Read this article in Hindi to learn about:- 1. मुर्गीपालन के मांस का प्रारम्भ (Introduction to Poultry Meat) 2. मुर्गीपालन के मांस का संघटन (Composition of Poultry Meat) 3. मांस के लिए संसाधन (Processing of Chicken for Meat) 4. मुर्गे के माँस का सड़ना (Spoilage of Poultry Meat) 5. माँस के उत्पाद (Meat Products).

Contents:

  1. मुर्गीपालन के मांस का प्रारम्भ (Introduction to Poultry Meat)
  2. मुर्गीपालन के मांस का संघटन (Composition of Poultry Meat)
  3. मांस के लिए संसाधन (Processing of Chicken for Meat)
  4. मुर्गे के माँस का सड़ना (Spoilage of Poultry Meat)
  5. माँस के उत्पाद (Meat Products)


1. मुर्गीपालन के मांस का प्रारम्भ (Introduction to Poultry Meat):

हमारे देश में माँस (Meat) के लिए मुर्गे (Chicken) का प्रचलन बढ़ता जा रहा है । माँस (Meat) प्राप्ति के लिए मुर्गीपालन (Poultry) अलग व्यवसाय के रूप में या फिर व्यापारिक अंडों (Eggs) के उत्पादन के साथ ही तेजी से बढ़ता जा रहा है ।

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माँस के लिए प्रयोग में लाये जाने वाले मुर्गे के पैरों तथा छाती पर अच्छा माँस होना चाहिए तेजी से वृद्धि करने वाले हों तथा इनकी क्षमता खाये गए भोजन की तुलना में शारीरिक भार में अधिक वृद्धि करने वाली होनी चाहिए । परिपक्व (Mature) मुर्गे का भार इसकी जाति तथा भोजन के अनुसार 1 किलो ग्राम से 5 किग्रा तक हो सकता है ।

Male मुर्गे में Legs का भार अधिक होता है । मनुष्यों द्वारा प्रयोग किया जाने वाला मुर्गे का माँस मुलायम, स्वच्छ तथा स्वस्थ होना चाहिए । इसमें दूसरे Meat की अपेक्षा वसा की मात्रा कम होती है ।

माँस की कोमलता तथा विशिष्ट गन्ध (Smell) व स्वाद (Test) पक्षी के Sex तथा आयु पर निर्भर करती है । 85 दिन की आयु तक के मुर्गे का माँस बहुत कोमल (Soft) होता है जिसे भूनकर पकाया जा सकता है । Mature Female Chicken का माँस कड़ा होता है तथा खाने योग्य नहीं होता है ।


2. मुर्गीपालन के मांस का संघटन (Composition of Poultry Meat):

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खाने के लिए मुर्गे के माँस का प्रयोग Protein, Vitamin B, Phosphorus तथा Iron का अच्छा स्त्रोत है तथा पकाते समय इन सब तत्वों विशेषकर Vitamin B का ह्रास बहुत कम होता है ।

i. नाइट्रोजनी पदार्थ (Nitrogenous Substances):

चिकन के माँसपेशियों में External Cell Protein होती है जिनमें एक्टीनोमाइसिन (Actinomycin), ग्लोब्यूलिन X (Globulin), मायोजन (Myozene) तथा मायोग्लोबिन (Myoglobulin) सम्मिलित है ।

इसके साथ ही मुर्गे की पेशियों में दूसरे Nitrogenous पदार्थ जैसे- क्रिएटिन, कार्नोसीन एनसीरीन, एडीनोसीन, ट्राइफास्फेट, यूरिया, अमोनिया, यूरिक अम्ल तथा Collagens भी पाये जाते हैं ।

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अस्थियाँ (Bones) Calcium, Phosphate तथा Collagens की बनी होती है । पकाते समय त्वचा की कोलेजन जिलेटिन में बदल जाती है । मुर्गे की माँस के Protein सुपाच्च होते हैं इनमें आवश्यक अमीनों अम्ल भी पाए जाते हैं ।

ii. वसा (Fat):

वसा पदार्थों की उपस्थिति व मात्रा पक्षी की आयु लिंग, भोजन के साथ-साथ ऊतक पर भी निर्भर करती है । Abdomen के Tissues में 80% Fats होते है । जबकि छाती के Tissues में Fats का प्रतिशत बहुत कम (0.3%) होता है ।

यह Fat “Neutra Fats” कहलाता है या फिर Phospholipids हो सकते हैं जिनमें Tetraenoic Pentaenoic or Hexaenoic Acid होते हैं । Fats की Acidity ही उसकी Fresh होने की कसौटी है । अम्लीयता Acidity का बढ़ना मुर्गे के माँस के खराब होने का सूचक है ।

iii. एन्जाइम (Enzyme):

Chicken के माँस की वसा तथा पेशियाँ (Fats and Muscles) में अनेक (Enzyme) जैसे Lipase, Catalaye, Oxidase, Peroxidase, Reductase, Amylase, Invertase, Glycogenase, Maltase, Protenase तथा एण्टी ट्रिपसिन (Antitrypsin) पाये जाते हैं ।

iv. खनिज (Minerals):

