प्रौद्योगिकी पर निबंध | Here is an essay on ‘Technology’ for class 7, 8, 9, 10, 11 and 12. Find paragraphs, long and short essays on ‘Technology’ especially written for school and college students in Hindi language.
प्रौद्योगिकी पर निबंध | Essay on Technology
Essay Contents:
- प्रौद्योगिकी का परिचय (Introduction to Technology)
- प्रौद्योगिकीय परिवर्तन का अर्थ (Meaning of Technological Change)
- प्रौद्योगिक परिवर्तन की प्रक्रिया (Process of Technological Change)
- आर्थिक विकास में प्रौद्योगिक की भूमिका (Role of Technology in Economic Development)
- विदेशी तकनीकों की उपयुक्तता (Suitability of Foreign Techniques)
- अल्प विकसित देशों में प्रौद्योगिकी के स्थानान्तरण की समस्याएं (Problems of Technology Transfer to Underdeveloped Countries)
- प्रौद्योगिकी के स्थानान्तरण को गतिशील करने के उपाय (Measures to Accelerate Transfer of Technology)
Essay # 1. प्रौद्योगिकी का परिचय (Introduction to Technology):
अल्प विकसित देशों की निर्धनता का मुख्य कारण उनका प्रौद्योगिकी पिछड़ापन है । आर्थिक पिछड़ेपन का मुख्य कारण तकनीकी प्रगति का निम्न स्तर है, क्योंकि आर्थिक विकास और प्रौद्योगिक प्रगति एक दूसरे से सह-सम्बन्धित हैं । तीव्र वृद्धि के लिये प्रौद्योगिक उन्नति का एक विशेष स्तर एक आवश्यक पूर्व शर्त है ।
इसलिये, प्रौद्योगिकी स्तर, किसी देश के आर्थिक विकास के सूचक का कार्य करता है । अल्प विकसित देशों में प्रौद्योगिकी परिवर्तन के कार्य कठिन होते हैं क्योंकि पिछड़ी हुई पूर्व-औद्योगिक अर्थव्यवस्थाओं की सामाजिक व्यवस्था, किसी महत्त्वपूर्ण स्तर तक प्रौद्योगिकी सुधार लाने में सहायक नहीं होती ।
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देखा जाता है कि उचित तकनीकी परिवर्तनों की अनुपस्थिति आर्थिक वृद्धि के मार्ग में बाधा बनती है । इसलिये, आर्थिक वृद्धि के संवर्धन के लिये आवश्यक है कि नई तकनीकों का अन्वेषण किया जाये और औद्योगिक रूप में उन्नत देशों से प्रौद्योगिकी का आयात किया जाये ।
संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञों के अवलोकन अनुसार- ”जब तक विशेष प्रयत्न नहीं किये जाते, अल्प विकसित देशों में प्रौद्योगिकी विकास की प्रक्रिया सापेक्षतया धीमी होगी तथा विकसित देशों में संचयी वैज्ञानिक उन्नति के बढ़ने से तकनीक में अन्तराल विस्तृत होता रहेगा ।”
Essay #2. प्रौद्योगिकीय परिवर्तन का अर्थ (Meaning of Technological Change):
आर्थिक वृद्धि की प्रक्रिया में प्रौद्योगिकी को मौलिक कारक माना जाता है । प्रौद्योगिकीय परिवर्तन का अर्थ है पूंजी और मशीनरी के उत्पादन में प्रयुक्त तकनीकी ज्ञान । प्रौद्योगिकी में विभिन्न परिवर्तन श्रम, पूंजी तथा उत्पादन के अन्य कारकों की उत्पादकता में वृद्धि कर देते हैं ।
