भारत में शहरीकरण पर निबंध | Essay on Urbanisation in India in Hindi!
स्वतंत्रता के पश्चात् भारत में नगरीकरण की विस्फोटक प्रवृत्ति रही है, जिसका मुख्य कारण ग्रामीण-नगरीय स्थानांतरण रहा है । यद्यपि अनेक नवीन नगर भी बसे हैं, जो अपने कार्यिक विशेषताओं के आधार पर आकर्षण का केन्द्र बने हैं । भारत में सबसे अधिक नगरीय वृद्धि (46%) 1971-81 के दशक में रही है । उसके बाद नगरीकरण की वृद्धि दर में क्रमिक रूप से कमी आई है ।
वर्तमान समय में इसकी वार्षिक वृद्धि दर लगभग 3% है, जो नगरीकरण की प्रक्रिया के धीमी होने का संकेत है, परन्तु 3% की वार्षिक वृद्धि दर भी वस्तुतः नगरीय जनसंख्या विस्फोट को दर्शाती है । भारतीय नगरों में मलिन बस्तियों की समस्या भी एक अत्यन्त गंभीर समस्या है । देश की नगरीय जनसंख्या का लगभग 33% एवं देश की कुल जनसंख्या का लगभग 8% मलिन बस्तियों में रहता है ।
मुंबई का मलिन बस्ती क्षेत्र ‘धरावी’ (दक्षिणी मुंबई) एशिया की दूसरी (प्रथम- ‘ओरेंगी’ पाकिस्तान में कराची के निकट) सबसे बड़ी मलिन (स्लम) बस्ती है । कोलकाता में बड़ा बाजार के आसपास, चेन्नई में माउंट रोड के उत्तरी भागों में व पटना में सब्जी बाजार के पास मलिन बस्तियाँ मिलती है ।
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ये मलिन बस्तियाँ सार्वजनिक स्थानों पर अस्थायी व गैर-कानूनी रूप से निर्मित होती है, इन्हें Squatter Settlement और Pavement Settlement कहते हैं । यहाँ रहनेवाली जनसंख्या को Floating Population भी कहते हैं क्योंकि सामान्य रूप से उनका निवास अस्थायी होता है ।
भारत जैसे विकासशील देशों में ग्रामीण-नगरीय स्थानांतरण के कारण नगरीकरण की प्रक्रिया को अधिक बल मिला है । यहाँ के अधिकतर नगर पहले गाँव ही थे, जो सेवाओं के केन्द्रीकरण के कारण नगर बन गए ।
भारत जैसे विकासशील देशों में औद्योगीकरण व नगरीकरण का समानुपातिक संबंध स्वस्थ रूप में विकसित नहीं हुआ है क्योंकि दबाव डालने वाली शक्तियों (Push Factor) के कारण ग्रामीण-नगरीय स्थानांतरण काफी तेजी से बढ़ा है । नगरीय जनसंख्या वृद्धि दर, नगरों के औद्योगिक विकास दर से अधिक तीव्र रहा है ।
परिणामतः नगर का अवरुद्ध व अनियोजित विकास हुआ है एवं इनसे विभिन्न तरह की नगरीय समस्याएं उत्पन्न हुई है । वस्तुतः भारत के नगरों के विकास में आकर्षक शक्तियों (Pull Factor) की तुलना में विकर्षक शक्तियां (Push Factor) ज्यादा प्रभावी रही हैं, जिसके परिणामस्वरूप विभिन्न प्रकार की नगरीय समस्याएं जन्म ले रही हैं ।
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परिणाम (Result):
1. मलिन बस्तियों की समस्या (The Problems of Slums):
