राज्य सभा पर निबंध | Essay on the Rajya Sabha in Hindi.

Essay # 1. राज्यसभा के सदस्यों के लिए योग्यताएँ (Qualification of Members of Rajya Sabha):

राज्यसभा एक स्थायी सदन है, जिसका विघटन नहीं होता बल्कि इसके एक तिहाई सदस्य प्रत्येक दूसरे वर्ष सेवा निवृत्त हो जाते हैं, लेकिन इसके एक सदस्य का कार्यकाल 6 वर्ष का होता है ।

राज्यसभा के सदस्यों के लिए योग्यताएँ (Members’ Qualifications):

1. उसकी आयु 30 वर्ष से कम न हो ।

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2. भारत का नागरिक हो ।

3. वह पागल या दिवालिया न हो ।

4. वह भारत या राज्य सरकार के अधीन लाभदायक पद पर न हो ।

5. जिस राज्य से वह चुनाव लड़ रहा हो, उस राज्य की मतदाता सूची में उसका नाम हो ।

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6. संसद द्वारा निर्धारित योग्यताएँ रखता हो ।

7. संसद विधि द्वारा अयोग्य घोषित नहीं किया गया हो ।

Essay # 2. राज्यसभा का सभापति (Chairman of the Rajya Sabha):

संविधान के अनुच्छेद 89(1) के अनुसार भारत का उपराष्ट्रपति राज्यसभा का पदेन सभापति होता है तथा राज्यसभा में से ही किसी व्यक्ति को उपसभापति भी नियुक्त किया जा सकता है, जोकि उपराष्ट्रपति की अनुपस्थिति में राज्यसभा की अध्यक्षता करता है लेकिन जब सभापति और उपसभापति दोनों ही अनुपस्थित हों तब ऐसा व्यक्ति सदन की अध्यक्षता करता है जिसे सदन नियुक्त करे ।

लोकसभा की भांति राज्यसभा अपने सभापति को स्वयं नहीं हटा सकती, इसके लिए उसे सभापति के प्रति महाभियोग लाना होता है जबकि उप-सभापति को राज्यसभा के सदस्य स्वयं ही हटा सकते हैं ।

Essay # 3. राज्यसभा की शक्तियाँ (Powers of the Rajya Sabha):

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हालांकि भारतीय संविधान के द्वारा लोकसभा को अधिक शक्तिशाली बनाया गया है लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि राज्यसभा महत्वहीन है । राज्यसभा का अपना विशेष महत्व है ।

लोकसभा को प्राप्त अधिकारों के प्रयोग में राज्यसभा की भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है । लोकसभा अपनी शक्तियों का प्रयोग राज्यसभा के साथ मिलकर ही करती है ।

भारतीय संविधान के द्वारा राज्यसभा को निम्नलिखित शक्तियाँ प्रदान की गई हैं:

1. विधायी शक्तियाँ:

संविधान के अनुसार साधारण कानून बनाने के विषय में राज्यसभा तथा लोकसभा को समान शक्तियाँ प्राप्त है । धन संबंधी विधेयकों को छोड़कर कोई भी विधेयक राज्यसभा में प्रस्तुत किया जा सकता है । इस सदन में स्वीकार हो जाने के पश्चात विधेयक लोकसभा में भेजा जाता है ।

यदि लोकसभा भी उसको पास कर दे तो फिर विधेयक को राष्ट्रपति के पास उसकी स्वीकृति के लिए भेज दिया जाता है । स्वीकृति के उपरांत विधेयक अधिनियम बन जाता है ।

यदि लोकसभा राज्यसभा द्वारा पारित किए गए विधेयकों को स्वीकार न करे या 6 मास तक इन पर विचार न करे तो राष्ट्रपति दोनों सदनों का सयुक्त अधिवेशन बुलाता है । इस संयुक्त अधिवेशन में ही विधेयक पारित किया जाता है ।

2. वित्तीय शक्तियाँ:

वित्तीय क्षेत्र में राज्यसभा को लोकसभा की तुलना में बहुत कम शक्तियाँ प्राप्त हैं । वित्तीय विधेयक राज्यसभा में प्रस्तुत नहीं किए जा सकते, ये केवल लोकसभा में ही प्रस्तुत हो सकते हैं । वहाँ पास होने के उपरांत ये राज्यसभा में भेजे जाते हैं । राज्यसभा वित्तीय विधेयकों को 14 दिन तक रोक सकता है ।

यदि राज्यसभा वित्तीय विधेयक में किसी परिवर्तन की सिफारिश करे तो वास्तव में लोकसभा को यह पूर्ण अधिकार है कि वह राज्यसभा द्वारा की गई सिफारिशों को स्वीकार करे या न करे । अतः लोकसभा का वित्तीय विधेयकों पर पूरा नियंत्रण होता है, राज्यसभा वित्त विधेयकों के संबंध में केवल अपने सुझाव दे सकती है ।

3. आपातकालीन शक्तियाँ:

राज्यसभा लोकसभा के साथ मिलकर राष्ट्रपति द्वारा की गई संकटकालीन उद्‌घोषणा को एक महीने से अधिक लागू रहने अथवा रह करने का प्रस्ताव पास करती है । संकटकालीन घोषणा पर एक महीने के अंदर दोनों सदनों की स्वीकृति लेना आवश्यक है, नहीं तो एक महीने के समाप्त होने पर संकटकालीन घोषणा अपने-आप समाप्त हो जाती है ।

यदि लोकसभा भंग हो तो केवल राज्यसभा की स्वीकृति ही आवश्यक है । राज्यसभा की स्वीकृति मिलने पर संकटकालीन घोषणा लोकसभा का अधिवेशन आरंभ होने के 30 दिन बाद तक जारी रह सकती है ।

4. राज्य सभा को प्राप्त विशेष अधिकार:

i. 44वें संशोधन द्वारा व्यवस्था की गई है कि राज्य सभा अनुच्छेद 249 के अंतर्गत प्रस्ताव पास करके अखिल भारतीय न्यायिक सेवाएं स्थापित करने के संबंध में संसद को अधिकार दे सकती है ।

ii. संविधान के अनुच्छेद 249 के अनुसार राज्यसभा उपस्थित और मतदान करने वाले 2/3 सदस्यों के बहुमत से प्रस्ताव पास करके यदि यह घोषित करे कि राज्य-सूची का विषय राष्ट्रीय महत्व का है और उस पर संसद द्वारा कानून बनाना आवश्यक तथा राष्ट्र के लिए हितकारी है तो संसद को उस विषय पर कानून बनाने का अधिकार मिल जाता है । ऐसा प्रस्ताव आरंभ में एक वर्ष के लिए लागू होता है और उसे एक समय में एक वर्ष के लिए बढ़ाया जा सकता है । लोकसभा को इस प्रकार की कोई शक्ति प्राप्त नहीं है ।

iii. संविधान के अनुच्छेद 312 के अनुसार राज्यसभा ही 2/3 बहुमत से प्रस्ताव पास करके नई अखिल भारतीय सेवाओं को स्थापित करने का अधिकार केन्द्र सरकार को दे सकती है ।

5. कार्यपालिका संबंधी शक्तियाँ:

मंत्रिमंडल अपने समस्त कार्यों के लिए संसद के दोनों सदनों के प्रति उत्तरदायी है । मंत्रिमंडल के सदस्यों से राज्यसभा के सदस्य प्रश्न तथा पूरक प्रश्न पूछ सकते हैं । मंत्रिमंडल की नीतियों की आलोचना की जा सकती है; परंतु राज्यसभा अविश्वास प्रस्ताव पास करके मंत्रिमंडल को त्याग-पत्र देने के लिए मजबूर नहीं कर सकती ।

मंत्रिमंडल पर लोकसभा का वास्तविक नियंत्रण है, न कि राज्यसभा का । मंत्रिमंडल में कुछ मंत्री राज्यसभा में से अवश्य लिए जाते हैं, पर अधिकांश मंत्री लोकसभा से ही लिए जाते हैं ।

6. संवैधानिक शक्तियाँ:

राज्यसभा को लोकसभा के समान ही संविधान संशोधन की शक्तियाँ प्राप्त है । किसी भी संविधान संशोधन संबंधी विधेयक को दोनों सदनों से पास होना जरूरी है लेकिन संविधान में यह स्पष्ट नहीं है कि यदि दोनों सदनों में किसी संशोधन प्रस्ताव पर मतभेद उत्पन्न हो जाए तो उसे कैसे सुलझाया जाएगा ।

7. न्यायिक शक्तियाँ:

राज्यसभा को कुछ न्यायिक शक्तियाँ भी प्राप्त हैं । राज्यसभा को राष्ट्रपति पर आरोप लगाने, उसकी जांच करने और उसका निर्णय करने का अधिकार उसी प्रकार प्राप्त है, जिस प्रकार लोकसभा को । यदि आरोप राज्यसभा द्वारा लगाया जाए तो निर्णय लोकसभा करती है और यदि आरोप लोकसभा लगाए तो निर्णय राज्यसभा द्वारा किया जाता है ।

उप-राष्ट्रपति पर महाभियोग चलाने का अधिकार केवल राज्यसभा को है । राज्यसभा सर्वोच्च न्यायालय व उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों को महाभियोग द्वारा हटाने के लिए प्रस्ताव पास कर सकती है । राज्यसभा लोकसभा के साथ मिल कर मुख्य चुनाव-आयुक्त, महान्यायवादी (Attorney General) तथा नियंत्रण एवं महालेखा परीक्षक के विरुद्ध दोषारोपण के प्रस्ताव पास कर सकती है ।

ऐसा प्रस्ताव पास होने पर राष्ट्रपति संबंधित अधिकारियों को हटा सकता है । राज्यसभा अपने सदस्यों के व्यवहार तथा गतिविधियों की जांच-पड़ताल करने के लिए समिति नियुक्त कर सकती है और उनके विरुद्ध उचित कार्यवाही कर सकती है ।

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