Read this article in Hindi to learn about:- 1. मछली का रासायनिक संगठन (Chemical Composition of Fish) 2. मछलियों का उपाभोग (Consumption of Fishes) 3. सड़ने के कारण (Causes of Spoilage).
मछली का रासायनिक संगठन (Chemical Composition of Fish):
मछली का रासायनिक संगठन निम्न प्रकार से होता है:
i. प्रोटीन (Protein):
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प्रोटीन निम्नलिखित रूपों में पाया जाता है:
(a) मायोसीन (Myocine), मायोजेन (Myogen), मायो एल्युमिन्स (Myo Albumines) एवं ग्लोब्युलिन (Gluboulins) इसकी समस्त अन्त: कोशिकीय पेशी तंतुओ में (Intercellular Muscles Fibre) ।
(b) कोलेजन (Collagens) एवं Connective Tissue, Fibres में ।
(c) फास्फो प्रोटीन एवं न्युक्लियो प्रोटीन्स (Phosphoprotein एवं Nucleoprotein) सरल प्रोटीन जल (Simple Protein Water) में विलेय एल्ब्युमिन (Albumin) एवं लवण (Salts) में विलेय, अम्ल (Acid) एवं एल्केलीज (Alkalies) ग्लोब्युलिन्स (Globulins) ।
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प्रोटीन (Protein) की पाचकता (Digestion) की मात्रा भिन्न-भिन्न जातियों में अलग-अलग होती है । प्रोटीन (Protein) में 2-3% नाइट्रोजन (Nitrogen) पेशियों (Muscles) के भार का होती है । माँस (Flesh) के भार का 50 से 60% Skeletal Muscles का होता है ।
प्रोटीन (Protein) की पेशियों (Muscles) में उपस्थिति के आधार पर तीन समूहों में बाँटा गया है:
(1) ऐल्ब्युमिन (Albumin)- 16 से 22% Sarcoplasm व Intestinal Liquid.
(2) प्रोटीन (Protein)- 75% संकुचन शील तत्व में उपस्थित होती है ।
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(3) स्ट्रोमा (Stroma)- 3% मायोकोमेंटा (Myocomata) कोशिका झिल्ली ।
Cell Membrane एवं संकुचन शील ऊतकों (Tissues) में उपस्थित पेशी प्रोटीन (Muscles Protein) के तीन प्रकार पूर्ण रूप से शुद्ध तो नहीं वरन मिश्रित या आधुनिक तकनीकों (Technique) इलेक्ट्रोफोरोसिस (Electrophoresis) एवं अल्ट्रा सेन्ट्री फ्यूगेशन (Ultra Centrifugation) द्वार एक Number Revealed करता है ।
Albumin (ऐल्ब्युमिन) 6 Components को प्रदर्शित करता है । एक प्रोटीन (Protein) जो संकुचनशील तत्वों (Myocene) मायोसीन, ऐक्टिन (Actin), एक्टिनो माइसिन (Actinomycine) Fractions आदि ।
मायोसीन (Myocene) Extractable by Dialysis या Ultra Centrifugation जो ATP की उपस्थिति में होता है । बैन्ड्स (Bands) मायोसीन तंतुओं (Myocene Fibres) से निर्मित होते है ।
मायोसिन (Myocene) को पेशियों के Dehydration से एक कार्बनिक विलयन (Organic Solution) एवं Subsequent Purification (KCI) के साथ अवक्षेपण (Precipitation) जिसका pH 4.3 एवं Ammonium Sulphate और ऐथेनॉल (Ethanol) के Fraction के द्वारा होता है ।
मायोसिन (Myocene), एक्टिन (Actin), एक्टोमायोसिन (Actomyocene) एवं ट्रोपोमायोसिन (Tropomyocene) अग्रलिखित बिंदुओं को उल्लेखित किया गया है ।
प्लैक्टॉन खाने वाली मछलियों में (Planktophagus Fishes) उच्च प्रोटीन (High Protein) की मात्रा प्राप्त कर लेने के बाद अन्य Feeding Habits भी होती है । मछली (Fish) में प्रोटीन (Protein) की मात्रा उच्च होती है एवं उसके बाद Fats Fisher भी होती है ।
Cultivated Fish की तुलना में Wild Fish एक समान जाति की होती है और प्रोटीन की मात्रा भी लगभग समान होती है । प्रोटीन (Protein) के अलावा भी बहुत सारे अमीनो प्रोटीन (Amino Protein) नाइट्रोजीनस (Nitrogenous) अपघटक भी होते हैं ।
ii. वसा (Fats):
