रिवर बैंक प्रदूषण पर निबंध | Essay on River Bank Pollution in Hindi!
रिवर बैंक प्रदूषण | River Bank Pollution
Essay # 1.
तटीय प्रदूषण का परिचय (Introduction to River Bank Pollution):
हमारे देश में सागर को उतना महत्व नहीं दिया जाता जितना ब्रिटेन जैसे द्वीप-देशों में, परंतु हमारे लिए भी सागर सदैव महत्त्वपूर्ण रहा है । हमारा देश, विशेष रूप से उसका दक्षिणी भाग, तीन ओर से सागर-अरब सागर और बंगाल की खाड़ी-से घिरा हुआ है ।
हमारे देश के अभिन्न अंग अंडमान-निकोबार और लक्षद्वीप तो द्वीप समूह ही हैं । हमारे तटों की लंबाई 6,100 किलोमीटर से भी अधिक है । हमारे तटवर्ती इलाकों में देश की कुल आबादी का चौथाई भाग से भी अधिक बसा हुआ है ।
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बंबई, कलकत्ता, मद्रास, कोचीन, तिरुवअनंतपुरम, विशाखापत्तनम, गोआ आदि अनेक बड़े शहर सागर तट पर ही बसे हुए हैं । हमारे अनेक तीर्थ, यथा- द्वारिका, सोमनाथ, रामेश्वरम, पुरी आदि तट पर ही स्थित हैं । साथ ही हमारे विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र (एक्सक्लूसिव इकोनामिक जोन) का क्षेत्रफल 20.15 लाख वर्ग किलोमीटर है । वह पूरे देश के क्षेत्रफल का 60.5 प्रतिशत है ।
हमारे समुद्री व्यापार में दिनोंदिन वृद्धि हो रही है । तटीय इलाकों में नित नए उद्योग स्थापित हो रहे हैं । हमारे देश में पकड़ी जानेवाली मछलियों का 56 प्रतिशत भाग सागर से प्राप्त किया जाता है । और हम अपनी की माँग का अधिकांश भाग बंबई हाई के तेल कुंओं से ही पूरा करते हैं ।
इस दृष्टि से हमारे तटीय सागर, विशेष रूप से उनके जलमग्न क्षेत्र, जिनका क्षेत्रफल 2,60,000 वर्ग किलोमीटर से भी अधिक है, हमारे लिए अधिकाधिक महत्वपूर्ण होते जा रहे हैं । इसी प्रकार विभिन्न नदियों के ज्वारनदमुख और पश्चजल (बैक वाटर) हमारे आर्थिक विकास और जल-परिवहन के लिए परमावश्यक हैं ।
यद्यपि भारत में सागर विज्ञान संबंधी अध्ययन विकसित देशों की तुलना में काफी बाद में आरंभ हुए थे पर उनकी शुरुआत काफी बड़े पैमाने पर हुई । अंतरराष्ट्रीय हिंद महासागर अभियान में हमारे वैज्ञानिकों ने बहुत रुचि ली थी ।
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और जब विश्व के अन्य भागों में सागर प्रदूषण की ओर लोगों का ध्यान आकर्षित होने लगा तब हमारे वैज्ञानिकों ने भी इस संबंध में अध्ययन आरंभ कर दिए । भारत के तटीय सागरों के प्रदूषण संबंधी अध्ययन फरवरी, 1976 में अनुसंधानपोत गवेषणी के अर्जित करने के बाद ही आरंभ हो गए थे ।
इनमें अनेक अनुसंधान संस्थाओं और विश्वविद्यालयों ने भाग लिया । इस संबंध में गोआ स्थित राष्ट्रीय सागरविज्ञान संस्थान और लखनऊ स्थित औद्योगिक विषविज्ञान अनुसंधान केंद्र ने उल्लेखनीय योगदान दिया है ।
हमारे अन्य अनुसंधानपोत सागर कन्या ने भी हमारे सागरों के स्वास्थ्य के बारे में महत्वपूर्ण योग दिया है । देश के तटीय सागरों में प्रदूषण का पता लगाने तथा उसके निराकरण के उपाय सुझाने के लिए अनेक संस्थाओं को उत्तरदायित्व सौंपा गया है ।