मुर्गे की माँस (Muscles) में अनेक खनिज जैसे कैल्सियम, पोटेशियम, सोडियम, आयरन, फोस्फोरस, मैग्निशियम, क्लोरीन तथा सल्फर आदि पाए जाते हैं । Phosphorous Iron तत्व अच्छी मात्रा में पाये जाते हैं । मुर्गे की पेशियों में सूक्ष्म मात्रिक तत्व Copper, Iodine तथा Manganese भी पाए जाते हैं ।

v. विटामिन (Vitamin):

मुर्गे का माँस Riboflavin तथा निकोटिनिक अम्ल का अच्छा स्त्रोत है । किन्तु इनकी मात्रा पक्षी को दिए गए पोषण पर निर्भर करती है । Liver में Vitamin A तथा D पाया जाता है । मुर्गे की गाढ़े रंग वाली Muscles थायेमीन तथा Riboflavin का अच्छा स्त्रोत है ।


3. मांस के लिए संसाधन (Processing of Chicken for Meat):

माँस प्राप्ति के लिए मुर्गे को मारना, सफाई करना, आंत बाहर निकालना (Evisceration) आदि मुर्गे के प्रक्रमण के अन्तर्गत आते हैं । कुछ उपभोक्ता जीवित पक्षी खरीदना पसंद करते हैं तथा कुछ साफ किया गया खरीदना पसंद करते हैं ।

i. सफाई (Dressing):

मारने से पहले पक्षी को कमरे में रखकर उचित मात्रा में भोजन व पानी देना चाहिए । कटने से 3 घंटे पूर्व भोजन हटा लेना चाहिए किन्तु वहाँ पानी पूरे समय रहना चाहिए । पूर्ण रूप से रूधिर निकलने के लिए कैरोटिड धमनियाँ काटी जाती हैं क्योंकि यदि पूरा रुधिर नहीं निकलता तो गाढ़े रंग का अच्छा न लगने वाला उत्पादन मिलता है ।

पक्षी के एक विशेष तापमान पर 3-5 मिनट तक पानी में डुबोकर इसके पर निकाले जाते हैं जिसे खौलते पानी से जलाना (Scalding) कहते हैं । ये पर हाथों से या किसी साधारण भौतिक विधि से निकले (हटाये) जाते हैं । मृत शरीर से पर निकलने के लिए सुखाने के पश्चात इसे गर्म ज्वाला से गुजारते हैं ।

ii. अन्तरांगक्षेपण (आंतों को निकालना) (Evisceration):

सामान्यतः माँस पकाने के उद्देश्य से आंत निकले हुए पक्षी ही खरीदे जाते हैं । अत: अन्तरांग निकलते समय पूरी सावधानी रखनी चाहिए जिससे जीवाणुओं का संक्रमण न हो, वसा के विकृति गंधन (Rancidification) को रोका जा सके तथा अधिक नमी की हानि न हो ।

iii. द्रुतशीतन तथा हिमीभूतन (Chilling and Freezing):

सफाई के तुरत बाद मृत शरीर को पहले 4-5°C से नीचे तापमान पर रखना चाहिए फिर 0°C पर रखना चाहिए । ठंडा करने की प्रक्रिया नरम बर्फ (Slush Ice) द्वारा करनी चाहिए जिससे मृत शरीर का तापमान एकदम से कम हो जाये और मृत शरीर का अधिक सूखना रोकना जा सके ।

इस प्रकार मृत शरीर को 20 से 30 दिन तक अच्छी अवस्था में रखा जा सकता है । यह ध्यान रखना चाहिए कि इस दौरान पक्षी की विष्ठा मृत शरीर के संपर्क में न आये ताकि इस प्रक्रिया में संक्रमण न हो । ठंडा करते समय माँस में स्वतंत्र अमीनो अम्ल तथा क्षारीय नाइट्रोजनी पदार्थ बढ़ जाते हैं किन्तु प्रोटीनों की मात्रा कम हो जाती है ।

यदि मुर्गे में माँस को -9°C से कम तापमान पर रखा जाये तो सूक्ष्म जीवों की अक्रियाशीलता के करण माँस का खराब होना रुक जाता है तथा माँस खट्टा नहीं होता । आजकल भारत में मुर्गी पालन व्यवसाय की उन्नति के साथ मुर्गी के माँस के प्रक्रमण (Procession) की अनेक उन्नत प्रणालियाँ स्थापित हो गयी हैं । इनमें मुर्गे के माँस के प्रक्रमण की काफी क्षमता है ।

iv. डिब्बाबंदी (Canning):

मुर्गे के माँस से सुरक्षित रखने तथा उसके आसान वितरण के लिए डिब्बाबंदी सर्वोत्तम उपाय है । इसके द्वारा माँस की गुणवत्ता बनी रहती है । डिब्बाबंदी के लिए माँस को जीवाणुरहित किया जाता है तथा एक बंद डिब्बे में रखा जाता है । जहाँ रेफ्रीजिरेटर की सुविधा उपलब्ध नहीं है वहाँ डिब्बाबंदी अधिक उपयोगी है ।


