महिलाओं के अधिकार पर निबंध | Essay on the Rights of Women in Hindi!
Read this Essay in Hindi to learn about the various rights of women. The rights are:- 1. काम करने वाली महिलाओं के अधिकार 2. कामगार दुर्घटना मुआवजा के अधिकार 3. गर्भ समापन सम्बन्धी अधिकार 4. स्त्रियों को सम्पत्ति का अधिकार.
जीने के लिए हमें कुछ अधिकार प्राप्त हैं, जो कि देश एवं कानून के द्वारा हमको प्रदान किये जाते हैं ।
कुछ प्रमुख अधिकारों का विवरण अग्रलिखित है:
1. काम करने वाली महिलाओं के अधिकार:
ADVERTISEMENTS:
घर हो या बाहर प्रत्येक महिला काम करती दिखती हैं । प्रत्येक महिला कहीं न कहीं किसी न किसी रूप में अवश्य ही काम करती हैं । कुछ महिलाएं केवल घर सम्भालने हेतु ही अपना पूरा दिन व्यतीत करती हैं जबकि कुछ महिलाएं घर को सम्भालने के साथ-साथ परिवार को आर्थिक सहयोग प्रदान करने के लिए घर के बाहर भी काम करती हैं । इन महिलाओं को मालूम होना चाहिए कि भारतीय संविधान के अन्तर्गत उनके कुछ मूल अधिकार हैं जो कि सरकार द्वारा कानून बनाकर लागू किये गये हैं ।
यह अधिकार निम्न प्रकार हैं:
(अ) कामकाजी महिलाओं के अधिकांश/कानून:
(i) प्रत्येक काम करने वाली महिला को अपने काम या श्रम के लिए सरकार द्वारा तय किया गया न्यूनतम वेतन मिलना चाहिए ।
ADVERTISEMENTS:
(ii) एक ही तरह के या मिलते-जुलते काम के लिए महिलाओं को पुरुषों के समान ही पारिश्रमिक मिलना चाहिए ।
(iii) महिलाओं को गर्भावस्था व प्रसूति से सम्बन्धित कुछ विशेष अधिकार दिये गये हैं ।
(ब) न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, 1948:
ADVERTISEMENTS:
(i) सरकार द्वारा तय किये गये वेतन की न्यूनतम दर किये गये काम के हिसाब से निश्चित की गई है ।
(ii) अगर किसी ने न्यूनतम दर से नीचे काम करना स्वीकार किया है तो भी मालिक न्यूनतम वेतन देने के लिए बाध्य है ।
(iii) वेतन की न्यूनतम दर आयु, काम के घंटे, दिन और महीनों के हिसाब से निश्चित की जाती है ।
(स) समान पारिश्रमिक अधिनियम:
(i) एक या समान तरह के काम के लिए महिला एवं पुरुष को समान वेतन मिलना चाहिए ।
(ii) जिस काम पर पुरुषों की भर्ती की जाये, उस काम पर महिलाओं को भी भर्ती होने का अधिकार है अगर वह उस काम की योग्यता रखती है ।
(द) फैक्टरी अधिनियम 1948:
(i) महिलाओं के लिए अलग शौचालय और दरवाजे वाले गुसलखाने होने चाहिए ।
(ii) जहाँ 30 से अधिक महिलाएं काम करती हों वहाँ पर एक ‘क्रेश’ या झूलाघर यानि बच्चों की देखभाल के लिए जगह जरूर होनी चाहिए ।
(iii) महिलाओं से निश्चित वजन से ज्यादा नहीं उठवाया जा सकता ।
(iv) महिलाओं से किसी चलती मशीन को साफ करवाना या तेल लगवाना मना है ।
(v) महिलाओं से एक सप्ताह में 48 घंटों से अधिक काम नहीं लिया जा सकता ।
(vi) औरतों से फैक्टरी में ओवर टाइम काम नहीं लिया जा सकता ।
(vii) सप्ताह में एक दिन अवकाश यानि छुट्टी जरूर मिलनी चाहिए ।
(viii) 5 घंटों से अधिक लगातार काम नहीं कराया जा सकता तथा काम सिर्फ सुबह 6 बजे से रात के 7 बजे के बीच कराया जा सकता है ।
(य) प्रसूति सुविधा अधिनियम 1961:
(i) कामकाजी महिलाओं को प्रसूति से पहले और बाद में कुल 12 हफ्ते की छुट्टी दी जा सकती है ।
(ii) मालिक द्वारा प्रसूति से पहले और बाद की डॉक्टरी सुविधा उपलब्ध न कराने पर चिकित्सा का खर्च देना होगा ।
(iii) गर्भावस्था के दौरान स्त्री को कोई भी भारी काम देना मना है ।
(iv) बच्चे को दूध पिलाने के लिए महिला को दिन में दो बार समय मिलेगा । बच्चे के 15 महीने के होने तक उसे यह सुविधाएं मिलती रहेंगी ।
(v) अगर गर्भपात हो जाता है तो 45 दिन का सवेतन अवकाश देना होगा ।
यदि उपरोक्त सुविधाएं उपलब्ध नहीं होती हैं तो निम्नलिखित अधिकारियों से सम्पर्क स्थापित करना चाहिए:
(i) श्रम अधिकारी (लेबर ऑफिसर),
(ii) श्रम आयुक्त (लेबर कमिश्नर) ।
2. कामगार दुर्घटना मुआवजा के अधिकार:
