Read this article in Hindi to learn about:- 1. अंडे का उपाभोग (Consumption of Egg) 2. अंडे का संघटन (Composition of Egg) 3. परिरक्षण तथा प्रसंस्करण (Preservation and Processing) 4. उत्पाद (Products).
अंडे का उपाभोग (Consumption of Egg):
Poultry का मुख्य उत्पाद अंडा भी है । अंडे में प्रोटीन और विटामिन के सर्वोत्तम स्त्रोत है । Eggs अनेक भोज्य पदार्थों के स्वाद में वृद्धि करते हैं तथा ये सुपाच्य जन्तु प्रोटीन के उत्तम स्त्रोत है । अंडे Vitamin-A Riboflavin, Phosphorus तथा Iron के अच्छे स्त्रोतों में से एक माने जाते है ।
एक अंडे में उसके वजन के बराबर मुर्गे के माँस में है । संपूर्ण दूध के पनीर का 2/3 भाग तथा गाय के माँस का 3/4 भाग Animals Protein होता है । पकाने के अंडे Coagulate हो जाते हैं ।
तलकर, उबालकर या पोच करके ये अंडे भूख बढ़ाने वाला भोजन बन जाता है । अंडों का कुछ भोज्य पदार्थों जैसे Angel Food Cake तथा Sponge cake पर Fermentation के रूप में प्रयोग किया जाता है । कस्टर्ड को गाढ़ा करने के लिए अंडे का प्रयोग करते है ।
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नूडल्स एवं Doughnuts में इसका मिला जुला प्रभाव होता हैं । मुलायम डबलरोटी तैयार करते समय अंडों का बांधने वाला प्रभाव होता है और ये बाहरी सतह पर Coating करने में काम आते है । आइसक्रीम तथा कैंडी में अंडे मिलाकर बड़े Crystals का बनना रोका जा सकता है ।
काफी तथा सूप में अंडों का Albumin Clarifying Medium का कार्य करता है । अनेकों अखाद्य पदार्थ वाले कारखानों में भी अंडों के सफेद भाग का प्रयोग इसके चिपकने वाले व जमने वाले गुणों के कारण किया जाता है । दूसरे व्यापारिक कार्यों जैसे सतह चमकीला बनाने, पुस्तकों की जिल्द बाँधने, दवाई बनाने, चमड़े के काम आदि में अंडों का प्रयोग बहुत कम मात्रा में किया जाता है ।
जहाँ तक अंडे की संरचना प्रकृति की अद्भुत रचना है क्योंकि अनुकूल परिस्थितियों में यह विकसित होकर नया जीव बनाता है । इसका एक सिरा अधिक चौडा व चपटा होता है । अंडे में 12% Shell व Shell Membranes, 56% Albumin एवं चैलेजा (Chalazae) तथा 32% Yolk होता है ।
अंडे का संघटन (Composition of Egg):
अंडे का वास्तविक संघटन पक्षी की नस्ल, उसके आवास तथा मुर्गी पालन फार्म की भौगोलिक परिस्थिति पर निर्भर करता है । पूरे द्रव अंडे (कवच के अतिरिक्त) का 36% पीतक होता है और 64% सफेदी । सफेदी का मुख्य घटक प्रोटीन है तथा इसका शेष भाग थोड़ी मात्रा में शर्करा, खनिज एवं वसा का बना होता है ।
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ठोस पीतक का 2/3 भाग वसा तथा 1/3 प्रोटीन होता है । पीतक के प्रोटीन की रचना सफेदी के प्रोटीन से भिन्न होती है । पीतक के दूसरे घटक लैक्टिक अम्ल, क्रिणटिन, क्रिएटिनिन, कोलीन तथा ऐल्कोहॉल है ।
