लोक प्रशासन पर निबंध: शीर्ष चार निबंध | Essay on Public Administration: Top 4 Essays in Hindi language.

Essay # 1. लोक प्रशासन की परिभाषा (Definition of Public Administration):

लोक प्रशासन की व्याख्या संकुचित और व्यापक दोनों ही रूपों में की गई है । इसके अर्थ के स्पष्टीकरण और विवेचन के लिए यह स्वाभाविक है कि ‘लोक’ एवं ‘प्रशासन’ दोनों शब्दों में निहितार्थ ढूँढे जाएँ । लोक प्रशासन प्रशासन के विस्तृत क्षेत्र का ही एक भाग है ।

”प्रशासन एक लम्बा तथा अलंकारपूर्ण शब्द है, किन्तु इसका अर्थ सीधा-सादा है-लोगों की देखभाल करना तथा पारम्परिक संबंधों की व्यवस्था करना ।” ‘प्रशासन’ शब्द अंग्रेजी शब्द ‘Administer’ का हिन्दी रूपान्तर है और यह अंग्रेजी शब्द लेटिन भाषा के Ad + ministrate शब्दों की सन्धि से बना है जिसका शब्दार्थ है, ‘काम करवाना’ ।

प्रत्येक प्रशासक स्वयं तो कार्य करता ही है किन्तु उसे प्रशासक इसलिए कहा जाता है कि वह औरों से भी काम करवाता है । दूसरे शब्दों में, प्रशासन चलाने के लिए जब काम करवाया जाता है तो स्वाभाविक है कि उन कार्यों के लिए योजनाएं बनाई जाएं, योजनाओं की क्रियान्विति के लिए संगठन स्थापित किए जाएं, उन संगठनों में कर्मचारियों की नियुक्ति की जाए, फिर उन्हें दिशा-निर्देश दिए जाए, उनके कार्यों का समायोजन किया जाए और अन्त में प्रतिवेदन व्यवस्था और बजट प्रणाली द्वारा उन्हें नियंत्रित किया जाए ।

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इस सारे उपक्रम को प्रशासन की तकनीकी भाषा में पोस्डकोर्ब (POSDCORB) कहा जाता है । इस तरह व्यापक अर्थ में उसे उद्देश्य-प्राप्ति और उद्देश्य-निर्धारण की एक कला और विज्ञान कहा जा सकता है । इस प्रकार प्रशासन एक व्यापक प्रक्रिया है जो कि सार्वजनिक, नागरिक अथवा सैनिक, छोटे या बड़े, सभी सामूहिक कार्यों के बारे में सभी के संबंध में लागू होती है ।

प्रशासन की कुछ उल्लेखनीय परिभाषाएं निम्नलिखित है:

”वांछित उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए मानवीय एवं भौतिक साधनों का संगठन और संचालन ही प्रशासन है ।” -फिनर एवं प्रेस्थस

”प्रशासन एक निश्चित कार्य है जो किसी निर्धारित प्रयोजन की प्राप्ति हेतु किया जीता है । यह कार्यों की एक क्रमबद्ध व्यवस्था और साधनों का सुविधारित प्रयोग है जिसका लक्ष्य वांछित कार्य को सम्पन्न करने के साथ-साथ ऐसे कार्यों को रोकना भी है जो हमारे अभिप्रायों से मेल नह खाते । यह उपलब्ध श्रम एवं साधनों की भी क्रमिक व्यवस्था है ताकि कम से कम शक्ति, समय और व्यय से वांछित लक्ष्य की प्राप्ति हो सके ।” -जॉन ए. वीग

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”किसी उद्देश्य अथवा लक्ष्य की पूर्ति के लिए बहुमत से व्यक्तियों के निर्देशन (Direction), समन्वय (Co-ordination) तथा नियंत्रण (Control) को ही प्रशासन की कला कहा जाता है ।” –ह्वाइट

सबसे अधिक व्यापक अर्थ में, समान लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए वर्गों द्वारा तथा साथ मिलकर की जाने वाली क्रियाओं को प्रशासन कहा जा सकता है ।” -हरबर्ट ए. साइमन

उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर यह निष्कर्ष स्पष्ट है कि प्रशासन मनुष्य एवं सामग्री का ऐसा प्रयोग तथा संगठन है जिससे लक्ष्य की प्राप्ति हो सके और इसमें कार्य करना तथा दूसरों से कार्य करवाना सम्मिलित है ।

Essay # 2. लोक प्रशासन के सिद्धांत (Principles of Public Administration):

लोक प्रशासन एक विकासशील विषय है जिसे किन्हीं सुनिश्चित सिद्धांतो की परिधि में नह बाँधा जा सकता । वाल्डो का यह कथन बहुत हद तक सही है कि कुछ अन्धे आदमियों ने हाथी को टटोला और जो अंग जिसके हाथ में आया वही उसे हाथी का स्वरूप मान बैठा । अनेक विद्वान तो इस मत के हैं कि लोक प्रशासन में सिद्धांत जैसी सम्भवत: कोई वस्तु नह है, अत: इसके सिद्धांतों की स्थापना का प्रश्न भविष्य के लिए स्थगित कर देना चाहिए ।

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लोक प्रशासन को सुनिश्चित सिद्धांतों की परिसीमाओं में नह बाँधा जा सकता, तथापि इसे विज्ञान की परिधि में लाने के लिए कुछ ऐसे सिद्धांतों की प्रस्थापना अवश्य करनी होगी जो इसके मार्गदर्शन का कार्य करें तथा इसे वैज्ञानिक स्वरूप प्रदान कर सकें ।

इस बात को ध्यान में रखकर साइमन ने लोक-प्रशासन के संबंध में चार सिद्धांत प्रस्थापित किए हैं जो ग्लैडन द्वारा इस रूप में उद्धत किए गए हैं:

(1) कार्य विशेषीकरण का सिद्धांत,

(2) पदाधिकारियों के अधिकार स्तर के निश्चय का सिद्धांत,

(3) किसी एक केन्द्रबिन्दु पर प्रशासकीय सत्ता को आश्रित करने का सिद्धांत, एवं

(4) नियंत्रण के आधार पर कर्मचारियों के समूहीकरण का सिद्धांत ।

कुछ विद्वानों ने वार्नर द्वारा स्थापित उपर्युक्त आठ सिद्धांतों के अतिरिक्त कुछ और भी सिद्धांत सुझाए हैं, जैसे- सत्ता का सिद्धांत, आज्ञापालन एवं अनुशासन का सिद्धांत, कर्तव्य एवं रुचि का सिद्धांत, सहयोग एवं एकीकरण का सिद्धांत, औचित्य एवं न्याय का सिद्धात तथा श्रम-विभाजन और कार्य-विशेषीकरण का सिद्धांत लेकिन गहराई से विश्लेषण करने पर इन सिद्धांतों में पाई जाने वाली सभी बातें वार्नर के आठ सिद्धांतों में उपलब्ध हैं ।

पुनश्च: लोक प्रशासन एक सतत् विकासशील विज्ञान है जिसको सुनिश्चित सिद्धांतों के कटघरे में बाधित नह किया जा सकता । इसके बावजूद यही कहा जा सकता है कि कोई भी सिद्धांत ऐसे नह हो सकते जिनसे लोक प्रशासन कठोरता से चिपककर लकीर का फकीर बना रहे । जो आधारभूत सिद्धांत प्रतिपादित किये गए हैं वे केवल यही प्रस्थापित करते हैं कि लोक प्रशासन को उनके अनुकूल आचरण करना चाहिए ।

Essay # 3. लोक प्रशासन एवं निजी प्रशासन (Public Administration and Personal Administration):

असमानताएं:

लोक प्रशासन और निजी प्रशासन में बहुत-सी समानताओं के साथ ही अंतर भी स्पष्ट दिखाई देते हैं जो इस प्रकार हैं:

1. लोक प्रशासन का मुख्य उद्देश्य जनता की सेवा है । अरस्तु सामान्य कल्याण और विशेष विषयों एवं वस्तु स्थितियों में मुवक्किलों का संतोष लक्ष्य है जिनको लोक प्रशासन को प्राप्त करना चाहिए । इसके विपरीत व्यापारिक प्रशासन का मूलभूत उद्देश्य व्यापार स्वामियों के लिए लाभ अर्जित करना होता है । लाभार्जन में असमर्थता एक निजी उद्यम को व्यापार से बाहर हटा देगी ।