अगर काम करते समय कोई दुर्घटना हो जाये या काम के कारण कोई गम्भीर बीमारी हो जाए या मृत्यु हो जाये तो ऐसे लोगों को या उनके वारिसों को उनके मालिकों से मुआवजा मिलना चाहिए ।
इस तरह का मुआवजा निम्न अधिनियम के अन्तर्गत मिलता है:
कर्मकार प्रतिकार अधिनियम 1923:
कामगार को मुआवजे का अधिकार है, जबकि:
(क) उसे अपने काम के दौरान किसी दुर्घटना से चोट आई हो ।
(ख) उसे अपने काम के कारण कोई बीमारी लग गई हो ।
यदि कामगार की इन कारणों से मृत्यु हो जाए तो उसके वारिसों को मुआवजा दिया जाना चाहिए । यदि कामगार को नौकरी छोड़ने के दो साल के अन्दर बीमारी लग जाती है तो भी मुआवजा मिलेगा ।
दुर्घटना होने की स्थिति में:
(a) डाक्टरी जाँच अवश्य कराएं ।
(b) पास के थाने में जाकर रिपोर्ट दर्ज कराएं ।
(c) दुर्घटना मुआवजा कानूनी हक है, इसे जरूर लेना चाहिए ।
(d) अगर मालिक मुआवजा देने से इंकार करें या पर्याप्त मुआवजा न दे तो आयुक्त (कमिश्नर) को एक अर्जी (प्रार्थना पत्र) देना होगा ।
3. गर्भ समापन सम्बन्धी अधिकार:
कभी-कभी परिवार के सामने अकसर कुछ स्थितियाँ उत्पन्न हो जाती हैं ।
जैसे कि:
i. बच्चे से माँ के जीवन या स्वास्थ्य को खतरा हो जाता है ।
ii. अनचाहा गर्म हो जैसे बलात्कार के कारण ।
iii. बच्चे के विकलांग पैदा होने का खतरा हो ।
iv. पति, पत्नी के द्वारा अपनाया गया परिवार नियोजन का साधन असफल हो जाता है ।
इन स्थितियों में सुरक्षित तरीके से गर्भपात करवाया जा सकता है ।
इस संदर्भ में निम्न कानून प्रचलित है:
गर्म का चिकित्सीय समापन अधिनियम- 1971:
1. किसी महिला का जबरदस्ती गर्भपात करवाना अपराध है ।
2. गर्भ समापन यदि कानून के अनुसार करवाया जाये तो वह अपराध नहीं है ।
3. दाइयों, नर्सों या छोटे-मोटे घरेलू चिकित्सकों के द्वारा कराया गया गर्भ समापन अपराध है ।
4. गर्भ समापन सिर्फ सरकारी अस्पताल या सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त अस्पतालों में ही करवाना चाहिए ।
5. 12 सप्ताह के अंदर का गर्म समापन एक डाक्टर या लेडी डाक्टर की सलाह पर करवाया जा सकता है ।
6. यदि गर्भ 12 सप्ताह से ज्यादा का हो तो दो डाक्टरों या लेडी डाक्टर की सलाह पर गर्भ समापन कराया जा सकता है ।
7. यदि गर्भ 20 सप्ताह से अधिक का हो तो गर्म समापन नहीं कराया जा सकता है ।
आवश्यकता होने पर गर्भ समापन के लिए निम्न स्थानों से सम्पर्क करना चाहिए:
a. सरकारी अस्पताल ।
b. सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त अस्पताल इत्यादि ।
बच्चा गोद लेने के कानून:
कुछ परिवारों में बच्चों की किलकारी नहीं गूँजती तो उनका जीवन सुना-सुना सा हो जाता है । ऐसे दम्पत्ति अगर चाहे तो किसी बच्चे को गोद लेकर अपने सुने जीवन में बहार ला सकते हैं ।
बच्चों को गोद लेने के कुछ नियम अग्रलिखित हैं:
हिन्दू दत्तक तथा भरण-पोषण अधिनियम- 1956:
i. 21 वर्ष से ज्यादा उम्र को कोई पुरुष किसी बच्चे को गोद ले सकता है ।
ii. 21 वर्ष से अधिक उम्र की विधवा, तलाकशुदा या अविवाहित महिला भी किसी बच्चे को गोद ले सकती है ।
iii. अगर स्त्री-पुरुष शादीशुदा हैं तो बच्चा गोद लेने या अपना बच्चा गोद देने के लिए एक दूसरे की सहमति आवश्यक है ।
iv. यदि बच्चों के माता-पिता की मृत्यु हो गई हो या फिर वे गोद देने की स्थिति में नहीं हैं, तो बच्चे के संरक्षक द्वारा बच्चे को गोद दिया जा सकता है ।
v. अनाथालय के अधिकारी वहाँ रहने वाले सभी बच्चों के संरक्षक हैं, अत: वे वहाँ रहने वाले बच्चों को गोद दे सकते हैं ।
vi. अगर बच्चे को माँ-बाप से गोद लिया जा रहा है तो गोद लेते समय किसी खास रस्म की आवश्यकता नहीं है ।
vii. बच्चा गोद लेते समय बेहतर होगा कि दस्तावेजों का पंजीकरण करवा लिया जाए । इस स्थिति में दस्तावेजों को नकारा नहीं जा सकता है ।
viii. सिर्फ हिन्दू धर्म के मानने वाले ही गोद ले सकते हैं ।
कोई व्यक्ति कितने बच्चे गोद ले सकता है ?