i. कार्बोहाइड्रेट (Carbohydrate):
अंडे के कार्बोहाइड्रेट का मुख्य भाग शर्करा (ग्लुकोज) होती है । ग्लुकोज पीतक की अपेक्षा अंडे की सफेदी में अधिक होता है । मुर्गी के अंडे में ग्लुकोज की औसत मात्रा इस प्रकार होती है । स्वस्थ अण्डे में 0.45%, अंडे की सफेदी में 0.47% तथा अंडे के पीतक में 0.14% अंडे में बहुत थोड़ी मात्रा में कार्बोहाइड्रेट होते हैं जो जल-अपघटन (Hydrolysis) के पश्चात अपचायक शर्करा बनाते हैं ।
यह ध्यान रखने योग्य है कि स्वतंत्र शर्करा यदि सूखे अंडे के उत्पादनों में हो तो यह तेजी से क्षय (ह्रास) करती है । अत: अंडे में सूखने से पहले ही स्वतंत्र शर्करा या तो किण्वन द्वारा या एनजाइमों द्वारा ऑक्सीकरण करके ग्लुकोनिक अम्ल में बदल दी जाती है ।
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ii. प्रोटीन (Protein):
प्रोटीन अंडे में कुल 12% होती है । प्रोटीन का 64% अंडे की सफेदी में होती है तथा बाकी पीतक में । ओवेलब्युमिन (Ovalbumin) अंडे की सफेदी की कुल प्रोटीन का 70% होता है जिसे A1, A2 तथा A3, प्रोटीनों में बाँटा गया है ।
भंडारण करते समय यह प्रोटीन एक अधिक स्थायी रूप एस-ओवलब्युमिन (S-Ovalbumin) में बदल जाता है जो इसे खराब होने (क्षय) से बचाती है । अंडे की सफेदी में दूसरा प्रोटीन कैनालब्युमिन (Canalbumin) है जो लगभग 17% होता है तथा दो रूपों ओवोम्यूकॉइड (Ovomucoid) एवं लाइसोजाइम (Lysozyme) में पाया जाता है ।
अंडे के पीतक के प्रोटीन विटेलेनिन (Vitellenin), लिवेटिन (Livetin), फासविटिन (Phosvitin), फस्फोप्रोटीन (Phosphoprotein), लाइपोप्रोटीन (Lipoprotein), लाइपोविटेलिन (Lipovitellin) तथा लाइपोविटेलेनिन (Lipovitellenin) है ।
अंडों के प्रोटीनों में शरीर की वृद्धि तथा विकास के लिए आवश्यक सारे अमीनों अम्ल पाये जाते हैं । अंडे के प्रोटीन माँस, सोयाबीन, दूध, गेहूँ, मूँगफली आदि के प्रोटीनों की अपेक्षा अधिक जैविक महत्व के होते हैं ।
अंडे के सफेदी की प्रोटीन पीतक के प्रोटीन की अपेक्षा अधिक पौष्टिक होती है । अंडे की प्रोटीन में जमने, झींग बनाने तथा पायसीकरण के क्रियात्मक गुण होते हैं जो अंडों के प्रयोग करने वालों के लिए महत्वपूर्ण है ।
iii. प्रोटीनरहित नाइट्रोजनी पदार्थ (Non-Protein Nitrogenous Substances):
प्रोटीनरहित नाइट्रोजनी पदार्थ जैसे- लैसीथिन, स्वतंत्र कोलीन, ओवाइन तथा दूसरे क्षार (Bases) भी अंडों में पाये जाते हैं ।
a. वसा (Lipids):
ताजे अंडे के पीतक में ईथर में घुलनशील वसाओं की मात्रा 30-35% (सूखे भार के आधार पर 60-70%) तथा फास्फेटिडों (Phosphatids) की मात्रा 4 से 12% होती है । अंडे के पीतक के ग्लिसराइड तथा फास्फेटिड भागों में पाये जाने वाले वसा अम्ल पामिटिक, मायरिस्टिक, स्टीएरिक, ओलिक, हेक्साडेकेनोइक, लिनोलिक तथा असंतृप्त C22, अम्ल होते हैं । मुर्गी के पीतक में 1.8% कोलेस्ट्राल होता है ।