ये निम्न-स्तरीय अस्थायी अधिवास होते हैं, जहाँ बुनियादी सेवाओं का अभाव होता है । सामान्यतः ये सरकारी खाली भूमि, रेल लाइनों के किनारे, सड़कों, नहरों के किनारे बसे होते हैं । इनमें वे लोग होते हैं जो कि ग्रामीण-नगरीय स्थानांतरण करते हैं । ये लोग अपने कार्य-स्थान के निकट रहना चाहते हैं, अतः पास ही अनुकूल परिस्थितियों में अस्थायी आवास बना लेते हैं ।
इन आवासों में प्रायः छोटे व्यवसायी, दिहाड़ी मजदूर रहते हैं । इनमें सामाजिक, सांस्कृतिक, जातीय विविधताएं भले ही हों, परंतु मुख्य कारक आर्थिक होता है, जो उन्हें एक जगह पर इकट्ठा कर देता है ।
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यद्यपि सरकारी और गैर-सरकारी प्रयासों द्वारा मलिन बस्तियों में रहने वालों को बेहतर वैकल्पिक आवासों की उपलब्धता सुनिश्चित कराने का प्रयास किया जा रहा है, किंतु कार्य-स्थान से दूर अवस्थित होने के कारण मलिन बस्तियों में रहने वाले लोग वहाँ रहने के लिए प्रोत्साहित नहीं हो पा रहे हैं ।
इससे मलिन बस्तियों का समाधान मुश्किल हो जाता है । अतः अब मलिन बस्तियों में ही बुनियादी सुधार के प्रयास किए जा रहे हैं । शहरी गरीबों की हालत सुधारने के लिए ‘राजीव आवास योजना’ का प्रावधान किया गया है । इसका उद्देश्य अगले पांच वर्षों की अवधि में देश को मलिन बस्तियों से मुक्त बनाना है ।
2. ग्रामीण (Rural):
नगरीय स्थानांतरण की प्रक्रिया को धीमी करने के लिए अब ‘ग्रामीण-नगरीय उपांत क्षेत्र’ व ‘ग्रामीण-उपांत क्षेत्रों’ के विकास को नगरों के विकास के साथ-साथ करने का प्रयास किया जा रहा है । उदाहरण के लिए 1956 ई. में TCPO (Town & Country Planning Organization) के गठन के पश्चात् नगरीकरण की प्रक्रिया पर पहली बार विशेष बल दिया गया ।
बाद में 1968 में सभी महानगरीय प्रदेशों के लिए ‘मास्टर प्लान’ बनाये गए एवं ‘महानगरीय प्रदेश नियोजन’ को सभी महानगरों में लागू किया गया, जिसके तहत नगर के साथ-साथ उपांत क्षेत्रों के नियोजन का प्रयास हुआ ।
3. ग्रामीण (Rural):
नगरीय स्थानांतरण को बड़े नगरों की ओर अत्यधिक आकर्षित होने से बचने के लिए कई नई योजनाएं शुरू की है ।
जिनमें निम्न प्रमुख हैं:
i. GEM – Generator of Economic Men,
ii. SPUR – Special Priority Urban Region (फरीदाबाद-गाजियाबाद-दिल्ली क्षेत्र)
iii. PURA – Providing Urban Amenities in Rural Areas
4. वर्तमान समय में भारत में अति नगरीकरण व न्यून नगरीकरण की समस्या है । भारत में अभी भी 30% क्षेत्र नगरीकृत हैं, जो कि न्यून नगरीकरण का द्योतक हैं, जबकि मुम्बई, कलकत्ता, दिल्ली, बंगलोर, चेन्नई जैसे महानगरों में अतिनगरीकरण की समस्या है, अतः नगरीकरण को नियोजित करने की आवश्यकता है ।
नगर की परिभाषा एवं नगरीय संकल्पना का विकास (Definition of Municipal and Urban Development Concept):
यद्यपि भारत में पहली जनगणना 1872 ई. में ही हो गई थी एवं 1881 ई. से नियमित रूप से दशकीय जनगणना प्रारम्भ हो गई, परन्तु नगर को वैधानिक रूप से मान्यता पहली बार 1891 ई. में दी गई । इसके अन्तर्गत वाणिज्य व्यापार केन्द्रों को नगर का दर्जा दिया गया ।
