हवा पर निबंध: शीर्ष तीन निबंध | Essay on Wind: Top 3 Essays in Hindi language!
Essay # 1. पवन का अर्थ (Meaning of Wind):
वायुदाब में क्षैतिज विषमताओं के कारण हवा उच्च वायुदाब क्षेत्र से निम्न वायुदाब क्षेत्र की ओर बहती हैं । क्षैतिज रूप से गतिशील इस हवा को पवन कहते हैं । यह वायुदाब की विषमताओं को संतुलित करने की दिशा में प्रकृति का प्रयास है ।
लगभग ऊर्ध्वाधर दिशा में गतिमान हवा को वायुधारा कहते हैं । पवन और वायुधाराएँ दोनों मिलकर एक चक्रीय प्रक्रिया को पूरा करते हैं, इस संदर्भ में हैडली सेल का उदाहरण लिया जा सकता है ।
पृथ्वी के विभिन्न अक्षांशों में परिधि के अंतर व घूर्णन गति में भिन्नता के कारण पवन दाब प्रणवता द्वारा निर्देशित दिशा में समदाब रेखाओं के समकोण पर नहीं बहता बल्कि अपनी मूल दिशा से विक्षेपित हो जाता है । ऐसा कॉरिऑलिस बल के प्रभाव के कारण होता है । वायु में गति बढ़ने के साथ-साथ इस बल की मात्रा में भी वृद्धि हो जाती है ।
ADVERTISEMENTS:
ध्रुवों की ओर इसकी मात्रा में वृद्धि होती है । कॉरिऑलिस बल के प्रभाव के कारण उत्तरी गोलार्द्ध के पवन अपनी दाहिनी ओर तथा दक्षिणी गोलार्द्ध के पवन अपनी बायीं ओर विक्षेपित हो जाते हैं । चूँकि इस विशेषता को फेरल नामक फ्रांसीसी वैज्ञानिक ने सिद्ध किया था । अतः इसे फेरल का नियम कहते हैं ।
Essay # 2. पवन के प्रकार (Types of Wind):
अपनी विशेषताओं के आधार पर पवनों को तीन प्रकारों में बाँटा जा सकता है:
1. प्रचलित पवन या भूमंडलीय पवन
ADVERTISEMENTS:
2. मौसमी पवन या सामयिक पवन
3. स्थानीय पवन
ADVERTISEMENTS:
1. प्रचलित पवन या भूमंडलीय पवन:
ये सालों भर निश्चित दिशा में प्रवाहित होने वाली पवनें हैं । इन्हें प्रचलित, स्थायी, सनातनी, ग्रहीय या भूमंडलीय पवनों के रूप में जाना जाता है । व्यापारिक पवनें, पछुआ पवनें व ध्रुवीय पवनें इसी के अंतर्गत आती हैं ।
a. व्यापारिक पवन (Trade Wind):
ये उपोष्ण उच्च वायुदाब कटिबंधों से विषुवतीय निम्न वायुदाब की ओर दोनों गोलर्द्ध में निरंतर बहने वाली पवनें हैं । ट्रेड शब्द जर्मन भाषा के एक शब्द से बना है जिसका अर्थ है, निर्दिष्ट पथ । अतः ट्रेड पवनें एक निर्दिष्ट पथ पर चलने वाली पवनें हैं । उत्तरी गोलार्द्ध में ये उ.पू. व्यापारिक पवन के रूप में एवं दक्षिण गोलार्द्ध में द.पू. व्यापारिक पवन के रूप में लगातार बहती हैं ।
विषुवत रेखा के समीप ये दोनों पवनें टकराकर ऊपर उठती हैं और घनघोर संवहनीय वर्षा करती हैं । महासागरों के पूर्वी भाग में ठंडी समुद्री धाराओं से संपर्क के कारण पश्चिमी भाग की व्यापारिक पवनों की अपेक्षा ये शुष्क होती हैं ।
b. पछुआ पवनें (Westerly):
