अटल बिहारी वाजपेयी पर निबंध! Here is an essay on ‘Atal Bihari Bajpayi’ in Hindi language.
“इससे मैंने पाया तन मन इससे मैंने पाया जीवन मेरा तो बस कर्त्तव्य यही कर दूँ सब कुछ इसके अर्पण मैं तो समाज की थाति हूँ मैं तो समाज का हूँ सेवक मैं तो समष्टि के लिए व्यष्टि का कर सकता बलिदान अभय”
स्वयं को समाज का सेवक कहने वाला और समष्टि के लिए व्यष्टि का बलिदान करने बाला यह व्यक्ति कोई साधारण लेखक या कवि मात्र नहीं है अपितु यह तो भारतीय राजनीति में एक स्तम्भ के रूप में स्थापित हो चुके पूर्व प्रधानमन्त्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी हैं । भारतीय राजनीति में जिस प्रकार से उन्होंने एक नए युग की शुरुआत की, वह निश्चय ही प्रशंसनीय है ।
भारतीय राजनीति में एक गैर-कांग्रेसी नेता के रूप में अपनी अमिट छाप छोड़ने वाले प्रतिभावान जननायक श्री अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म 26 दिसम्बर, 1924 को ग्वालियर के एक मध्यमवर्गीय ब्राह्मण परिवार में हुआ था । उस समय इनकी माता श्रीमती कृष्णा देवी और पिता थी कृष्ण बिहारी वाजपेयी ने शायद ही यह सोचा होगा कि उनकी यह संतान एक दिन प्रधानमन्त्री पद पर सुशोभित होकर उनका नाम रोशन करेगा ।
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वाजपेयीजी की आरम्भिक शिक्षा ग्वालियर के ही सरस्वती शिशु मन्दिर विद्यालय में हुई । इसके बाद इन्होंने विक्टोरिया कॉलेज (वर्तमान में लक्ष्मीबाई कॉलेज) से स्नातक की परीक्षा उत्तीर्ण की और फिर कानपुर के दयानन्द एंग्लो-वैदिक कॉलेज से राजनीति विज्ञान में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की ।
यद्यपि उन्होंने कानून की पढ़ाई भी की परन्तु किसी कारणवश वह इसे पूरा नहीं कर पाए । श्री वाजपेयीजी अपने आरम्भिक जीवन में ही राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सदस्य बन गए थे । उन्होंने आर्य कुमार सभा में भी सक्रिय भूमिका निभाई ।
यद्यपि भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम में बाजपेयी जी की सक्रिय भूमिका का उल्लेख नहीं मिलता है तथापि वर्ष 1942 में उन्हें ‘भारत छोड़ो’ आन्दोलन के तहत जेल जाना पड़ा था । इसके बाद बह भारतीय जनसंघ के संस्थापक डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के संपर्क में आए और शीघ्र ही अपनी प्रतिभा के बल पर उनके राजनीतिक सचिव बन गए ।
इससे पूर्व बह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ता रहते हुए राष्ट्रधर्म, पाञ्चजन्य, चेतना, दैनिक स्वदेश, वीर अर्जुन आदि पत्र-पत्रिकाओं के सम्पादक रह चुके थे और एक कुशल सम्पादक एवं सफल पत्रकार के रूप में प्रसिद्धि पा चुके थे । 23 जून, 1953 को डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के आकस्मिक निधन के बाद भारतीय जनसंघ की अगुवाई का भार अटलजी पर आ पड़ा, जिसे उन्होंने बखूबी निभाया ।
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अपने राजनीतिक मार्गदर्शक डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी का सन्देश देश भर में फैलाते हुए अटलजी ने स्वाधीन भारत के राजनीतिक परिदृश्य पर अपनी अमिट छाप छोड़ने में सफलता पाई । श्री अटलजी ने सन् 1955 में पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़ा था ।
