Read this article in Hindi to learn about how to preserve fish.
मछलियों को परिरक्षित न किया जाये तो वे शीघ्र ही उपघटित (Decompose) होकर नष्ट होने लगती है । मछली के माँस में प्रोटीन, वसा, खनिज, विटामिन, अमीनो अम्ल, आयोडीन, फास्फोरस व काफी मात्रा में पानी होता है ।
मछलियों में कई प्रकार के जीवाणु होते हैं जो मछली के मरते ही उसके अवयवों में क्रिया शुरू कर देते हैं इसलिए इस उद्योग में मछली का परिरक्षण एक आवश्यक प्रक्रिया है ।
इसका मुख्य सिद्धान्त (Main Principles) है । Sanitation and Clearing क्योंकि इसमें बहुत से बैक्टीरिया (Bacteria) निकल जाते हैं । मछली पकड़ने के एक दम बाद में साफ ठंडे पानी से धोना चाहिए जिससे बैक्टीरिया (Bacteria) स्लाइम रक्त (Slime Blood) आदि निकल जाए ।
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उसके बाद आहार नाल (Alimentary Canal) को निकाल कर व दूसरे अंगों (Organ) को साफ कर लेना चाहिए । उक्त क्रिया के द्वार Gut में एन्जाइम्स और बैक्टीरिया (Enzymes and Bacteria) को चेक करना चाहिए । फिर मछली को स्टोर (Store) किया जाता है ।
Sanitary Condition Fish के अन्तर्गत Tropical देशों में Warm Climate Bacterial Growth की बढ़ा देते हैं क्योंकि बैक्टीरिया (Bacteria) में बहु विभाजन (Multiplication) होने लगता है । यदि तापमान (Temperature) कम रखा जाए तो वृद्धि कम तथा Fish Spoilage को रोका जा सकता है ।
इस Spoilage को रोकने के लिए निम्नलिखित विधियाँ अपनाई जाती है तथा साथ में मछली का परिरक्षण भी किया जाता है:
(1) प्रशीतन (Refrigeration):
प्रशीतन का आधारभूत उद्देश्य मछली को 0°C पर संरक्षित रखना है क्योंकि इससे मात्र कुछ समय के लिए इसके सड़ने की प्रक्रिया रूक जाती है । इस कार्य के लिए मछली व बर्फ की एक के बाद एक तह लगाकर बंद बर्तन में रखते हैं तथा तापमान 0°C पर रखा जाता है । बड़ी मछलियों की आहारनाल निकाल कर वहाँ बर्फ भर देते हैं ।
(2) गहन हिमीकरण (Deep-Freezing):
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पहले मछलियों को भली-भाँति धोकर, लम्बी अवधि के लिए -18°C पर रखते हैं । अच्छी अवस्था वाली ताजी मछली का ही गहन हिमीकरण किया जाता है । हिमीकरण के पहले मछली के सिर वाले भाग को काट दिया जाता है । आहार-नली निकालकर मछली को भली-भाँति धो लेते हैं । इस विधि द्वारा मछली को लम्बे समय के लिए बिना क्षय हुए रखा जा सकता है ।
(3) हिमीभूत कर सुखाना (Freeze Drying):
यह लम्बी अवधि वाली महंगी प्रक्रिया है अत: केवल अच्छी श्रेणी की मछलियाँ ही इस विधि द्वारा परिरक्षित की जाती है । पहले मछलियों को हिमीभूत करके फिर उनके ऊर्ध्वपातन (Sublimation) द्वारा सूखने देते हैं ।
इस विधि में बर्फ पिघले बिना ही वाष्प में बदल जाती है । इस तकनीक द्वारा मछली के रंग एवं पौष्टिकता में कोई अन्तर नहीं आता । इसके बाद मछली को फ्रीजिंग चैम्बर में रखकर -20°C तक हिमीभूत कर लेते हैं जिसके बाद मछली को ट्रे में रखकर वायुविहीन कक्ष में तापक पट्टिका (Heating Plate) पर रखकर सुखाते हैं । तपा पट्टिका (Hot Plate) पर सूखने के पश्चात् मछलियों को वातानुकूलित कक्षा में पैक करते हैं ।
(4) धूप में सुखाना (Sun Drying):
उष्णकटिबंधीय देशों जैसे भारत, चीन, जापान आदि में जहाँ सूर्य की किरणें बहुत तेज होती हैं वहाँ छोटी मछलियों को धूप में ही सुखाया जाता है । मछलियों को चटाई इत्यादि पर 3 से 5 दिन तक सुखाने के लिए रखते हैं तथा बीच-बीच में इन्हें पलटते रहते हैं ।
