समाजवाद पर निबंध: अर्थ और मेरिट्स | Essay on Socialism for class 8, 9, 10, 11 and 12. Find paragraphs, long and short essays on ‘Socialism’ especially written for school and college students in Hindi language.

Essay # 1. समाजवाद का अभिप्राय (Meaning of Socialism):

समाजवाद का उदय पूंजीवाद की एक वैकल्पिक आर्थिक प्रणाली के रूप में हुआ । समाजवाद के सम्बन्ध में अर्थशास्त्री एवं राजनीतिज्ञ एकमत नहीं है । समाजवाद के विचार विभिन्न राजनीतिज्ञों एवं अर्थ-शास्त्रियों द्वारा विभिन्न रूपों में प्रस्तुत किए गए है ।

समाजवाद के स्वरूप को लेकर विभिन्न विचारधाराओं के जो मतभेद परिलक्षित होते हैं, उसके संदर्भ में प्रो.सी.ई.एम. जोड़ ने कहा है- ”समाजवाद एक ऐसी टोपी है जिसका रूप प्रत्येक व्यक्ति के पहनने के कारण बिगड़ गया है ।”

प्रो.जोड़ के इस व्यंगात्मक कथन का अभिप्राय यह है कि समाजवाद का अपना कोई वास्तविक स्वरूप नहीं होता तथा इसके स्वरूप में परिस्थितियों के अनुसार समायोजन हो जाता है ।

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यद्यपि समाजवाद के अभिप्राय को लेकर अर्थशास्त्रियों में भिन्नता पाई जाती है ।

फिर भी निम्नलिखित परिभाषाओं को समाजवाद की उपयुक्त परिभाषाओं की संज्ञा दी जा सकती है:

प्रो.डिकिन्स के अनुसार समाजवाद समाज का एक ऐसा आर्थिक संगठन है जिसमें उत्पत्ति के भौतिक साधनों पर सामाजिक स्वामित्व होता है । तथा उनका संचालन एक सामान्य योजना के अन्तर्गत, सम्पूर्ण समाज के प्रतिनिधि एवं उसके प्रति उत्तरदायी संस्थाओं के द्वारा किया जाता है ।

समाज के सभी सदस्य समान अधिकारों के आधार पर ऐसे नियोजन एवं समाजीकृत उत्पादन के लाभों के अधिकारी होते हैं । प्रो. लाक्स एवं छूट के अनुसार- समाजवाद वह आन्दोलन है जिसका उद्देश्य बड़े पैमाने के उत्पादन में काम आने वाली प्रकृति निर्मित एवं मानव-निर्मित उत्पादन वस्तुओं का स्वामित्व एवं प्रबन्ध व्यक्तियों के स्थान पर समाज को सौंपना है ।

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ताकि व्यक्ति की आर्थिक प्रेरणा अथवा उसकी व्यावसायिक एवं उपभोग संबंधों चुनाव करने की स्वतंत्रता को नष्ट किए बिना बड़ी राष्ट्रीय आय का अधिक समान वितरण हो सके ।

मॉरिस डाब के अनुसार समाजवाद की अधारभूत विशेषता यह है कि इसमें सम्पन्न वर्ग की सम्पत्ति का अधिग्रहण एवं भूमि तथा पूंजी का समाजीकरण करके उन वर्ग सम्बन्धों को समाप्त कर दिया जाता है जो पूंजीवादी उत्पादन का आधार है ।

समाजवाद की उपर्युक्त परिभाषा इस बात पर प्रकाश डालती है कि इस आर्थिक प्रणाली में उत्पत्ति के साधनों पर व्यक्तिगत स्वामित्व न होकर सामाजिक स्वामित्व (Social Ownership) होता है ।

साथ ही इन उत्पत्ति के साधनों का प्रयोग किसी एक व्यक्ति के हित के लिए नहीं किया जाता, बल्कि सामाजिक एवं सामूहिक हित में किया जाता है । इसके अतिरिक्त समाजवादी आर्थिक प्रणाली में उत्पादन एवं राष्ट्रीय आय का न्यायोचित वितरण किया जाता है जिससे मानव द्वारा मानव का शोषण नहीं होने पाता ।