परन्तु इसमें जनसंख्या का निर्धारण नहीं हुआ था । अतः 1901 ई. में नगरीय आकार क्षेत्र में अनियमितता से बचने के लिए कुछ विशेष शर्तें निर्धारित की गई । उसके बाद से नगरीय संकल्पना का क्रमिक विकास होता रहा है ।
नगरीय बस्तियों के प्रकार (Types of Urban Settlements):
1. नगर (Town):
नगर एक ऐसी बस्ती होती है, जिसका आकार गांव से बड़ा होता है और जिसके निवासी नगरीय जीवन व्यतीत करते हैं । सामान्यतः नगर में एक नगरपालिका होती है ।
2. शहर (City):
यह अग्रणी नगर होता है, जो अपने स्थानीय व क्षेत्रीय प्रतिस्पर्धियों को पीछे छोड़ देता है, भारत में 1 लाख जनसंख्या से अधिक बस्ती को नगरीय क्षेत्र कहा जाता है ।
3. सन्नगर (Conurbation):
सन्नगर शब्दावली का प्रयोग सबसे पहले पैट्रिक गिडिज ने 1915 में किया था । सन्नगर एक विस्तृत नगरीय क्षेत्र होता है, जो अलग-अलग नगरों के आपस में मिल जाने से विशाल नगरीय क्षेत्र बन जाता है ।
4. बृहन्नगर (Megalopolis):
मेगालोपोलिस एक यूनानी शब्द है, जिसका अर्थ विराटनगर होता है । मेगालोपोलिस इस शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग जीन गोटमैन ने 1957 में किया था । यह बड़ा महानगर प्रदेश होता है, जिसके कई सन्नगर सम्मिलित होते है ।
5. मिलियन सिटी (Million City):
इसकी उत्पत्ति ग्रीक भाषा के मेट्रोपोलिस से हुई है, जिसका शाब्दिक अर्थ मातृनगर (Mother City) है । भारत में 10 लाख जनसंख्या या इससे अधिक हो तो उसे दसलखी नगर अथवा मिलियन सिटी के नाम से जाना जाता है । वर्तमान जनगणना 2011 में 10 लाख से अधिक महानगरों की संख्या बढ़कर 53 हो गयी है ।
1901 ई. में सभी नगरपालिकाओं, सिविल लाईन क्षेत्रों एवं 5000 से अधिक जनसंख्या वाले गैर-प्राथमिक कार्यों की प्रमुखता वाली बस्तियाँ शामिल की गई है । इसी समय भारतीय नगरों को जनसंख्या आकार की दृष्टि से छः वर्गों में बाँटा गया ।
ये थे:
छठे वर्ग में वैसे नगरीय क्षेत्र को रखा गया, जो यद्यपि जनसंख्या की दृष्टि से नगर की परिभाषा के अन्तर्गत नहीं आते थे, लेकिन कार्यिक दृष्टि से नगर थे । नगर की यह संकल्पना 1941 ई. की जनगणना तक कार्य करती रही ।
1951 ई. की जनगणना में नगरीय संकल्पना में थोड़े संशोधन किए गए एवं इसमें ‘नगरीय समूह’ (Town Group) एवं ‘महानगरीय’ (Metropolis) की संकल्पना जोड़ी गई । ‘नगरीय समूह’ के अन्तर्गत एक केन्द्रीय नगर एवं उससे आर्थिक एवं कार्यिक दृष्टिकोण से जुड़े हुए उपनगरों के समूह शामिल किए गए ।
महानगरों में वैसे नगर को रखा गया, जिसकी जनसंख्या 10 लाख या अधिक हो परन्तु इसके लिए अलग वर्ग नहीं बनाया गया एवं ये प्रथम वर्ग के अंतर्गत ही रखे गए । 1961 ई. की जनगणना में पहली बार औसत जनसंख्या घनत्व एवं गैर-कृषि कार्य में लगी जनसंख्या का प्रतिशत निर्धारित किया गया ।