उपोष्ण वायुदाब कटिबंध से उपध्रुवीय निम्न वायुदाब कटिबंध की ओर चलने वाली पश्चिमी पवनों को पछुआ पवन कहते हैं । उत्तरी गोलार्द्ध में ये दक्षिण-पूर्व से उत्तर-पूर्व की ओर एवं दक्षिणी गोलार्द्ध में उत्तर-पूर्व से दक्षिण-पूर्व की ओर बहती हैं । पश्चिमी यूरोपीय तुल्य जलवायु के विकास का कारण ये ही हवाएँ है, जो वहाँ तापमान वृद्धि व वर्षा का कारक है ।
स्थलीय अवरोधों के अभाव के कारण पछुआ पवनों का सर्वश्रेष्ठ विकास दक्षिणी गोलार्द्ध में 40०-65० अक्षांशों के मध्य होता है । इन अक्षांशों पर इन्हें ‘गरजती चालीसा’ (Roaring Fourties) ‘प्रचंड या भयंकर पचासा’ (Furious Fifties) तथा ‘चीखता साठा’ (Shrieking Sixties) कहा जाता है । ये नाम नाविकों के लिए भयानक हैं और उन्हीं के द्वारा दिए गए हैं ।
c. ध्रुवीय पवनें (Polar Winds):
ध्रुवीय उच्च वायुदाब से उपध्रुवीय निम्न वायुदाब की ओर बहने वाली पवनें ध्रुवीय पवनें कही जाती हैं । उत्तरी गोलार्द्ध में इनकी दिशा उत्तर-पूर्व से दक्षिण-पूर्व की ओर एवं दक्षिणी गोलार्द्ध में दक्षिण-पूर्व से उत्तर-पूर्व की ओर हैं । तापमान कम होने से इनकी जलवाष्प धारण करने की क्षमता अत्यंत कम होती है ।
ये अत्यंत ठंडी व बर्फीली होती है एवं प्रभावित क्षेत्र में तापमान को हिमांक से भी नीचे कर देती है । उपध्रुवीय निम्न वायुदाब कटिबंध में जब पछुआ पवनें इन ध्रुवीय पवनों से टकराती हैं तो ध्रुवीय वाताग्रों का निर्माण होता है जिसके सहारे पर शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवातों की उत्पत्ति होती है ।
2. मौसमी या सामयिक पवन (Seasonal or Occasional Wind):
जिन पवनों की दिशा मौसम या समय के अनुसार परिवर्तित हो जाती है, उन्हें सामयिक पवन कहते हैं । पवनों के इस वर्ग में मानसूनी पवनें, स्थल समीर व समुद्र समीर तथा पर्वत समीर व घाटी समीर को शामिल किया जाता है ।
a. मानसूनी पवनें (Seasonal Wind):
धरातल की वे सभी पवनें जिनकी दिशा में मौसम के अनुसार पूर्ण परिर्वतन आ जाता है, मानसूनी पवनें कहलाती है । इसके संबंध में विस्तृत विवेचन सबसे पहले अरब भूगोलवेत्ता ‘अलमसूदी’ ने किया था । ये पवनें ग्रीष्म ऋतु के छः माह, समुद्र से स्थल की ओर चलती हैं तथा शीत ऋतु के छः माह, स्थल से समुद्र की ओर इनका प्रवाह होता है ।
ऐसा स्थल व जल के गर्म होने की अलग-अलग प्रवृत्ति के कारण होता है । इनकी उत्पत्ति कर्क व मकर रेखाओं के बीच की व्यापारिक पवनों की पेटी में होती है । दक्षिणी एवं दक्षिणी-पूर्वी एशिया में इनकी उत्पत्ति की सबसे आदर्श दशाएँ मिलती हैं ।
b. स्थल समीर व समुद्र समीर:
दिन के समय निकटवर्ती समुद्र की अपेक्षा स्थल भाग गर्म हो जाने के कारण वहाँ निम्न वायुदाब की स्थिति उत्पन्न हो जाती है जबकि समुद्री भाग के अपेक्षाकृत ठंडा रहने के कारण वहाँ उच्च वायुदाब मिलता है । स्थल की गर्म वायु जब ऊपर उठती है तो समुद्र की आर्द्र तथा ठंडी वायु उस रिक्त स्थान को भरने के लिए स्थल की ओर चलती है, जिसे समुद्र समीर कहते हैं ।