Essay # 2. समाजवाद की विशेषताएँ (Characteristics of Socialism):

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एक समाजवादी आर्थिक प्रणाली में पाये जाने वाले लक्षण एवं विशेषताएँ अग्रलिखित है:

1. उत्पत्ति के साधनों पर सामूहिक एवं सामाजिक स्वामित्व (Collective and Social Ownership on the Factor of Production):

सामाजवाद की नींव महत्त्वपूर्ण विशेषता पर आधारित है कि इस आर्थिक प्रणाली में उत्पत्ति के साधनों पर व्यक्तिगत स्वामित्व (Individual-Ownership) न होकर समाज का सामूहिक स्वामित्व (Collective-Ownership) होता है ।

दूसरे शब्दों में समाजवाद में उत्पत्ति के साधनों का प्रयोग सामाजिक कल्याण वाले कार्यों के लिए किया जाता है । तथा इसमें व्यक्तिगत लाभ की भावना शून्य रहती है ।

उत्पत्ति साधनों का स्वामित्व (Ownership), नियंत्रण (Control) एवं नियमन (Regulation) राज्य द्वारा किया जाता है जिसके कारण पूंजीवाद की भांति समाजवाद में आर्थिक शोषण की कोई सम्भावना नहीं रहती तथा सामाजिक कल्याण में वृद्धि होती है । इस प्रकार समाजवाद में अधिकतम सामाजिक कल्याण (Maximum Social Advantage) प्राप्त करना राजकीय कार्यों का एक मौलिक उद्देश्य बन जाता है ।

2. उत्पादन एवं वितरण क्रियाएं राज्य द्वारा सम्पादित (Government Performs the Activities of Production and Distribution):

समाजवादी आर्थिक प्रणाली में उत्पादन एवं वितरण सम्बंधी क्रियाओं पर सरकार का स्वामित्व एवं नियंत्रण रहता है । क्या उत्पादन होगा (What Toproduce), कैसे होगा (How to Produce), कितना होगा (How much to Produce) तथा उत्पादन का समाज में किस प्रकार वितरण होगा (How to Distribute), सम्बन्धी सभी फैसले सरकार स्वयं अधिकतम सामाजिक कल्याण की भावना के आधार पर करती है ।

समाजवाद की इस विशेषता के कारण व्यक्ति के द्वारा व्यक्ति के शोषण की सम्भावना समाप्त हो जाती है । क्योंकि श्रमिक अपनी योग्यतानुसार श्रम का समुचित प्रतिफल सरकार द्वारा प्राप्त करते हैं । इस प्रकार समाजवाद में शोषण के सभी स्रोत समाप्त हो जाते हैं ।

3. निजी सम्पत्ति का अति-सीमित अधिकार (Very Limited Ownership Right of Private Property):

उत्पत्ति के सभी साधनों पर राज्य के स्वामित्व का यह अभिप्राय नहीं कि समाजवाद में निजी सम्पत्ति का अधिकार पूर्णत: नगण्य होता है । समाजवादी अर्थव्यवस्था में निजी सम्पत्ति के अधिकार का सीमित अस्तित्व तो होता है, किन्तु इस सम्पत्ति का प्रयोग धनोपार्जन (Creation of Wealth) के लिए नहीं किया जा सकता ।

उदाहरण के लिए, रहने के लिए मकान एवं अन्य आवश्यक सामग्री (जैसे टी. वी, फ्रिज, फर्नीचर आदि) जैसी निजी सम्पत्ति रखने का अधिकार इस समाजवादी प्रणाली में व्यक्तियों को होता है, किन्तु अपना मकान बेचकर अतिरिक्त आय अथवा लाभ प्राप्त करने का अधिकार नहीं होता ।

