vii) इससे आशय उस विद्या से है जिसमें सरकारी संगठनों की संरचना का अध्ययन किया जाता है ।
लोक प्रशासन के आधुनिक अर्थ:
1950 के बाद लो. प्र. को नीति विज्ञान का अर्थ दिया गया । अब,
(i) यह सार्वजनिक कार्यों का प्रतीक है, चाहे उनका संबंध अशासकीय संस्थाओं से हो ।
(ii) इसमें सम्पूर्ण सरकार के क्रियाकलाप शामिल है ।
(iii) लोक प्रशासन नीति क्रियान्वयन के साथ नीति निर्माण है । (एपीलबी लो.प्र. नीति निर्माण भी है) ।
(iv) लो. प्र. का अर्थ विस्तरित और गतिशील हैं ।
(v) लो. प्र. का अर्थ सामाजिक पर्यावरण से प्रभावित है ।
(vi) लोक-निजी प्रशासन में अंतर लेकिन अंतरसंबंध है ।
1990 के बाद लोक प्रशासन “लोक प्रबंध” का ग्रहण कर गया है । (“व्यवसायिक-सरकार” दृष्टिकोण वाला नव लोक प्रबन्ध)
(vii) इससे आशय उस विद्या से है जिसमें सरकारी संगठनों संरचना के साथ उनके बदलते कार्य व्यवहार का अध्ययन मुख्यत: किया जाता है ।
Essay # 3.
लोक प्रशासन के उद्देश्य (Objectives of Public Administration):
1. प्रत्येक प्रशासन का उद्देश्य ”सेवा प्रदान” करना है । जब यह सेवा सार्वजनिक कल्याण के लिए दी जाती है, तो प्रशासन का स्वरूप सार्वजनिक हो जाता है और जब निजी लाभ के उद्देश्य से दी जाती है, तो प्रशासन “व्यैक्तिक” हो जाता है ।
2. लोक प्रशासन का उद्देश्य सार्वजनिक कल्याण या हितों की पूर्ति के लिए सेवा कार्य करना है । यह मूलभूत उद्देश्य ही उसे लाभ आधारित निजी प्रशासन से पृथक और विशिष्ट प्रशासन बना देता है ।
3. प्रत्येक प्रशासन जनता को सेवा देता है । लेकिन ”जनता” का रूप जहां लोक प्रशासन में ”नागरिक” होता है, वही निजी प्रशासन में वह ”उपभोक्ता” होता है ।
4. अत: लोक प्रशासन ”नागरिक सेवाओं” से जबकि निजी प्रशासन ”उपभोक्ता सेवाओं” से जुड़ा होता है ।
5. इसलिए लोक प्रशासन की सेवाओं का स्वरूप नागरिकों की मूलभूत आवश्यकताओं यथा रोजी-रोटी की व्यवस्था (रोजगार) शिक्षा, स्वास्थ्य की देख-रेख आदि का होता है, जबकि निजी प्रशासन की सेवाएं उपभोक्ता की विलासिता जरूरतों को पूरा करने से अधिक संबंधित है, जैसे टी.वी. फ्रिज, फास्ट-फूड आदि ।
6. दूसरे शब्दों में कहें तो लोक प्रशासन की सेवाओं के बिना आधुनिक युग में नागरिकों का जीवन मुश्किल है ।
निष्कर्षत:
लोक प्रशासन के उद्देश्य हैं:
(1) सार्वजनिक हितों की पूर्ति, सार्वजनिक घटनाओं का नियमन और सार्वजनिक समस्याओं का समाधान ।
(2) नागरिक सेवाओं की अनवरत आपूर्ति |
(3) सामाजिक न्याय की स्थापना ।
(4) व्यापक अर्थों में नागरिकों के उपभोक्ता हितों की सुरक्षा, निजी प्रशासन के सन्दर्भ में ।
(5) कानून के शासन की स्थापना ।
(6) आर्थिक-सामाजिक विकास, विशेषतः विकासशील देशों में ।
(7) राष्ट्र निर्माण में योगदान ।
Essay # 4.
