Here is an essay on ‘Water Transport’ for class 7, 8, 9, 10, 11 and 12. Find paragraphs, long and short essays on ‘Water Transport’ especially written for school and college students in Hindi language.
Essay on Water Transport
Essay Contents:
- जल यातायात का परिचय (Introduction to Water Transport)
- जल यातायात प्रकार (Kinds of Water Transport)
- भारत में बंदरगाहें (Ports of India)
- योजनाओं के अधीन जल यातायात विकास (Water Transport Development Under Plan)
- भारत में जल यातायात की समस्याएं (Problems of Water Transport in India)
Essay # 1. जल यातायात का परिचय (Introduction to Water Transport):
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जल यातायात लम्बाई और छोटी दूरियों के लिए यातायात या सबसे सस्ता साधन है । मगर प्राचीन समय में, समुद्री जहाज भारत का एक बड़ा उद्योग हे जिसे पूर्वी समुद्रों की रानी कहा जाता है । भारतीयों में जहाज का निर्माण करने में ज्यादा कौशल था और वे अपने जहाजों पर पर्शिया, पूर्वी अफ्रीका, मलाया और पूर्वी महाद्वीप पर जाया करते थे ।
1860 से 1925 के दौरान, 102 भारतीय समुद्री जहाज उद्योग थे परन्तु धीरे-धीरे इन सबको ब्रिटिश द्वारा खत्म कर दिया गया । Scindia Teani Navigation कम्पनी को 1919 में स्थापित किया गया । 1925-1945 तक भारतीय शिपिंग कम्पनियों का इतिहास वास्तव में सिंधिया शिपिंग कम्पनी का इतिहास है ।
1945 में, भारत सरकार श्री सी पी रामास्वामी अय्यर की अध्यक्षता के अधीन “Reorganisation Policy Sub Committee” को बनाया । जिन्होंने सुझाव दिया भारत के सारे तटीय व्यापार भारतीय जहाजों के लिए आरक्षित किया जाना चाहिए और उपयुक्त अवसर विदेशी व्यापार में भारतीय जहाजों के लिए दिया जाना चाहिए ।
1947 में, शिपिंग अधिनियम को मार्च, 1950 में ₨.10 करोड़ की पूंजी के साथ स्थापित किया गया था । जून 1956 में, पश्चिमी शिशिए कार्पोरेशन को स्थापित किया गया । इसी तरह, 1961 में, दो कार्पोरेशनों को भारतीय शिपिंग कार्पोरेशन मैं ₨.35 करोड़ की अधिकृत पूंजी और ₨.23 करोड़ की कार्यशील पूंजी के साथ विलयन किया गया । भारत की न्ग्रम् शिपिग कार्पोरेशन और मोगल लाइनों सार्वजनिक क्षेत्र के अधीन संचालन कर रही है और 33 कम्पनियां निजी क्षेत्र के अधीन हैं ।
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Essay # 2. जल यातायात प्रकार (Kinds of Water Transport):
यह तीन प्रकार के हैं:
1. अंतर्देशीय जल यातायात
2. तटीय यातायात (तटीय शिपिंग)
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3. समुद्री यातायात (विदेशी शिपिंग)
1. अंतर्देशीय जल यातायात (Indian Water Transport):
प्राचीन समय से भारतीय यातायात प्रणाली में एक बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है । इसकी लम्बाई 14544 कि.मी. है । गंगा, ब्रह्मपुत्र, गोदावरी, कृष्णा नदियां जहाजों को चलाने योग्य हैं । एक व्यवस्थित रूप में वस्तुओं की धुलाई पश्चिमी बंगाल, आसाम और उत्तरी पूर्वी क्षेत्र के कुछ भागों और गोवा तक सीमित है ।