4. एक केन्द्रीकृत नियोजन सत्ता (A Central Planning Authority):

समाजवादी आर्थिक प्रणाली में आर्थिक क्रियाओं का संचालन करने के लिए एक केन्द्रीकृत नियोजन सत्ता (A Central Planning Authority) गठित की जाती है । यह केन्द्रीकृत सत्ता उत्पादन एवं वितरण सम्बन्धी महत्वपूर्ण फैसले, अधिकतर सामाजिक कल्याण का भावना के आधार पर करती है ।

5. आर्थिक नियोजन (Economic Planning):

पूंजीवादी आर्थिक प्रणाली के विपरीत समाजवादी आर्थिक प्रणाली सामूहिक शक्ति वाली एक सामाजिक एवं पूर्णत: नियोजित प्रणाली होती है । समाजवाद में केन्द्रीकृत नियोजन सत्ता समाज में उपलब्ध उत्पत्ति के साधनों का अनुकूलतम प्रयोग (Optimum Exploitation of Resources) करने के लिए एवं अधिकतम सामाजिक कल्याण की प्राप्ति के लिए नियोजन का सहारा लेती है । नियोजन की इस प्रक्रिया में केन्द्रीय नियोजन सत्ता, उपभोग, उत्पादन, वितरण, विनयोग, पूंजी निर्माण आदि सभी से संबंधित फैसले लेती है ।

दूसरे शब्दों में, एक समाजवादी आर्थिक प्रणाली में नियोजन प्रक्रिया द्वारा विभिन्न आर्थिक क्रियाओं को इस प्रकार संगठित किया जाता है कि उपलब्ध संसाधनों (Available Resources) को अनुकूलतम स्तर तक प्रयोग करके अधिकतम सामाजिक कल्याण प्राप्त किया जा सके इस प्रकार आर्थिक नियोजन के बिना समाजवादी आर्थिक संरचना की कल्पना भी नहीं की जा सकती ।

6. कीमत संयन्त्र की गौण भूमिका (Passive Role of Price Mechanism):

पूंजीवाद की भाँति समाजवाद में कीमतों का निर्धारण कीमत संयन्त्र (अर्थात् मांग एवं पूर्ति की स्वतंत्र शक्तियों) द्वारा नहीं किया जाता बल्कि सरकार स्वयं अपने अनुभव के आधार पर कीमत निर्धारित करती है ।

आर्थिक क्रियाओं के लिए लेखा कीमतों (Accounting Price) का प्रयोग किया जाता है, जिसका निर्धारण सरकार स्वयं उत्पादन, लागत एवं सामाजिक हित को ध्यान में रखकर करती है ।

7. आर्थिक समानता (Economic Equality) अथवा आर्थिक विषमताओं की समाप्ति (Elimination of Economic Inequality):

निजी सम्पत्ति के अधिकार, व्यक्तिगत लाभ की अनुपस्थिति, उत्तराधिकार के नियम की समाप्ति के कारण समाजवादी आर्थिक प्रणाली में धन के वितरण की असमानताएँ समाप्त हो जाती हैं । उत्पत्ति के साधनों पर सामूहिक, सामाजिक स्वामित्व होने के कारण आर्थिक समानताएँ उपस्थित होती हैं ।

समाजवादी प्रणाली में आय का मुख्य स्रोत श्रमिक की मजदूरी है । समाजवादी प्रणाली में समाज कार्य के लिए समान मजदूरी (Equal Wage for Equal Work) का सिद्धान्त अपनाता है । किन्तु मजदूरी का निर्धारण श्रमिक की योग्यतानुसार किया जाता है ।

इस प्रकार योग्यता के अन्तरों के कारण समाजवादी प्रणाली में मजदूरी दरों की भिन्नता कुछ आर्थिक विषमताओं को उत्पन्न तो करती है, किन्तु यह विषमता समाज में व्यक्तियों को योग्यता विस्तार के लिए प्रोत्साहित करती है । इस प्रकार समाजवादी प्रणाली में आर्थिक विषमता का पूर्ण उन्मूलन नहीं होता, बल्कि आर्थिक विषमताओं को न्यूनतम अवश्य कर दिया जाता है ।

