खाद्यान्न पर निबंध! Here is an essay on ‘Food Grains’ in Hindi language.
भारतवर्ष विश्वभर में कृषि प्रधान देश के रूप में जाना जाता है । यहाँ की लगभग 70% आबादी गाँवों में बसती है । बावजूद इसके कभी प्राकृतिक आपदा, कभी संसाधनों की कमी, तो कभी अच्छी फसल होने के बावजूद खाद्य भण्डारण की समस्याओं से यहाँ के किसानों को आज तक मुक्ति नहीं मिल पाई है ।
नतीजतन, आज भी देश के कितने ही किसानों को भोजन के लाले पड़े हैं । देश को आजादी मिलने के इतने वर्षों के पश्चात भी यहाँ के 40% से अधिक बच्चे कुपोषण के शिकार है । हमारे पूर्व प्रधानमन्त्री स्व लालबहादुर शास्त्री ने एक बार कहा था- ”भोजन लोगों के जीवन-मरण का प्रश्न है । हमें लोगों को पर्याप्त भोजन देना ही चाहिए ।”
भारत अंग्रेजी शासनकाल से ही खाद्यान्न सकट से जूझता रहा है । वर्ष 1937 में भारत का चावल उत्पादक क्षेत्र बर्मा का, देश से अलग किया जाना, वर्ष 1943 में बंगाल में पडा भीषण अकाल और फिर वर्ष 1947 में हुए देश के विभाजन के फलस्वरूप खाद्य उत्पादन क्षेत्रों का उपजाऊ हिस्सा पाकिस्तान चला जाना, ये तीनों भारत में खाद्यान्न सकट उत्पन्न करने के महत्वपूर्ण कारण थे ।
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स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् हमारा देश खाद्यान्न उत्पादन बढाने में सतत प्रयत्नशील है सिंचाई साधनों के विकास, उन्नत किस्म के बीजों रासायनिक खादों व कीटनाशकों के प्रयोग और आधुनिक यन्त्रों व नई तकनीक के सहारे आज हमने कृषि उत्पादन क्षेत्र में काफी सुधार किया है ।
वर्ष 2007 में शुरू की गई 11वीं पंचवर्षीय योजना में खाद्यान्न समस्या से निपटने के लिए खाद्यान्न उत्पादन को प्रोत्साहन देने एवं कृषि क्षेत्र के विकास हेतु राज्यों को प्रोलगहित करने पर बल दिया गया । फलस्वरूप खाद्यान्न उत्पादन बढने कीं गीत तेज हुई, किन्तु फसल वर्ष (जुलाई -जून) 2010-11 के दौरान खाद्यान्न (चावल, गेहूँ, दलहन व मोटे अनाज) का उत्पादन पिछले फसल वर्ष से 16 करोड टन घटकर 21 करोड़ 81.1 लाख टन रह गया, जिसका कारण था- वर्ष 2009 में देश के 338 जिलों में भीषण सूखा पड़ना ।
12वीं पंचवर्षीय योजना (2012-17) में कृषि क्षेत्र में 4% वृद्धि का लक्ष्य रखा गया है फसल वर्ष 2012-13 के दौरान खाद्यान्न का उत्पादन 25.7 करोड़ टन हुआ । ये कड़े नि:सन्देह देश में खाद्यान्न उत्पादन में वृद्धि को दर्शाते हैं किन्तु देश में उपजाए जा रहे अन्न से यहाँ की विशाल जनसंख्या का पेट भरना मुश्किल ही नहीं, असम्भव है । इसका कारण हैं- जनसंख्या वृद्धि दर का खाद्य वृद्धि दर से कहीं ज्यादा होना ।
आज सीमित संसाधनों एवं बढ़ती जनसंख्या से उत्पन्न खाद्यान्न संकट से उबरने के लिए देश को ब्रिटेन, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया एवं बर्मा जैसे देशों से बड़ी मात्रा में खाद्यान्न आयात करना पड़ता है । आज विश्व की बढ़ती जनसंख्या के कारण खाद्यान्न सकट सिर्फ भारत की ही नहीं, बल्कि पूरे विश्व की एक गम्भीर समस्या बन गई है ।