2. लोक प्रशासन को कठोरता के साथ कानून, नियमों एवं अधिनियमों के अनुसार कार्य करना होता है । कानून के प्रति अपूर्व निष्ठा सार्वजनिक क्षेत्र के कार्यान्वयन में कठोरता लाती है । लेखा-परीक्षण अथवा अधिनियमों से विपस्गमन की सदैव आशंका रहती है और यही निष्पादन पर प्रतिबंधों का कार्य करती है, इसके प्रतिकूल व्यापारिक प्रशासन सापेक्षिक रूप में कानून और अधिनियमों के प्रतिबंधों से मुक्त होता है ।

निश्चित रूप से व्यापार को नियंत्रित करने के लिए सामान्य कानून है लेकिन व्यक्तिगत व्यापारिक संस्थानों में परिवर्तनशील स्थितियों के अनुरूप कार्यान्वयन का पर्याप्त लचीलापन होता है । यह उसके विशेष कानूनी और नियमों से सापेक्षिक स्वतंत्रता के कारण संभव होता है जो कि लोक प्रशासन में प्रचुर मात्रा में होता है ।

3. लोक प्रशासन के कार्य जनता के समक्ष अत्याधिक अनावृत होते हैं उपलब्धि का शायद ही कभी प्रचार किया जाता है लेकिन छोटा-सा दोष समाचार-पत्रों के शीर्षक के रूप में प्रकाशित होता है । पुलिस जैसे संगठनों को हमेशा इस बात के लिए सतर्क रहना पड़ता है कि उनके किसी क्रियाकलाप से जन-समूह क्रुद्ध न हो जाए । व्यापारिक प्रशासन में ऐसा व्यापार प्रचार नहीं होता है और न ही जनता और प्रचार माध्यम इस ओर अधिक ध्यान देते हैं ।

4. लोक प्रशासन में भेदभाव अथवा पक्षपात का कोई भी कार्य जनता अथवा विधायी आलोचना को आमंत्रित करता है । अरस्तु, प्रशासकों को जनता के साथ व्यवहार में सुसंगत एवं निष्पक्ष रहना पड़ता है । व्यापारिक प्रशासन में भेदभाव का उन्मुक्त रूप से प्रयोग किया जाता है । उत्पादनों के चयन अथवा मूल्य निर्धारण में व्यापारिक प्रशासन मुख्य रूप से भेदभाव करता है जो कि व्यापारिक संस्कृति का एक अंग है ।

5. लोक प्रशासन, विशेष रूप से सरकार के उच्च स्तर पर अत्याधिक जटिल है जहां अनेक उच्चस्तरीय सिफारिशें एवं दबाव होते है उच्चस्तरीय बैठकें एवं विचार विमर्श होते हैं । विचार विमर्श अनेक बैठकों तक चलते रहते हैं । एक विभाग की गतिविधियों की अनेक शाखाएं-प्रशाखाएं होती है जो अन्य विभागों तक फैल जाती है । इसके विपरीत व्यापारिक प्रशासन अपेक्षाकृत सुगठित होता है और कार्यान्वयन में एकाग्रता होती है । संगठन और कार्यान्वयन में जटिलता बहुत कम होती है, दबाव तो निश्चित रूप से नहीं होते हैं ।

6. राजनीतिक निर्देशन ही लोक प्रशासन को विशेष चरित्र प्रदान करता है । राजनीति लोक प्रशासन के मूल में है और उच्च स्तर पर सिविल सेवा अधिकारियों में राजनीतिज्ञों के साथ काम करने तथा रहने के लिए चतुरता तथा परिपक्व बुद्धि अवश्य होनी चाहिए, लोक प्रशासन की यह विशेषता इसको व्यापारिक प्रशासन से स्पष्ट रूप से पृथक् करती है ।

समानताएं:

1. कर्मचारी वर्ग की समानता:

