भारत में अन्तरिक्ष प्रौद्योगिकी पर निबंध! Here is an essay on ‘Space Technology in India’ in Hindi language.

आज मानव ने अन्तरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में काफी प्रगति कर ली है । पृथ्वी से इतर ग्रहों के रहस्यों का भेद पाने के लिए एक ओर बह चाँद पर जा पहुँचा है, तो दूसरी ओर उसने मानव जीवन में ज्ञान-विज्ञान और सुख-सुविधाओं का विस्तार करने के उद्देश्य से अन्तरिक्ष में अत्याधुनिक तकनीक सम्पन्न विभिन्न प्रकार के उपग्रहों को स्थापित करने में अद्‌भुत सफलता हासिल की है ।

अन्तरिक्ष प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अद्भुत उपलब्धियाँ प्राप्त करने वाले विश्व के चन्द देशों में आज भारत भी किसी मायने में किसी से पीछे नहीं है । 5 नवम्बर, 2013 को हमारे देश के वैज्ञानिकों ने पीएसएलबीसी-25 के माध्यम से मार्स ऑर्बिटर यान अर्थात् मॉम को अन्तरिक्ष में सफलतापूर्वक स्थापित कर भारत को विश्व के उन चार देशों में शामिल कर दिया, जिन्होंने मंगल पर अपने यान भेजने में सफलता पाई है ।

24 सितम्बर, 2014 को मॉम के मंगल ग्रह की कक्षा में प्रवेश करने के साथ ही हमारा देश मंगल तक पहुँचने बाला न सिर्फ प्रथम एशियाई देश बन गया, बल्कि इसने अपने प्रथम प्रयास में सफलता प्राप्त कर नया रिकॉर्ड भी बना डाला ।

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हमारे मंगल अभियान की इस सफलता पर प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने कहा था- ”हमारे वैज्ञानिकों ने जो हासिल किया है, हम सबको उस पर गर्व होना चाहिए ।” इस महान् उपलब्धि पर नासा ने भी ट्‌वीट किया- ”हम इसरो को मंगल पर पहुँचने के लिए बधाई देते हैं लाल ग्रह का अध्ययन करने वाले मिशनों में मंगलयान मॉम शामिल हुआ ।

हमारे मंगलयान ने मंगल ग्रह की कक्षा में प्रवेश करने के दूसरे दिन ही मंगल ग्रह के सुन्दर दृश्यों की पहली तस्वीर भेजी । भारत का यह महत्वाकांक्षी मिशन संसार का सबसे सस्ता मंगल मिशन है । इससे पूर्व वर्ष 2008 में मून मिशन की सफलता के पश्चात् इसरो का लोहा पूरी दुनिया मान चुकी है ।” मून मिशन के अन्तर्गत भारत चन्द्रमा पर चन्द्रयान-1 के रूप में मानवरहित उपग्रह भेजने वाला विश्व का चौथा देश है ।

4 अक्टूबर, 1967 को सोवियत संघ द्वारा अन्तरिक्ष में ‘स्पुतनिक’ नामक अन्तरिक्ष यान भेजकर अन्तरिक्ष में छिपे रहस्यों को जानने की पहल की गई । इस अन्तरिक्ष यान के प्रक्षेपण के साथ ही विश्व में अन्तरिक्ष युग की शुरूआत हो गई और दिन-प्रतिदिन प्रौद्योगिकी में प्रगति के साथ ही आज मानव विकास की आधुनिक उन्नत अवस्था तक पहुँच गया है विश्व में अन्तरिक्ष अभियान प्रारम्भ होने के मात्र पाँच साल बाद वर्ष 1962 में भारत में भी अन्तरिक्ष कार्यक्रमों की शुरूआत हुई ।

आज भारत अन्तरिक्ष अनुसन्धान के क्षेत्र में विश्व में अपना विशेष स्थान रखता है । वह अपने विभिन्न अन्तरिक्ष कार्यक्रमों के बल पर शिक्षा, सूचना एवं संचार आदि के क्षेत्र में विशेष प्रगति हासिल कर चुका है । भारत के प्रथम अन्तरिक्ष यात्री राकेश शर्मा हैं ।  वर्ष 1997 में भारत की महिला अन्तरिक्ष यात्री कल्पना चावला ने अन्तरिक्ष की यात्रा की ।

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वह 16 जनवरी, 2003 को छ: अन्य सदस्यों सहित अमेरिकी अन्तरिक्ष केन्द्र ‘नासा’ द्वारा पुन: अन्तरिक्ष यात्रा पर गई, पर 16 दिनों की अन्तरिक्ष यात्रा पूर्ण कर पून्त्री पर उतरने से पूर्व ही उनके अन्तरिक्ष यान ‘कोलम्बिया एसटीएस-107’ में विस्फोट हो गया और सभी अन्तरिक्ष यात्रियों की मौत हो गई । इस दुर्घटना ने एक प्रतिभाशाली अन्तरिक्ष परी को हमसे हमेशा के लिए छीन लिया ।