वसा (Fats) की उपस्थिति के आधार पर मछलियों (Fishes) को तैलीय (Oily) या Fats (8%) से अधिक वसा की मात्रा, औसत वसा (जिसमें वसा (Fats) की मात्रा 1% से 8% एवं बीन (Bean) जिसमें वसा (Fats) की मात्रा 1% से कम) वसा सभी ऊतकों (Tissues) में बटा रहता है एवं कुछ में यह Extraordinary मात्रा में रहता है जो सामान्यतः कोशीय क्रियाओं के लिए आवश्यक होता है ।
कुछ वसा (Fats) को Depot Fats भी कहते है । Depot Fats पेशीयों (Muscles) सिर (Head) के ऊतकों (Tissues), Roe, Milt, Liver, Skeletal Tissues उपक्यूटिनस (Subcutaneous) संयोजी ऊतक (Connective Tissues) एवं विसरा (Pyloric Visra) एवं Mesentries तथा Fish Liver में मुख्य रूप से बड़ी मात्रा में संग्रहित होता है ।
उसके अलावा भी मस्तिष्क में भी उच्च सान्द्रता में वसा होती है एवं हृदय (Heart) में कम मात्रा में लीवर (Liver) एवं किडनी (Kidney) में समान श्रेणी में होता है । मछली के माँस (Flesh) में वसा (Fats) की मात्रा उसकी गुणवत्ता (Quality) तथा मूल्य पर निर्भर करती है । विभिन्नताएं (Variations) कुछ Parameters को ध्यान में रखकर होती है ।
iii. मछली का तेल (Oil of Fish):
मछली में अधिकतर ट्राइग्लेसिराइड (Triglyceride) एस्टर (Easter) में वसीय अम्ल (Fattyacids) छोटे मुक्त वसीय अम्लों (Fattyacids) कुछ विटामिन (Vitamins), स्टीरॉइड्स (Steroids), हाइड्रोकार्बन (Hydrocarbon) फास्फोलिपिडस (Phospholipids) एवं रंगीन पदार्थ के रूप में होता है ।
समुद्रीय (Marine) एवं ताजे पानी (Fresh Water) की मछलियों (Fishes) में तेल (Oil) विभिन्न वसीय अम्लों (Fattyacids) की संबंधित मात्रा अनुसार होता है । समुद्रीय मछलियों (Marine Fishes) के तेल (Oil) में बहुत अधिक मात्रा में C18, C20, एवं C22 अम्लीय (Acidic) पाये जाते हैं ।
ताजे जल (Fresh Water) की Fish Oil में अधिक मात्रा में C16 व C18 अम्ल (Acid) परन्तु कम मात्रा में C20 एवं C22 अम्ल (Acid) पाये जाते हैं । सामान्यत: मछली का तेल (Fish Oil) में वनस्पति तेल (Vegetable Oil) में वसीय अम्ल (Wider Variety) का उच्च संतृप्त समूह (Saturated Group) होता है ।
इस तथ्य को सर्वप्रथम स्वान 1952 (Swain 1952) ने किया उन्होंने बताया कि जो सामान्य वसीय अम्ल (Fatty Acids) में 6 Double Bonds जो कि असंतृप्ता की कोटि को बताता है जो कि वनस्पति तेल (Vegetable Oil) की तुलना में उच्च होती है ।
iv. मिनरल (Minerals):
इसकी मात्रा मछली का माँस (Fish Flesh) में 1-2% होते है । Bulk, Fish Bones में सांद्र रहता है । कुछ तत्व बोरान (Boran), फ्लोरीन (Flourine), ब्रोमीन (Bromine), इथीयम (Itheum), स्ट्रान्शियम (Stronssium) आदि ।
बड़े सांद्रता (Concentration) में Marine Fish की तुलना में Fresh Fish में पाये जाते हैं । मर्करी (Mercury) उच्च मात्रा में तब उपस्थित रहता है जब मछली जल के बाहरी तरफ होती है ।
कुछ Minerals Ca (Calcium), Mg (Magnessium), K (Potassium), Na (Sodium), P (Phosphorus), Fe (Ferrous), S (Sulphur), CI (Chloride), Cu (Copper), Mn (Manganese), I (Iodine), Br (Bromine) और अन्य Sr (Stronssium), Zn (Zinc), Ba (Barium),. Al (Aluminium), Pb (lead), Mo (Moly Beded), Co (Carbon Monoxide), Ni (Nickle), Hg (Mercury), Cd (Cadmium) आदि उपस्थित रहती है ।
Phosphorous Fish में फास्फोप्रोटीन (Phosphoprotein), फास्फोलिपिड (Phospholipids) जटिल फास्फोरिक एसिड (Complex Phosphoric Acid), विटामिन Vitamin B1 और B2 ग्लिसरी फास्फेटिडस (Glycerophosphatids) एवं एडिनोसीन पाली फास्फेटस (Adinocene Poly Phosphate) जब मछली को Freezing किया जाता हे । तब Adenocene Poly Phosphatase सक्रिय होकर पेशी (Muscles) को तोड़ने में सहायक होता है एवं यह मछली के परिरक्षण (Preservation) के लिए एक महत्वपूर्ण विषय है ।