रात्रि के समय स्थिति इसके विपरीत होती है । इस समय स्थलीय भाग के तेजी से ठंडा होने के कारण समुद्र पर स्थल की अपेक्षा अधिक तापमान तथा निम्न वायुदाब मिलता है । फलस्वरूप वायु स्थल से समुद्र की ओर चलती है जिसे ‘स्थल समीर’ कहते हैं ।
c. समीर व घाटी समीर:
पर्वतीय भागों में दिन के समय पर्वतीय ढलान की वायु अधिक गर्म हो जाती है घाटी की अपेक्षाकृत कम गर्म वायु इसके सहारे ऊपर उठती है । इसे ‘घाटी समीर’ कहा जाता है ।
यह वायु ऊपर जाकर ठंडी हो जाती है और कभी-कभी दोपहर को वर्षा करती है । रात्रि के समय पर्वतीय ढाल की वायु विकिरण ऊष्मा में तीव्र ह्रास के कारण शीघ्र ठंडी होकर भारी हो जाती है तथा पर्वत की ढलान के सहारे नीचे की ओर उतरना शुरू कर देती है । इसे ‘पर्वत समीर’ कहते हैं ।
3. स्थानीय पवनें (Local Winds):
ये पवनें तापमान तथा वायुदाब के स्थानीय अंतर से चला करती हैं और बहुत छोटे क्षेत्र को प्रभावित करती हैं । जहाँ गर्म स्थानीय पवन किसी प्रदेश विशेष के तापमान में वृद्धि लाती हैं, वहीं ठंडी स्थानीय पवन कभी-कभी तापमान को हिमांक से भी नीचे कर देती हैं । ये स्थानीय पवनें क्षोभमंडल की निचली परतों तक ही सीमित रहती है ।
कुछ प्रमुख स्थानीय पवनें इस प्रकार हैं:
i. चिनूक (Chinook):
इसका अर्थ होता है हिमभक्षी जो रेड इंडियनों की भाषा से गृहीत शब्द है । यह रॉकी पर्वत के पूर्वी ढालों के सहारे चलने वाली गर्म तथा शुष्क हवा है, जो दक्षिण में कोलोरैडो के दक्षिणी भाग से लेकर उत्तर में कनाडा के ब्रिटिश कोलंबिया तक प्रवाहित होती है ।
इसके प्रभाव से बर्फ पिघल जाती है एवं शीतकाल में भी हरी भरी घासें उग आती है । यह पशुपालकों के लिए लाभदायक है, क्योंकि इससे चारागाह बर्फमुक्त हो जाता है ।
ii. फोन (Foehn):
यह चिनूक के समान ही आल्प्स पर्वत के उत्तरी ढाल के सहारे उतरने वाली गर्म व शुष्क हवा है । इसका सर्वाधिक प्रभाव स्विट्जरलैण्ड में होता है । इसके आने से बर्फ पिघल जाती है, मौसम सुहावना हो जाता है और अंगूर की फसल शीघ्र पक जाती है ।
iii. सिरॉको (Sirocco):
यह गर्म, शुष्क तथा रेत से भरी हवा है जो सहारा के रेगिस्तानी भाग से उत्तर की ओर भूमध्यसागर होकर इटली और स्पेन मे प्रविष्ट होती है । यहाँ इनसे होने वाली वर्षा को रक्त वर्षा (Blood Rain) के नाम से जाना जाता है, क्योंकि यह अपने साथ सहारा क्षेत्र के लाल रेत को भी लाता है ।
इनका वनस्पतियों, कृषि व फलों के बागों पर विनाशकारी प्रभाव पड़ता है । मिस्र, लीबिया, ट्यूनीशिया में सिरॉको का स्थानीय नाम क्रमशः खमसिन, गिबली, चिली, है । स्पेन तथा कनारी व मेडिरा द्वीपो में सिरॉको का स्थानीय नाम क्रमशः लेवेश व लेस्ट है ।
iv. ब्लैक रोलर (Black Roller):
ये उत्तरी अमेरिका के विशाल मैदानों में चलने वाली गर्म एवं धूलभरी शुष्क हवाएँ हैं ।