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विश्व बैंक द्वारा वर्ष 2030 तक पूरे विश्व में खाद्यान्नों की माँग दुगुनी होने की सम्भावना व्यक्त की गई है । यूएनएफएओ की रिपोर्ट कहती हे कि विश्व में भूख और कुपोषण के शिकार 23 करोड से अधिक लोग सिर्फ भारत में हैं । जनसाधारण को सस्ती कीमतों पर खाद्य की सुलभ्यता सुनिश्चित करने के उद्देश्य से भारत सरकार द्वारा वर्ष 2018 में खाद्य सुरक्षा विधेयक लाया गया, जिसे ‘राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा विधेयक, 2013’ के नाम से जाना जाता है ।
इस विधेयक के अनुसार, देश की जनसंख्या के लगभग एक-तिहाई भाग को तीन रुपये प्रति किलो की दर से चावल, दो रुपये प्रति किलो की दर से गेहूँ और एक रुपये प्रति किलो की दर से मोटे अनाज उपलब्ध कराए जाने की योजना है । गरीबों को सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से खाद्यान्न उपलब्ध कराए जाते है ।
इस प्रणाली के द्वारा इस विधेयक का लाभ 50% शहरी और 75% ग्रामीण लोगों को पहुँचाने हेतु सरकार को 62 करोड़ टन खाद्यान्न की वार्षिक खरीद करनी होगी । इस विधेयक के अन्तर्गत पौष्टिक भोजन के अलावा महिलाओं को Rs.6,000 का मातृत्व भत्ता, साथ-ही-साथ छ: माह से 14 वर्ष तक के बच्चों को भी पोषक आहार देने का प्रावधान है, किन्तु भारत की एक अरब से अधिक आबादी हेतु सरकार द्वारा दी जाने बाली ये सुविधाएँ बहुत थोड़ी हैं ।
खाद्यान्न संकट के कारणों में से देश की बढ़ती हुई जनसंख्या सबसे महत्त्वपूर्ण कारण है । सरकारी रिपोर्ट के अनुसार, भारत की 2.85% जनसंख्या से सम्बद्ध 6.5 करोड़ परिवार गरीबी रेखा से नीचे हैं । सब्सिडी मूल्य पर गरीबों को अनाज मुहैया करना इस देश की अनिवार्यता बन चुकी है ।
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इसके बावजूद देश के खाद्यान्न उत्पादन का बडा भाग समुचित खाद्य भण्डारण के अभाव के कारण नष्ट हो जाता है । कुछ ही वर्ष पूर्व उच्चतम न्यायालय ने देश में खाद्यान्न भण्डारण की अव्यवस्था पर सरकार की खिंचाई करते हुए देश के एफसीआई के गोदामों में सह रहे अनाजों को भूखे-गरीबों में बाँट देने की बात कही थी ।
हाल में किए गए एक सर्वे के अनुसार, देश में हर वर्ष 2 करोड टन से अघिक गेहूँ नष्ट हो जाता है । देश के कुल कृषि उत्पादन का लगभग 70% भाग किसानों द्वारा ही परम्परागत विधियों से संरक्षित रखा जाता है, हालाँकि भारत सरकार द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में खाद्यान्न रखने हेतु गोदाम निर्माण किए जाने पर 50% सब्सिडी की सुविधा दी गई है, जिसके कारण देश के गाँवों में बडे पैमाने पर गोदामों का निर्माण भी किया जा रहा है ।
बावजूद इसके खाद्यान्न उत्पादन की तुलना में ये ग्रामीण गोदाम अब भी बहुत थोडे हैं । आज भी देश के ज्यादातर किसान मिट्टी, बाँस, लकड़ी, पत्थर आदि से निर्मित भण्डार घरों में ही अनाज रखने को मजबूर हैं, जिनमें औसतन 6% अनाज यूँ ही नष्ट हो जाते हैं देश के राज्यों में बनाए गए शीत भण्डार गृहों की क्षमता भी मात्र 6.3 करोड़ टन खाद्यान्न रखने की है ।