अन्तरिक्ष अनुसन्धान की बदौलत भारत की इस प्रगति में महान् वैज्ञानिक डॉ विक्रम साराभाई का सर्वाधिक योगदान रहा है । डॉ. साराभाई ने ही भारत में अन्तरिक्ष कार्यक्रमों की शुरूआत की थी, जिसके फलस्वरूप कई भारतीय उपग्रह अन्तरिक्ष में छोडे गए और सूचना एवं संचार के क्षेत्र में देश में अभूतपूर्व क्रान्ति का सूत्रपात हो सका ।

वर्ष 1962 में डॉ. साराभाई को भारत में अन्तरिक्ष अनुसन्धान एवं विकास की जिम्मेदारी सौंपी गई, उन्होंने भारत को अन्तरिक्ष युग में ले जाने में अग्रणी भूमिका निभाई, इसलिए उन्हें ‘भारतीय अन्तरिक्ष कार्यक्रमों का जनक’ कहा जाता है ।

भारत में अन्तरिक्ष अनुसन्धान की शुरूआत करने के लिए वर्ष 1982 में डॉ. साराभाई की अध्यक्षता में अन्तरिक्ष अनुसन्धान समिति के गठन के बाद वर्ष 1963 में केरल राज्य में तिरुबनन्तपुरम् के निकट भुला में एक रर्किट प्रक्षेपण केन्द्र स्थापित किया गया ।

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वर्ष 1969 में अन्तरिक्ष अनुसन्धान समिति को पुनर्गठित करके इसका नाम ‘भारतीय अन्तरिक्ष अनुसन्धान सगठन’ (इसरो) कर दिया गया । इसके बाद देश में अन्तरिक्ष अनुसन्धान को मजबूत वित्तीय आधार प्रदान करने के लिए वर्ष 1972 में केन्द्र सरकार द्वारा एक अलग अन्तरिक्ष विभाग एवं अन्तरिक्ष आयोग का गठन किया गया ।

19 अप्रैल, 1975 को तत्कालीन सोवियत संघ की मदद से प्रथम भारतीय अन्तरिक्ष उपग्रह आर्यभट्ट के प्रक्षेपण के साथ ही भारत अन्तरिक्ष युग में प्रवेश कर गया । इस उपग्रह का निर्माण एक्स-रे एस्ट्रोनॉमी, एरोनॉमिका एवं सौर भौतिकी के क्षेत्र में उन्नति के लिए किया गया था ।

भारतीय वैज्ञानिकों की इस अद्वितीय उपलब्धि पर वर्ष 1976 में तत्कालीन प्रधानमन्त्री श्रीमती इन्दिरा गाँधी ने कहा था- ”इस बात की खुशी है कि भारत के प्रथम उपग्रह का नाम आर्यभट्‌ट रखा गया । हमारा यह उपग्रह भारतीय वैज्ञानिकों की योग्यता और परिश्रम का प्रतीक है ।” बीसवीं सदी के सत्तर का दशक भारतीय अन्तरिक्ष कार्यक्रमों के प्रयोग का युग था ।

इस दौरान भास्कर, रोहिणी एवं एप्पल जैसे कई उपग्रह छोड़े गए । रोहिणी वर्ष 1980 में स्वदेश निर्मित प्रक्षेपण यान पुसएलवी-3 से कक्षा में स्थापित किया जाने वाला प्रथम उपग्रह है इसके अन्तर्गत प्रक्षेपित किए गए चार उपग्रहों में से तीन सफलतापूर्ण कक्षा में स्थापित हुए । आठवें दशक के प्रारम्भ में पूर्व राष्ट्रपति डॉ एपीजे अब्दुल कलाम के नेतृत्व में उपग्रह लान्च करने की तकनीक विकसित करने हेतु सैटेलाइट लान्च व्हीकल (एसएलवी) प्रोजेक्ट शुरू किया गया ।

श्रीहरिकोटा से पहली बार 10 अगस्त, 1979 को एसएलबी लान्च किया गया, जो पोलर सैटेलाइट लान्च व्हीकल पीएसएलवी और जियो सिंक्रोनस सैटेलाइट लान्च व्हीकल (जीएसएलवी) का आधार बना । पीएसएलवी को इण्डियन रिमोट सेंसिंग (आईआरएस) को प्रक्षेपित करने और जीएसएलवी को भू-स्थैतिक कक्षाओं में इनसेट उपग्रहों को प्रक्षेपित करने हेतु विकसित किया गया था ।