1945 में, केन्द्रीय सिंचाई और पावर कमिशन को अंतर्देशीय जल यातायात में विकसित किया गया था । भारत की अंतर्देशीय जलयान प्राधिकरण को 1986 में स्थापित किया गया था जिसके विकास को बढाने में सहायता की । छठी योजना में यह क्षेत्र प्राथमिकता और विकास को देती थी । सातवीं योजना ने इसके विकास के लिए ₨.131 करोड़ खर्च किए ।
2. तटीय शिपिंग (Coastal Shipping):
भारत की 7516 कि.मी. की लम्बी तटीय रेखा है जिसमें 11 मुख्य और 139 निम्न कार्यशील बंदरगाहें हैं । इसकी महत्ता के अलावा, तटीय जहाजी कार्यों में तेजी से गिरावट आई है । जहाजों की संख्या 1961 में 97 से 198 में 56 और सारा लाख से 25 लाख समान अवधि में घटी । यह 2000-01 में 84 लाख तक पहुंच गई । मुख्य रुकावट तटीय शिपिंग के विकास में आई । 70% जहाजी समय बदरगाह पर और 30% जलयात्रा पर खर्च होता है ।
3. विदेशी शिपिंग (Overseas Shipping):
भारत 1951 में 24 भारतीय जहाज 0.17 मिलियन GRT के साथ विदेशी व्यापार से जुडे थे । दिसम्बर 1994 के अंत पर यह मजबूती 438 पोतों के 6.3 मिलियन सारा के साथ होती है । विदेशी व्यापार 2000-01 के दौरान 153.7 मिलियन टन था जो कुल समुद्र पर चलने वाले कार्गो के 34% से बनता है ।
नौका समुदाय में कुछ समस्याएं हैं, जैसे पुराने जहाजों में ज्यादा संचालन लागत होती है, विशेषीकृत जहाजों का अभाव होता है, बंदरगाहों पर लादने और उतारने की पर्याप्त सुविधाएं होती हैं । भारत सरकार ने शिपिंग क्षेत्र के विकास में काफी रुचि दिखाई ।
इसमें सार्वजनिक क्षेत्र में जहाज बनाने वाले उद्योग स्थापित किए गए घरेलू समुद्री जहाजों से समुद्री जहाजों के अधिग्रहण पर सब्सिडी देना, नौका समुदाय को बढ़ाने के लिए भारत के सार्वजनिक क्षेत्र के शिपिंग कार्पोरेशन का समर्थन करना और व्यापारी नौका के लिए आदमियों और अफसरों के प्रशिक्षण के लिए पर्याप्त सुविधाओं को देना ।
आठवीं योजना ने समुद्री जहाज के लिए ₨.3,669 करोड़ की रकम का आबंटन किया । आधुनिक विविध नौका वहन के अधिग्रहण का उद्देश्य सुधरे भुगतान के संतुलन और निर्यात प्रोत्साहन के उद्देश्यों को प्राप्त करने में सहायता करता है ।
Essay # 3. भारत में बंदरगाहें (Ports of India):
भारत की बहुत बड़ी तटीय रेखा है । वर्तमान में 12 मुख्य बंदरगाहें और 184 छोटी कार्य योग्य बंदरगाहें तटीय रेखा के साथ है । भारत में मुख्य बदरगाहें चेन्नई, कोचीन, इन्दौर, जवाहर लाल नेहरू, कांडला, मोरमुगाओं, मुम्बई, न्यू मैंगलोर, पारादीप और विशाखापट्टनम है ।
छोटी बंदरगाहें गुजरात (40), महाराष्ट्र (53), गोवा (5), दमन और दीयू (2), कर्नाटक (9), केरला (13), लक्षद्वीप (10), तमिलनाडू (14), पांडेचेरी (1), आंध्राप्रदेश (12), उड़ीसा (12) और अण्डेमान निकोबार (23), में स्थापित है जबकि मुख्य बंदरगाहें मुख्य बंदरगाह ट्रस्ट अधिनियम द्वारा केन्द्रीय सरकार के नियन्त्रण के अधीन व्यवस्थित की गई, राज्य सरकारें छोटी बंदरगाहों को प्रबंधित करती हैं ।