प्रत्येक संस्थान को तट का एक विशेष क्षेत्र सौंप दिया गया है । अपने क्षेत्र में हर संस्थान, तट से 25 किलोमीटर दूर तक के सागर में, भारी धातुओं, पीड़कनाशियों, परपोषी बैक्टीरिया आदि से होनेवाले प्रदूषण के संबंध में अध्ययन करता है और उपाय सुझाता है ।
Essay # 2. तटीय प्रदूषण के स्रोत (Sources of River Bank Pollution):
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i. घरेलू कचरा और सीवेज (Household Waste and Sewage):
घरेलू सीवेज थोड़ी मात्रा में सागर में पहुँचता है तब वह समुद्री वनस्पति के लिए खाद का काम करता है । उससे सागर की उत्पादकता बढ़ती है । पर सीवेज की मात्रा बढ़ जाने पर वह सुपोषण को बढ़ावा देता है । सुपोषण के फलस्वरूप शैवालों के उत्पादन में अत्यधिक वृद्धि हो जाती है । यह अवांछित वृद्धि सागर के सामान्य उत्पादन-प्रक्रम में बाधा डालती है और फलस्वरूप खाद्य श्रृंखला गड़बड़ा जाती है । उससे पानी में फास्फेट-फास्फोरस सांद्रता बढ़ जाती है ।
नॉक्टीलुसा, गोन्याउलैक्स, इरीकोडेसमियम आदि शैवालों, जिन्हें शाकाहारी जीव नहीं खाते, की अत्यधिक वृद्धि से अनेक पर्यावरणीय समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं । इनके अतिरिक्त सीवेज का आधिक्य सागर के पानी में घुली ऑक्सीजन की मात्रा को कम कर देता है ।
परिणामस्वरूप अवायवीय परिस्थितियाँ उत्पन्न होने लगती हैं । अरब सागर के पानी में घुली ऑक्सीजन की मात्रा पहले ही अपेक्षाकृत कम है । उसमें बड़ी मात्रा में सीवेज मिलने से वह और भी कम हो जाएगी जिसके दुष्परिणाम जीव-जंतुओं को भुगतने पड़ेंगे ।
प्रदूषण के फलस्वरूप ही पश्चिमी तट पर ओखा और पोरबंदर बंदरगाहों के निकट तट से 25 किलोमीटर दूर तक के सागर के पानी में अमोनिया की मात्रा 166 मिली लीटर प्रति लीटर हो गई है । वहाँ इसी अनुपात में ऑक्सीजन घट गई है ।
ओखा के निकट स्थित सोडा-ऐश बनानेवाला एक कारखाना प्रतिदिन 18,000 घन मीटर गंदा पानी सागर में डालता है । परंतु वह शीघ्र ही सागर में दूर-दूर तक फैल जाता है । इसलिए वहाँ के समुद्री जीवों पर उसका कोई प्रभाव नहीं पड़ता ।
राष्ट्रीय सागर-विज्ञान संस्थान द्वारा किए गए सर्वेक्षणों में पाया गया है कि पोरबंदर के निकट स्थित सोडा-पेश उद्योग जो गंदा पानी सागर में फेंकता है उसका पी-एच. काफी उच्च होता है और उससे अमोनिया मुक्त होती है । वह शीघ्र ही नाइट्रेट में बदल जाती है ।
यद्यपि उसके तात्कालिक प्रभाव नहीं देखे गए हैं, पर समुद्री जीवों पर उसके दूरगामी प्रभाव हो सकते हैं । यद्यपि अभी तक पश्चिमी तट के हर स्थान पर घरेलू कचरा और सीवेज डालने के परिणाम स्पष्ट रूप से प्रकट नहीं हुए हैं, परंतु बड़े शहरों के निकट जहाँ सागर में बहुत बड़ी मात्रा में सीवेज और औद्योगिक अपशिष्ट मिलते रहते हैं उनके प्रभाव प्रत्यक्ष होने लगे हैं ।