प्रौद्योगिक उन्नति में नई निपुणताओं की रचना, उत्पादन के नये साधन और ढंग, कच्चे माल के नये प्रयोग और मशीनरी के विस्तृत प्रयोग सम्मिलित हैं । प्रौद्योगिकी प्रकृति से सभी सम्भव ढंगों द्वारा ऊर्जा बटोरने का सबसे सशक्त साधन है ।
ADVERTISEMENTS:
यह व्यक्ति की क्षमताओं को दृढ़ बनाती है और उसे प्रकृति की विराट भौतिक शक्तियों को प्रयुक्त करने के योग्य बनाती है । प्रौद्योगिकी उन्नति आर्थिक वृद्धि की प्रचालक शक्ति है । अत: प्रौद्योगिक उपलब्धता उत्पादन की दक्षता और आर्थिक वृद्धि की गति का निर्धारण करती है ।
“प्रौद्योगिकी परिवर्तन केवल तकनीकी ज्ञान में सुधार नहीं है । इसका अर्थ इससे कहीं अधिक है । इससे पहले सामाजिक परिवर्तन भी आने चाहिये । समाज सामाजिक, राजनैतिक और प्रशासनिक संस्थाओं में सुधार लाने की इच्छा-शक्ति रखता हो ताकि उसे उत्पादन की नई तकनीकों के अनुकूल बनाया जा सके और आर्थिक गतिविधि की शैली को तीव्र क्रिया जा सके ।” -फ्रेंन्कल
परन्तु तकनीकी उन्नति की अनुपस्थिति का अर्थ है एक बिन्दु के पश्चात् वृद्धि का अन्त “विकसित देशों के पास जो है और अल्प विकसित देशों में जिसका अभाव है वह है आधुनिक विज्ञान और आधुनिक तकनीक पर आधारित अर्थव्यवस्था । इसलिये, विकासशील और अल्प विकसित देशों की समस्या, उनमें आधुनिक विज्ञान की स्थापना की समस्या तथा उनकी अर्थव्यवस्थाओं को आधुनिक विज्ञान और प्रौद्योगिकी आधारित अर्थव्यवस्थाओं में स्थानान्तरित करना है ।” –एच. भाभा
परन्तु आधुनिक प्रौद्योगिकी में तीव्रतापूर्वक परिवर्तन हो रहा है तथा कोई भी देश सुस्थिर प्रगति कायम नहीं रख सकता जब तक कि वह प्रचलित परिवर्धन से गति बना कर न चले ।
Essay #3. प्रौद्योगिक परिवर्तन की प्रक्रिया (Process of Technological Change):
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तकनीकी परिवर्तन नई वस्तुओं और उत्पादन की नई तकनीकों का प्रबन्ध करता है । नये तकनीकी ज्ञान के विकास की परिभाषा नई तकनीकों की वृद्धि के रूप में की जा सकती है जो उत्पादन की कम लागत पर वस्तुएं और सेवाएं उत्पादित कर सकती है ।
तकनीकी ज्ञान की वृद्धि की प्रक्रिया को निम्नलिखित सोपानों में विभाजित किया जा सकता है:
(i) वैज्ञानिक सिद्धान्तों का निर्माण,
(ii) इन सिद्धान्तों का तकनीकी समस्याओं के लिए प्रयोग,
(iii) तकनीकी आविष्कारों का वाणिज्यात्मक कार्यों में प्रयोग के लिये विकास ।
पहला सोपान है वैज्ञानिक ज्ञान की प्रगति, दूसरा है ज्ञान की किसी लाभप्रद कार्य में प्रयोज्यता और तीसरा सोपान है आविष्कारों का व्यापारीकरण जिसे नवप्रवर्तन कहते हैं । इसका विकास की प्रक्रिया में बहुत महत्व है ।
शम्पीटर (Schumpeter) ने आविष्कार और नवप्रवर्तन में अन्तर किया है । आविष्कार का अर्थ है नई तकनीक की खोज, जब कि बाजार के लिये उत्पादन में आविष्कार का व्यावहारिक प्रयोग नवप्रवर्तन कहलाता है ।