लोक प्रशासन की प्रक्रिया (Process of Public Administration):
(1) राजनीतिक प्रक्रिया:
लोक प्रशासन का चरित्र राजनैतिक होता है । उसे राजनीतिक निर्देशों और नियन्त्रण के तहत रहकर काम करना होता है । यह वस्तुतः ‘मूल्योन्मुखी’ निर्देशन होता है, जो उसके कार्य को निर्धारित करता है ।
(2) कार्य-प्रक्रिया:
लोक प्रशासन जनता को सेवा देते समय निश्चित नियमों, कायदे-कानूनों द्वारा मर्यादित होता है । उसकी कार्य-प्रक्रिया निश्चित सिद्धान्तों और नियमों पर आधारित और उनसे निर्देशित होती है । उनका उल्लंघन कोई लोक सेवक नहीं कर सकता ।
Essay # 5.
लोक प्रशासन का चरित्र (Characters of Public Administration):
(1) राजनैतिक चरित्र:
प्रत्येक देश में लोक प्रशासन राजनीतिक कार्यपालिका का अधीनस्थ भाग माना जाता है । राजनीति ही प्रशासन के स्वरूप और दिशा को तय करती है । राजनीतिक निर्देशों के तहत लोक प्रशासन नागरिक संबंधी सेवाओं को सम्पादित करता है ।
यद्यपि इसका आशय राजनीतिक प्रतिबद्धता नहीं है, अपितु नीतिगत प्रतिबद्धता है । सत्तारूढ़ दल से नहीं अपितु उसकी शासन नीतियों से लोक प्रशासन संचालित होता है । राजनीतिक चरित्र ही उसे नागरिक स्वरूप भी प्रदान करता है ।
(2) कानूनी या वैधानिक चरित्र:
लोक प्रशासन को ही देश में यह विशिष्ट स्थिति प्राप्त होती है । उसका आधार भी संविधान है और उसके कार्यों को भी कानूनी शक्ति प्राप्त होती है ।
लोक प्रशासन का सामाजिक जीवन में योगदान:
लोक प्रशासन के सामाजिक जीवन में क्या योगदान रहे हैं, इन्हें इग्नू के प्रकाशन में 5 मुख्य शीर्षकों में समेटा गया है ।
जो इस प्रकार हैं:
1. ज्ञान मीमांसात्मक या सरकारी प्रशासन का व्यवस्थित अध्ययन:
वस्तुत: लोक प्रशासन ही ऐसा विषय है जिसमें सरकारी प्रशासन का विश्लेषण किया जाता है । इसके अन्तर्गत ही सरकारी कार्यों के प्रत्येक पहलू का अध्ययन स्पष्ट रूप से किया जाता है । और उसके लिये तथ्य, कड़े, जानकारी व्यवस्थित और क्रमबद्ध रूप से जुटायी जाती है ।
2. तकनीकी:
सार्वजनिक समस्याओं के समाधान के उपाय खोजना प्रशासन का मुख्य तकनीकि योगदान है । विषय के विकास के दौरान अनेक ऐसे सिद्धान्तों का अन्वेषण किया गया, जिन्होने प्रशासकों का उनके काम में मदद की और शासन को व्यवहारिक समाधान सुझाये ।
3. लोकपालिक या प्रशासनिक सच्चिरत्रता का विकास:
लोक प्रशासन के व्यवहारिक ”कार्य-स्वरूप” में पायी जाने वाली कमियों जैसे भ्रष्टाचार, लालफिताशाही, लापरवाही आदि की आलोचनाओं ने जहां जनता का सचेत किया, वही विद्वानों ने इनके समाधान सुझाये । फलस्वरूप प्रशासन को जनोन्मुख बनाने और नियन्त्रण में लाने के लिये अनेक कदम उठाये जाते रहे हैं, उदाहरण के लिए सर्तकता आयुक्त, लोकपाल आदि की नियुक्ति ।
4. उदार शिक्षात्मक:
लोक प्रशासन विषय ने जनता और समाज को प्रशासनिक दृष्टि से साक्षर बनाने में भी योगदान दिया है लोक प्रशासन विषय के अध्ययन से ही सम्पूर्ण सरकारी कार्य कलाप, उनके करने के ढंग और उनके सम्बन्ध में वैधानिक नियम आदि का ज्ञान समाज को होता है ।
5. व्यवसायिक इस विषय को अनेक विधार्थियों ने व्यवसाय के रूप में अपनाया है । इसे पड़ने वाले अनेक विधार्थियों ने सिविल सेवा को अपना कैरियर बनाया है या सिविल सेवा में जाने के उद्देश्य से इसका अध्ययन किया है । कई शैक्षणिक संस्थान आज लोक प्राशासन के शिक्षण-प्रशिक्षण में लगे हैं ।