वेरावल बंदरगाह, जहाँ पास के मछली संसाधन उद्योग से निकलनेवाला अपशिष्ट भी सागर में मिलता है, के पानी में ऑक्सीजन की मात्रा भाटा के दौरान, 1.2 मिली लीटर प्रति लीटर ही रह जाती है । (समुद्री जीवों के लिए ऑक्सीजन की वांछित मात्रा कम-से-कम 4 मिली लीटर प्रति लीटर होनी चाहिए) परंतु ज्वार के समय उस पानी के आधिक्य से, जिसमें ऑक्सीजन की मात्रा काफी होती है, ऑक्सीजन की पूर्ति हो जाती है ।
विशेषज्ञों ने अनुमान लगाया है कि महानगरों के लोग अपेक्षाकृत अधिक कूड़ा-करकट उत्पन्न करते हैं । वहाँ एक व्यक्ति औसतन 120 लीटर सीवेज प्रतिदिन उत्पन्न करता है । जबकि कसबों और छोटे शहरों के लिए यह औसत 60 लीटर है ।
समझा जाता है कि अकेले बंबई शहर से प्रतिदिन 35 करोड़ लीटर घरेलू सीवेज और 18 करोड़ लीटर कारखानों का बहि:स्राव सागर में छोड़ा जाता है । कलकत्ता के लिए इनकी मात्रा लगभग 35 करोड़ टन है । बंबई के तटीय सागर के पानी में सीवेज और कूड़े-करकट के कारण फास्फेट-फास्फोरस की मात्रा में निरंतर वृद्धि हो रही है । वर्ष 1959 में यह मात्रा 0.82 म्यू मोल प्रति लीटर थी । पर आजकल यह लगभग 2 म्यू मोल प्रति लीटर हो गई है ।
इसके साथ ही तटीय पानी में घुली ऑक्सीजन की मात्रा जो वर्ष 1959 में 4.71 मिली लीटर प्रति लीटर थी अब लगभग शून्य हो गई है । मद्रास के तटीय सागर की भी लगभग यही हालत है । पानी में फास्फेट-फास्फोरस की सांद्रता बहुत बढ़ गई है और पानी में घुली ऑक्सीजन बहुत कम हो गई है ।
ii. सर्वाधिक प्रदूषित खाड़ी- महिम खाड़ी (Polluted Bay – Mahim Bay):
बंबई के निकट का सागर कितना प्रदूषित हो चुका है इसका आभास महिम की खाड़ी पर एक दृष्टि डालने से हो जाता है । 64 वर्ग किलोमीटर इलाके में फैली यह खाड़ी बंबई शहर में ही स्थित है । वहाँ प्रतिदिन ज्वार उठता है जिसकी अधिकतम ऊंचाई 8 मीटर तक पहुँच जाती है । इस खाड़ी में प्रतिदिन लगभग 64 टन घरेलू सीवेज बहाया जाता है तथा अन्य औद्योगिक व्यर्थ पदार्थ, जिनमें से कुछ अंशत: उपचारित होते हैं, मिलते हैं ।
कुछ दशक पूर्व तक यह खाड़ी माफ और शुद्ध थी, जहाँ बड़ी संख्या में मछलियाँ पनपती थीं, सीपियाँ मिलती थीं, चारों और मेंग्रोव के झुंड थे और जहाँ हर वर्ष प्रवासी पक्षी आते थे । आज कदाचित् यह देश का एक सर्वाधिक प्रदूषित क्षेत्र बन गया है ।
अब वहाँ ज्वार के समय हाइड्रोजन सल्फाइड की तीव्र दुर्गंध आती रहती है जिसकी वजह से उसके पास से निकलना भी दूभर हो जाता है । उसके पानी में हाइड्रोजन सल्फाइड-गंधक की सांद्रता 1.5 से 98.4 म्यू मोल प्रति लीटर तक पहुंच जाती है ।
अब वहाँ न तो मछलियाँ हैं, न सीप हैं और न प्रवासी पक्षी आते हैं । बस कूड़ा-करकट और हानिकारी दुर्गंध-भर है । यह खाड़ी इस बात का ज्वलंत उदाहरण है कि सागर में बिना सोचे-समझे सीवेज और व्यर्थ पदार्थ डालते रहने का क्या परिणाम हो सकता है ।
अध्ययनों में पाया गया है कि कलकत्ता महानगर के घरेलू सीवेज में भारी धातुओं की मात्रा काफी है । इन भारी धातुओं के कुप्रभाव सुंदरवन के मेंग्रोव वृक्षों पर भी स्पष्ट दिखाई देते हैं । वहाँ मेंग्रोव की पत्तियों में 0.34 से 2.43 म्यू ग्राम प्रति ग्राम यूरेनियम पाया गया है ।