1971 ई. में इसे थोड़ा संशोधित कर नगरीय बस्ती की मान्यता हेतु निम्न शर्तें रखी गई:
i. न्यूनतम जनसंख्या 5000 हो ।
ii. पुरुष कार्यकारी जनसंख्या का 75% गैर-कृषि कार्यों में संलग्न हो ।
iii. न्यूनतम जनसंख्या घनत्व 400 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी. हो ।
iv. वे सभी स्थान जहाँ नगर पालिका, नगर निगम, सैनिक छावनी या अधिसूचित क्षेत्र समिति (Notified Area Committee) कार्यरत हों ।
इसी जनगणना में नगरीय जमघट (Urban Agglomeration) तथा O.G.Area (Out Grown Area) की संकल्पना प्रस्तुत की गई । ‘नगरीय जमघट’ शब्द का प्रयोग 1951 ई. में दिए गए ‘नगर समूह’ के बदले किया गया, यद्यपि उसकी संकल्पना यथावत रही ।
O.G. Area के अंतर्गत वैसे नगरीय क्षेत्र रखे गए, जो नगर के प्रशासनिक क्षेत्र में नहीं है, किंतु नगर की सीमा क्षेत्र के साथ ही विकसित हुए हैं एवं वहाँ नगरीय कार्य हो रहे हैं । ये सही अर्थों में ग्रामीण-नगरीय उपान्त (Rural-Urban Fringe) हैं ।
इन दो संकल्पनाओं के विकास का मुख्य कारण मुख्य नगर से आर्थिक एवं सांस्कृतिक रूप से जुड़े हुए क्षेत्रों के विकास की रणनीति थी । 2011 ई. की जनगणना में भी 1971 की नगरीय संकल्पना का अनुसरण किया गया है ।
भारत में 10 हजार से कम आबादी वाले जनसंख्या क्षेत्र नगरीय बस्तियाँ कस्बा (Town) कहलाती है । एक लाख से कम आबादी वाले नगरों को शहर (City) कहा जाता है । 1 लाख से 9,99,999 जनसंख्या वाली नगरीय बस्तियाँ नगर (Polis) कहलाती है ।
10 लाख से 49,99,999 जनसंख्या वाले नगर महानगर (Metropolis) एवं 50 लाख से अधिक जनसंख्या वाले महानगर मेगासिटी (Megacity) या मेगापोलिस (Megapolis) कहलाते हैं । सन् 2011 ई. की जनगणना के अनुसार भारत में 45 महानगर एवं 8 मेगासिटी हैं ।
इन मेगासिटी के अंतर्गत मुंबई, कोलकाता, दिल्ली, चेन्नई, बंगलुरु, हैदराबाद, पुणे, अहमदाबाद आते हैं । देश की 65% नगरीय जनसंख्या प्रथम कोटि के नगरों में ही रह रही है । वस्तुतः बड़े नगरों के प्रति आकर्षण बढ़ा है क्योंकि वहां कोई न कोई रोजगार प्राप्त होने की संभावना रहती है । पांचवे व छठे कोटि के नगरों की सरकार व जनसंख्या में कमी की प्रवृति है ।
राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (National Capital Region):
सन् 1985 में दिल्ली व आसपास के प्रदेशों के लिए विकास की विस्तृत योजना ‘राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र’ (NCR) नियोजन की शुरुआत की गई । इसका सीमांकन ‘अनुभवात्मक-सह-सांख्यिकी विधि’ द्वारा किया गया है । इससे अधिक व्यवहारिक अंतराकर्षण क्षेत्र को इसके अंदर शामिल किया जा सका है ।
9 जून, 2015 को (राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र योजना बोर्ड, 1985) की बैठक में देश की राजधानी दिल्ली की अवसंरचना पर बोझ कम करने के उद्देश्य से राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCR) के पुनर्विस्तार का निर्णय लिया गया ।