8. शोषण का अंत (Elimination of Exploitation):

समाजवादी आर्थिक प्रणाली में उत्पत्ति के साधनों पर सामाजिक स्वामित्व होने के कारण न्यूनतम आर्थिक विषमताएँ होती है, जिसके फलस्वरूप समाज का दो वर्गों सम्पन्न वर्ग एवं विपन्न वर्ग में विभाजन नहीं होता साथ ही वितरण व्यवस्था पर सरकार का स्वामित्व होता है । जिसके कारण मानव द्वारा मानव के शोषण की सम्भावना समाप्त हो जाती है ।

9. प्रतियोगिता का अंत (Elimination of Competition):

समाजवादी आर्थिक प्रणाली में उत्पादन एवं वितरण दोनों पर सरकार का अधिकार एवं नियंत्रण होने के कारण पारस्परिक प्रतियोगिता की कोई सम्भावना नहीं रह जाती ।

सरकार द्वारा स्वयं उत्पादन का क्षेत्र उत्पादन मात्रा तथा वस्तु कीमत निर्धारण किए जाने के कारण समाजवाद में प्रतियोगिता उत्पन्न ही नहीं हो पाती, जिसके कारण प्रतियोगिता पर होने वाला अपव्यय समाजवाद में समाप्त हो जाता है ।

10. अनर्जित आय का अन्त (Elimination of Unearned Income):

समाजवादी आर्थिक प्रणाली में उत्तराधिकार के नियम की समाप्ति के कारण किसी भी व्यक्ति को अनर्जित आय प्राप्त होने की कोई सम्भावना नहीं होती, इस आर्थिक प्रणाली में श्रम सर्वोपरि होता है तथा प्रत्येक व्यक्ति अपनी क्षमता के अनुसार कार्य करके आय अर्जित करता है ।

समाजवादी आर्थिक प्रणाली के उपर्युक्त विशेषताओं से स्पष्ट होता है कि इस प्रणाली में पूंजीवाद के विपरीत साधनों पर सामाजिक स्वामित्व होने के कारण आर्थिक क्रियाओं का क्रियान्वयन सामाजिक हित को ध्यान में रखकर स्वयं सरकार द्वारा किया जाना है, जिसके फलस्वरूप व्यक्तिगत हित, प्रतियोगिता, शोषण, आर्थिक विषमताएं उत्पन्न नहीं होती ।

Essay # 3. समाजवाद की सफलताएं अथवा गुण (Success or Merits of Socialism):

(i) उत्पत्ति के संसाधनों का अनुकूलतम प्रयोग सम्भव (Optimum Utilisation of Factors of Production):

समाजवादी अर्थव्यवस्था का मौलिक आधार केन्द्रीकृत नियोजन (Centralised Planning) होने के कारण उत्पत्ति के साधनों का श्रेष्ठतम प्रयोग सम्भव हो पाता है । साथ ही नियोजन द्वारा संसाधनों को कम उत्पादकता एवं वांछनीयता वाले क्षेत्र से निकाल कर अधिक उत्पादकता वाले एवं अधिक सामाजिक हित वाले क्षेत्रों में स्थानान्तरित करके संसाधनों का अनुकूलतम प्रयोग करना संभव हो पाता है ।

पूंजीवाद में स्वहित उद्देश्य सर्वोपरि होने के कारण पूंजीपतियों में पारस्परिक स्पर्धा उत्पन्न होती है । तथा संसाधनों का अपव्यय (Wastage of Resources) होता है, जिसके कारण पूंजीवाद में संसाधनों का श्रेष्ठतम प्रयोग सम्भव नहीं हो पाता, किन्तु समाजवाद में नियोजन द्वारा अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों की आर्थिक क्रियाओं में सामंजस्य स्थापित किया जाता है । जिसके फलस्वरूप संसाधनों का अनुकूलतम प्रयोग सम्भव हो पाता है ।