साथ ही मेंग्रोव की विभिन्न प्रजातियों में ताँबे, निकेल, कोबाल्ट और सीसे की भी मात्राएं पाई गई हैं । लगभग यही हालत बड़े शहरों के निकट की खाड़ियों, पश्चजलों और ज्वारनदमुखों की है ।
हमारे तटीय शहरों में कठिनता से 50 प्रतिशत आबादी को ही समुचित सीवेज व्यवस्था उपलब्ध है । इससे तटीय सागरों में कोलीफार्म बैक्टीरिया बड़ी संख्या में पाए जाते हैं ।
iii. भारी धातुएँ (Heavy Metals):
अन्य सागरों की भांति अरब सागर और बंगाल की खाड़ी में भी भारी धातुओं की अधिकांश मात्रा थलीय जमावटों के अवक्षेपण और निक्षालन के फलस्वरूप नदियों के पानी में घुलकर अथवा उनके द्वारा लाए जाने के अपरदन तथा जलमग्न ज्वालामुखियों से निकलनेवाले लावा से आती है ।
मनुष्य द्वारा किए जानेवाले खनन-कार्यों से तथा उद्योगों से अपशिष्ट के रूप में भी कुछ मात्रा प्राप्त होती है । नदियों के पानी और अवसाद में भारी धातुओं की मात्रा काफी होती है । अनुमान लगाया गया है कि भारतीय नदियाँ प्रतिवर्ष 1,60,00,00,000 टन अवसाद अरब सागर और बंगाल की खाड़ी में मिलाती हैं । इस अवसाद की अधिकांश मात्रा उन स्थलों पर जमा हो जाती है जहां नदियाँ सागर में मिलती हैं ।
हुगली नदी के ज्वारनदमुख क्षेत्र में, सितंबर माह में (जब उसमें पानी और अवसाद की मात्राएँ सर्वाधिक होती हैं) किए गए अध्ययनों में पाया गया है कि कणों और निलंबनों के रूप में मौजूद भारी धातुओं की लगभग 9 प्रतिशत मात्रा ज्वारनदमुख क्षेत्र में और 45-50 प्रतिशत उस स्थल पर जहाँ नदी सागर में मिलती है, अवक्षेपित हो जाती है ।
बाकी मात्रा बंगाल की खाड़ी में बह जाती है । जहाँ तक पानी में घुली भारी धातुओं का प्रश्न है उनकी 85 प्रतिशत मात्रा ज्वारनदमुख तथा नदी के मुख क्षेत्र में अवक्षेपित हो जाती है । बाकी मात्रा बंगाल की खाड़ी में बह जाती है । लगभग यही दशा देश की अन्य नदियों द्वारा लाई जानेवाली भारी धातुओं की होती है ।
राष्ट्रीय सागर विज्ञान संस्थान तथा देश के अन्य संस्थानों द्वारा किए गए परीक्षणों में पाया गया है कि सामान्यतः अरब सागर और बंगाल की खाड़ी के पानी में भारी धातुओं की सांद्रता बहुत अधिक नहीं है । इस बारे में विचित्र बात यह है कि इन सागरों में भिन्न-भिन्न स्थलों पर भारी धातुओं की सांद्रताएँ अलग-अलग हैं । साथ ही इनकी सांद्रताएँ सागर की गहराइयों के साथ भी बदलती रहती हैं । वैसे अलग-अलग वैज्ञानिकों ने इनके मान भिन्न-भिन्न पाए हैं ।
कुछ भारी धातुओं की मात्राएँ इस प्रकार पाई गई हैं:
(i) ताँबा 0.08 से 49.1,
(ii) कैडमियम 0.01-1.88,
(iii) लोहा 0.10-96,
(iv) मैंगनीज 0.07-80,
(v) जस्त 0.3-42.4,
(vi) सीमा 0.02-7.5,
(vii) निकेल 0-1.63 और
(viii) पारा 0-204 म्यू ग्राम प्रति लीटर ।