ज्यादा से ज्यादा एक लड़का और एक लड़की ।
कैसा बच्चा गोद ले सकते हैं ?
(क) लड़का अथवा लड़की अथवा दोनों ।
(ख) बच्चा हिन्दू हो ।
(ग) बच्चे की उम्र 15 वर्ष से अधिक न हो ।
(घ) बच्चा विवाहित नहीं होना चाहिए ।
(ङ) अगर पुरुष लड़की गोद ले रहा है या महिला लड़के को गोद ले रही है तो दोनों के बीच (गोद लेने वाले बच्चे तथा माँ/बाप) के उम्र का अंतर कम से कम 21 वर्ष होना चाहिए ।
संरक्षक और प्रतिपालन अधिनियम- 1980:
a. जो व्यक्ति हिन्दु धर्म का नहीं है वह सिर्फ बच्चे का संरक्षक बन सकता है ।
b. पालकत्व और गोद लेने में फर्क है ।
पालकत्व में:
(क) बच्चे का पुराना नाम ही रहेगा ।
(ख) 21 साल का होने पर बच्चा आजाद हो जायेगा ।
(ग) पालकत्व रद्द किया जा सकता है ।
बच्चा गोद लेने के लिए निम्न स्थानों पर सम्पर्क कर सकते हैं:
i. स्थानीय अनाथालय ।
ii. स्थानीय स्वयं सेवी संस्थाएं इत्यादि ।
4. स्त्रियों को सम्पत्ति का अधिकार:
I. हिन्दू:
i. औरत को सम्पत्ति का अधिकार है ।
ii. खानदानी सम्पत्ति वह होती है जो कि हिन्दू पुरुष को अपने पूर्वजों से मिलती है, लड़कियों का खानदानी सम्पत्ति में जन्म से कोई अधिकार नहीं है । उन्हें खानदानी सम्पत्ति से खाने-पीने, रहने, पढ़ाई व शादी का खर्चा मिलने का हक है ।
iii. सम्पत्ति का बँटवारा कानून के अनुसार या फिर वसीयत बनाकर हो सकता है पर यदि वसीयत न लिखी हो तो सम्पत्ति सभी वारिसों में बाँटी जायेगी, सबको बराबर हिस्सा मिलेगा चाहे वो लड़का हो या लड़की ।
iv. हर व्यक्ति को चाहे वो पुरुष हो या स्त्री अपनी इच्छा के अनुसार अपनी सम्पत्ति की वसीयत करने का हक है ।
II. इस्लाम:
i. प्रत्येक औरत को अपने नाम से सम्पत्ति खरीदने और रखने का अधिकार है ।
ii. औरत को सम्पत्ति में हिस्सा मिलेगा:
a. बेटी को,
b. विधवा को,
c. दादी-नानी को,
d. माँ को,
e. बेटे एवं बेटी को ।
iii. महर:
महर दो प्रकार की होती है:
a. मुअज्जल- यह रकम है जो शादी के वक्त ही बीवी को दी जाती है । इस महर को बीवी कभी भी माँग सकती है, चाहे शादी के वक्त या बाद में ।
b. मुवज्जल- वह रकम है जो बीवी को तलाक पर मिलती है या तब मिलती है जब शौहर का इन्तकाल हो चुका है ।
1. कोई भी मुसलमान वसीयत द्वारा अपनी 1/3 से ज्यादा सम्पत्ति नहीं दे सकता ।
2. कोई भी मुसलमान तोहफा या हिबा कर सकता है ।
III. ईसाई:
i. औरतों को भी अपने नाम से सम्पत्ति का मालिक होने का हक है ।
ii. इसके अतिरिक्त सम्पत्ति पर सभी अधिकार प्राप्त है ।