Read this article in Hindi to learn about how to preserve egg.
अंडों के परिरक्षण के लिए निम्न उपाय उपयोगी रहते हैं:
1. अनुर्वर अंडों का उत्पादन (Production of Infertile Eggs):
अधिक ताप पर उर्वर अंडे अनुर्वर अंडों की अपेक्षा शीघ्र खरब होते हैं । अत: यदि अनुर्वर अंडों का उत्पादन किया जाये तो अंडों के गुणवत्ता की काफी सीमा तक रक्षा की जा सकती है । अनुर्वर अंडों की प्राप्ति के लिए प्रजनन काल के अतिरिक्त मुर्गों को मुर्गियों से अलग रखना चाहिए । आम धारणा है कि मुर्गियों द्वारा अंडे दिये जाने के लिए एक मुर्गा का होना आवश्यक है ।
मुर्गियाँ नर की उपस्थिति के बिना भी अंडे दे सकती हैं और इस प्रकार प्राप्त अंडे अनुर्वर होते हैं । किन्तु इस समय उपस्थित परिस्थितियों, विशेषकर गाँवों में ऐसा करना सम्भव नहीं हैं, अत: ऐसी अवस्था में अंडों का विनिषेचन करने का परामर्श दिया जाता है ।
2. विनिषेचन (Defertilization):
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विनिषेचन हेतु अंडों को जीवाणु (Germ) नष्ट करने के लिए 15 मिनट तक 135°F से 145°F ताप के गर्म पानी में रखा जाता है । विनिषेचित अंडा भी अनुर्वर अंडे की ही भाँति होता है तथा इसे बिना खराब हुए काफी समय तक रखा जा सकता है ।
गाँवों में एक साधारण लम्बा व चौड़े मुख वाला टीन का डिब्बा होता है जो ताप को 135°F से 145°F तक रखने में सहायक होता है । विनिषेचित किये जाने वाले अंडों को एक साधारण तारों वाली टोकरी में रखकर उसे 15 मिनट तक गर्म पानी में डुबोते हैं इसके बाद इन्हें अलग हटाकर किसी ठंडे स्थान में भंडारित कर लिया जाता है ।
एक सुव्यवस्थित मुर्गी पालन फार्म में विनिषेचन के लिए विनिषेचन संयंत्र लगाये जाते हैं जिसमें पानी के टैंक होते हैं जिनमें यांत्रिक विलोडक, विद्युत तापन व्यवस्था होती है तथा तार की टोकरी व अंडों के कूलर होते हैं ।
2. अंडों का शीतलन (Egg Cooling):
यह एक स्थापित तथ्य है कि 68°F से ऊँचा तापमान अंडे में भ्रूण के परिवर्धन (Development) के लिए अनुकूल होता है तथा इसी करण यह तेजी से अंडे को खरब करता है । 68°F से कम तापमान अंडे के गुणों व ताजापन बनाये रखने में सहायक होता है ।
ADVERTISEMENTS:
सर्दियों के मौसम में ठंडा करने की किसी विधि की आवश्यकता नहीं होती क्योंकि साधारणतया तापमान 68°F से नीचे ही रहता है किन्तु यदि तापमान 68°F से अधिक हो तब ठंडा करने की किसी विधि की आवश्यकता होती है । सबसे उचित व्यवस्था प्रशीतक (Coolar) है । कुछ ठंडा करने वाली विधियाँ जो मुर्गी पालकों द्वारा प्रयोग में लायी जा सकती हैं नीचे दी गयी हैं ।
3. शीत कक्ष (Cool Room):
अंडे रखे जाने वाले कमरों के सभी दरवाजों व खिड़कियों पर खस की चटाईयाँ लगाकर व उन पर लगातार पानी छिड़कते रहकर उस कमरे में ठंडा रखा जा सकता है । अगर संभव हो तो कमरे में बिजली का पंखा लगाया जा सकता है जो कमरा ठंडा करने में सहायक रहता है ।
4. भूमिगत तहखाना (Underground Cellar):
यदि ठंडे कमरे की व्यवस्था न हो सके तो भूमिगत गड्ढा तैयार किया जा सकता है जो अंडों के उचित प्रशीतन के लिए उचित स्तर का कम तापमान बनाये रखता है ।
5. मिट्टी के घड़े (Earthen Pot):
मिट्टी के एक बड़े घड़े को आधा बालू में दबाकर उस पर पानी छिड़कते रहने से उसमें उचित तापमान बनाये रखा जा सकता है । इसकी तली में नमी से बचने के लिए सूखी घास या भूसा बिछा देना चाहिए । घड़े को हवादार स्थान में रखना चाहिए तथा घड़े का मुख पतले मलमल के टुकड़े से बंद रखना चाहिए जिससे हवा व नमी घड़े में आसानी से प्रवेश कर सकें ।
6. शीत संग्रहण (Cold Storage):
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शीत संग्रहण द्वारा 0°C तथा 85% RH पर अंडों की गुणवत्ता को लगभग नौ माह तक सुरक्षित रखा जा सकता है । भारत में सुव्यवस्थित मुर्गी पालन फार्मों में शीत गृहों का प्रयोग होने लगा है किन्तु ग्रामीण क्षेत्रों में जहाँ प्रशीतन की सुविधा उपलब्ध नहीं है, अंडों को बहुत अधिक दिनों तक नहीं रखा जा सकता है ।
7. अंडों को जमाना (Egg Freezing):
