Read this article in Hindi to learn about how to control food contamination.
भाज्य-संदूषण पर नियंत्रण के अनेक प्रभावकारी उपायों के विषय में अब विचार किया जाए । इस संदूषणता के कारण संपूर्ण मानव जाति अपने भावी जीवन के विषय में चिंतित है । एक समय था जब भारत में अनेक खाद्य-पदार्थों को धूप में सुखाकर रख दिया जाता था ।
इन सूखे हुए आहारों में हरी सब्जियाँ, फल एवं पकवान की रोटियाँ आदि थीं । आलू के चिप्स तो अभी भी धूप में सुखाकर तैयार किए जाते हैं । यद्यपि संग्रह करने का यह सरल, सस्ता एवं सर्वाधिक प्रभावशाली ढंग था, किंतु इस विधि में विविध भोज्य-संदूषण की संभावनाएँ थीं ।
ये सूखे हुए आहार बहुत ही जल्दी नमी से प्रभावित होकर फफूँदी के कारण संदूषित हो जाते थे । अत: आधुनिक युग में खाद्य पदार्थों के भंडारण के लिए कोल्ड स्टोरेज का प्रयोग किया जाने लगा है । चूँकि जीवाणु खाद्य-पदार्थों को 10° से 65° से. के मध्य ही प्रभावित करते हैं, अत: इस बात का ध्यान रखा जाए कि कोल्ड स्टोरेज का तापमान इस क्रम में न आने पाए ।
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खाद्य-पदार्थों का ऐसे बक्सों या पेटियों में बंद किया जाए, जिनमें अंदर मोमी कागज की एक परत लगी हो ताकि नमी का प्रभाव न होने पाए । अधिक अवधि तक रखे जाने वाले आहारों का सीलबंद किया जाए और उन डिब्बों में हवा नहीं जानी चाहिए ।
खाद्य-पदार्थों का लापरवाही से रख-रखाव, सँभालना तथा उत्पादन के समय असावधानी से कार्य करना ही भोज्य-संदूषण का सबसे बड़ा कारण है । कर्मियों के इस वैज्ञानिक अल्पज्ञान को प्रशिक्षण द्वारा दूर किया जाना चाहिए ।
अत: भोज्य-संदूषण के दोषों और इन्हें दूर करने के उपायों का रेडियो, टेलीविजन तथा स्कूल पाठ्यक्रम द्वारा प्रचार किया जाए, ताकि जनसमूह इसके द्वारा होने वाले रोगों से बच सके । अनेक व्यक्ति शौच आदि से निवृत्त होने के पश्चात् बिना हाथ धोए खाद्य-पदार्थों को छू लेते हैं जो संदूषण करने का भयावह रूप और सामाजिक बुराई है । अत: यह आवश्यक है कि उन सभी स्थलों पर जहाँ खाना पकाया जाए, तैयार किया जाए अथवा परोसा जाए, हाथ धोने की पूर्ण व्यवस्था होनी चाहिए ।
खाद्य-पदार्थों संपर्क में आने वाले व्यक्तियों की सफाई का सर्वोच्च मानदंड रखा जाए और इससे संबंधित नियमों का कठोरता से पालन कराया जाए । उंगलियों के गंदे नाखून, नाक सिनकना एवं बिना रूमाल लगाए छींकना तथा खाँसन को मुख्य अपराध माना जाए ।
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गंदी क्रॉकरी तथा बर्तनों से भी भोज्य-संदूषण का बढ़ावा मिलता है । अत: एस गंद पात्रों को किसी डिटरजेंट (पोटेशियम परमेगनेट आदि) घोल से धोना चाहिए । खाद्य-पदार्थो को चूहों, कॉकरोच तथा अन्य कीड़े-मकोड़ों से भी बचाना चाहिए, क्योंकि इनके द्वारा सैल्मोनेला संक्रमण के कारण आहार संदूषित हो जाता है ।
जुलाई-अगस्त मास में मक्खियों का प्रजनन अत्यधिक होता है, अत: आहार को इनसे बचाना चाहिए ताकि जनसमूह अतिसार, मितली, उल्टियों आदि से अपने आपको सुरक्षित रख सके । खाद्य-पदार्थों को ढककर सुरक्षित और कूड़ेदान में डालना सर्वोत्तम होगा ।
कुत्ते और बिल्ली भी आहार को संदूषित कर देते हैं और परिणामस्वरूप सैल्मोनेला संक्रमण हो जाता है । भोज्य-संदूषण पर नियंत्रण पाने के लिए खाद्य-पदार्थों को किरणीयत कर दिया जाता है ताकि उनमें जीवाणु उत्पन्न ही न हो सकें ।
आहार को किरणीयन करने के लिए उसे उच्च ऊर्जा वाली विकिरणें में खुला रख दिया जाता है और फलस्वरूप आहार में ये विकिरणें प्रवेश कर उसने कुछ परिवर्तन ला देती हैं । विकिरण या तो ऋण आवेषित कण-इलेक्ट्रॉन के पुंज रूप में हो सकता है अथवा एक्स-रे के समान ‘गामा’ किरणों जैसी विद्युत चुंबकीय विकिरणें के रूप में क्योंकि ‘गामा’ किरणों की वेधनशक्ति बहुत अधिक है ।
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जब ये विकिरणें खाद्य पदार्थों में प्रवेश करती हैं तो संदूषण उत्पन्न करने वाले सूक्ष्म जीवों तथा कीड़े-मकोड़ों को नष्ट कर देती हैं । इसके अतिरिक्त किरणीयन के कारण खाद्य-पदार्थों में ऊष्मा का प्रभाव भी नहीं होता और अत्यधिक संख्या में सीलबंद हुए आहारों को भी एक साथ किरणीयत किया जा सकता है ।
किरणीयन के समय यह ध्यान रखा जाता है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा सुझाई गई (देखिए परिशिष्ट) विकिरणों की मात्रा सीमा का उल्लंघन न करने पाए अन्यथा संपूर्ण आहार ही रेडियोएक्टिव बनकर स्वास्थ्य-संकट पैदा कर सकता है ।
रासायनिक पदार्थों से भी आहारीय पदार्थों को बचाया जाए । जस्ते से मुलम्मित पात्रों में आहार नहीं रखना चाहिए, क्योंकि खाद्य-पदार्थों का एसिड जिंक से क्रिया कर जाता है । आलू, सलाद और सिरका का प्रयोग भी जिंक के पात्रों में नहीं करना चाहिए ।
एंटीमनीयुक्त तामचीनी की सस्ती ट्रे या पात्रों का प्रयोग नहीं करना चाहिए, क्योंकि खाद्य-पदार्थों द्वारा उत्पादित एसिड में एंटीमनी घुल जाता है । इन तामचीनी के बर्तनों के स्थान पर स्टेनलेस स्टील या एल्युमिनियम के बर्तन उपयोग में लाना उचित हैं ।
अत: भोज्य-संदूषण के लिए उत्तरदायी तत्व पर नियंत्रण करने के लिए सफाई की ओर सर्वाधिक ध्यान देना चाहिए, विशेषकर ऐसे स्थलों (अस्पतालों) पर जहाँ पर रोगी पहले से ही पीड़ित हों । यदि उपयुक्त समय पर उचित ध्यान नहीं दिया गया तो भोज्य-संदूषण महामारी का रूप भी ले सकता है जिस पर नियंत्रण करना सरल कार्य नहीं ।