Read this article in Hindi to learn about:- 1. झींगे फ्लैश का संगठन (Composition of Prawn Flesh) 2. भारत में झींगे की महत्वपूर्णता (Importance of Prawn as a Food in India) 3. सड़ने का कारण (Causes of Spoilage) 4. परिरक्षण तथा संसाधन (Preservation and Processing).
झींगे फ्लैश का संगठन (Composition of Prawn Flesh):
झींगे के माँस स्वादिष्ट होता है । यह Protein का एक महत्वपूर्ण स्त्रोत है । इसमें Protein की मात्रा 20.22% पायी जाती है । केलेस्ट्रॉल की मात्रा कम होने से स्वास्थ के लिए हानिकारक नहीं है ।
इसमें Fatty acids की मात्रा कम होती है जो शरीर की वृद्धि में सहायक होते है । खनिज लवण (Minerals) जैसे Sodium, Potassium, Calcium, Magnesium एवं Phosphorous आदि प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं । इसमें Oils नहीं के बराबर होता है ।
भारत में झींगे की महत्वपूर्णता (Importance of Prawn as a Food in India):
मछलियों (Fishes) के अतिरिक्त कुछ जलीय क्रस्टेशियन (Crustacean) भी मत्स्य पालन में सम्मिलित किये जाते है । भारत में सबसे महत्वपूर्ण क्रस्टेशियन मत्स्य उद्योग झींगा (Prawn) पालन है । झींगा (Prawn) मनुष्य के लिए अति महत्वपूर्ण पोषक आहार है ।
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भारत का झींगा मत्स्य उद्योग अमेरिका के पश्चात दूसरे नम्बर पर आता है । कुछ भागों में विशेषतया पश्चिमी समुद्र तट पकड़े गए झींगों की संख्या किसी भी अकेले समूह की पकड़ी गई मछली से अधिक होती है ।
केवल केरल राज्य तथा बम्बई के समुद्र तटों पर पकड़े गये कुल झींगे भारत में पकड़े जाने वाले झींगों का 92.4% होते हैं । भारत में पिछले वर्ष कुल पकड़ी गयी झींगा मछली 6,200,000 टन हो गयी है ।
झींगे के सड़ने का कारण (Causes of Spoilage of Prawn):
झींगे के सड़ने का कारण Bacteria है जो Flesh को नष्ट कर देते है क्योंकि पकड़ने के पश्चात् उचित उपायों का प्रयोग न किया जाये तो झींगा सड़ने लगता है । उसमें खराबी मुख्यतः दो प्रकार की होती है ।
एक रासायनिक प्रकार की खराबी होती है जिसमें शरीर के ऊतकों से स्वतंत्र अमीनों अम्ल आदि बाहर निकल जाते हैं जिससे भार, पोषक तत्वों तथा स्वाद में अंतर आ जाता है ।
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दूसरे प्रकार की खराबी है जीवाणुओं द्वारा संदूषण जिसमें ट्राइग्लीसराइड फास्फोलिपिड के एन्जाइम जल-अपघटन (Hydrolysis) द्वारा पेशियों से वसाओं के अनिवार्य तत्व, स्वतंत्र वसा अम्ल, निकल जाते हैं ।
बाद में इनका स्वयं आक्सीकरण हो जाता है जिससे कार्बोनिल बन जाते हैं जो विकृत गंधिता (Rancidity) द्वारा झींगा मछली की गुणवत्ता पर प्रभाव डालते हैं । यदि नावों में झींगा 6 घंटे तक बिना बर्फ के रखा जाए तो यह खराब होना शुरू हो जाता है क्योंकि झींगा, मछली की अपेक्षा शीघ्र खराब होता है ।
28°C पर 4 घंटे तक झींगा की मौलिक गुणवत्ता बनी रहती है किन्तु इसके बाद तेजी से अपघटन प्रारम्भ हो जाता है और 8 घंटे में यह खाने योग्य नहीं रहता । अत: पकड़ने के पश्चात् तुरंत ही झींगा को सुरक्षित रखने की प्रक्रिया आरम्भ कर देनी चाहिए ।