अंडों को गुणवत्ता को सुरक्षित रखने का यह सर्वोत्तम उपाय है । इस विधि में क्षय (ह्रास) होने की प्रक्रिया रुक जाती है तथा जमाये हुए अंडे शीतगृह में अनिश्चित काल के लिए रखे जा सकते हैं । इस विधि में अंडों को कवच सहित शीतगृह में रखा जाता है ।
उचित अवस्था तक ठंडे करने के पश्चात् अंडों को कैंडलिग कक्ष (Candling Room) में रखा जाता है । कैंडिल जांच के पश्चात् अंडों को विच्छेदन टेबल (Breaking Table) पर पहुँचाया जाता है जहाँ इन्हें एक कुंद चाकू की सहायता से तोड़ा जाता है ।
इनके नीचे कटोरे लगे रहते हैं जिनमें अंडे के सभी पदार्थ एकत्र होते रहते हैं । पीतक तथा सफेदी को अलग-अलग या पीतक व सफेदी को एक साथ जमा लिया जाता है जिससे जीवाणुओं की वृद्धि नहीं होती तथा अंडे सुरक्षित हो जाते हैं । जमाये हुए अंडों का प्रयोग केक, पेस्ट्री, आइसक्रीम आदि बनाने के लिए किया जाता है ।
8. अंडों को सुखाना (Egg Drying):
अंडों को सुखाना इन्हें जमाने से अधिक आसान है । सुखाने से अंडों के प्रारम्भिक भार में लगभग एक चौथाई की कमी हो जाती है और इस प्रकार 70 सामान्य आकर के अंडों से 1 किग्रा सूखा अंड उत्पाद बनता है । अंडों के सूखे उत्पाद जैसे- सूखा हुआ सारा अंडा, सूखा पीतक तथा सूखी सफेदी सभी फार्मों में तैयार किये जाते हैं ।
इस विधि में अंडे के गूदे को (पदार्थ को) दाब से एक शुष्कन कोष्ठ (Drying Chamber) से गुजारते हैं तथा एक तुंड (Nozzle) से इसे फुहार के रूप में निकालते हैं । भीतर आने वाली वायु का तापमान अधिक रखा जाता है जबकि बाहर निकलने वाली वायु का तापमान कम रहता है ।
स्प्रे द्वारा सुखाया गया अंडा एक बारीक चूर्ण के रूप में रहता है जबकि भगौनों में सुखाया गया पदार्थ पत्रक या शल्कों (Scales) के रूप में रहता है जिसे कूट कर चूर्ण बनाया जाता है ।
9. अंडों को चूने से बंद करना (Lime Sealing of Egg):
अंडों को चूने से बंद कर देने से उनकी नमी नहीं उड़ती तथा कवच के छिद्रों द्वारा कार्बन डाइ ऑक्साइड भी नहीं निकलती । चूने से बंद करने के लिए अंडों को चूने के घोल में 18 घंटे तक डुबो कर रखते हैं ।
10. अंडों का तेल विलेपन (Oil Coating of Egg):
सामान्य मुर्गी पालकों के लिए अंडों की गुणवत्ता बनाये रखने हेतु उन पर तेल का लेप करना सबसे सुलभ व सस्ता उपाय है । इस कार्य के लिए कार्नेशन तेल (Carnation Oil), पैराफिन से निकाला एक सफेद खनिज तेल तथा नारियल का तेल प्रयोग में लाया जाता है ।
मैसूर के सेन्ट्रल फूट टेक्नोलॉजिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट (Central Food Technological Research Institute) ने अंडों पर लेप के लिए संपूर्ण विधि खोजी है जिसमें अंडे पर एक पेट्रोलियम उत्पाद पर आधारित तेल का लेप किया जाता है जिसमें कुछ फफूंदरोधी तथा जीवाणुरोधी पदार्थ मिलाये जाते हैं ।
अंडों को एक तार की जाली वाली टोकरी में रखकर लेप करने वाले तेल से भरे बर्तन में 5 से 10 सेकण्ड के लिए डुबोते हैं । इसके पश्चात अंडों से भरी टोकरी को बाहर निकाल कर लगभग एक घंटे के लिए हैंगर से टाँग देते हैं ।
इस अवधि में अंडों को अच्छी तरह सुखाने के लिए पंखे का प्रयोग किया जाता है । सुखाये हुए अंडे भंडारण के लिए तैयार हो जाते है । बर्तन के लेप वाले तेल को ठीक प्रकार से छान कर व जीवाणु रहित करके कई बार प्रयोग किया जा सकता है ।
तेल के लेप वाले अंडे सामान्य कमरे के तापमान (25-27°C) पर 30 दिन तक रखे जा सकते हैं तथा 13°C पर इन्हें 80 दिन तक रखा जा सकता है । मुर्गी द्वारा अंडे दिये जाने के बाद जितनी जल्दी हो सके इन पर तेल का लेप कर देना चाहिए । यह तेल रंगहीन, स्वादहीन तथा गंधहीन होना चाहिए ।
11. जल काचित विधि (Water-Glazed Method):
अंडों की गुणवत्ता को सुरक्षित रखने का यह एक अच्छा उपाय है । इस कार्य के लिए व्यापारिक जल विलेय काँच (सोडियम सीलिकेट) को उबालकर ठंडे किये गये पानी में एक निश्चित अनुपात के अनुसार मिलाया जाता है । इन्हें एक मिट्टी के बर्तन में रखकर लकड़ी के टुकड़े से आपस में ठीक प्रकार मिलाते हैं । अंडों को इस घोल में डुबोकर बर्तन को ढक कर ठंडे स्थान पर रख देते हैं ।