2012-13 के दौरान, मुख्य और गैर मुख्य पोर्टों ने 175.73 मिलियन टन के कार्गो को प्राप्त किया । इसने 2012-13 में 4.5% की वृद्धि को दिखाया (तालिका 18.3) गैर मुख्य पोर्टों का विकास 8.3% था जबकि मुख्य पोर्टों का 1.8% था ।
Essay # 4. योजनाओं के अधीन जल यातायात विकास (Water Transport Development Under Plan):
पहली पंच वर्षीय योजना के शुरू में, भारत में तटीय व्यापार के लिए 2.17 लाख सकल पंजीकृत टन की क्षमता वाले जहाज हैं और 1.174 लाख सकल पंजीकृत टन के जहाजों को समुद्रों में व्यापार करते हैं । पहली पंच वर्षीय योजना के तहत भारतीय शिपिंग के विकास के लिए ₨.18.7 करोड़ खर्च किए गए । योजना के अंत तक भारतीय समुद्री जहाजों की क्षमता 4.8 लाख सकल पंजीकृत टनों तक बढ़ गई ।
दूसरी पंच वर्षीय योजना के दौरान, ₨.527 करोड़ भारतीय शिपिंग के विकास पर खर्च किए गए थे । यह जहाजों की क्षमता को 9 लाख सकल पंजीकृत टन तक बढ़ाने के लक्ष्य को निर्धारित करता है । परन्तु 8.77 लाख की सकल पंजीकृत टन की क्षमता को प्राप्त किया जा सकता है जिसमें 2.92 लाख सकल पंजीकृत टनों को तटीय व्यापार के लिए थे । राष्ट्रीय शिप बोर्ड को मार्च 1957 में भारत संचार को समुद्री जहाज को बढावा देने के लिए स्थापित किया गया ।
₨.41 करोड़ तीसरी योजना में समुद्री जहाज के विकास कार्यक्रमों पर खर्च किया गया था । यह लाख सकल पंजीकृत टनों तक भारतीय समुद्री जहाज की क्षमता को बढ़ाने के लिए उल्लिखित थे, परन्तु केवल 10 लाख सकल पंजीकृत टन की क्षमता को प्राप्त किया जा सका ।
भारतीय शिपिंग की क्षमता 1968-69 के अंत तक 33 लाख सकल पंजीकृत टन तक बढ़ गई यानि तीन वार्षिक योजनाओं के तहत भारतीय शिपिंग की टन क्षमता मार्च 1969 तक 21.4 लाख सकल पंजीकृत टन तक बढी ।
चौथी योजना में 34 लाख टन का उल्लेख था । ₨.135 करोड़ समुद्री जहाजों के क्रय के लिए दिए गए थे । इस योजना के तहत, हल्दिया गोदी योजना, बम्बई गोदी विस्तारित योजना, तेल गोदी योजना मद्रास में और तूतीकोरियन बंदरगाह योजना को पूरा किया गया ।
पाँचवीं पंच वर्षीय योजना के अधीन, बदरगाहों के विकास के लिए ₨.5.44 करोड़ आबंटित किए गए । भारतीय शिपिंग के लिए लक्ष्य मार्च 1979 तक 65 लाख कहा तक था । केन्द्रीय क्षेत्र के लिए व्यय ₨.40 करोड़ रखा गया । इसके साथ, ₨.22 करोड़ का प्रावधान फाराखा प्रोजेक्ट के लिए बनाया गया था ।
छटी योजना ने वर्तमान 5.6 मिलियन टनों से 1984-85 तक 7.8 मिलियन टन बढ़ाने का प्रस्ताव रखा । इस उद्देश्य के लिए व्यय का कुल प्रावधान ₨.720 करोड़ था । अंतर्देशीय जल यातायात के लिए व्यय ₨.45 करोड़ था ।
₨.25.73 करोड़ के कुल व्यय को सातवीं पच वर्षीय योजना में प्रदान किया गया जिसमें ₨.155 करोड़ केन्द्रीय क्षेत्र में है और ₨.70.73 करोड़ राज्य और यूनियन क्षेत्रों के अधीन है । इस ढंग में, इस क्षेत्र के लिए व्यय सातवीं योजना के तहत छटी योजना में खर्च से दुगने से ज्यादा है ।