v. योमा (Thomas):
यह जापान में सेंटाएना के समान ही चलने वाली गर्म व शुष्क हवा है ।
vi. टेम्पोरल (Temporal):
यह मध्य अमेरिका में चलने वाली मानसूनी हवा है ।
vii. सिमूम (Simoom):
अरब के रेगिस्तान में चलने वाली गर्म व शुष्क हवा जिससे रेत की आंधी आती है व दृश्यता समाप्त हो जाती है ।
viii. सामुन (Samum):
यह ईरान व इराक के कुर्दिस्तान में चलने वाली स्थानीय हवा है जो फोन के समान विशेषताएँ रखती हैं ।
ix. शामल (Shamal Wind):
यह इराक, ईरान और अरब के मरूस्थलीय क्षेत्र में चलने वाली गर्म, शुष्क व रेतीली पवनें हैं ।
x. सीस्टन (Siston):
यह पूर्वी ईरान में ग्रीष्मकाल में प्रवाहित होने वाली तीव्र उत्तरी पवन है ।
xi. हबूब (Habub):
उत्तरी सूडान में मुख्यतः खारतूम के समीप चलने वाली यह धूलभरी आंधियाँ हैं जिनसे दृश्यता कम हो जाती है ओर कभी-कभी तड़ित झंझा (Thunder Storm) सहित भारी वर्षा होती है ।
xii. काराबुरान (Karaburan):
यह मध्य एशिया के तारिम बेसिन में उत्तर पूर्व की ओर प्रवाहित होने वाली धूल भरी आंधियाँ हैं ।
xiii. कोइम्बैंग:
फोन के समान जावा द्वीप (इंडोनेशिया) में चलने वाली पवनें हैं, जो तंबाकू आदि फसलों को नुकसान पहुँचाती है ।
xiv. हरमट्टन:
सहारा रेगिस्तान में उत्तर-पूर्व तथा पूर्वी दिशा से पश्चिमी दिशा में चलने वाली यह गर्म तथा शुष्क हवा है, जो अफ्रीका के पश्चिमी तट की उष्ण व आर्द्र हवा में शुष्कता लाता है, जिससे मौसम सुहावना व स्वास्थ्यप्रद हो जाता है । इसी कारण गिनी तट पर इसे ‘डॉक्टर’ हवा कहा जाता है ।
xv. ब्रिकफिल्डर:
आस्ट्रेलिया के विक्टोरिया प्रांत में चलने वाली यह उष्ण व शुष्क हवा है ।
xvi. नार्वेस्टर:
यह उत्तर न्यूजीलैंड में चलने वाली गर्म व शुष्क हवा है ।
xvii. लू:
यह उत्तर भारत में गर्मियों में उत्तर पश्चिम तथा पश्चिम से पूर्व दिशा में चलने वाली प्रचंड व शुष्क हवा है, जिसे वस्तुतः तापलहरी भी कहा जाता है ।
xviii. सेंटाएना:
यह कैलिफोर्निया में चलने वाली गर्म व शुष्क हवा है ।
xix. जोन्डा:
ये अर्जेटीना और उरूग्वे में एंडीज से मैदानी भागों की ओर चलने वाली कोष्ण शुष्क पवनें हैं । इसे शीत फोन भी कहा जाता है ।
xx. मिस्ट्रल:
यह ठंडी ध्रुवीय हवाएँ हैं जो रोन नदी की घाटी से होकर चलती है एवं रूमसागर (भूमध्य सागर) के उत्तर-पश्चिम भाग विशेषकर स्पेन व फ्रांस को प्रभावित करती है । इसके आने से तापमान हिमांक के नीचे गिर जाता है ।
xxi. बोरा:
मिस्ट्रल के समान ही यह भी एक शुष्क व अत्यधिक ठंडी हवा है एवं एड्रियाटिक सागर के पूर्वी किनारों पर चलती है । इससे मुख्यतः इटली व यूगोस्लाविया प्रभावित होते हैं ।
xxii. ब्लिजर्ड या हिम झंझावात:
ये बर्फ के कणों से युक्त ध्रुवीय हवाएँ हैं । इससे साइबेरियाई क्षेत्र, कनाडा, सं.रा. अमेरिका प्रभावित होता है । इनके आगमन से तापमान हिमांक से नीचे गिर जाता है । रूस के टुंड्रा प्रदेश एवं साइबेरिया क्षेत्र में ब्लिजर्ड का स्थानीय नाम क्रमशः पुरगा व बुरान है ।
xxiii. नार्टे:
ये संयुक्त राज्य अमेरिका में शीत ऋतु में प्रवाहित होने वाली ध्रुवीय पवनें हैं । दक्षिणी सं.रा.अमेरिका में शीत ऋतु में प्रवाहित होने वाली ध्रुवीय पवनों को नार्दर या नार्दर्न पवनें कहा जाता है ।
xxiv. पैंपेरो:
ये अर्जेटीना, चिली व उरुग्वे में बहने वाली तीव्र ठंडी ध्रुवीय हवाएँ हैं ।
xxv. ग्रेगाले:
ये द. यूरोप के भूमध्यसागरीय क्षेत्रों के मध्यवर्ती भाग में बहने वाली शीतकालीन पवनें हैं ।
xxvi. जूरन:
ये जूरा पर्वत (स्विटजरलैंड) से जेनेवा झील (इटली) तक रात्रि के समय चलने वाली शीतल व शुष्क पवनें हैं ।
xxvii. मैस्ट्रो:
ये भूमध्यसागरीय क्षेत्र के मध्यवर्ती भाग में चलने वाली उत्तर पश्चिमी पवनें हैं ।
xxviii. पुना:
यह एंडीज क्षेत्र में चलने वाली ठंडी पवन है ।
xxix. पापागायो:
यह मैक्सिको के तट पर चलने वाली तीव्र शुष्क और शीतल उत्तर-पूर्व पवनें हैं ।
xxx. पोनन्त:
ये भूमध्यसागरीय क्षेत्र में विशेषकर कोर्सिका तट एवं भूमध्यसागरीय फ्रांस में चलने वाली ठंडी पश्चिमी हवाएँ हैं ।
xxxi. विरासेन:
ये पेरू तथा चिली के पश्चिमी तट पर चलने वाली समुद्री पवनें हैं ।
xxxii. दक्षिणी बर्स्टर:
ये न्यू साउथ वेल्स (आस्ट्रेलिया) में चलने वाली तेज व शुष्क ठंडी पवनें हैं ।
xxxiii. बाईज:
यह फ्रांस में प्रभावी रहने वाली अत्यंत ठंडी व शुष्क पवन है ।
xxxiv. लेवांटर:
यह दक्षिणी स्पेन में प्रभावी रहने वाली अत्यंत शक्तिशाली पूर्वी ठंडी पवनें हैं ।
Essay # 3. जेट-स्ट्रीम (Jet-Stream):
ये क्षोभसीमा (Tropopause) के निकट चलने वाले अत्यधिक तीव्र गति की क्षैतिज पवनें हैं । जेट वायुधाराएँ लगभग 150 किमी. चौड़ी एवं 2 से 3 किमी. मोटी एक संक्रमण पेटी में सक्रिय रहती है ।
सामान्यतः इनकी गति 150 से 200 किमी. प्रति घंटा रहती है, परंतु क्रोड़ (Crore) पर इनकी गति 325 किमी. प्रति घंटा तक भी मिली है । जेट वायुधाराएँ सामान्यतः उत्तरी गोलार्द्ध में ही मिलती है ।
दक्षिणी गोलार्द्ध में सिर्फ दक्षिणी ध्रुवों पर मिलती हैं, यद्यपि हल्के रूप में रॉस्बी तरंग (Rossby Waves) के रूप में ये अन्य अक्षांशों के ऊपर भी मिलती हैं । जेट वायु धाराएँ पश्चिम दिशा से पूर्व दिशा की ओर चलती हैं । इन जेट धाराओं की उत्पत्ति का मुख्य कारण पृथ्वी की सतह पर तापमान में अंतर व उससे उत्पन्न वायुदाब प्रवणता (Pressure Gradient) है ।
जेट वायुधाराएँ चार प्रकार की होती हैं:
1. ध्रुवीय रात्रि जेट स्ट्रीम (Polar Night Jet Stream):
यह उत्तरी व दक्षिणी दोनों गोलार्द्धों में 60० से ऊपरी अक्षांशों में मिलती हैं ।
2. ध्रुवीय वाताग्री जेट स्ट्रीम:
यह 30० से 70० उत्तरी अक्षांशों के मध्य 9 से 12 किमी. की ऊँचाई पर मिलती है । इनका संबंध ध्रुवीय वाताग्रों से है एवं ये तरंग युक्त असंगत पथ का अनुसरण करते हैं । इस जेट स्ट्रीम की गति 15० से 300 प्रति घंटा एवं वायुदाब 200 से 300 मिलीबार होता है । चूंकि इस जेट स्ट्रीम के बारे में स्वीडिश वैज्ञानिक रॉस्बी ने बतलाया था अतः इन्हें रॉस्बी तरंग भी कहते हैं ।
3. उपोष्ण पछुआ जेट:
ये 20० से 35० उत्तरी अक्षांशों में 10 से 14 किमी. की ऊँचाई पर मिलती है । इनकी गति 340 से 385 किमी. प्रति घंटा तक एवं वायुदाब 200 से 300 मिलीबार होता है । इनकी उत्पत्ति का मुख्य कारण विषुवत रेखीय क्षेत्र में तापीय संवहन क्रिया के कारण ऊपर उठी हुई हवाओं का क्षोभ सीमा की पेटी में उत्तर-पूर्वी प्रवाह है । भारत में दिसंबर से फरवरी के मध्य पश्चिमी विक्षोभ लाने के लिए यही जेट पवनें जिम्मेदार हैं ।
4. उष्णकटिबंधीय पूर्वी जेट स्ट्रीम:
जहाँ अन्य तीन जेट वायुधाराओं की दिशा पश्चिमी होती है, वहीं इस जेट पवन की दिशा उत्तर-पूर्वी होती है । ये सिर्फ उत्तरी गोलार्द्ध में 35० से 8० अक्षांशों पर ग्रीष्म काल में उत्पन्न होती है । 14 से 16 किमी. की ऊँचाई पर इनकी उत्पत्ति 100 से 150 मिलीबार वायुदाब वाले क्षेत्रों में होती है । इस जेट स्ट्रीम की गति 180 किमी. प्रति घंटा होती है ।
भारतीय मानसून की उत्पत्ति के लिए यही जेट पवन उत्तरदायी है । गर्म होने के कारण यह जेट पवन सतही गर्म व आर्द्र हवाओं को ऊपर उठाकर भारत में संवहनीय वर्षा कराती है एवं इस प्रकार भारत में मानसून का प्रस्फोट सा हो जाता है ।
जेट धाराओं की उत्पत्ति का मुख्य कारण विषुवत रेखीय क्षेत्र तथा ध्रुवों के मध्य तापीय प्रवणता है । इसलिए ग्रीष्म ऋतु की अपेक्षा शीत ऋतु के समय तापीय प्रवणता अधिक होने के कारण जेट धाराओं की तीव्रता भी अपेक्षाकृत अधिक होती है ।
जेट धाराओं की उत्पत्ति का सम्बन्ध वायुदाब कटिबन्ध से है, जिसके कारण ही वायुदाब कटिबन्ध के विस्थापन के साथ जेट धाराओं के स्थान में भी परिवर्तन होता है । मार्च से जून के मध्य इनका उत्तरायण जबकि सितम्बर से दिसम्बर के मध्य दक्षिणायन होता है ।
उत्तरी गोलार्द्ध की अपेक्षा दक्षिणी गोलार्द्ध में स्थलखण्डों का अभाव होने के कारण समांगी सतह का प्रभाव अधिक होता है जिस कारण से उत्तरी गोलार्द्ध की अपेक्षा दक्षिणी गोलार्द्ध में जेट धाराओं की विशेषताओं में अधिक स्थायित्व होता है ।
विषुवत रेखीय क्षेत्र से ध्रुवों की ओर जाने पर क्षोभ सीमा की ऊँचाई में कमी आने के कारण ही जेट धाराओं की ऊँचाई में भी कमी आती है ।
यही कारण है कि ध्रुवीय वाताग्र जेट स्ट्रीम की ऊँचाई, उष्णकटिबंधीय पश्चिमी जेट स्ट्रीम की अपेक्षा कम होती है । पृथ्वी का घूर्णन पश्चिम से पूरब की ओर होने के कारण रॉज्बी तरंग के रूप में जेट धाराओं की दिशा भी पश्चिम से पूरब होती है ।