इस चुनाव में उन्हें हार का मुँह देखना पड़ा था परन्तु धीरे-धीरे उनकी लोकप्रियता में वृद्धि होती गई, जिसका परिणाम यह हुआ कि बह नौ बार लोकसभा और दो बार राज्यसभा के सदस्य चुने गए । वर्ष 1980 में भारतीय जनता पार्टी की स्थापना में भी श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने मुख्य भूमिका निभाई ।
कवि हृदय होते हुए भी बेबाक बोलने का कौशल रखने वाले वाजपेयीजी ने लगभग चार दशक से भी अधिक समय तक विपक्ष में रहते हुए सकारात्मक भूमिका निभाई और तीन बार प्रधानमन्त्री पद के लिए चुने गए । यद्यपि वह वर्ष 1996 में पहली बार पर्याप्त समर्थन के अभाव में 13 दिन और दूसरी बार (वर्ष 1998 में) 13 महीने ही सरकार चला सके थे ।
परन्तु वर्ष 1999 में तीसरी बार प्रधानमन्त्री बनने के बाद वह पूरे पाँच साल सफलतापूर्वक सरकार चलाने में कामयाब रहे । भारतीय राजनीति में यह उपलब्धि दर्ज कराने वाले वह पहले गैर-कांग्रेसी नेता हैं । प्रधानमन्त्री बनने से पूर्व लगभग 40 वर्षों तक अटलजी ने जिस तरह विपक्ष के नेता के रूप में अपनी जैसी धाक जमाई उसकी मिसाल मिलना मुश्किल है ।
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एक बार स्वयं पण्डित नेहरू ने उनकी वाकपटुता से प्रभावित होकर कहा था कि यह नौजवान एक दिन देश का प्रधानमन्त्री बनेगा । उनका यह कहना सत्य सिद्ध हुआ और नेहरू-इन्दिरा के बाद पुन: देश को एक ऐसा प्रधानमन्त्री मिला, जिसने भारत को एक नई ऊर्जा और दिशा दी ।
कवि हृदय होते हुए भी बेझिझक होकर स्पष्ट रूप से अपनी बात रखने के कौशल में माहिर अटलजी ने अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत को नई पहचान दिलाई । बिना किसी के दबाव में आए हुए उन्होंने देश को परमाणु शक्ति बनाने में अहम भूमिका निभाई तो पड़ोसी देश पाकिस्तान के साथ भी रिश्तों को नए सिरे से आरम्भ किया । उनकी विदेश-नीति को अब तक की सबसे सफल विदेश-नीति माना जाता है ।
उन्होंने दिल्ली-लाहौर बस सेवा का शुभारम्भ किया और स्वयं भी बस में बैठकर लाहौर गए । उस समय इस पहल को लेकर अटलजी की आलोचना अवश्य हुई थी परन्तु आज विरोधी और आलोचक भी उनकी इस दूरगामी पहल की प्रशंसा किए बिना नहीं रहते ।
पाकिस्तान ने अटलजी की उदार छवि का अनुचित लाभ उठाते हुए सन् 1999 में कारगिल युद्ध का बिगुल बजा दिया परन्तु अटलजी ने कारगिल युद्ध की स्थिति को बहुत अच्छी तरह से सँभाला और ‘ऑपरेशन विजय’ के तहत भारतीय सेना ने पाकिस्तान की सेना को पराजित किया ।
इस प्रकार श्री अटल बिहारी वाजपेयीजी के नेतृत्व में अन्तर्राष्ट्रीय बिरादरी में यह सन्देश गया कि भारत का नेतृत्व कुशल और अनुभवी हाथों में है और भारत किसी भी हमले का मुँह तोड़ उत्तर देने में सक्षम है । इसके अतिरिक्त, उन्होंने ग्रामीण सड़क योजना, स्वर्णिम चतुर्भुज योजना, सर्व शिक्षा अभियान तथा नदी जोड़ो परियोजना जैसी जनकल्याणकारी परियोजनाओं का आरम्भ भी किया ।