इसे वाणिज्यीकरण (Commercialisation) भी कहा जा सकता है जो वैज्ञानिक उन्नति से उत्पन्न होता है । आविष्कार वैज्ञानिक तथ्य है जबकि नवप्रवर्तन एक आर्थिक तथ्य है । आविष्कारक द्वारा आविष्कार किये जाते हैं जबकि नवप्रवर्तन उद्यमियों का कार्य है ।
नवप्रवर्तनों के लिये प्रत्येक सोपान पर भारी पूंजी निवेशों की आवश्यकता होती है क्योंकि इसे न केवल वैज्ञानिक व्यवहार की आवश्यकता होती है बल्कि समाज से सम्बन्धित मनोवृत्ति और उच्च कोटि की उद्यमीय कुशलता और व्यापारिक प्रयोजनों के लिये वैज्ञानिक प्रोत्साहनों के नियोजन की सम्भवताओं को समझने की योग्यता की भी आवश्यकता होती है ।
Essay # 4. आर्थिक विकास में प्रौद्योगिक की भूमिका (Role of Technology in Economic Development):
प्रौद्योगिकी उन्नति और आर्थिक वृद्धि वास्तव में एक दूसरे से सम्बन्धित हैं । प्रौद्योगिकी का स्तर आर्थिक वृद्धि का महत्वपूर्ण निर्धारक है । वृद्धि की तीव्र दर तकनीक के उच्च स्तर द्वारा प्राप्त की जा सकती है । शुम्पीटर का विचार है कि केवल नव प्रवर्तन अथवा तकनीकी उन्नति ही आर्थिक प्रगति के निर्धारक हैं, परन्तु यदि तकनीक का स्तर स्थिर हो जाता है तो विकास की प्रक्रिया रुक जाती है ।
अत: तकनीकी उन्नति ही अर्थव्यवस्था को गतिशील रखती है । आविष्कार और नवप्रवर्तन ही विकसित देशों में मुख्यत: आर्थिक वृद्धि के लिये उत्तरदायी है । विकसित देशों में शुद्ध राष्ट्रीय आय की वृद्धि केवल पूंजी के आधार पर नहीं होती ।
किन्डलबर्गर (Kindleborger) का विचार है कि बड़ी हुई उत्पादकता का मुख्य भाग तकनीकी परिवर्तन के कारण प्राप्त होता है । राबर्ट सोलो (Robert Solow) के अनुमान अनुसार यू.एस.ए की अर्थव्यवस्था की वृद्धि का लगभग 2/3 भाग तकनीकी परिवर्तनों के कारण से है (श्रम शक्ति और पूंजी संग्रह द्वारा वृद्धि की आज्ञा के पश्चात) ।
वास्तव में, प्रौद्योगिकी को आर्थिक विकास का आरम्भिक साधन माना जा सकता है तथा विभिन्न तकनीकी परिवर्तन अल्प विकसित देशों के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान करते हैं । तकनीकी परिवर्तन का उत्पादन फलन पर प्रभाव रेखा चित्र 8.1 (A) से 8.3 (B) तक की सहायता से वर्णित किया जा सकता है ।
रेखाचित्र 8.1 में R तकनीकी परिवर्तन से पहले उत्पादन फलन का चाप है और R उत्पादन की उन्हीं मात्राओं का नव प्रवर्तन के पश्चात् प्रदर्शन करता है । श्रम और पूंजी दो आगतों के साथ नव प्रवर्तन निष्क्रिय है । नया उत्पादन फलन R’ दर्शाता है कि तकनीकी उन्नति के पश्चात् कम श्रम और कम पूंजी के साथ वही उत्पादन उत्पादित किया जा सकता है ।
रेखाचित्र 8.2 दर्शाता है कि नव प्रवर्तन श्रम की बचत करने वाला है और R’ दर्शाता है कि कम आगतों द्वारा वही उत्पादन उत्पादित किया जा सकता है, परन्तु श्रम की बचत पूंजी की बचत से बड़ी है ।