झींगों पर ल्युकेप्रिक्स बेसिलाई, कोकाई जीवाणु, प्रोटोजोअन्स और वाएरस से फैलती है । इसमें गिल्स (Gills), Muscles, White Spots जो Carapace Appendages पर पाए जाते हैं । कभी-कभी इतने संक्रमण होने के अतिरिक्त त्वचा Muscles एवं दूसरे Organs को प्रभावित करते हैं जिससे झींगे मर जाते हैं ।
झींगा का परिरक्षण तथा संसाधन (Preservation and Processing of Prawn):
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पकड़ने के पश्चात् झींगा को शीघ्रातिशीघ्र बर्फ की पर्तो में रखकर स्थानीय बाजार में बेचने के लिए ले जाया जाता है । आपूर्ति तथा निर्यात के लिए झींगा मछली को विभिन्न विधियों द्वारा हिमीकृत (Frozen) किया जाता है ।
झींगा मछली का परिरक्षण निम्न विधियों द्वारा किया जाता है:
(1) छीलना तथा शिरा विहीन करना,
(2) छीलना, शिरा विहीन करना या पकाना,
(3) पकाना तथा छीलना,
(4) सिर हटाना (शेलॉन–Shellon) ।
(1) छीलना तथा शिरा विहीन करना (Peeling and Deveining):
अलवण जलीय झींगा को सिर काटकर, छीलकर, शिराविहीन करके पानी से भली-भाँति धोते हैं । कवच के भाग व दूसरे ऊतक हटाने के पश्चात् गूदे (Pulp) का प्रशीतन (Freezing) ट्रे में या पॉलीथीन चादरें जिले मोम लगे गत्ते के डिब्बों में करते हैं ।
अब झींगा रखे डिब्बों में बर्फ का पानी भरकर 3 से 4 घंटे के लिए 30 से 40°C पर फ्रीजर में रखते हैं । यदि झींगा को फीजिंग ट्रे में रखते हैं तो उससे प्राप्त कठोर पदार्थ को बर्फीले पानी में, जिससे उसका काचितीकरण (Glazing) हो जाता है ।
काचितीकरण (Glazing) द्वारा प्रशीतित पदार्थ निर्जलीकरण तथा आक्सीकरण से बचे रहते हैं । काचितीकरण के पश्चात् टुकडों को (झींगे का गूदा) पॉलीथीन की चादर में लपेटकर मोम वाले गत्ते के डिब्बे में रखकर जहाज में चढ़ाने तक -10°F पर एक प्रशीतक कमरे में रखते हैं ।
(2) छीलना, शिराविहीन करना तथा पकाना (Peeling, Deveining and Cooking):
सबसे पहले झींगा को छीलकर, शिराविहीन करके तथा पानी में धोकर 3 से 5% नमक के पानी में 3 से 5 मिनट तक पकाते हैं । पकाने के पश्चात् इन्हें ठंडा करके ट्रे में रखकर ऊपर लिखी विधि के अनुसार प्रशीतन कर देते हैं ।
(3) पकाना तथा छीलना (Cooking and Peeling):
इस विधि में झींगा को 7 से 10% उबलते हुए नमक के पानी में 2 से 3 मिनट तक उबालकर 3 से 5 नमक वाले बर्फ के ठंडा पानी में ठंडा किया जाता है । ठंडा करने के पश्चात् झींगा को छीलकर 20 ppm क्लोरीनीकृत जल में धोते हैं । धुले हुए पदार्थों को गत्ते के डिब्बों या ट्रे में रखकर 50 ppm क्लोरीनीकृत जल के साथ प्रशीतित करके काचितीकृत (Glazed) कर लेते हैं ।
(4) सिरविहीन (छिल्का सहित) (Headless Shellon):
इस विधि में झींगा का केवल सिर हटाया जाता है बाकी शरीर इसके छिलके से ढका रहता है । अब सिर रहित झींगा को भी पूर्व संशोधित (Processed) ‘छीलकर तथा शिराविहीन’ झींगा की भाँति प्रशीतित कर लेते हैं । प्रशीतन के लिए केवल ताजे झीगों का प्रयोग किया जाता है तथा स्वास्थ सम्बन्धी नियमों का पूरा पालन करते हुए प्रचुर मात्रा में बर्फ का प्रयोग किया जाता है ।