आठवीं योजना में भुगतान के संतुलन को सुधारने और निर्यात प्रोत्साहन के राष्ट्रीय उद्देश्य को पूरा करने के विविधनौका यान का अधिग्रहण मुख्य उद्देश्य था । शिपिंग के लिए कुल व्यय ₨.3668-91 करोड़ का नौवीं योजना 1999-2000 के लिए वार्षिक योजना व्यय के साथ बंदरगाह क्षेत्र के लिए ₨.9428 करोड़ के व्यय को ₨.1624 करोड़ पर उल्लेखित करती है । इसके अतिरिक्त निजी क्षेत्र के 12 प्रस्ताव 48.50 मिलियन टन क्षमता के हैं और ₨.3676 करोड़ मंजूर किए गए हैं ।
25 कि.मी. की एक नई मुख्य बंदरगाह को ADB ऋण की सहायता के साथ चेन्नई के उत्तर में बनाया गया है जिसमें 10 मिलियन टन कोयला रखने की क्षमता थी और जिसकी अनुमानित लागत ₨.927 करोड़ थी ।
2002-2003 के दौरान, मुख्य बंदरगाहों पर रखा जाने वाला कुल कार्गो 5.7% था जो 2001-02 में संभाले जाने वाले यातायात से अधिक था । जो 31 मार्च 200 पर 344 मिलियन टन की कुल क्षमता के मुकाबले, मुख्य बंदरगाहें 288 मिलियन टन कार्गो को संभालती है ।
मौजूदा बंदरगाह बुनियादी ढांचा व्यापार बहाव को कुशलता से संभालने के लिए अपर्याप्त है । 31 मार्च, 2001 दर 240 मिलियन टन की कुल क्षमता के विरुद्ध, मुख्य बंदरगाहें 251.7 मिलियन टनों को मार्च 2001 के अंत तक संभालने योग्य थी ।
नौवीं योजना ₨.9428 करोड़ के व्यय को बंदरगाह क्षेत्र के लिए 2000-01 की वार्षिक योजना के ₨.1629 करोड़ को उल्लेखित करती है । निजी क्षेत्र की भागीदारी संसाधनों के अन्तराल के लिए पुल की तरह होगी, जिसका नौवीं योजना काल के दौरान ₨.8000 करोड़ का अनुमान है ।
निजी क्षेत्र के 12 प्रस्ताव कुल 48.50 मिलियन टन क्षमता को रखते हैं जिसमें ₨.3676 करोड़ के अनुमानित नितेश को मंजूर किया जा चुका है । यह आशा है कि दसवीं पेय वर्षीय योजना (2002-07) के अंत तक, मुख्य बंदरगाहों की क्षमता 470 मिलियन टन होगी ।
Essay # 5. भारत में जल यातायात की समस्याएं (Problems of Water Transport in India):
भारत में जल यातायात जो अन्तर्देशीय जल यातायात और समुद्री यातायात से बना होता है में कुछ गंभीर समस्याएं हैं ।
(a) अन्तर्देशीय जल यातायात अब कार्यात्मक समस्याओं का सामना कर रहा है । पोतों की मुक्त आवाजाही कारकों जैसे उथला पानी, तंग चौड़े चैनल, स्थायी गाद और किनारों का कटाव, नौवहन सहायता का अभाव, भारत और बांग्लादेश के बीच समझौते का अभाव इनके बीच नदी के मार्ग को लेकर होने वाले झगड़े ।
(b) पुराने पोतों के आधुनिकीकरण के प्रति अपर्याप्त ध्यान ।
(c) नौवहन, हाइडल पावर, बाबू नियंत्रण और सिंचाई के बीच अपर्याप्त तालमेल देश में अन्तर्देशीय जल यातायात में सरल विकास के ढंग में खड़ी होती है ।
(d) पुराने भारतीय बेड़ों के नतीजे भारत में जल यातायात में उच्च कार्यात्मक लागतें आती हैं जो इसकी तुलनीय मजबूती को घटाती हैं ।
(e) टन क्षमता में अपर्याप्तता बहुत महत्त्वपूर्ण समस्या है जिसका सामना वर्तमान में भारत शिपिंग द्वारा किया जाता है । भारतीय समुद्री जहाज केवल 41% के कुल समुद्री व्यापार को हमारे में चला रहे हैं ।