रेखाचित्र दर्शाता है कि नवप्रवर्तन पूंजी की बचत करने वाला है और R’ दर्शाता है कि तकनीकी परिवर्तन के पश्चात् कम आगतों के प्रयोग से उतना उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है परन्तु पूंजी की बचत श्रम की बचत से बड़ी है ।
प्राय: यह कल्पना की जाती है कि तकनीकी प्रगति पूंजी निर्माण से भी अधिक महत्व रखती है, परन्तु केवल पूंजी निर्माण ही कुछ सीमा तक आर्थिक विकास ला सकता है तथा यदि कोई तकनीकी परिवर्तन नहीं होता तो उन्नति रुक जाती है । कोई भी देश तकनीक के आयात पर निर्भर नहीं रह सकता ।
कोई राष्ट्र जो विज्ञान एवं तकनीकी अनुसंधान पर अधिक व्यय करता है । ऐसे देश की तुलना में अधिक तीव्रता से विकास प्राप्त करता है जो अधिक पूंजी संचय करता है परन्तु तकनीकी विकास पर व्यय नहीं करता । इसे रेखाचित्र 8.4 और 8.5 की सहायता से दर्शाया जा सकता है ।
रेखाचित्र 8.4 में देश A अधिक पूंजी साधनों के संचय की और ध्यान केन्द्रित करता है जबकि रेखाचित्र 8.5 में देश तकनीकी पहलुओं की ओर ध्यान देता है परन्तु पूंजी के संचयन को नियमित नहीं करता ।
स्पष्ट है कि देश B की उन्नति तकनीकी विकास के उच्च दर के कारण देश A से तीव्र होगी । ‘तकनीकी उन्नति पूंजी संचयन से अधिक महत्त्वपूर्ण है’ इस धारणा को रेखाचित्र 8.6 में उत्पादन फलन की सहायता से दर्शाया गया है ।
रेखाचित्र 8.6 में OP उत्पादन फलन का प्रतिनिधित्व करता है जो तकनीकी उन्नति के साथ OP1, OP2, OP3 तक बढ़ता है । उत्पादन फलन OP पर यदि प्रति श्रमिक पूंजी की राशि 150 से 200 रुपयों तक बढ़ा दी जाती है, श्रम का प्रति व्यक्ति उत्पादन SM से XM1 तक बढ़ जाता है, जब श्रम की प्रति इकाई के पीछे पूंजी 300 रुपये है तो उत्पादन प्रति श्रमिक ZM3 है ।
तकनीकी उन्नति का मुख्य उद्देश्य है श्रम और अन्य साधनों का बेहतर उपयोग । अत: उत्पादन फलन ऊपर की ओर परिवर्तित होता है जिसका अर्थ हे कि प्रति श्रमिक पूंजी की उसी राशि द्वारा प्रति श्रमिक अधिक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है ।
प्रति श्रमिक पूंजी की मात्रा 150 रुपये रहती है । प्रति व्यक्ति उत्पादन SM से NM तक बढ़ता जाता है, यह उत्पादन फलन में ऊपर की ओर परिवर्तन के कारण से है । इसी प्रकार, पूंजी प्रबलता के अन्य स्तरों पर अधिक उत्पादन उत्पादित किया जा सकता है ।
इस प्रकार तकनीकी उन्नति के परिणाम में उत्पादन फलन ऊपर की ओर परिवर्तित होता है जो प्रति श्रमिक पूंजी की उसी राशि के साथ प्रति श्रमिक अधिक उत्पादन सम्भव बनाता है ।
Essay # 5. विदेशी तकनीकों की उपयुक्तता (Suitability of Foreign Techniques):
अल्पविकसित देशों में भी प्रौद्योगिकीय परिवर्तनों की समस्या का समाधान उन्नत देशों से इन देशों की ओर आधुनिक प्रौद्योगिकी के स्थानान्तरण द्वारा नहीं किया जा सकता । विकासशील देशों में उपलब्ध प्रौद्योगिकी, अल्पविकसित देशों में प्रचलित परिस्थितियों के अनुकूल नहीं है ।