इस विस्तार के तहत राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में तीन अतिरिक्त जिले शामिल किए जाने का फैसला किया गया है । ये हैं- मुजफ्फनगर (उत्तर प्रदेश) तथा जींद एवं करनाल (हरियाणा) । वर्तमान विस्तार के साथ राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में दिल्ली के अतिरिक्त शामिल जिलों की संख्या 22 हो गई है ।
जो कि इस प्रकार हैं:
राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के नियोजन का मुख्य उद्देश्य संपूर्ण प्रदेश में समन्वित व संतुलित विकास करना था । नगर के जनसंख्या विस्फोट के नियंत्रण हेतु उपनगरीय बस्तियों के विकास तथा उसे दिल्ली महानगर से बेहतर परिवहन साधनों के द्वारा जोड़ने का लक्ष्य रखा गया ।
ग्रामीण विकास पर भी जोर दिया गया ताकि ‘ग्रामीण-नगरीय स्थानांतरण’ को कम किया जा सके । इस परियोजना से दिल्ली महानगर पर जनसंख्या दबाव को कुछ कम करना संभव हुआ तथा इसके उपनगरों में 37 लाख जनसंख्या प्रवासित की जा सकी ।
श्यामा प्रसाद मुखर्जी ‘रर्बन‘ मिशन (Shyam Prasad Mukherjee ‘Sabarn’ Mission):
16 सितम्बर, 2015 को देश के ग्रामीण क्षेत्रों को आर्थिक, सामाजिक और भौतिक रूप से संपोषणीय क्षेत्रों में रूपांतरित करने के महत्वाकांक्षी उद्देश्य वाले ‘श्यामा प्रसाद मुखर्जी रर्बन मिशन’ को 5,142,08 करोड़ रुपये क आवंटन के साथ स्वीकृति प्रदान की गई । रर्बन मिशन के तहत स्मार्ट ग्रामों के समूह सभी राज्यों/संघीय क्षेत्रों में विकसित किए जाएंगे ।
इन समूहों में भौगोलिक रूप से संलग्न ऐसी ग्राम पंचायतों के क्षेत्र शामिल होंगे, जिनकी समग्र जनसंख्या मैदानी और तटीय क्षेत्रों में लगभग 25,000 से 50,000 और मरुस्थलीय, पहाड़ी एवं जनजातीय क्षेत्रों में 5,000 से 15,000 तक होगी । इस मिशन के तहत देशभर में अगले 3 वर्षों में ऐसे 300 रर्बन संवृद्धि समूहों को विकसित करने का लक्ष्य है ।
जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी नवीकरण मिशन (जेएनएनयूआरएम) (Jawaharlal Nehru National Urban Renewal Mission):
शहरी अवसंरचना के महत्व पर सरकारों का ध्यान पुनः केंद्रित करने का एक महत्वपूर्ण साधन रहा है । दिसंबर 2005 में शुरू की गई इस योजना के बाद से ही शहरी परिवहन व्यवस्था सरकारो की प्राथमिकता बन गई है । शहरों में आवासीय व बुनियादी सुविधाओं को बढ़ाने तथा मुम्बई के बाद की समस्या के समाधान के लिए 2007 में वृहत मुम्बई तूफानी जल निकासी परियोजना प्रारंभ की गई है ।
सतत् शहरी परिवहन परियोजना (Sustainable Urban Transport Project):
भारत मुख्यतः देश के शहरी क्षेत्रों में होने वाली आर्थिक गतिविधियों के फलस्वरूप तीव्र आर्थिक विकास की ओर अग्रसर है । अर्थव्यवस्था में इस विकास के चलते देश में शहरीकरण को बढ़ावा मिला है ।