इस बारे में यह तथ्य उल्लेखनीय है कि तांबे के अतिरिक्त अन्य सब धातुओं के मान भारतीय प्राय:द्वीप के तटीय सागरों के हैं । लक्षद्वीप के तटीय सागरों के पानी में लोहे, मैंगनीज और निकेल की मात्राएँ अपेक्षाकृत अधिक हैं जबकि अंडमान समूह के द्वीपों के इर्द-गिर्द के सागर में कैडमियम और सीसे की मात्राएँ अधिक हैं ।
बंबई के तटीय सागर और बंगाल की खाड़ी में गिरनेवाली नदियों के मुखों में जस्त अधिक मात्रा में मौजूद है । बंबई के तटीय सागर में कैडमियम की बहुत अधिक सांद्रता, 80 म्यू ग्राम प्रति लीटर पाई गई है । हमारे दक्षिणी-पश्चिमी तट के सागर के पानी में पारे की बहुत अधिक सांद्रता, 204 से 407 म्यू ग्राम प्रति लीटर का कारण भी यही है । बंबई शहर के निकट के सागर के पानी में पारे की मात्रा तट से दूरी के साथ-साथ बदलती रहती है ।
तट के एकदम निकट के पानी में उसकी मात्रा 1.4 से 23.0 म्यू ग्राम प्रति लीटर है जबकि एक किलोमीटर दूरी पर यह मात्रा 12 से 29, दो किलोमीटर की दूरी पर 9 से 30 और तीन किलोमीटर की दूरी पर 14 म्यू ग्राम प्रति लीटर पाई गई है । थाना क्रीक में पारे की मात्रा 42 म्यू ग्राम प्रति लीटर है । तट की जमावटों में (सूखे वजन के आधार पर) 0.1 से 27.0 भाग प्रति दस लाख भाग है जबकि थाना क्रीक की जमावटों में 38 भाग है ।
उत्तरी हिंद महासागर (अरब सागर और बंगाल की खाड़ी इसके ही हिस्से हैं) में जीवों, विशेष रूप से खाद्य मछलियों में लगभग सब भारी धातुओं की सांद्रता विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा निर्धारित अधिकतम अनुमेय मात्रा से कम है ।
दूसरे शब्दों में, अब भी अरब सागर और बंगाल की खाड़ी की खाद्य मछलियों तथा अन्य जीवों में भारी धातुओं, विशेष रूप से पारा, कैडमियम और सीसे की इतनी मात्राएँ सांद्रित नहीं हुई हैं कि वे मनुष्य के खाने के योग्य ही न रहें । यहाँ एक बात पर बल देना युक्तिसंगत होगा ।
यद्यपि अरब सागर और बंगाल की खाड़ी में अब भी भारी धातुओं की सांद्रता चिंताजनक स्थिति तक नहीं पहुँची है परंतु उनमें थाना क्रीक और महिम खाड़ी जैसे अनेक स्थल हैं जहाँ के जीवों में इनकी सांद्रता बहुत अधिक हो गई है । थाना क्रीक और महिम खाड़ी की मछलियों का भक्षण मनुष्य के लिए घातक सिद्ध हो सकता है ।
iv. पीड़कनाशी (Pesticides):
अरब सागर के उत्तरी-पूर्वी भाग के जंतु प्लांक्टनों में डी.डी.टी. की सांद्रता 0.05 से 3.21 भाग प्रति दस लाख पाई गई है । पूर्वी अरब सागर के पानी में डी.डी.टी. की मात्रा 0.06 से 1.6 नैनो ग्राम प्रति लीटर है । उसी इलाके के वायुमंडल में डी.डी.टी. के अवशेष 0.93 से 10.9 नैनो ग्राम प्रति घन मीटर है ।
इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि सागर में डी.डी.टी. की काफी मात्रा पवनों के माध्यम से भी पहुँचती है । अरब सागर के जीवों के शरीर में एंडोसल्फान, जो डी.डी.टी. के विकल्प के रूप में इस्तेमाल की जाती है, पाई जाने लगी है । एंडोसल्फान के प्रभाव से मछलियों में जैवरासायनिक तथा एंजाइमी परिवर्तन होते पाए गए हैं । इसके कारण उनके गलफड़े क्षतिग्रस्त हो जाते हैं । एंडोसल्फान के फलस्वरूप कैल्मों का प्रजनन गड़बड़ा जाता है ।