इस प्रकार, देश का करोड़ों टन खाद्यान्न यूँ ही खुले में रखा जाता है । फलस्वरूप खाद्यान्न उत्पादन का 10% भाग नष्ट हो जाता है जिसका मुख्य कारण है- देश में खाद्यान्न भण्डारण की उचित व्यवस्था का न होना ।
देश में खाद्यान्न भण्डारण की समस्या तभी दूर की जा सकती है, जब सरकार, निजी एजेंसियों व आम जनों द्वारा मिल-जुलकर देशभर में वैज्ञानिक तरीकों से बड़े पैमाने पर खाद्यान्न गृहों का निर्माण किया जाए, साथ-ही-साथ इस बात की भी आवश्यकता है कि खाद्यान्न गुहा में अच्छी गुणवता बाले अनाजों को रखे जाने से पूर्व गोदामों को अच्छी तरह साफ करके सुखा लिया जाए ।
जनसंख्या वृद्धि और उचित खाद्यान्न भण्डारण के अभाव के अलावा भी देश में उत्पन्न खाद्यान्न सकट के कई कारण हैं । स्वतन्त्रता प्राप्ति के इतने वर्षों बाद भी देश के किसानों की दशा में कोई बहुत अच्छा परिवर्तन नहीं आया है । भारतीय किसान आज भी गरीबी एवं अशिक्षा का दश झेलने को विवश हैं ।
आज भी हमारे किसान खेती के लिए प्रकृति पर निर्भर है । उन्नत बीज, रासायनिक खाद, उचित सिंचाई व्यवस्था, कृषि की अत्याधुनिक तकनीकें आम किसानों की पहुँच से आज भी दूर हैं । सरकारी तौर पर जो सुविधाएँ उन्हें दी भी जा रही हैं, शिक्षा के अभाव व निर्धनता के कारण वे उनका पूर्णतः लाभ नहीं उठा पाते ।
बाढ, सूखा, जलवायु परिवर्तन जैसी समस्याएं उनके जीवन का अंग बन चुकी है । इस वैज्ञानिक युग में भी बे प्राचीन व परम्परागत विधियों से ही अन्न उपजाते हैं । देश के कई गाँवों में आज भी बिजली की सुविधा नहीं है । हमारे किसानों को खाद्यान्नों के परिवहन की समस्या भी झेलनी पड़ती है ।
हमारी धार्मिक वृत्तियों भी देश में खाद्यान्न सकट उत्पन्न करती है । पूजा-पाठ, यज्ञ-हवन आदि धार्मिक अनुष्ठानों में अन्न का एक बड़ा हिस्सा बर्बाद कर दिया जाता है । शहरों में भोज, पिकनिक आदि आयोजनों के नाम पर भी खाद्य पदार्थों की बहुत बर्बादी होती है । इसके साथ ही भोजन पकाने की अनुचित विधियों के कारण भी खाद्यान्नों की बर्बादी होती है ।
देश में भूमि के वितरण का असमान होना भी खाद्यान्न उत्पादन क्षमता को कम करता है । आज भी हमारे देश की कृषि भूमि का अधिकांश हिस्सा कुछ समृद्ध किसानों के हाथों में सिमटा हुआ है । भारत के साथ-साथ अन्य विकासशील देशों में यह समस्या अपेक्षाकृत और अधिक है ।
विकासशील देशों में भ्रष्टाचार की समस्या के कारण भी खाद्यान्न सकट उत्पन्न हो जाता है । भारत में व्यापारी वर्गों द्वारा खाद्यान्नों की बडी मात्रा में जमाखोरी व कालाबाजारी की जाती है, जिससे कृत्रिम खाद्यान्न सकट खड़ा हो जाता है ।
व्यापारी वर्ग तो इससे खूब धन इकट्ठा कर लेता है, पर आम नागरिकों को अत्यन्त महँगी दर पर खाद्य पदार्थ खरीदने पड़ते है । केन्द्र व राज्य सरकारों द्वारा कृषि क्षेत्र के विकास हेतु बनाई गई योजनाओं पर व्यय की गई कुल राशि का एक बड़ा हिस्सा भ्रष्ट व बेईमान लोगों के हाथों में चला जाता है, जिससे खाद्यान्न उत्पादन में कमी आ जाती है ।