(ii) व्यापार-चक्रों की समाप्ति एवं आर्थिक स्थायित्व (Elimination of Trade Cycle and Economic Stability):

समाजवाद में केन्द्रीय नियोजन के कारण तथा उपभोग एवं उत्पादन क्षेत्र के पारस्परिक समन्वयन के कारण अर्थव्यवस्था में अति-उत्पादन (Over-Production) एवं कम उत्पादन (Under Production) की कोई सम्भावना नहीं होती जिसके कारण अर्थव्यवस्था में आर्थिक स्थायित्व बन जाता है ।

केन्द्रीय नियोजन सत्ता द्वारा आर्थिक क्रियाओं का निष्पादन पूर्व-निश्चित उद्देश्यों के आधार पर किया जाता है, जिसके कारण अर्थव्यवस्था में अनिश्चितता, असन्तुलन एवं अन्तविरोध उत्पन्न नहीं होता और आर्थिक स्थायित्व की स्थिति उपस्थिति रहती है ।

(iii) आर्थिक समानता एवं सामाजिक न्याय (Economic Equality and Social Justice):

समाजवाद में उत्पत्ति के साधनों पर सामूहिक सामाजिक स्वामित्व होने के कारण आय एवं सम्पत्ति के वितरण में विषमताएं नहीं पाई जाती । समाजवाद में उतराधिकार के नियम की अनुपस्थिति होने के कारण समाज के सभी वर्गों को अपनी योग्यतानुसार कार्य करने के समान अवसर प्राप्त होते हैं । इस प्रकार समाजवाद में आर्थिक समानता के साथ-साथ सामाजिक न्याय का घटक स्वत: उपस्थित हो जाता है ।

(iv) सामाजिक परजीविता का अन्त (Elimination of Social-Parasitism):

पूंजीवाद में उत्तराधिकार के नियम की उपस्थिति के कारण धनी एवं संपन्न व्यक्तियों के उत्तराधिकारियों को अनर्जित आय प्राप्त होती है, जिससे वह गरीब एवं विपन्न लोगों का शोषण करते थे, किन्तु समाजवाद में अनर्जित आय का कोई स्थान नहीं ।

समाजवादी प्रणाली में आय अर्जन का मुख्य स्रोत श्रमिक की स्वयं मजदूरी है । जो वह अपनी योग्यतानुसार प्राप्त करता है । इस प्रकार समाजवाद में परिजीविता के लिए कोई स्थान नहीं ।

(v) वर्ग-संघर्ष की समाप्ति (Elimination of Class-Struggle):

समाजवाद में उत्पत्ति के साधनों एवं उत्पादन क्रियाओं पर सरकारी स्वामित्व होने के कारण धन के आधार पर समाज का विभाजन सम्भव नहीं होता । समाज में प्रत्येक व्यक्ति श्रमिक होता है, जिसे अपनी योग्यतानुसार कार्य एवं मजदूरी प्राप्त होती है । इस प्रकार समाजवाद में केवल एक ही वर्ग अर्थात् श्रमिक वर्ग (Labour-Class) होता है, जिसके कारण समाज में द्वेष एवं वर्ग संघर्ष की कोई सम्भावना नहीं रहती ।

(vi) आर्थिक शोषण की समाप्ति (Elimination of Economic Exploitation):

समाजवाद में प्रत्येक व्यक्ति अपनी आजीविका स्वयं अर्जित करता है । जिसके कारण इस प्रणाली को श्रम प्रधान आर्थिक प्रणाली की संज्ञा दी जा सकती है । व्यक्ति द्वारा अपनी योग्यतानुसार धनार्जन करने के कारण एवं उत्पत्ति के समस्त साधनों पर सरकारी स्वामित्व होने के कारण मानव द्वारा मानव के शोषण की कोई सम्भावना नहीं रहती ।