अस्सी के दशक में इनसेट एवं आईआरएस जैसे उपग्रह कार्यक्रम प्रारम्भ हुए । इनसेट की प्रथम पीढ़ी के उपग्रहों का निर्माण विदेशी तकनीक की सहायता से किया गया था, किन्तु इसकी द्वितीय पीढी के उपग्रहों को पूर्णतः स्वदेशी तकनीक द्वारा देश में ही विकसित किया गया । इनसेट उपग्रह प्रणाली एक बहुउद्‌देशीय उपग्रह प्रणाली है ।

यह अन्तरिक्ष विभाग, दूरसंचार विभाग, भारतीय मौसम विभाग, आकाशवाणी एवं दूरदर्शन का संयुक्त उद्यम है, इसलिए यह भारतीय अर्थव्यवस्था के अनेक महत्वपूर्ण क्षेत्रों में सेवाएँ उपलब्ध कराती है । इनमें से सबसे महत्वपूर्ण दूरसंचार क्षेत्र है, जो इनसेट मोबाइल उपग्रह सेवा के साथ-साथ वी-सेट सेवाएँ भी देता है । इनसे टेलीविजन प्रसारण एवं पुनर्वितरण को भी काफी लाभ हुआ है ।

इनसेट के कारण भारत में बड़ी संख्या में स्थापित स्थलीय पुनर्प्रसारण ट्रांसमीटरों से करोडों लोगों तक टेलीविजन की पहुँच हो पाई है । इसके अतिरिक्त, इनसेट के कारण ही प्रशिक्षण और विकासात्मक शिक्षा के लिए विशेष चैनल उपलब्ध करा पाना सम्भव हो पाया है । शिक्षा के प्रसार के लिए विशेष उपग्रह एडु सैट (एजुकेशन थ्रू सैटेलाइट) का भी प्रक्षेपण किया गया है ।

इनसेट के श्रृंखलाबद्ध उपग्रहों के साथ-रही-साथ भारत ने वर्ष 1980 के बाद से अब तक आईआरएस, मेटसेट, कार्टोसेट, हैमसेट, आईआरपुनएसएस आदि के कई श्रृंखलाबद्ध उपग्रहों का सफलतापूर्वक प्रक्षेपण किया है । आईआरएस उपग्रहों द्वारा प्रेषित चित्रों का उपयोग भारत में कृषि क्षेत्र में कई तरह से किया जाता है ।

इसके अतिरिक्त, इन चित्रों का उपयोग जल के श्रेष्ठतम उपयोग हेतु भू-जल एवं सतह पर उपलब्ध जल के संचयन एवं तालाबों तथा सिंचाई कमान क्षेत्रों की निगरानी हेतु किया जाता है ।  वन सर्वेक्षण, बंजर भूमि पहचान तथा उसे पुन उपज योग्य बनाने का कार्य भी इन चित्रों के माध्यम से किया जाता है साथ-ही-साथ इनका उपयोग खनिजों के अन्वेषण एवं सम्भावित मत्स्य क्षेत्रों की भविष्यवाणी हेतु भी किया जाता है । आज भारत द्वारा प्रक्षेपित किए गए कई सुदूर संवेदी उपग्रहों रिमोट सेंसिंग सैटेलाइट्‌स का उपयोग राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर किया जा रहा है ।

अक्टूबर, 1994 में ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (पीएसएलवी) द्वारा आईआरएसपी-2 उपग्रह को छोड़े जाने के साथ ही भारतीय प्रक्षेपण यान कार्यक्रम ने एक अच्छी उपलब्धि हासिल की । वर्ष 2002 में पीएसएलवी द्वारा भू-स्थैतिक कक्षा में स्थापित किया जाने वाला प्रथम उपग्रह कल्पना-1 है, जो पूर्णतः मौसम सम्बद्ध जानकारी हेतु समर्पित है ।

इसरो ने पीएसएलवी रॉकेट द्वारा विदेशी उपग्रहों का व्यावसायिक प्रक्षेपण वर्ष 1999 में शुरू किया था । वर्ष 2002 में एक एकल अभियान में भारत ने पीएसएलवी के सहारे एक साथ 10 उपग्रहों को अन्तरिक्ष में सफलतापूर्ण स्थापित करके अन्तरिक्ष क्षेत्र में महान् उपलब्धि प्राप्त की ।