देश को खाद्यान्न सकट से उबारने के लिए सबसे आवश्यक है-बढ़ती जनसंख्या पर नियन्त्रण पाना । इसके लिए सभी लोगों को शिक्षित किया जाना अत्यावश्यक है । परिवार नियोजन को प्रोत्साहन देकर जनसंख्या विस्फोट पर काबू पाया जा सकता है ।
मीडिया को इस कार्य में सहयोग करने की आवश्यकता है । उन्नत बीज, रासायनिक खाद आदि का प्रयोग कर उचित सिंचाई व्यवस्था अपनाकर, अत्याधुनिक तकनीक से खेती करके भी कृषि उत्पादन को बढाया जा सकता है ।
भोजन पकाने की विधियों में सुधार किया जाना भी आवश्यक है, जिससे पकाने के क्रम में खाद्य पदार्थों की अनावश्यक बर्बादी को रोका जा सके । भारत जैसे विकासशील देश में व्यापारी वर्ग द्वारा की जा रही कालाबाजारी व जमाखोरी को रोककर कृत्रिम खाद्यान्न सकट से उबरा जा सकता है इसके लिए प्रत्येक नागरिक को अपने स्वार्थ से ऊपर उठकर ईमानदारीपूर्वक अपने कर्तव्य-पथ पर चलते हुए देश को आगे बढ़ाने में सहयोग करना चाहिए ।
भारतीय अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन ने कहा हैं- ”उचित बुनियादी शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा की उपलब्धता का अभाव कृषि प्रदर्शन में अवरोध उत्पन्न करता है । कृषि नीति और भूमि सुधार जरूरी है, पर उतना ही महत्वपूर्ण है स्वास्थ्य सुविधा और शिक्षा का समुचित फैलाव, जो श्रम की गुणवता को प्रभावित करता है ।”
आज हमारा देश खाद्यान्न सकट की समस्या को झेलने के बावजूद विश्व के शीर्ष चावल उत्पादक देश के रूप में उभरकर सामने आया है । गेहूँ व कपास निर्यात के क्षेत्र में भारत दूसरे स्थान पर है । इसके साथ-साथ बागवानी फसलों व दूध उत्पादन के क्षेत्र में भी हमारे देश ने विश्व में अपनी पहचान बना ली है ।
वित्त वर्ष 2012-13 के दौरान सरकार ने सार्वजनिक उपक्रमों के माध्यम से 42 लाख टन गेहूँ का निर्यात कर लगभग डेढ अरब डॉलर अर्जित किया था । हमारी ये सारी उपलब्धियाँ कृषि क्षेत्र में हमारे विकास को दर्शाती हैं । ऐसे में उक्त वर्णित समस्याओं को दूर कर भारत खाद्यान्न सकट से निश्चय ही उबर सकता है ।
हम सब ‘गरीबों की मसीहा’ कही जाने वाली मदर टेरेसा के दिए इस सूत्र को अपने जीवन में अपनाकर खाद्यान्न सकट से पीडित लोगों का पेट भरने का प्रयत्न करें- ”यदि आप सौ लोगों को नहीं खिला सकते, तो एक को ही खिलाइए ।”
बहुफसली खेती का प्रयोग कर और फसलों की गहनता को बढ़ाकर खाद्यान्न सकट से निपटने में सहायता मिल सकती है । सरकार द्वारा किसानों को वित्तीय सहायता एवं व्यावसायिक कृषि को बढावा देना चाहिए । गाँवों में बिजली पानी आदि सुविधाएँ प्रदान किए जाने से भी खाद्यान्न उत्पादकता में वृद्धि होगी ।
कृषि क्षेत्रों में अनुसन्धान कार्यों को बढ़ावा दिया जाना भी अति आवश्यक है, तभी कृषि की नई-नई विधियों व नई तकनीक का लाभ उठाया जा सकता है । भोज पिकनिक, यज्ञ-हवन आदि आयोजनों में खाद्यान्नों की बर्बादी को रोककर भी देश के खाद्यान्न संकट को कम किया जा सकता है ।