देश में शहरी परिवहन का जन केन्द्रित, टिकाऊ के उद्देश्य से शहरी विकास मंत्रालय करने के उद्देश्य से शहरी विकास मंत्रालय ने जून, 2010 में वैश्विक पर्यावरणीय सुविधा (GEF: Global Environment Facility), विधि बैंक तथा संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम के सहयोग से 1400 करोड़ रूपए लागत की सतत् शहरी परिवहन परियोजना (SUTP: Sustainable Urban Transport Project) का शुभारंभ किया ।
इस परियोजना के अन्तर्गत प्रदूषण तथा मौजूदा शहरी परिवहन प्रणाली तथा मौजूदा शहरी प्रणाली के अन्य दुष्प्रभावों की रोकथाम के लिए चुनिन्दा शहरों में हरित शहरी परिवहन का शुभारंभ किया जाएगा ।
इनमें पिम्परी-चिंचवाड एवं पुणे (महाराष्ट्र), इंदौर (मध्य प्रदेश), नया रायपुर (छत्तीसगढ़) और मैसूर (कर्नाटक) शामिल हैं । देश में प्रथम बार ‘मूविंग ट्रेन संकल्पना’ के आधार पर किसी परियोजना का आरंभ किया गया है, जिसके तहत परियोजना के आगे बढ़ने पर अन्य शहर क्रमशः इसमें शामिल होते जाएंगे ।
परिवहन के सार्वजनिक साधनों के उपयोग पर बल देने के उद्देश्य से शहरों में सार्वजनिक परिहवन हेल्पलाइन, परिवहन सूचना प्रबंधन नियंत्रण केन्द्र, बीआरटी (BRT: Bus Rapid Transit) कॉरीडोर तथा कुछ अन्य अभिनव परिवहन साधनों के अतिरिक्त एकीकृत महानगरीय परिवहन प्राधिकरण का विकास किया जाएगा ।
पर्यावरण मंत्रालय भी इस परियोजना के कार्यान्वयन को लाभान्वित कर रहा है । ज्ञातव्य है कि दिसम्बर, 2005 में जवाहरलाल नेहरू शहरी नवीनीकरण मिशन के आरंभ के पश्चात् से ही सरकार देश में शहरी परिवहन के सुधार को उच्च प्राथमिकता दे रही है तथा हरित शहरी परिवहन परियोजना का शुभारंभ इसी दिशा में महत्वपूर्ण कदम है ।
कार्यिक आधार पर भारतीय नगरों का वर्गीकरण (Classification of Indian Cities based on their Function):
इस संबंध में रूसो, मैंकेंजी, एच.ई. जेम्स आदि ने अपने वर्गीकरण दिए हैं, जिसके लिए उन्होंने कार्यिक गहनता को आधार बनाया है । एच.ई.जेम्स का अध्ययन भारत के संदर्भ में है । यद्यपि किसी भी नगर को किसी एक कार्य के आधार पर विश्लेषित नहीं किया जा सकता, क्योंकि नगर मिश्रित कार्य करते हैं ।
फिर भी कार्यिक गहनता के आधार पर नगरों को निम्न प्रकारों में बांटा जा सकता है:
1. राजधानी नगर – दिल्ली, कोलकाता, पोर्ट ब्लेयर
2. धार्मिक नगर – देवघर, बनारस, हरिद्वार
3. औद्योगिक नगर – जमशेदपुर, बोकारो, भिलाई
4. सैनिक छावनी नगर – अम्बाला, रामगढ़
5. रेलवे जंक्शन नगर – मुगलसराय, इटारसी
6. ब्रेक-ऑ-बल्क टाउन (Break-O-Bulk Town) – काठगोदाम
7. बंदरगाह नगर – सूरत, विशाखापत्तनम
8. स्वास्थ्यवर्द्धक व पर्यटन केन्द्र – दार्जिलिंग, नैनीताल, ऊटी, कोडायकनाल
राष्ट्रीय शहरी स्वास्थ्य मिशन (National Urban Health Mission):