v. विटामिन (Vitamin):
मछली (Fish) में विटामिन (Vitamin) A, B व D सभी आवश्यक विटामिन (Vitamins) जो हमारे भोजन में होते हैं, वे सभी Fish में होते हैं । इसके Liver में B12 एवं B Complex A और D बहुत अधिक मात्रा में पाया जाता है । विटामिन (Vitamin) B Complex में थाएमीन (Thiamine), राइबीफ्लेविन (Riboflavin) और निकोटेनिक (Nicotainic Acid) आदि का वितरण पूरे शरीर में समान नहीं रहता ।
विटामिन A और D शरीर के अंदरूनी अंगों (Internal Organ) में होता है । विटामिन B लीवर (Liver) आँखों (Eyes), त्वचा (Skin), प्लीहा (Spleen), पायलोरिक सीका (Pyloric Caeca) और स्टोमक (Stomach) में होता है ।
विटामिन (Vitamins) की मात्रा अलग-अलग जातियों की मछलियों (Fishes) में अलग-अलग होती है । ईल (Eels) और प्रॉन (Prawn) आदि में विटामिन A अधिक होता है । Mackerel में विटामिन D अधिक पाया जाता है । ये विटामिन आयु, मौसम एवं Fishing Region पर निर्भर करते हैं ।
विटामिन A, D और E एवं Fat (वसा) में घुलनशील एवं लीवर में उपस्थित होते है । विटामिन दो रूपों A1 और A2 समूह में उपस्थित होते है । A1 Marine Fishes और Catadromous Fishes में तथा A2 स्वच्छ जल (Fresh Water) Fishers में तथा Anadromous Fishes में पाया जाता है ।
विटामीन्स (Vitamins) का B समूह (Group) जल में घुलनशील होता है जिनमें थाएमीन (Thiamine) B1 राइबोफ्लोविन (Riboflavin) B6 और B12 अन्य जल में घुलनशील विटामिन नियोसिन (Neocene), पेन्टोयोनिक (Pentoyonic Acid) Folic Acid, कोलाइन (Colline) एवं एस्कर्बिक अम्ल (Ascrobic Acid Vitamin C) लाल पेशियों (Red Muscles) में विटामिन Vitamin B1, B2, B12 एवं पेन्टोथेनिक (Pentothanic) Acids श्वेत पेशियों (White Muscles) में बड़ी मात्रा में Folic Acid उसके लाल पेशियों (Red Muscles) में होती है ।
भारत में समुद्री मछलियों (Marine Fishes) में विटामिन जैसे B1, B2 एवं D बड़ी मात्रा में पाया जाता है । निर्यासिन का एक बड़ा भाग भारतीय Shad Fomfret एवं Clarias Magur (जो अलवणीय Fish) आदि में होता है । कोलाइन की औषधीय (Medicinal) उपयोगिता Treating Hunger, Redema Inunderfed Patient में बड़ी मात्रा में बंगाल में किया जाता है ।
मछलियों का उपाभोग (Consumption of Fishes):
वर्तमान समय को देखते हुए मनुष्य के लिए भोज्य पदार्थ जुटाने की समस्या ऐसी है कि विभिन्न परिस्थितियों में ऐसी उपलब्धि प्राप्त हुई है कि भोजन किसी न किसी रूप में प्राप्त हो सके, परन्तु इसे सर्वप्रथम कृषि के द्वारा हल किया जाता है ।
बाद में दूसरे भोज्य पदार्थों की तरफ देखा जाता है । कृषि के बाद भोजन का दूसरा उपाय मछली (Fishes) के रूप में भोजन प्राप्त करना है और मछली (Fishes) के अधिक उत्पादन (Production) से भोजन की समस्या का समाधान हो सकता है ।
विश्व के कुछ देशों में ऐसे कारण है जहाँ मछलियों का परिरक्षण (Preservation) नहीं होता है परन्तु मछली को भोजन के रूप में उपयोग में लाते हैं । इसलिए Fish का परिरक्षण (Preservation) होता है ताकि जहाँ पर आवश्यकता हो Fish को वहाँ पहुँचा सके । इसमें Fish तथा Fish के Component बने रहते हैं परन्तु Preserved Fish कुछ समय तक ही Fresh रहती है नहीं तो Spoilage भी हो सकती है ।
मछली सड़ने के कारण (Causes of Fish Spoilage):