v. पेट्रोलियम (Petroleum):
भारत के निकट के सागरों को कदाचित् सबसे अधिक हानि होती है पेट्रोलियम से । पेट्रोलियम ही इन सागरों को सबसे अधिक प्रदूषित करता है । विश्व-भर में जितना पेट्रोलियम इस्तेमाल होता है उसका बहुत बड़ा भाग मध्य-पूर्व के देशों से प्राप्त होता है और वहाँ से जितना पेट्रोलियम अन्य देशों को भेजा जाता है उसकी लगभग 43 प्रतिशत मात्रा अरब सागर और बंगाल की खाड़ी पर से ही ढोई जाती है ।
उसे ढोते समय टैंकरों के रिस जाने, टैंकरों के दुर्घटनाग्रस्त हो जाने आदि से पेट्रोलियम अवश्य ही सागर में गिर जाता है । जापान के क्षेत्रीय सागर विज्ञान डॉटा केंद्र से प्राप्त जानकारी के अनुसार उत्तरी हिंद महासागर का अधिकांश भाग पेट्रोलियम से प्रदूषित है ।
अरब सागर में तिरते हुए पेट्रोलियम टार की औरत मात्रा 0.59 मिलीग्राम प्रति वर्ग मीटर है । यद्यपि कुछ स्थानों पर यह मात्रा 6.0 मिलीग्राम प्रति वर्ग मीटर तक पहुंच गई है तो कुछ जगह वह शून्य (बिलकुल भी नहीं) है । बंगाल की खाड़ी में, उन मार्गों के पानी में, जिनसे तेल ढोनेवाले टैंकर गुजरते हैं, तिरते हुए टार की मात्रा 0 से लेकर 69.75 मिली ग्राम प्रति वर्ग मीटर तक पाई गई है । वैसे उसकी औसत मात्रा 1.52 मिली ग्राम प्रति वर्ग मीटर है ।
अनुमान लगाया गया है कि अरब सागर के टैंकर मार्गों पर तिरते टार की मात्रा लगभग 3,700 टन है जबकि बंगाल की खाड़ी के दक्षिणी भाग में यह मात्रा 1,100 टन है । इन दोनों सागरों में, विशेष रूप से टैंकरों के मार्गों के पानी में, पेट्रोलियम की कुछ मात्रा घुली हुई है । अरब सागर में सतह से 20 मीटर नीचे तक के पानी में 42.8 म्यू ग्राम प्रति किलोग्राम और बंगाल की खाड़ी में 28.2 म्यू ग्राम प्रति किलोग्राम पेट्रोलियम घुला हुआ है ।
अरब सागर और बंगाल की खाड़ी में पेट्रोलियम को फैलाने में मानसून पवनें भी, परोक्ष रूप से, योग देती हैं । वे इन दोनों सागरों की जलधाराओं के बहने की दिशाओं को भी बदलती रहती हैं । ये जलधाराएँ सागर पर गिरनेवाले पेट्रोलियम और उससे बननेवाले पदार्थों को भी अपने साथ बहा ले जाती हैं ।
इस प्रकार मार्च से सितंबर तक ये पदार्थ अरब सागर में हमारे पश्चिमी तट की ओर तथा बंगाल की खाड़ी में दक्षिण से उत्तर की ओर बह आते हैं । इन सागरों में होनेवाले पेट्रोलियम प्रदूषण के बारे में एक और तथ्य भी सामने आया है ।
यद्यपि वर्ष 1978 के बाद खाड़ी के देशों से ढोए जानेवाले तेल की मात्रा में काफी कमी आई थी पर 1978 से 1984 की पेट्रोलियम प्रदूषण की मात्रा में बहुत अंतर आया है । इसका यह अर्थ है कि इन सागरों में पेट्रोलियम प्रदूषण का मुख्य कारण उन पर से तेल का ढोया जाना नहीं है । उसका मुख्य कारण है टैंकरों की धोवन का सागर में फेंक दिया जाना ।
पहली बार वर्ष 1975 में तटों, विशेष रूप से पश्चिमी तट के दक्षिणी भाग, पर टार की गोलियाँ देखी गई थीं । ये गोलियाँ दक्षिण-पश्चिम मानसूनों के बहने के समय देखी गई थीं । निश्चय ही ये उस ऋतु में तट की ओर आनेवाली जलधाराओं के साथ बह आई थीं ।
