Read this article in Hindi to learn about the executive and routine functions of financial management.

वित्तीय प्रबन्ध के कार्यों को दो वर्गों में रखा जा सकता है:

(1) प्रशासकीय या निर्णयात्मक कार्य (Executive Functions) और

(2) नैत्यक अथवा दैनिक कार्य (Routine Functions) ।

(1) प्रशासकीय अथवा निर्णयात्मक कार्य (Executive Functions):

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वित्तीय प्रबन्ध की आधुनिक विचारधारा के अनुसार वित्त कार्य में तीन प्रकार के निर्णय अर्थप्रबन्धन, विनियोग व लाभांश शामिल किए जाते है ।

इसमें निम्न कार्य सम्मिलित हैं:

(i) उच्च प्रबन्ध को परामर्श देना (To Advise the Top Management):

प्रबन्ध के समक्ष वित्तीय समस्या उत्पन्न हो, तो उसके निराकरण हेतु सलाह देना वित्तीय प्रबन्ध का कार्य होता है । प्रत्येक समस्या का सही निदान, समस्या के समाधान हेतु वैकल्पिक उपायों एवं उनमें से सर्वोत्तम विकल्प का चुनाव आदि के सम्बन्ध में वित्तीय प्रबन्ध उचित राय दे सकता है ।

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(ii) पूँजी की उत्पादकता में वृद्धि हेतु प्रयास करना (Importance for Others):

वित्तीय प्रबन्ध का यह भी कर्तव्य है कि विनियोग के नए-नए अवसरों की खोज करके पूजी की उत्पादकता बढाने का प्रयत्न करे ।

(iii) वित्तीय निष्पत्ति का मूल्यांकन (Evaluating of Financial Performance):

वित्तीय प्रबन्ध का यह भी कार्य होता है कि एक निश्चित अवधि के बाद व्यावसायिक संस्था के वित्तीय निष्पादन का विश्लेषण व मूल्यांकन किया जाए और उसके परिणामों से उच्च प्रबन्ध को अवगत कराया जाए । इस प्रकार के वित्तीय विश्लेषण व मूल्यांकन हेतु अनेक प्रकार के उपकरण एवं तकनीकियां प्रयोग में लाई जा सकती हैं ।

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(iv) रोकड़ बहावों का प्रबन्ध करना (Management of Cash-Flows):

व्यावसायिक संस्था में समुचित रोकड़ बहाव उसी भाँति आवश्यक होता है जैसा स्वस्थ शरीर के लिए शुद्ध रक्त का संचालन । वित्तीय प्रबन्ध का यह आवश्यक कार्य होता है कि वह रोकड़ बहाव के सम्बन्ध में उचित नीति का पालन करे ।

(v) आय का प्रबन्ध करना (Management of Income):

आय के प्रबन्ध के अन्तर्गत आय का सही ढंग से मापन करना, आय का सही अनुपात में वितरण करना तथा यथोचित लाभांश नीति का पालन करना भी शामिल होता है ।

(vi) विनियोग संबंधी निर्णयन (Investment Decisions):

इस कार्य के अन्तर्गत प्राप्त फण्ड का विभिन्न सम्पत्तियों में विनियोग करने सम्बन्धी निर्णय को शामिल करते हैं । स्थायी सम्पत्तियों में विनियोग (दीर्घकालीन विनियोग) और चल सम्पत्तियों में विनियोग (अल्पकालीन विनियोग) की मात्रा निर्धारित करना वित्तीय प्रबन्धक का कार्य होता है ।

(vii) वित्तीय समझौता (Financial Negotiations):

वित्तीय प्रबन्ध का यह कार्य भी होता है कि जिन वित्तीय स्रोतों से पूजी उगाहना हो उनसे सम्पर्क साधे और उनसे बातचीत करके या अन्य किसी विधि से अनुबन्ध को अन्तिम रूप दे । इस प्रक्रिया में अनेक प्रकार के वैधानिक नियमों एवं मान्यताओं को कार्यरूप में बदलना पड़ता है ।

(viii) अर्थ प्रबन्धन निर्णय (Financing Decisions):

वित्तीय प्रबन्ध का कार्य अर्थप्रबन्ध सम्बन्धी निर्णय का होता है । इसके अन्तर्गत वित्तीय स्रोतों का निश्चय करना, उनकी तुलनात्मक लागतों का अध्ययन करना, संस्था को अंशधारियों की इक्विटी पर पड़ने वाले प्रभाव मई जाँच करना, आदि शामिल होता है ।

(ix) वित्तीय नियोजन (Financial Planning):

वित्तीय पूर्वानुमानों के बाद वित्तीय नियोजन का कार्य किया जाता है ।

वित्तीय नियोजन के अन्तर्गत तीन प्रकार की उप-क्रियाएँ की जाती है:

(a) वित्तीय उद्देश्यों का निर्धारण,

(b) वित्तीय नीतियों का निर्माण तथा

(c) वित्तीय कार्यविधियों का विकास ।

(x) वित्तीय पूर्वानुमान (Financial Forecasting):

नई व्यावसायिक संस्था के सम्बन्ध में शुरू में इस प्रकार का पूर्वानुमान प्रवर्तकों द्वारा लगाया जाता है, परन्तु एक चालू व्यावसायिक संस्था में प्रत्येक परियोजना के सम्बन्ध में वित्तीय आवश्यकताओं का पूर्वानुमान वित्तीय अधिकारियों द्वारा ही लगाया जाता है ।

(2) नैत्यक या दैनिक कार्य (Routine Functions):

इस श्रेणी में उन कार्यों के शामिल करते हैं जो प्रायः प्रतिदिन निम्न स्तरीय कर्मचारियों द्वारा किए जाते हैं ।

इस वर्ग में निम्न कार्यों को शामिल करते हैं:

(i) विभिन्न वित्तीय प्रलेखों को सुरक्षित रखना;

(ii) उधार (साख) का प्रबंध करना;

(iii) रोकड़ शेष की व्यवस्था करना;

(iv) विभिन्न वित्तीय विवरणों को तैयार करना;

(v) अभिलेख रखना (Record Keeping) ।