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बड़ी मछलियों को असानी से सुखाने के लिए छोटे-छोटे टुकड़ों में काट लेते हैं । लम्बे समय तक सुरक्षित रखने के लिए यह विधि उपयोगी नहीं है ।
(5) सूर्य उपचार (Sun Curing):
धूप में साधारण तरीके से सुखाने के स्थान पर इस विधि में मछली को अधर भाग से काटकर अंतरंग अंग तथा गिल निकाल देये जाते हैं । इसके बाद धोकर 1:3 से 1:8 (नमक:मछली) के अनुपात में नमक लगाते हैं । नमक का अनुपात मछली के आकार पर भी निर्भर करता है ।
(6) मोना उपचार (Mona Curing):
यह विधि भी सूर्य उपचार की भाँति ही है किन्तु इसमें आहारनाल व गिल को मछली काटकर निकालने के स्थान पर मुख की तरफ से ही निकाल दिया जाता है । इसके बाद आहारनाल विहीन मछलियों को धोकर, नमक लगाकर सुखा लेते हैं ।
(7) नम उपचार (Wet Curing):
यह विधि सूर्य उपचार की ही भाँति है सिर्फ मछली पैक करने में अंतर हैं यह विधि अधिक वसा वाली मछलियों के लिए उपयोग में लायी जाती है ।
(8) लवणन (Salting):
सोडियम क्लोराइड की सहायता से परासरण (Osmosis) द्वारा मछली के आंशिक निर्जलीकरण करने को लवणन कहते हैं । यदि लवणन की प्रक्रिया तीव्र हो तो इस प्रक्रिया में सब रोगाणु मर जाते हैं तथा गलने कई प्रक्रिया (Diastasis) रुक जाती है । मछली का सिर काट के आहारनाल निकालने के पश्चात् मछली को भली-भाँति धोकर अति शीघ्र लवणन कर लेते हैं ।
यह प्रक्रिया कई प्रकार से की जाती है:
(i) सूखी विधि (मछली व नमक की एक के बाद एक परत लगाकर) ।
(ii) लवण जल -16% नमक (हल्का): 25% नमक (सांद्र) ।
(iii) मछली को नमक लगाने के बाद लवणजल में रखते हैं ।
(iv) ठंडी विधि में मछली के ऊपर बर्फ व नमक फैला देते हैं हल्के व ठंडे लवणन की प्रक्रिया ठंडे कमरे (0 से 2°C) में करनी चाहिए जबकि सांद्र लवणन की प्रक्रिया सामान्य तापमान पर की जा सकती है ।
(9) धूमन (Smoking):
लकड़ी के धुएं से मछली के परिरक्षण में मछली का धूमन (Smoking) कहते हैं । इस विधि द्वार स्वादिष्ट एवं विशिष्ट मछली तैयार की जाती है । धुएं का तापमान एवं प्रवाह नियंत्रित रखना चाहिए । धूमन गर्म या ठंडा हो सकता है । ठंडे धूमन के लिए मछली में नमक लगाकर उसे सुखा कर बिना धुएं की आग पर (38°C) रखते हैं । इसके पश्चात 28°C पर धुआं दिया जाता है ।
गर्म धूमन के लिए ताजी मछली को 130°C पर तेज आग पर रखते हैं उसके बाद 40°C पर धुआं दिया जाता है । बड़े पैमाने पर औद्योगिक धूमन के लिए बड़े-बड़े गलियारे होते हैं जिनमें स्मोकिंग का यंत्र लगा होता है तथा धुएं के प्रवाह का उचित प्रबंध होता है ।
द्वितीय विश्व युद्ध के समय यह विधि मछली के परिरक्षण के लिए उपयोग में लायी जाती थी किन्तु आधुनिक युग के मत्स्य उद्योग में इसके प्रयोग की सलाह नहीं दी जाती ।
(10) डिब्बाबंदी (Canning):
मछली को डिब्बाबंद करने की विधि काफी लम्बी, जटिल व समुन्नत है । इस विधि में मछली का सिर व अंतरंग निकाल कर मछली को लवणजल में रखते, धोते व सुखाते हैं तथा पानी निकलने के लिए 2 से 4 मिनट तक जैतून के तेल में पकते हैं ।
इस मछली को जैतून के तेल भरे डिब्बों में बद करके सील कर बाजार में भेज देते हैं । यह काफी महंगी विधि है तथा हमारे देश में सामान्यतः प्रयोग में नहीं लायी जाती । अमेरिका, फ्रांस, जापान व स्पेन में परिरक्षण की यह विधि बहुतायत में प्रयुक्त की जाती है ।