(vii) बेरोजगारी का निराकरण (Elimination of Unemployment):

समाजवादी अर्थव्यवस्था में नियोजन केन्द्रीय बिन्दु होता है । जिसके कारण समाज में कार्य करने के लिए प्रत्येक व्यक्ति एकसमान अवसर प्राप्त करता है । सरकार अधिकतम सामाजिक कल्याण को ध्यान में रखकर विभिन्न उत्पादन क्रियाएँ सम्पादित करती है ।

जिसके कारण प्रत्येक व्यक्ति अपनी योग्यतानुसार कार्य पाता है । और बेरोजगारी की समस्या उत्पन्न नहीं होती । जी.डी.एच. कोल के अनुसार समाजवाद के अन्तर्गत केवल बेरोजगारी की समस्या नहीं होती, बल्कि बेरोजगारी की समस्या के उत्पन्न होने की संभावना ही नहीं होती ।

(viii) एकाधिकारी शक्तियों की समाप्ति (Elimination of Monopoly Powers):

समाजवाद में सभी उत्पत्ति के साधनों एवं आर्थिक क्रियाओं पर सरकारी स्वामित्व होने के कारण समाज में धन एवं सम्पत्ति का किसी व्यक्ति अथवा वर्ग विशेष के हाथों में केन्द्रीकरण नहीं हो पाता, जिसके कारण समाज में एकाधिकारी शक्तियाँ उत्पन्न नहीं होती ।

(ix) प्रतियोगिता एवं अपव्यय की समाप्ति (Elimination of Competition and Wastage):

समाजवादी आर्थिक प्रणाली में उत्पादन एवं वितरण दोनों पर सरकार का अधिकार एवं नियंत्रण होने के कारण पारस्परिक प्रतियोगिता की कोई संभावना नहीं रहती । सरकार द्वारा स्वयं उत्पादन के क्षेत्र, उत्पादन मात्रा एवं वस्तु कीमत निर्धारित किए जाने के कारण समाजवाद में प्रतियोगिता उत्पन्न नहीं हो पाती, जिसके कारण प्रतियोगिता पर होने वाला अपव्यय (जैसे विज्ञापन एवं प्रचार पर होने वाला व्यय) समाजवाद में समाप्त हो जाता है ।

Essay # 4. समाजवाद की असफलताएँ अथवा दोष (Failure and Evils of Socialism):

समाजवादी आर्थिक प्रणाली में कुछ कमियां एवं दोष भी परिलक्षित होते हैं:

(i) प्रेरणा का अभाव (Lack of Incentive):

समाजवादी अर्थव्यवस्था वस्तुत: एक सर्वसत्तावादी (Totalitarian) अर्थव्यवस्था है, जिसमें आर्थिक शक्तियों का सरकार के हाथों में केन्द्रीकरण हो जाता है जिसमें सरकार द्वारा निर्देशित कार्य को सम्पादित करके केवल अपनी मजदूरी अर्जित करना ही श्रमिक का मुख्य उद्देश्य बन जाता है ।

अधिक उत्पादकता से अर्जित लाभ में श्रमिक की भागीदारी न होने के कारण अधिक कार्य करने की भावना समाप्त हो जाती है । इस प्रकार समाजवादी अर्थव्यवस्था में प्रेरणा का अभाव होता है ।

साथ ही इस व्यवस्था में नवीन आविष्कारों, उत्पादन तकनीकों आदि का विकास करने में व्यक्ति प्रोत्साहित अनुभव नहीं करता, क्योंकि इस विकार द्वारा अर्जित लाभ में व्यक्तिगत लाभ की सम्भावना शून्य रहती है और व्यक्ति मात्र एक उदासीन श्रमिक बनकर रह जाता है ।

(ii) कुशलता एवं उत्पादकता में कमी (Lack of Efficiency of Productivity):