4. मुर्गे के माँस का सड़ना (Spoilage of Poultry Meat):

मुर्गे (Fowl) के माँस में उपस्थित Enzymes Bacteria के द्वारा सड़ता है । ये Organisms Intestines में पाए जाते हैं । यह Bacterial Spoilage त्वचा की सतह (Skin Surface) और Body Cavity से शुरू होता है जिससे Products का Decomposition शुरू होता है ।

यदि त्वचा (Surface) पर Bacteria को Count किया जाए तो 2.5 Million per Square Centimeter मिलेंगे तकरीबन 4 सप्ताह 0°C और 5 सप्ताह 1.1°C पर Experiment किया गया ।

Eviscerated (आंतों को निकलना) 10°C पर या इससे कम तापमान पर Spoiled होने के करण है । ये Pseudomonas तथा Yeasts, Torulopsis और Rhodotorula उत्पन्न हो जाते हैं तथा 10°C से ज्यादा तापमान पर Micrococci जो सामान्यतः Alcaligenes और Flavobacterium. Dominate होते हैं जिससे कुछ समय के बाद माँस की सतह Slimy हो जाती है यदि Wash Water में Iron होता है जिससे Bacteria की Growth Surface पर होती और Pseudomonads के द्वार Fluorescent Pigment Pyoverdine का Pseudosmonas होता है, परन्तु Iron अधिक होने पर यह Pigmentation कम हो जाता है और यदि Magnesium 100 ppm है तो P. Fluorescens के द्वारा Pigment Production Optimal होता है ।

Slime Develops होने के कारण उसमें Tainted, Acid, Sour जैसी Smell आती है । ये Defect भी Pseudomonas Bacteria के द्वारा होता है । यह Bacteria, Polythene Bags में भी Poultry को Spoil करते हैं यदि Tetracyclines के द्वार ये Treated होते है तो Bacteria और Yeasts के Resistant Strains की Spoiled कम हो जाती है ।

इसमें निम्न Genera जो Achromobacters और Veast के होते है । उदाहरण Torulopsis, Rhodotoerula, Trichosporon और Candida है तथा Molds भी Develop हो सकता है, Poultry Meat में Chemical Changes Microorganisms के द्वारा होता है और ये Refrigerated Storage के समय होता है जिससे उसकी Quality में Change आ जाता है ।


5. माँस के उत्पाद (Meat Products):

i. डिब्बाबंद मुर्गा (Canned Chicken):

पुरानी मुर्गियाँ जिनकी आयु 20 माह से ऊपर हो जाती है अंडे देने के लिए उपयुक्त नहीं रहती, अत: मुर्गे के माँस की नियमित आपूर्ति के लिए उन्हें डिब्बाबंद कर दिया जाता है ।

दि सेंट्रल फूट टेक्नोलोजिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट (The Central Food Technological Research Institute) मैसूर द्वार साबूत मुर्गे, अस्थिरहित अथवा अस्थिसहित कटा हुआ मुर्गा तथा कटे हुए भाग जैसे- छाती, टाँग आदि के डिब्बाबंद करने की तकनीक विकसित की जा रही है । डिब्बाबंदी के समय मुर्गा शोरबा तथा मुर्गा जैली प्राप्त होते हैं जिनका प्रयोग टॉनिक बनाने में किया जाता है ।

ii. डिब्बाबंद मसाला लगा माँस (Sausages):

पुरानी मुर्गियों, मुर्गा (नर) (Rooster) तथा एकत्रित (Culled) पक्षियों द्वारा प्राप्त माँस के छोटे टुकड़ों को सब्जियों में मिलाकर तथा मसालों से साथ मिलाकर इनके सॉसेज बना लेते हैं । इस उत्पादन में 62-65% नमी, 15-17% प्रोटीन, 15-17% वसा तथा 3-4% कार्बोहाइड्रेट होते हैं ।

iii. मुर्गे का सारतत्व (Chicken Essence):

स्वस्थ तरूण मुर्गों के माँस के टुकड़े का उबलते पानी के साथ आंशिक जलीकरण किया जाता है तथा इसके सत् (निष्कर्षण) को निर्वात (Vaccum) में सांद्रित किया जाता है ।

इसके पश्चात इस सांद्रित सत् को जीवाणुविहीन करके इससे वसा अलग करते हैं और बाकी भाग को मानक के अनुसार तनु करते हैं । इसके पश्चात उचित परिरक्षक (Preservative) मिलाकर इस पदार्थ को सील बंद करके पैक कर देते हैं ।

iv. शिशु आहार (Baby Food):

अनेक शिशु आहार जो प्रोटीन, लौह तथा निकोटिनिक अम्ल के अच्छे स्त्रोत होते हैं, वे माँस व शोरबे से तैयार किये जाते हैं । त्वचा तथा अस्थियों का प्रयोग त्वचा पेस्ट या निर्जल उत्पाद बनाने के लिए किया जाता है । शिशु आहार में रेशे नहीं होते ।