b. विटामिन (Vitamins):
अंडे राइबोफ्लेविन, विटामिन-ए तथा विटामिन-डी के अति उत्तम स्त्रोत हैं । अंडों में उपस्थित विभिन्न विटामिन जैसे विटामिन-ए, विटामिन-बी12, विटामिन-डी, विटामिन-ई, विटामिन-के, राइबोफ्लोविन, फोलिक अम्ल, निएसिन, थाएमिन, पैंटोथेनिक अम्ल, बायोटिन, कोलीन क्लोराइड, पायरीडॉक्सिन तथा इनोसिटॉल आदि पाये जाते हैं । भंडारण के समय अंडे का बहुत कम विटामिन नष्ट होता है ।
c. एन्जाइम (Enzyme):
अंडों में अनेक एन्जाइम जैसे एमाइलेज, डाएस्टेज, पेप्टाइडेज, फास्फेटिडेज, आक्सीडेज, अनेक प्रॉटियोलिटिक एन्जाइम, मोनो तथा ट्राइब्यूटाइरेजेज, कैटालेज, ट्रायप्टिक प्रोटीनेज, लाइपेज, इरेप्सिन तथा सैलीसिलेज आदि पाये जाते हैं ।
d. खनिज (Minerals):
अंडों में खनिजों की अच्छी मात्रा होती है । अंडों में कैल्शियम, लौह, फास्फोरस, सोडियम, पोटेशियम, मैग्नीशियम, सल्फर, जिंक, क्लोराइड, मैंगनीज, आयोडीन, कॉपर, फ्लोरीन, सेलेनियम आदि खनिज पाये जाते हैं ।
अंडे में कुछ सूक्ष्म मात्रिक तत्व (Trace Elements) भी पाये जाते हैं, जैसे- लेड (सीसा), क्रोमिक, ऐल्युमिनियम, मौलिब्डेनम, स्ट्रान्शियम, वैनेडियम, टिटेनियम तथा बेरियम ।
e. वर्णक (Pigments):
अंडे के पीतक के वर्णक कैरोटिनॉएड, ल्यूटिन (Lutein) तथा जीजैन्थिन (Zeaxanthin) हैं । अंडे में ओवोफ्लेविन (Ovaflavin) नामक नाइट्रोजनी वर्णक होता है ।
कवच में पाया जाने वाला भूत वर्णक ओरोडेन (Orodian) होता है जो हीमेटोपोरफाइरिन (Hematoporphyrin) के समकक्ष है । अंडे कवच का नीला हरा रंग ऊसायेन (Oocyan) कुछ सीमा तक पित्त वर्णक बिलीवेरडिन (Biliverdin) का बना होता है ।
अंडे की सफाई (Clearing of Eggs):
अंडे दिये जाने के पश्चात् अनेक कारणों से गंदे हो जाते हैं । गंदे अंडों को कभी भी साधारण ठंडे पानी से नहीं धोना चाहिए । अंडों का कवच गीले कपड़े या खुरदुरे कागज से नही रगड़ना चाहिए ।
गंदे अंडों को साफ करने के लिए आरोग्य द्रव (Sanitizer) तथा डिटरजेन्ट (1% सोडियम हाइड्रोक्साइड) घोल का प्रयोग किया जाता है । फिर इसे डिटरजेन्ट वाले गर्म पानी (40 से 43°C) में 5 मिनट तक धोना चाहिए ।
केन्द्रीय खाद्य शिल्प वैज्ञानिकी शोध संस्थान (Central Food Technological Research Institute) मैसूर द्वारा अंडों को धोने के लिए एक उपकरण का विकास (निर्माण) किया गया है । इस उपकरण द्वार 1 घंटे में 1000 से 1500 अंडे धोये जाते हैं । इसका प्रयोग व्यावसायिक रूप से अंडे धोने के लिए सफलतापूर्वक किया जा सकता है ।
अण्डों का परिरक्षण तथा प्रसंस्करण (Preservation and Processing of Eggs):