समाजवादी अर्थव्यवस्था में अभाव के कारण श्रमिकों की कुशलता एवं उत्पादकता हतोत्साहित होती है । समाजवाद में श्रमिकों की मजदूरी का निर्धारण उनकी उत्पादकता के आधार पर नहीं होता, बल्कि सरकार स्वयं न्यूनतम आवश्यकता के आधार पर मजदूरी निर्धारित करती है । इस प्रकार श्रमिकों में आर्थिक प्रेरणा एवं प्रोत्साहन का अभाव उनकी कुशलता एवं उत्पादकता पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है ।

(iii) लाल फीताशाही एवं नौकरी के दोष उपस्थित (Presence of Evils of Red-Tapism and Bureaucracy):

सामाजिक आर्थिक व्यवस्था लाल फीताशाही एवं नौकरशाही के दोषों से ग्रसित होती है । उत्पादन के क्षेत्र में नियोजन के विभिन्न चरणों का निर्धारण सरकारी तंत्र एवं उसके अधिकारियों द्वारा किया जाता है ।

अधिकारी गण उत्पादन प्रक्रिया को उतनी कुशलता से सम्पन्न नहीं कर पाते जितनी कुशलता से एक व्यक्तिगत उद्यमी उत्पादन क्रिया सम्पन्न करता है क्योंकि:

(क) व्यक्तिगत उद्यमी निजी स्वार्थ (अर्थात् लाभ) के लिए उत्पादन को उसके अनुकूलतम स्तर तक पहुँचाने का प्रयास करता है, जबकि सरकारी तंत्र एवं अफसर एक परम्परागत तरीके से बिना निजी स्वार्थ के कार्यशील होते है तथा वे उत्पादकता बढ़ाने में व्यक्तिगत उद्यमी की भांति कार्यरत नहीं होते ।

(ख) सरकारी अफसरों की नियुक्ति एवं प्रोन्नति का आधार उनकी कुशलता एवं क्षमता नहीं होती ।

(ग) सरकारी अफसरों में खतरा मोल लेकर उत्पादन करने की क्षमता का (अर्थात् उद्यमता) का अभाव पाया जाता है ।

(घ) भ्रष्टाचार एवं लालफीताशाही के अवगुण अवरोध बन जाते हैं ।

(iv) उपभोक्ता की प्रभुता की समाप्ति (Elimination of Consumers Sovereignty):

समाजवादी आर्थिक प्रणाली में आर्थिक शक्तियाँ सरकारी हाथों में केन्द्रीत होने के कारण उत्पादन सम्बन्धी सभी निर्णय (अर्थात What ? How and How much) सरकार स्वयं लेती है । और उपभोक्ता को चयन की स्वतंत्रता (Freedom of Choice) से वंचित होना पड़ता है ।

इस प्रकार इस प्रणाली में सरकार द्वारा जिन वस्तुओं का उत्पादन एवं वितरण किया जाता है, उपभोक्ता को विवश होकर उन्हीं वस्तुओं को उपभोग करना पड़ता है । ऐसी दशा में उपभोक्ता की प्रभुसत्ता समाप्त होकर रह जाती है ।

(v) व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अभाव (Lack of Individual Freedom):

समाजवादी आर्थिक प्रणाली में केन्द्रीय नियोजन होने के कारण उत्पत्ति के साधनों का प्रयोग सरकार पूर्व-निर्धारित उद्देश्यों की पूर्ति के लिए करती है । तथा इन उद्देश्यों की पूर्ति के लिए प्रत्येक व्यक्ति को आर्थिक क्रियाओं को संचालन योजना के अनुसार कार्य करना पड़ता है ।

जिसमें व्यक्ति को चयन की कोई स्वतंत्रता नहीं होती और उसे बाध्य होकर सरकार द्वारा आवंटित कार्य को सम्पादित करना पड़ता है । इस प्रकार समाजवाद में आर्थिक स्वतंत्रता समाप्त होकर रह जाती हैं ।

(vi) उत्पत्ति के साधनों का अविवेकपूर्ण उपयोग (Irrational Utilisation of Factors of Production):