उस समय से ये गोलियाँ हमारे पश्चिमी तट पर इकट्ठी होती रहती हैं । यद्यपि अधिकांश टार गोलियों का आकार बच्चों के खेलनेवाले कंचों के समान होता है पर कभी-कभी ये काफी बड़ा आकार भी ग्रहण कर लेती हैं । केन्या के तट पर 16 किलोग्राम तक की टार की गोलियां देखी गई हैं ।
बंबई हाई, जहाँ से भारत में सबसे अधिक पेट्रोलियम उत्पादन होता है, के निकट पानी में पेट्रोलियम की घुलनशील निलंबित मात्रा 2 से 46 म्यू ग्राम प्रति लीटर और जमावटों में (सूखे वजन पर) 4 से 32 म्यू ग्राम प्रति ग्राम तक मौजूद पाई गई है ।
पर किसी वजह से कोई दुर्घटना हो जाने पर पानी और जमावटों, दोनों में, पेट्रोलियम की मात्रा बहुत बढ़ जाती है । कुछ दिन पूर्व एक टैंकर के दुर्घटनाग्रस्त हो जाने पर सागर के पानी में तेल की मात्रा 27 से 105 म्यू ग्राम प्रति लीटर तक हो गई थी ।
सतह से 5 मीटर नीचे के पानी में यह मात्रा 36 से 59 म्यू ग्राम प्रति लीटर तक थी । उस कारण से ही जमावटों में तेल की सांद्रता 1-26 म्यू ग्राम प्रति ग्राम से बढ़कर 40-152 म्यू ग्राम प्रति ग्राम तक हो गई थी । पेट्रोलियम सागर के जीवों के शरीर में भी सांद्रित हो जाता है । अरब सागर और बंगाल की खाड़ी के जंतु प्लांक्टनों के शरीर में 19.5 से 83.3 म्यू ग्राम प्रति ग्राम तक पेट्रोलियम हाइड्रोकार्बन पाए गए हैं ।
Essay # 3.
कोरल रीफ और मेंग्रोव वन (Coral Reef and Mangrove Forest):
कोरल भित्तियाँ लगभग संपूर्ण हिंद महासागर में पाई जाती हैं । हमारे देश में ये भित्तियाँ उत्तरी-पश्चिमी और दक्षिणी-पूर्वी तटों पर लक्षद्वीप और अंडमान-निकोबार समूह के टापुओं में मौजूद हैं । इनकी आयु 2000 वर्षों से अधिक है ।
इन भित्तियों पर भी प्रदूषण, विशेष रूप से पेट्रोलियम से होनेवाले प्रदूषण, के कुप्रभाव पड़े हैं । इसके फलस्वरूप अनेक स्थानों पर, विशेष रूप से लक्षद्वीप के करावती क्षेत्र में और ग्रेट निकोबार द्वीप के दक्षिणी भाग में, ये भित्तियाँ नष्ट हो गई हैं ।
सागर तटों पर उगनेवाले मेंग्रोव वृक्षों के वन सागर के जीवधारियों के लिए बहुत उपयोगी होते हैं । उनके दलदली इलाकों में व्यापारिक दृष्टि से महत्वपूर्ण अनेक जातियों की मछलियाँ अंडे देती हैं और वहीं उनके बच्चे पलते हैं । मेंग्रोव के वन थल और सागर के बीच बफर क्षेत्र का कार्य करते हैं ।
साथ ही वे तली की जमावटों को स्थिर रखने तथा पानी के स्थानीय स्तर को बनाए रखने में सहायक होते हैं । लोग इन वनों को अपने जीविकोपार्जन का साधन भी बना लेते हैं । उदाहरण के तौर पर बँगला देश की कुल आबादी का एक-तिहाई भाग, प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से, मेंग्रोव वनों पर आश्रित है ।
अनेक इलाकों में खेती और आवास के लिए मेंग्रोव के वनों का सफाया कर दिया गया है । इससे चक्रवातों के दौरान तट के निकटवर्ती इलाकों में पानी भर जाता है और भारी मात्रा में अवसाद जमा हो जाता है ।
Essay # 4.