दोनों ही प्रशासनों में समान कार्य करने वाले लोग होते हैं । दोनों ही प्रशासनों में कार्य करने के कारण कर्मचारियों का लोक प्रशासन से निजी प्रशासन में और निजी प्रशासन से लोक प्रशासन में आदान-प्रदान हो जाता है । 1949-50 में भारत सरकार को उच्च पदाधिकारियों का अभाव हो जाने पर IAS की विशेष भर्ती के लिए औद्योगिक संस्थानों में काम करने वाले व्यक्तियों को भी आवेदन-पत्र भेजने का निमंत्रण देना पड़ा ।

दूसरी ओर अवकाश प्राप्त सरकारी कर्मचारी व्यापारिक और औद्योगिक संस्थानों में स्थान प्राप्त कर लेते हैं । ब्रिटेन में भी कोयला, गैस, विद्युत और यातायात के साधनों का राष्ट्रीयकरण होने पर उनमें लगे अधिकांश पदाधिकारियों को हटाया नहीं गया ।

2. संगठन का समान आधार:

संगठन और प्रबंध दोनों ही प्रशासनों में एक जैसा है । दोनों ही प्रशासनों में मानवीय और भौतिक साधनों के संगठन का समान महत्व है, दोनों के उचित संगठन से ही निजी अथवा लोक प्रशासन अपने-अपने उद्देश्य प्राप्त कर सकते हैं ।

संगठन के बारे में दोनों प्रशासनों (निजी और लोक) के सिद्धांत लगभग एक जैसे ही है, इसके अतिरिक्त जैसे निजी उद्योग में नीति का निर्धारण एक निदेशक मंडल द्वारा किया जाता है उसी प्रकार लोक प्रशासन में संसद निदेशक मंडल के रूप में नीति-निर्धारण संबंधी कार्य करती है । जिसे विलोबी ने संसद या विधान मंडल को निदेशक मंडल और मुख्य कार्यपालिका को जनरल मैनेजर (निजी उद्योग में) का नाम दिया है ।

3. प्रशासन की समान तकनीक:

दोनों ही प्रशासकों में एक ही प्रकार की प्रशासनिक तकनीकों का प्रयोग किया जाता है । जैसे- लेखा-जोखा रखना, आंकड़े इकट्‌ठा करना, फाइलें रखना, टिप्पणी लिखना आदि दोनों ही प्रशासनों में वैज्ञानिक प्रबंध आवश्यक है । यह उल्लेखनीय है कि प्रशासकीय अधिकारी विद्यालय हैदराबाद में सरकारी उद्योगों, निजी उद्योगों और प्रशासकीय विभागों में कार्यरत कर्मचारियों को एक ही तरह की ट्रेनिंग दी जाती है ।

4. विकास और प्रगति:

लोक प्रशासन और निजी प्रशासन दोनों में विकास और प्रगति को एक-दूसरे से ग्रहण किया जाता है । निजी प्रशासन के अनुभव और ज्ञान से लोक प्रशासन ने बहुत कुछ ज्ञान प्राप्त किया है । नि:संदेह सरकारी निगमों और दूसरे आय वाले विभागों (जैसे- रेल, डाक-तार आदि) का संचालन व्यापारिक पद्धतियों पर होता है ।

संयुक्त राज्य अमेरिका में निजी प्रशासन के क्षेत्र में जो शोध और कार्य हो रहा है उसे बिना किसी संकोच के लोक प्रशासन के क्षेत्र में अपनाया जा रहा है । दूसरी ओर बड़े निजी उद्योग (जैसे- डी.सी.एम., गोदरेज, टाटा उद्योग समूह आदि) में भी सरकारी प्रशासन की बहुत-सी चीजों को अपनाया जा रहा है ।

जैसे- सेवा का संरक्षण, कर्मचारियों को अधिक से अधिक सुविधाओं का प्रबंध, बोनस व बीमा की सुविधा, चिकित्सा व आवारा आदि की सुविधा सरकारी प्रशासन की ही नकल है ।

5. जनसंपर्क:

दोनों ही प्रकार के प्रशासन विभिन्न उपायों द्वारा जनता से निकटतम संपर्क स्थापित करने का प्रयत्न करते हैं । लोक प्रशासन में तो जनसंपर्क का महत्व है ही निजी उद्योगों में भी जन-संपर्क अधिकारी की व्यवस्था की जाती है ।