अत: इन तकनीकों में अनेक परिवर्तन करने होंगे । श्रम बचत से सम्बन्धित तकनीकें इन देशों के लिये लाभप्रद नहीं होंगी । अल्प विकसित देशों को विकसित देशों से उन्नत तकनीक आयात करने का लाभ प्राप्त होता है, परन्तु इससे उनके लिये अनेक समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं ।
उन्नत तकनीक के प्रयोग के लिये वैज्ञानिक निपुणता सहित उच्च प्रशिक्षित श्रम शक्ति की आवश्यकता होती है जिसका अल्प विकसित देशों में अभाव होता है । अत: इन देशों को उन्नत प्रौद्योगिकी से विशेष लाभ प्राप्त नहीं होता ।
ऐसे साजो-सामान के उदाहरण हैं जो औद्योगीकृत देशों की आवश्यकताओं के बहुत अनुकूल है, परन्तु अल्प विकसित देशों के औद्योगिक वातावरण में जिसका निष्पादन असफल रहता है ।
अल्प विकसित देशों को स्वयं को औद्योगिक रूप में उन्नत देशों के प्रौद्योगिकी स्तर पर रखने का प्रयत्न नहीं करना चाहिये । आज के विकसित देशों को, जो तकनीक एक शताब्दी पहले उपयोगी थी वह आज के अल्प विकसित देशों के लिये अब उपयोगी हो सकती है ।
विदेशी तकनीक न केवल अल्प विकसित देशों में विद्यमान परिस्थितियों के प्रतिकूल है बल्कि एक व्यर्थता भी है । उच्च परिशुद्धता पूर्ण तकनीकों के आरम्भ करने के लिये आवश्यक उच्च आरम्भिक निवेश की आवश्यकता होती है, जिससे इन देशों के वित्तीय साधनों पर भारी दबाव पड़ता है ।
उन्नत प्रौद्योगिकी के प्रयोग में एक अन्य व्यर्थता यह भी संलिप्त होती है कि अल्प विकसित देशों में आयात किये गये महंगे साजो-सामान का जीवन बहुत कम रह जाने की सम्भावना होती है क्योंकि उसकी अनुभवहीन सम्भाल, तकनीकी निपुणता का अभाव और उचित देख-रेख का अभाव इसे क्षतिग्रस्त करने में सहायक होता है ।
अत: हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि विकसित देशों से पिछड़े देशों की ओर आधुनिक प्रौद्योगिकी का स्थानान्तरण विकास की समस्याओं का समाधान नहीं कर सकता । औद्योगिक रूप में उन्नत देशों में उपलब्ध तकनीक को प्रतिरोपित करने की समस्या नहीं है बल्कि प्रासंगिक प्रौद्योगिकी उपलब्ध नहीं है ।
यह विकासशील देशों के वैज्ञानिकों और तकनीकी विशेषज्ञों द्वारा विकसित की जानी चाहिये । इन देशों में आने वाले समय के दौरान अथवा सोपानों पर तकनीक के अनुसंधान और विकास के प्रयत्न किये जाने चाहियें । अत: यह आवश्यक है कि यह देश ऐसे क्षेत्रों में नये अनुसंधान आरम्भ करें जिनमें विकसित देश रुचि नहीं रखते ।
Essay # 6. अल्प विकसित देशों में प्रौद्योगिकी के स्थानान्तरण की समस्याएं (Problems of Technology Transfer to Underdeveloped Countries):
किसी देश का आर्थिक विकास उस देश में विद्यमान तकनीकी अवस्था पर निर्भर करता है । अल्प विकसित देशों में आधुनिक तकनीक के स्वचालित प्रसार की कोई सम्भावना नहीं होती । अल्प विकसित देशों में तकनीकी परिवर्तन एक कठिन कार्य है तथा इसके लिये सरकार और लोगों द्वारा विशेष प्रयत्न की आवश्यकता होती है ।