निकटवर्ती सागर- अपेक्षाकृत स्वच्छ (Nearest Ocean – Relatively Clean):
अन्य अनेक प्रदेशों के सागरों की तुलना में अरब सागर और बंगाल की खाड़ी अब भी अपेक्षाकृत शुद्ध और स्वच्छ हैं । उनमें अब भी प्रदूषकों की मात्रा गंभीर सीमा तक नहीं पहुँची है । वे अब भी इतने प्रदूषित नहीं हुए हैं कि सागर के जीवों और मनुष्यों को हानि पहुँचाने लगें । इसके अनेक कारण हैं । हिंद महासागर का उत्तरी भाग और उसके अंग अरब सागर, बंगाल की खाड़ी, अंडमान सागर तथा लक्षद्वीप सागर खुले समुद्र हैं ।
उनमें दिन में दो बार, 1 मीटर से 8 मीटर तक ऊँचे उठनेवाले ज्वार, उन पर से वर्ष में छ: महीनों तक एक दिशा में बहनेवाली मानसून पवनें तथा उनके फलस्वरूप उत्पन्न होनेवाली जलधाराएँ और अपेक्षाकृत सपाट स्थलाकृति पानी के मुक्ता प्रवाह में सहायक होती है ।
इससे भारत के निकट के सागरों में मिलनेवाले प्रदूषक शीघ्र ही बड़े क्षेत्र में वितरित हो जाते हैं । इस प्रकार उनकी सांद्रता कम हो जाती है । इन सागरों में प्रदूषण की अपेक्षाकृत कम मात्रा का एक और मुख्य कारण है हमारे देश का विकसित देशों की तुलना में कम औद्योगिकीकरण ।
इस कारण हम अपेक्षाकृत कम मात्रा में प्रदूषक उत्पन्न करते हैं । पर यह आशंका है कि देश में औद्योगिकीकरण में तेजी आने पर हमारे निकटवर्ती सागर भी शीघ्रता से प्रदूषित होने लगेंगे । इसलिए हमें सावधान रहना है और समय रहते ही सुरक्षा के उपाय करने हैं ।
Essay # 5. तटीय प्रदूषण के मापन (Measurement of River Bank Pollution):
हमारे तटों को घेरे हुए अरब सागर और बंगाल की खाड़ी में बड़ी-बड़ी नदियाँ मिलती हैं जो उनमें प्रतिवर्ष 1645 घन किलोमीटर ताजा पानी मिलाती हैं । अरब सागर में गिरनेवाली प्रमुख नदियाँ हैं सिंधु, नर्मदा और ताप्ती, जबकि बंगाल की खाड़ी में ब्रह्मपुत्र, गंगा, महानदी, गोदावरी, कृष्णा, कावेरी और इरावदी गिरती हैं ।
इसलिए उक्त ताजा पानी का 25 प्रतिशत भाग अरब सागर में और 75 प्रतिशत भाग बंगाल की खाड़ी में मिलता है । लगभग इसी अनुपात में उनमें मिलते हैं वे प्रदूषक जो नदियों द्वारा लाए जाते हैं । वैसे हमारे तटीय सागरों में मिलनेवाले प्रदूषक मोटे तौर पर तीन किस्म के होते हैं ।
पहली किस्म में वे प्रदूषक आते हैं जो मनुष्य द्वारा उत्पन्न नहीं किए जाते प्राकृतिक प्रदूषक । दूसरी किस्म के प्रदूषक मनुष्य द्वारा प्रयुक्त किए जाते हैं पर उन्हें मनुष्य स्वयं नहीं बनाता जबकि तीसरे किस्म के प्रदूषकों का जन्मदाता पूरी तरह मनुष्य स्वयं ही होता है ।
पहली किस्म के प्रदूषकों में भारी धातुएँ, प्राकृतिक घुलनशील अकार्बनिक और कार्बनिक पदार्थ, दूसरी किस्म में हाईड्रोकार्बन (पेट्रोलियम) जैसे पदार्थ- विशेष रूप से उनका पुन: वितरण आदि तथा तीसरी किस्म में प्लास्टिक, उर्वरक, डी.डी.टी., बी.एच.सी. जैसे पदार्थ शामिल हैं ।
हमारी तटीय आबादी द्वारा सागर में फेंके जानेवाला, बहा दिया जानेवाला घरेलू कचरा और सीवेज हमारे सागरों को किस प्रकार प्रदूषित कर रहा है । इसमें नदियों द्वारा लाए जानेवाला सीवेज भी शामिल है ।