शहरों में स्वास्थ्य की समसयाओं से ग्रसित निर्धनों को उचित व सक्षम स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराने के उद्देश्य से केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा 20 जनवरी, 2014 को बंगलुरू में राष्ट्रीय शहरी स्वास्थ्य मिशन की शुरूआत की गई । इस योजना के अंतर्गत असूचीबद्ध मलिन बस्तियों में रहने वाले शहरी निर्धनो की जनसंख्या को सूचीबद्ध किया जाएगा ।
5 लाख से अधिक जनसंख्या वाले शहरों के लिए 30-100 बिस्तरों के शहरी सामुदायिक केंद्र की स्थापना की जाएगी और प्रत्येक 50,000 की जनसंख्या के लिए मलिन बस्तियों के अंदर या आस-पास शहरी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र स्थापित किए जाएंगे ।
प्रत्येक 10,000 से 12,000 जनसंख्या के लिए और प्रत्येक 200-500 मलिन बस्तियों और शहरी गरीब परिवारों के लिए एक आशा की व्यवस्था की जाएगी ।
तीन नए नगरीय विकास मिशनों का शुभारंभ:
25 जून, 2015 को तीन महत्त्वाकांक्षी नगरीय विकास पहलों का शुभारंभ किया गया ।
ये हैं:
1. शहरी रूपांतरण व नवीनीकरण अटल मिशन (Urban Transformation):
‘अमृत’ या ‘कायाकल्प एवं शहरी रूपांतरण के लिए अटल मिशन’ देश के ऐसे 500 शहरों एवं कस्बों में नगरीय अवसंरचना सुविधाओं के विकास हेतु क्रियान्वित किया जाएगा, जहाँ की आबादी एक लाख से अधिक है । साथ ही प्रमुख नदियों पर बसे शहरों, कुछ राजधानी शहरों और पर्वतीय क्षेत्रों, द्वीपों एवं पर्यटन क्षेत्रों के महत्वपूर्ण शहरों को भी इसमें शामिल किया जाएगा ।
2. स्मार्ट शहर मिशन (Smart City Mission):
इस मिशन के अंतर्गत देश के कुल 100 चयनित शहरों को ‘स्मार्ट शहर’ के रूप में विकसित किए जाने की योजना है । 27 अगस्त, 2015 को इस मिशन हेतु 98 शहरों एवं कस्बों की सूची जारी की गई । इनमें 24 राज्य राजधानियाँ, 18 सांस्कृतिक एवं पर्यटन स्थल, 5 बंदरगाह शहर तथा 64 छोटे एवं मध्यम श्रेणी के शहर शामिल हैं ।
इसमें सर्वाधिक 12 शहर उत्तर प्रदेश के है । इन 98 चयनित शहरों का चयन एक ‘सिटी चैलेंज प्रतियोगिता’ के आधार पर किया गया । जिसके तहत मिशन के लक्ष्यों को पाने की दिशा में शहरों की क्षमता को वित्त पोषण प्रक्रिया से जोड़ा गया था ।
वर्तमान वित्त वर्ष में देश के 20 शहर इस मिशन हेतु चुने जाएँगे, जबकि शेष शहरों का चयन अगले 2 वर्षों में किया जाएगा । स्मार्ट शहर मिशन के तहत हर चयनित शहर को अगले 5 वर्षों के दौरान प्रति वर्ष 100 करोड़ रुपये की केंद्रीय सहायता उपलब्ध कराई जाएगी ।
3. ‘2022 तक सभी के लिए आवास‘ मिशन (‘Housing for all by 2022’):
शहरी आवास हेतु राष्ट्रीय मिशन को ‘प्रधानमंत्री आवास योजना (शहरी क्षेत्र)’ नाम भी दिया गया है, जिसका उद्देश्य वर्ष 2022 तक देश के शहरी क्षेत्रों में सभी के लिए आवास उपलब्ध कराना है । इस मिशन के तहत अगले 7 वर्षों में शहरी क्षेत्रों में 2 करोड़ आवास निर्मित करने का लक्ष्य रखा गया है ।