अनिषेचित अण्डों को परिरक्षण के लिये प्राथमिकता दी जाती है । सामान्यता स्वच्छ अण्डों को परिरक्षण हेतु चयनित किया जाना चाहिए क्योंकि अण्डों को धोने से इनका कवच छिद्रित हो जाता है तथा ये जीवाण्वीय संक्रमण के लिये सुग्राही हो जाते है । स्यूडोमोनास जीवाणु के संक्रमण से अण्डों में ग्रीन रोट (Green Rot) तथा प्रोटियस के संक्रमण से ब्लेक रोट (Black Rot) रोग हो जाता है ।
अण्डों का परिरक्षण निम्न विधियों द्वारा किया जा सकता है:
(1) चूना जल (Lime Water):
चूना जल का निर्माण 20% चूना तथा 80% जल को मिलाकर एक सप्ताह के लिये रख देते हैं इस कारण चूना पानी में घुल जाता है व कुछ मात्रा तली में नीचे बैठ जाती है । इस ऊपरी जल को जहाँ अण्डे रखे हुये हैं उस पात्र में डाल देते हैं तथा लगभग 18 घण्टे तक अण्डों को पानी में रखा जाता है ।
इसके कारण चूने की पतली परत अण्डे के कवच पर बन जाती है । कवच में उपस्थित छिद्र बंद हो जाते है । इस विधि से अण्डे को 6 महिनों तक परिरक्षित किया जा सकता है ।
(2) ग्लास जल (Glass Water):
इसका निर्माण सोडियम सिलिकेट तथा उबले हुए ठण्डे जल की बराबर मात्रा डालकर किया जाता है । इस एक लीटर जल में 15-20 सप्ताह तक परिरक्षित किया जा सकता है ।
(3) तेल के साथ स्पीयरिंग (Smearing with Oil):
पेराफिन तथा कोकोनट तेल के मिश्रण में अण्डों को डुबाकर निकाल लेते हैं इससे एक पतला आवरण अण्डों के कवच पर बन जाता है । इस विधि द्वारा अण्डों को 30 से 60 दिन तक परिरक्षित किया जा सकता है ।
(4) ताप स्थिरीकरण (Thermo Stabilization):
इस विधि में 54°C-60°C तापमान वाले जल में अण्डों को 15 मिनट तक गर्म किया जाता है । इससे कवच पर उपस्थित कीटाणु नष्ट हो जाते है । अण्डा विनिषेचित (Defertilizes) हो जाता है व अण्डे को लम्बे समय तक संग्रहित किया जा सकता है ।
(5) शीत संग्रह (Cold Storage):
कोल्ड स्टोरेज में तापमान 0°C – 2°C तक रखा जा सकता है । इस तापक्रम पर आपेक्षित आर्द्रता 80-85% होती है । फ्रीजिंग के कारण जीवाणु की वृद्धि रुक जाती है । इस विधि में अण्डों को लम्बे समय तक परिरक्षित किया जा सकता है ।
(6) शुष्कन (Drying):
अण्डे के योक तथा एल्बूमन को पृथक-पृथक करके इनमें 5% ग्लिसरीन मिला दिया जाता है व 17°C से 22°C ताप तक इनको परिरक्षित कर लिया जाता है ।
अंडों के उत्पाद (Products of Egg):
अंडों से अनेक उपयोगी उत्पाद जैसे- एल्बुमेन की पतली चद्दरें (Flakes), जमा हुआ पीतक तथा अंडे का चूर्ण आदि तैयार किये जाते हैं ।
i. एल्बुमेन की पतली चद्दरें (Albumin Flakes):
सफेदी के हल्के चद्दर तैयार करने के लिए पहले अंडे की सफेदी को सूक्ष्म जीवों से किण्वन द्वारा तोड़ लिया जाता है और इसका ग्लुकोज निकाल देते हैं । अब इस पदार्थ को अम्लीकृत करके हल्की चद्दरों (Flakes) के रूप में सुखा लेते हैं ।
सफेदी के इन चद्दरों का उपयोग ऑफ सेट प्रिंटिंग में प्रयोग में आने वाली जिंक या एल्युमिनियम की पत्रियों के ऊपर संवेदनशील लेप चढ़ाने के लिए प्रयुक्त किये जाने वाले घोल को तैयार करने में किया जाता है । बढ़िया व कीमती चमड़े की टैनिंग के लिए भी सफेदी की चद्दरों का प्रयोग किया जाता है ।