अल्प विकसित देशों में विकास कार्यक्रमों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये तकनीकी स्तर को बढ़ाना बहुत कठिन कार्य है । अल्प विकसित देशों के लोगों के लिये नई तकनीकों को अपनाना और लोगों की प्रवृत्तियों में परिवर्तन लाना कठिन हो जाता है ।
“सुधरी हुई उत्पादन विधियों की तुलना में उपभोग की बेहतर आदतों को अपनाना बहुत सरल है । अत: उपभोग में फैशन उत्पादन की तकनीकों की तुलना में अधिक तीव्रतापूर्वक फैल सकते हैं, परन्तु इन कठिनाइयों के बावजूद इन देशों में तकनीकी परिवर्तन की प्रक्रिया आरम्भ की जाती है । अर्थव्यवस्था की उन शाखाओं की पहचान आवश्यक है जिनकी तकनीकी परिवर्तन के लिये अधिक आवश्यकता है । तब प्रासंगिक प्रौद्योगिकी का चयन अवश्य किया जाना चाहिये । अल्प विकसित देशों में तकनीकी परिवर्तन की समस्या, उन्नत देशों से इन देशों की ओर आधुनिक तकनीक के स्थानान्तरण की समस्या है । इसमें अल्प विकसित देशों में प्रासंगिक तकनीकों का विकास और आयातित प्रौद्योगिकी का स्थानीय परिस्थितियों के साथ अनुकूलन भी संलिप्त है । यद्यपि, अल्प विकसित देशों में तकनीकी स्थानान्तरण, उन्नत देशों की तुलना में गम्भीर समस्याएं खड़ी करता है ।” -नर्कस
प्रौद्योगिकी की समस्याओं को नीचे सूचीबद्ध किया गया है:
(i) मुख्य कठिनाई यह है कि इन देशों में उचित सामाजिक वातावरण का अभाव होता है । लोग पुरानी व्यवस्था के अनुसार काम करने के आदी होते हैं इसलिये उनमें तकनीकों को अपनाने का जोश नहीं होता ।
(ii) इन देशों में स्थितियां होती हैं जैसे सामाजिक संरचना, आर्थिक वातावरण, राजनीतिक जागृति, शिक्षा प्रणाली आदि जो तकनीकी स्थानान्तरण के भिन्न ढंगों को आमन्त्रित करती हैं ।
(iii) अल्प विकसित देशों में कुशल मानवीय साधनों का अभाव होता है इसलिये वे आधुनिक परिष्कृत आयात की गई तकनीकों का प्रयोग करने में असफल रहते हैं ।
(iv) आधुनिक तकनीक का आयात बहुत महंगा है जबकि पूंजी का अभाव सबसे बड़ा सीमित करने वाला कारक हैं । इसके अतिरिक्त स्थानीय आवश्यकताओं के अनुसार प्रोद्योगिकीय समन्वयन की समस्या रहती है ।
(v) अल्प विकसित देशों में विद्युत और ऊर्जा आदि संरचना का अभाव रहता है ।
(vi) आर्थिक विकास के आरम्भिक सोपानों पर अल्प विकसित देश सीमित मांग और पूर्ति पक्ष का सामना करते हैं । उदाहरणतया इन देशों को विदेशी विशेषज्ञों की सेवाओं पर निर्भर रहना पड़ता है जिनकी अपनी सीमाएं होती हैं । इसी प्रकार विदेशी विनिमय का अभाव तकनीकी स्थानान्तरण के मार्ग में सबसे बड़ा प्रतिबन्ध है ।
(vii) तकनीकी स्थानान्तरण के लिये सुचेत उद्यमवृत्ति और प्रबन्धकीय निपुणता की आवश्यकता होती है । परन्तु इन देशों में इन पूर्वापेक्षाओं का अभाव होता है जोकि स्थानान्तरण के मार्ग में एक बड़ी बाधा है ।
(viii) अल्प विकसित देशों में मध्यस्थ तकनीक की भी समस्या होती है । अन्य शब्दों में तकनीक के चयन की समस्या ।