समाजवादी आर्थिक प्रणाली में केन्द्रीय नियोजन सत्ता स्वयं उत्पादन की मात्रा, किस्म, क्षेत्र वितरण एवं कीमत आदि का निर्धारण करती है । उत्पत्ति के साधनों के कुशल आबंटन हेतु समाजवादी आर्थिक प्रणाली में कोई स्वचालित यन्त्र नहीं पाया जाता ।

प्रो. हायेक (Hayak) समाजवादी अर्थ में उत्पत्ति साधनों के वितरण के आधार को मानना एवं अविवेकपूर्ण (Arbitrary and Irrational) मानते है । साथ ही इस अर्थव्यवस्था में लागत गणना का कोई नियमित आधार नहीं होता, जिसके कारण साधनों का आबंटन और अधिक अविवेकपूर्ण हो जाता है ।

(vii) पूंजी निर्माण प्रक्रिया हतोत्साहित (Disincentive to Process of Capital Formation):

समाजवादी आर्थिक प्रणाली में पूंजी निर्माण प्रक्रिया पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, क्योंकि सभी संसाधनों पर सरकारी अधिकार होने के साथ-साथ सरकार न तो पूंजी निर्माण की अनुमति देती है न ही व्यक्ति प्रेरणा की अनुपस्थिति पूंजी निर्माण में सहयोग कर पाती है । इस प्रकार पूंजीवादी आर्थिक प्रणाली की भाँति समाजवादी आर्थिक प्रणाली में पूंजी निर्माण की दर अपेक्षाकृत बहुत कम रहती है ।

(viii) दासता का मार्ग (Way to Serfdom):

प्रो. हायक समाजवादी आर्थिक प्रणाली को दासता का मार्ग मानते हैं उनके विचार में समाजवादी प्रणाली में व्यक्तिगत स्वतंत्रता, व्यावसायिक स्वतंत्रता एवं उपभोक्ता की प्रभुता समाप्त हो जाती है । और व्यक्ति अपने जीवन-यापन एवं आजीविका के लिए सरकार पर आश्रित होकर रह जाता है ।

निष्कर्ष:

उपर्युक्त विश्लेषण से स्पष्ट है कि समाजवादी आर्थिक प्रणाली अनेक गुणों से सम्पन्न होते हुए भी दोषयुक्त नहीं है । पूंजीवादी आर्थिक प्रणाली की भांति इस प्रणाली में भी अनेक कमियां एवं दोष दृष्टिगोचर होते है ।

पूंजीवादी एवं समाजवादी आर्थिक प्रणालियों का यदि विश्लेषण किया जाये तो स्पष्ट होता है कि दोनों प्रणालियों में से कोई भी प्रणाली अपने आप में पूर्ण नहीं है । किन्तु तुलनात्मक रूप से यदि विश्लेषण किया जाये तो समाजवादी आर्थिक प्रणाली पूंजीवादी प्रणाली की तुलना में अधिक सफल एवं विकसित हुई है ।

इस सफलता का कारण समाजवादी प्रणाली की अधिकतम सामाजिक कल्याण की भावना का होना है । साथ ही पूंजीवाद को दोष एवं शोषण (मुख्यत: आर्थिक विषमताएं, वर्ग संघर्ष, अन्याय, शोषण, अत्याचार आदि) से जनमानस को मुक्ति दिलाने में समाजवादी आर्थिक प्रणाली ने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है ।

समाजवाद की इसी विशेषता के कारण अल्प समय में यह प्रणाली अनेक देशों में विकसित हो गई निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि जहां पूंजीवाद असफल होता है, वहां समाजवाद सफल होता है ।

इस प्रकार समाजवाद पूंजीवाद के दोषों को दूर करने का एक साधन है । यदि समाजवादी आर्थिक प्रणाली को समाजवाद की मौलिक मान्यताओं के अन्तर्गत क्रियान्वित किया जाए तो समाजवाद की सफलता सुनिश्चित की जा सकती है ।

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