ii. हिमीभूत पीतक (Frozen Yolk):
सफेदी की हल्की चद्दरें तैयार करते समय बचे हुए पीतक को ऐसे ही या जमाकर अनेक कार्यों के लिए प्रयोग में लाया जाता है । हिमीभूत पीतक के मुख्य उत्पाद सादा पीतक, मीठा पीतक, नमकीन पीतक तथा पीतक पायस हैं । मीठे पीतक तथा नमकीन पीतक में क्रमशः 10% चीनी या नमक मिला दिये जाते हैं ।
ये प्रतिस्कंदक (Anti-Coagulant) की भाँति कार्य करते हैं तथा हिमीभवन के समय पीतक में होने वाले रासायनिक परिवर्तनों को रोकते हैं किन्तु पीतक के भौतिक गुणों को प्रभावित करते हैं ।
हिमीभूत पीतक को सुरक्षित रखने का दूसरा उपाय यह है कि इसमें 6% सोडियम क्लोराइड तथा 1% सोडियम बेंजोएट मिला दिया जाए । 0.04% पेप्सिन से उपचार के पश्चात् हिमीभूत पीतक को 4 माह तक बिना किसी हानि के रखा जा सकता है ।
iii. अंडे का चूर्ण (Egg Powder):
अंडे का चूर्ण बनाने के लिए अंडों को बहते पानी में धोकर, विरंजक चूर्ण 2% के घोल में डाल देते हैं । साफ अंडों को तोड़ने पर प्राप्त तरल को फेंटकर कवच के टुकड़े व चैलेजा अलग करने के लिए छान लेते हैं । शर्करा अलग करने के लिए 0.5% यीस्ट मिलाकर 1.5 घंटे के लिए 36°C पर रख देते हैं ।
इस किण्वित तरल का लगभग 30 मिनट तक 60-61°C पर पश्चरीकरण (Pasteurization) करते हैं फिर ठंडा करके 1 N HCI मिलाते हैं जिससे तरल का pH मान 5.5 हो जाये । इस तरल को एक फुहारे से गुजारकर चूर्ण रूप में तैयार कर लेते हैं ।
तरल (द्रव) के अन्दर जाने का तापमान 160°C तथा बाहर निकलने का तापमान 60°C होता है तथा आटोमाइजर को (Automizer) 20,000 r.p.m की गति पर चलाते हैं । इस प्रकार प्राप्त चूर्ण को 3 घंटे के लिए तापमान 60°C पर निर्वात स्वशुष्क (Vacuum Self-Drier) में रखते हैं ।
इस चूर्ण में 1.2% सोडियम कार्बोनेट मिलाकर सीलबंद डिब्बों में रखा जाता है । इस प्रकार प्राप्त अंडे के चूर्ण में 13-15% नमी, 45% प्रोटीन, लैसीथीन तथा 38-40% वसा होती है ।
अंडे का सूखा चूर्ण अधिक तापमान पर भी लम्बे समय तक रखा जा सकता है । अंडे के चूर्ण का अभिगमन (Transportation) बहुत आसान है तथा इसमें प्रोटीन की वही मात्रा तथा अमीनो अम्ल होते हैं जो कवच के भीतर उपस्थित अंडे में होते हैं । कस्टर्ड, पाई आदि तैयार करने के लिए अंडे के चूर्ण का उपयोग होता है ।
दूसरा समूह पहले Pseudomonas की Species के द्वार फैलती है जबकि White Liquefied होता है तथा ये Fluorescent Green या Greenish Brown रंग का होता है । Yolk Soft होता है और Greenish Black Mass जैसा दिखता है । प्रथम समूह में Fecalodor और दूसरे समूह में Cabbage Water जैसी गंध आती है ।