(ix) आधुनिक तकनीक अत्याधिक पूंजी गहन है जो श्रम की बहुलता और कम पूंजी वाले निर्धन अल्प विकसित देशों के लिये प्रासंगिक नहीं है ।
(x) अल्प विकसित देशों में ईमानदार और कुशल प्रशासनिक मशीनरी उपलब्ध नहीं होती । अन्य शब्दों में, अदक्ष नियोजन और व्यर्थ प्रतियोगिता के कारण तकनीक का स्थानान्तरण हतोत्साहित हुआ है ।
Essay # 7. प्रौद्योगिकी के स्थानान्तरण को गतिशील करने के उपाय (Measures to Accelerate Transfer of Technology):
विकासशील देशों में तकनीकी स्थानान्तरण की प्रक्रिया को गतिशील करने के लिए निम्नलिखित उपायों के सुझाव दिये गये हैं:
1. प्रौद्योगिकी के सफल स्थानान्तरण के लिये निर्माण परियोजनाओं की ओर उदार व्यापार नीति अपनाने की आवश्यकता होती है ताकि नवीनतम आयात क्षमता को बढ़ाया जा सके ।
2. सुरक्षा और आयात प्रतिस्थापन की नीति उत्पादन और वस्तुओं की गुणवत्ता की कुशलता के लिये बेहतर हो सकती है ।
3. विकासशील देशों को अपनी औद्योगिक लाइसैंस नीति इस प्रकार बनानी चाहिये कि यह तकनीकी स्थानान्तरण को प्रतिबन्धित न कर सके ।
4. बड़े-बड़े अन्तर्राष्ट्रीय अभिकरण जैसे आई. एम. एफ., विश्व बैंक, आई.टी.ओ., आइ.एफ.सी., एशिया ई विकास बैंक को विदेशी तकनीक को उत्साहित करने के लिये आगे आना चाहिये जोकि इन देशों के लिये बहुत अनुकूल है ।
5. तकनीक स्थानान्तरण के लिये शिक्षा और प्रशिक्षण देने के लिये कड़े कदम उठाने चाहियें । इसके अतिरिक्त विशेष परामर्श दात्री और विस्तार सेवाएं होनी चाहियें जो लघुस्तरीय उद्योगों में नवीनतम तकनीकों के प्रयोग का संवर्धन करें ।
6. बहुराष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय फ़र्में उन्नत तकनीक के प्रसार में विशेष भूमिका निभाएं । वे स्थानीय सामग्री पर आधारित प्रौद्योगिकी का निर्माण करें ।
7. तकनीकी स्थानान्तरण के लिये, तकनीकी ज्ञान प्राप्त करने हेतु चुने हुये अधिकारियों को उन्नत देशों में भेजा जाये । इस कार्य के लिये विशेष उद्यमी वर्ग की रचना की जाये ।
निष्कर्ष (Conclusion):
उपरोक्त अध्ययन से यह स्पष्ट है कि अल्प विकसित देशों के सुधार के लिये तकनीक का स्थानान्तरण, कुछ विशेष प्रकार की समस्याओं का सामना करता है । विश्व के उन्नत देशों को आगे आ कर आर्थिक पहलकदमी उपलब्ध करवानी चाहिए जिससे तकनीकी स्थानान्तरण के लिये अनुकूल वातावरण बना रहे ।
अत: आवश्यक है कि किसी अल्प विकसित देश में प्रासंगिक तकनीक को अपनाया जाये, परन्तु एक सतर्कता का अवश्य ध्यान रखा जाये कि तकनीकी स्थानान्तरण पूंजी गहन उद्योगों में किया जाये क्योंकि आधुनिक प्रौद्योगिकी दो-धारी तलवार है ।
यदि इसका अत्याधिक और असंगत प्रयोग किया जाता है तो यह अति विनाशकारी और शोषणकारी प्रमाणित हो सकती है । अन्यथा, इसका प्रासंगिक प्रयोग अल्प विकसित देशों के लिये एक वरदान प्रमाणित हो सकता है ।