भारत में उपग्रहों का प्रक्षेपण आन्ध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अन्तरिक्ष केन्द्र से किया जाता है । इसी केन्द्र से अप्रैल, 2009 में पीएसएलवी-सी 12 द्वारा भारत का जासूसी उपग्रह रिसेट-2 एवं अनुसेट प्रक्षेपित किए गए । इसी वर्ष दिसम्बर में पीएसएलवी ने अपने साथ 7 विदेशी उपग्रहों को लेकर उडान भरी ।

इसके बाद फरवरी 2013 में पीएसपुलबी-सी 20 द्वारा एकल अभियान में भारतीय-फासीसी समुद्र विज्ञान अध्ययन उपग्रह ‘सरल’ एवं अन्य 6 विदेशी उपग्रहों का सफलतापूर्ण प्रक्षेपण किया गया । यह इसरो का महत्वपूर्ण 100वाँ अन्तरिक्ष अभियान था ।

इस अभियान के अन्तर्गत कक्षाओं में स्थापित किए जाने बाले बिदेशी उपग्रहों में कनाडा एवं ऑस्ट्रिया के दो-दो तथा ब्रिटेन एवं डेनमार्क के एक-एक उपग्रह शामिल थे । श्रीहरिकोटा से जून, 2014 में पीएसएलवी-सी 23 के सहारे 5 और विदेशी उपग्रह एक साथ अन्तरिक्ष में भेजे गए । इस प्रकार आज भारत उपग्रह प्रक्षेपण करने वाला एक सफल और विश्वासी देश बन चुका है ।

इसरो ने अमेरिका के जीपीएस की तरह भारतीय क्षेत्रीय नौवहन उपग्रह प्रणाली (आईआरएनएसएस) स्थापित करने हेतु सात उपग्रह भेजने की योजना बनाई है । सतीश धवन अन्तरिक्ष केन्द्र से पीएसएलवी रॉकेटों द्वारा इस श्रृंखला के अब तक तीन उपग्रह आईआरएनएसएस-1 ए, आईआरपनाग्सएस- 1 बी एवं आईआरएनएसएस- 1 सी क्रमशः जुलाई, 2013, अप्रैल, 2014 एवं अक्टूबर, 2014 में सफलतापूर्वक अन्तरिक्ष में भेजे जा चुके है । इनमें से आईआरएनएसएस-1 सी पीएसएलवी की 28वीं उड़ान थी ।

पीएसएलवी की सफलता के बाद जीएसएलवी (भू-तुल्यकालिक उपग्रह प्रक्षेपण यान) को प्रक्षेपित करने में भी भारतीय वैज्ञानिकों को सफलता प्राप्त हुई । जीएसएलवी दो हजार किलोग्राम श्रेणी के उपग्रहों को भू-स्थिर स्थानान्तरण कक्षा में छोड़ सकता है ।  अब स्वदेश में ही विकसित क्रायोजेनिक तकनीक की सहायता से इसका प्रक्षेपण और भी आसान हो गया है ।

5 जनवरी, 2014 को भारत ने श्रीहरिकोटा से पहला स्वदेश निर्मित क्रायोजेनिक रकिट जीएसएलबीडी-5 का सफलतापूर्वक प्रक्षेपण किया है । इसके साथ ही भारत की गिनती प्रक्षेपण यान निर्माण करने वाले इने-गिने देशों में होने लगी । इस प्रकार आज हमारा देश न सिर्फ उपग्रह प्रक्षेपण की तकनीक में उन्नत हो गया है, बल्कि प्रक्षेपण यान के निर्माण में भी सफलता हासिल कर ली है ।

हाल के मंगल मिशन (मॉम) की सफलता ने हम भारतीयों का मस्तक गर्व से ऊँचा कर दिया है ।  ये सारी उपलब्धियाँ भारत के लिए राजस्व का एक बृहत द्वार खोल सकती हैं । ऐसी आशा की जा रही है कि सस्ती एवं भरोसेमन्द तकनीक होने के कारण उपग्रह प्रक्षेपण हेतु एशिया, यूरोप, अफ्रीका एवं दक्षिण अमेरिका के विकासशील देश भारत का रुख कर सकते हैं ।

विकासशील अर्थव्यवस्था और उससे जुडी अनेक समस्याओं से घिरे होने के बावजूद भारत ने न सिर्फ अन्तरिक्ष प्रौद्योगिकी को प्रभावी का से विकसित किया है, बल्कि उसे अपने तीव्र विकास के लिए इस्तेमाल भी किया है । इतना ही नहीं आज भारत अन्य देशों को भी इन कार्यक्रमों से सम्बन्धित अनेक प्रकार की सुविधाएं उपलब्ध कर रहा है । आशा है आने बाले वर्षों में भारत अन्तरिक्ष अनुसन्धान के क्षेत्र में नई उपलब्धियाँ हासिल करने में और अधिक सफल होगा ।

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