परन्तु Haines ने Colour Less के बारे में नहीं बताया जबकि Florian और Trusseu ने 1957 में Rot की 10 विभिन्न जातियों के बारे में बताया इनमें Pseudomonas, Alcaligenes, Proteus, Flavobacterium और Paracolo Bactrum ये Micro Organisms Rots के विभिन्न Colour, Fluorescent Green, Yellow, Custard, Black, Red, Rustry Red, Colour Less और Mixed हो सकते है तथा इनके द्वारा दूसरे Genera Enterobacter, Alcaligenes, Escherichia Flavobacterium और Paracolobactrum ये Bacteria अंडे में उत्पन्न हो सकते है परन्तु इनका Penetration नहीं होता है ।
अंडे का सड़ना Fungi के द्वारा भी होता है । Mould वृद्धि कर सकते है । इनकी प्रथम Stage Pin-Spot Molding जो छोटी Compact Colonies होती है जो Shell पर दिखाई देती है । और ये फिर Shell के अन्दर भी दिखाई देती है । ये Spots विभिन्न प्रकार के होते हैं जो Mold के प्रकार पर Depend करते है ।
Penicillium Species द्वारा ये Yellow या Blue या Green Spot Shell के अन्दर दिखाई देते हैं । Sporotrichum की Species Pinkspots के रूप में दिखाई देती है । जब Eggs को उच्च Humidity आर्द्रता के Atmospheres में Store करते हैं तो Superficial Fungal Spoilage होता है ।
ये प्रथम रेशे (Fuzz) या Whikers के रूप में Shell पर होते हैं । बाद में इनमें Luxuriant Growth होती है जब अंडे Freezing Temperature पर Store किए जाते है तब सामान्यता कुछ Molds की Mycelial Growth धीरे-धीरे होती है और
Sporulation के लिए ये कम होती है जबकि दूसरे Molds Asexual Spores उत्पन्न करते है ।
Penicillium, Cladosporium, Mucor Sporotrichum, Thamnidium, Botryris, Alternaruia और दूसरी Genera की Species Eggs को Spoiled करती है ।
Molds के Fungal Rotting इसके Final Stages होती है जो Mold के Mycelium वृद्धि करके Eggs के Pores or Cracks से बाहर आ जाते है । Sporotrichum के द्वारा Red Rot White (Albumin) में Produced होते है तथा Cladosporium के द्वारा Black Colour के Rots उत्पन्न होते हैं ।
कभी-कभी Eggs में खराब गंध (Off-Flavors) उत्पन्न होने लगती है । यह भी एक छोटा सा Spoilage का प्रमाण है । कुछ Bacteria जैसे Achromobacter Perolens, Pseudomonas, Graveolens और P. Mucidolens जिनके कारण गंध उत्पन्न होती है ।
Streptomyces की Growth से अण्डों (Eggs) में सड़ी (Musty) हुई या मटमैली (Earthy) गंध (Flavors) उत्पन्न (Produced) करता है । Molds की वृद्धि से Musty Odours और स्वाद दोनों ही उत्पन्न होते है ।
Eggs में सूखी घास जैसी गंध Enterobactercloacae के कारण होती है तथा Escherichia Coli के Strains के द्वारा Fishy गंध उत्पन्न होती है । इसी प्रकार विभिन्न प्रकार की गंध Eggs विभिन्न Molds और Bacteria के द्वार उत्पन्न होती है जो Eggs में Spoiled होने से उत्पन्न होती है ।