6. प्रशासन के समान सिद्धांत:

दोनों ही प्रशासनों में समान सिद्धांत पाए जाते हैं । लूथर गुलिक के POSDCORB सिद्धांत की उपयोगिता लोक प्रशासन में ही नहीं निजी प्रशासन में भी है । इसी प्रकार आदेश की एकता (Unity of Command) का सिद्धांत दोनों ही प्रशासनों के लिए उपयोगी है ।

दोनों प्रशासनों में उपर्युक्त समानताओं के कारण ही साइमन ने लिखा है कि- “वास्तव में प्रशासन के क्षेत्र में अधिकतर लोक और निजी प्रशासन की अपेक्षा छोटे और व्यापार संगठनों का अंतर है । दोनों प्रकार के प्रशासनों में प्राय: किस्म की अपेक्षा मात्रा का अंतर अधिक है ।”

Essay # 4. लोकप्रशासन के तत्व (Elements of Public Administration):

प्रशासन में दक्षता और सफलता के लिए कुछ तत्वों सामंजस्य आवश्यक है । यह आवश्यकता प्रत्येक स्तर प्रशासन के लिए अनिवार्य है । संगठन, कार्य-प्रणाली प्रक्रिया के प्रश्न सभी स्तरों पर आवश्यक एवं महत्वपूर्ण है ।

 

इन्हें मुख्यत: तीन वर्गों में विभाजित किया जाता है:

(1) कार्यकारिणी के प्रमुख और व्यवस्थापिका में नीति-निर्धारण के लिए फलोत्पादक संबंध हों ।

(2) कार्यकारिणी के प्रमुख, उसके प्रमुख सहायक तथा प्रमुख महत्वपूर्ण निम्नस्तरीय प्रशासक में इतनी योग्यता होनी चाहिए कि वे निर्धारित नीतियों को क्रियात्मक रूप में नियोजित कर सके ।

(3) जिन अधिकारियों को नीति के व्यवहार के लिए नियुक्ति किया जाए वे अपनी योग्यता और कार्यकुशलता से सामान्य कर्मचारियों के कार्यों में सामंजस्य लाते हुए अपने निर्देश से उनका स्वाभाविक सहयोग प्राप्त कर सके । वास्तव में ये सामान्य कर्मचारी ही निर्धारित योजना को कार्यान्वित करते है, इसलिए भावनाओं, विचारधाराओं, मान्यताओं आदि को सुरक्षित रखते हुए निर्देश द्वारा उनके सहयोग को प्राप्त करना आवश्यक है ।

इन तीनों तत्वों के होने पर निर्धारित नीति का कुशलतापूर्वक क्रियान्वन किया जा सकता है । ये तीनों ही तत्व अलग-अलग नीतियों का निरूपण करते हैं । प्रथम, इस बात पर बल देता है कि नीति-निर्धारण के स्तर पर कार्यकारिणी के प्रमुख और व्यवस्थापिका के सहयोग के भाव में नीतियों में व्यवहारिकता का अभाव रह सकता है ।

दूसरा, कार्यकारिणी के प्रमुख का प्रशासकीय संगठन के साथ सौम्य व्यवहार की आवश्यकता को प्रतिपादित करता है, वह इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि इस स्तर पर ही निर्धारित नीति का भाष्य अथवा व्याख्या की जाती है और उसे व्यवहार के अनुरूप नियोजित किया जाता है । निश्चित योजना के अभाव में अनेक असफल भाष्य तैयार हो जाएंगे जिनमें सम्भव है नीति की आत्मा का हनन हो गया हो ।

तीसरी और अन्तिम, सर्वाधिक महत्वपूर्ण हैं क्योंकि ये सामान्य कर्मचारी ही प्रशासन को प्रशासन का स्वरूप प्रदान करते हैं, इनके द्वारा वास्तव में मूलभूत कार्य सम्पन्न होते हैं । इसलिए निर्देश के द्वारा इनके कार्यों में सामंजस्य लाना और उनके हितों और भावनाओं आदि को सुरक्षित रखना आवश्यक रहता है ताकि उनका सहयोग स्वाभाविक रूप से उपलब्ध हो सके ।