बिना किसी बाद-विवाद के सन् 2000 में तीन नए राज्यों उत्तराखण्ड, छत्तीसगढ़ और झारखण्ड के गठन का श्रेय भी अटल सरकार को ही है । उनके कार्यकाल में मन्दी के बावजूद भारत विकास दर में वृद्धि दर्ज करा सका । इस प्रकार, उन्होंने ‘आज के भारत’ को गढ़ने में अपना अविस्मरणीय योगदान दिया ।
राजधर्म को सर्वोपरि मानने वाले एवं उसका पालन करने वाले श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी को आज भी एक सशक्त नेता, मन्त्र मुग्ध करने देने वाले वक्ता, कुशल प्रशासक, विरोधियों के बीच सहज स्वीकार्य, भरोसा पैदा करने वाले और असहमतियों का आदर करने वाले शख्स के रूप में याद किया जाता है ।
‘कदम मिलाकर चलना होगा’ में विश्वास रखने वाले अटलजी में स्वाभाविक रूप से सबको साथ लेकर चलने का राजनीतिक कौशल था, जिसके कारण विरोधी भी उनकी प्रशंसा किए बिना नहीं रहते । उन्होंने सदा बड़े विवादों से दूरी बनाए रखी और अपनी एक बेदाग छवि निर्मित की ।
वह उन गिने चुने हिंदूवादी नेताओं में से एक है, जिन्होंने बाबरी मस्जिद को गिराए जाने की निंदा की और दंगों के संदर्भ में तत्कालीन मुख्यमन्त्री (और वर्तमान प्रधानमन्त्री) नरेन्द्र मोदी को राजधर्म का पालन करने की सलाह दी ।
भारतीय राजनीति के इस ‘अजातशत्रु’ के जीवन के विविध आयाम हैं और वे सभी प्रशंसनीय हैं । अटलजी एक अच्छे कवि और लेखक भी हैं । मेरी इक्यावन कविताएँ, मृत्यु या हत्या, अमर बलिदान, कैदी कविराय की कुण्डलियाँ, इक्कीस कविताएँ, न्यू डाइमेन्शन ऑफ इण्डियन फारेन पॉलिसी, फोर डिकेडस इन पार्लियामेन्ट आदि इनकी प्रमुख कृतियाँ है ।
अटलजी भारतीय गीत-संगीत और नृत्य के शौकीन भी हैं । शब्दों को नाप-तौलकर बोलना और सार्थक बोलना वाजपेयीजी के व्यक्तित्व की एक बड़ी खूबी रही है । भारतीय राजनीति में आज वाजपेयीजी का एक अहम स्थान है ।
पूर्व प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिंह ने तो इनको भारतीय राजनीति का ‘भीष्म पितामह’ कहकर संबोधित किया है । वाजपेयीजी को अब तक पद्म विभूषण (1992), लोकमान्य तिलक पुरस्कार (1994), सर्वश्रेष्ठ सांसद पुरस्कार (1994) तथा पण्डित गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार (1994) सहित वर्ष 2014 में ‘भारत रत्न’ सम्मान से भी नवाजा जा चुका है ।
वाजपेयीजी को भारत रत्न मिलना सुखद है परन्तु साथ ही यह कहना भी सही होगा कि उन्हें भारत रत्न मिलता या न मिलता किन्तु इससे उनकी शख्सियत पर कोई खास फर्क नहीं पड़ता क्योंकि अपनी उपलब्धियों के कारण वह सभी पुरस्कारों और सम्मानों से ऊपर उठ चुके हैं ।
इस समय भारतीय राजनीति का यह सबसे मजबूत स्तंभ, दार्शनिक और मार्गदर्शक अपनी खराब सेहत के कारण सक्रिय राजनीति से दूर है । दरअसल, उन्होंने दिसम्बर, 2005 में ही राजनीति से संन्यास लेने की घोषणा कर दी थी ।
देखा जाए तो भारत जैसे देश में जहाँ नेतागण एक बार राजनीति में आने के बाद मृत्युपर्यंत राजनीति के मोहपाश में फँसे रहते हैं, वहाँ अटलजी द्वारा आधिकारिक रूप से संन्यास लेने का कदम उठाना भी नेताओं के लिए एक नजीर है ।
अटल बिहारी वाजपेयीजी आज भी लोकप्रिय प्रधानमन्त्रियों में से एक हैं । हम उनके अच्छे स्वास्थ्य की कामना करते हुए वर्तमान सरकार से यह अपेक्षा करते हैं कि बह अटलजी के बताए हुए राजधर्म का पालन करें और सुशासन के उनके सपने को साकार करें ।