जब मछली (Fish) का सड़न (Spoilage) होता है । उस समय रासायनिक क्रिया (Chemical Action) वाली प्रक्रिया (Process) सबसे आखिर में जाती है । चूँकि मछली (Fish) में तेल (Oil) पाया जाता है जो कि ऑक्सीडाइज्ड (Oxidized) होकर वायुमण्डलीय ऑक्सीजन (Atmospheric O2) का उपयोग (Use) करके Discolouration की Process को अपनाता है ।
इसमें Digestive Enzyme के कारण मछली (Fish) बहुत अधिक मात्रा में खराब हो जाती है । जब मछली (Fish) की मृत्यु (Death) हो जाती है तो उस समय ये एन्जाइम (Enzyme) Active हो जाते हैं जिसके कारण मछली (Fish Flesh) में Autolysis होने लगता है और अधिक मात्रा में Fish Spoilage विभिन्न Action के द्वारा होता है ।
जो निम्नलिखित है:
(1) बैक्टीरियल क्रिया (Bacterial Action):
बैक्टीरिया (Bacteria) मछली के शरीर (Fish Body) में गिल (Gill) और Gut में पाए जाते हैं । बैक्टीरिया (Bacteria) की वृद्धि (Growth) नमी व तापमान के कारण प्रभावित होती है । इनके प्रभाव से बैक्टीरिया बढ़ते है जिससे Fish Spoilage हो जाती है ।
(2) नमी (Moisture):
अधिक नमी होने के कारण बैक्टीरिया (Bacteria) की वृद्धि (Growth) कम हो जाती है । इसलिए Fish Spoilage को कम करने के लिए मछलियों को नमी से दूर रखना चाहिए । जिससे Bacterial Growth रुक जाए । नमी एक Limiting Factor है ।
(3) तापमान (Temperature):
यह बैक्टीरियल वृद्धि (Bacterial Growth) का दूसरा Factor है । बैक्टीरियल वृद्धि ताप (Bacterial Growth) बढ़ने के साथ बढ़ता है तथा कम होने पर वृद्धि कम होती है । अत: तापमान (Temperature) को कम करके बैक्टीरियल वृद्धि (Bacterial Growth) को रोका जा सकता है ।
(4) एन्जाइम क्रिया (Enzymatic Action):
मछलियों के Spoilage कुछ पाचन वाले एन्जाइम (Digestive Enzyme) के कारण भी होता है । कुछ पाचन (Digestive Enzyme) एन्जाइम मछली की मृत्यु (Death) के बाद भी क्रियाशील (Active) होते हैं जो Flesh को Autolysis (आटोलाइसिस) के द्वारा Spoil करते है ।
(5) रासायनिक क्रिया (Chemical Action):
रासायनिक क्रिया (Chemical Action) Spoilage में कम प्रभाव करती है । यह सिर्फ Fatty Fish में अधिक होता है । मछली का तेल (Oil) वायुमंडलीय ऑक्सीजन (Atmospheric Oxygen) के द्वार ऑक्सीडाइज (Oxidized) हो जाता है जिससे मछली का डीकलरेशन (Decolouration) हो जाता है ।
दोनों कारक में बैक्टीरिया (Bacteria) Species, Pseudomonas, Achromobacter, Flavoba-Cterium, Micrococcus, Bacillus, Proteus Escherichia, Serratia और Sarcina आदि है जो Fish के Flesh व दूसरे Organs को Spoiled करती है ।
Pseudomonas Fluorescence Red or Pink Colour Flesh में Produced करते हैं तथा कुछ Species Gills पर प्रभाव डालती है । Sarcina, Micrococcus और Bacillus आदि Species Yellow to Greenish Yellow Colour Flesh में उत्पन्न Produced करते हैं तथा कभी-कभी Patches के रूप Flesh पर तथा Skin पर सफेद (White) Spot जाते है ।
रासायनिक क्रिया के द्वारा प्रोटीन (Protein), नाइट्रोजीनस हाइड्रोजन सल्फेट इन्दोल (Nitrogenous Hydrogen Sulphate Indol) बना देता है । Spoilage के समय एन्जाइम्स और बैक्टीरिया (Enzymes and Bacteria) मछली फ्लेश प्रोटीन (Fish Flesh Protein), आयरन (Iron) प्रोटीनियस नाइट्रोजिनस यौगिक (Proteinous Nitrogenous Compound) पर Attack करते है ।
इन Substance में Spoil Substance जैसे NH3, CO2, Fatty Acid में बदल देते हैं । जब मछली अधिक सड़ जाती है तो उमसे इन्डोल हाइड्रोकेजन सल्फेट (Indole Hydrogen Sulphate) इत्यादि बन जाते हैं जिससे सड़ी गंध आती है ।