Read this article in Hindi to learn about natural and artificial refrigeration.

प्रशीतन 2 प्रकार का होता है:

A. प्राकृतिक प्रशीतन (Natural Refrigeration)

B. कृत्रिम प्रशीतन (Artificial Refrigeration)

A. प्राकृतिक प्रशीतन (Natural Refrigeration):

ADVERTISEMENTS:

इस विधि में प्रशीतन के लिए बर्फ, बर्फ का पानी, बर्फ व नमक का मिश्रण प्रयोग करते हैं ।

इन पदार्थों के प्रयोग के आधार पर इस विधि को निम्नलिखित तीन उपविधियों में वर्णित किया जा सकता है:

(i) बर्फ व बर्फ के पानी से प्रशीतन (Refrigeration Using Ice and Ice Water):

प्रशीतन की प्राकृतिक विधियों का प्रयोग बहुत पुराने समय से होता आ रहा है । आज भी छोटे-छोटे कार्यों में इस विधि का प्रयोग होता है । जब बर्फ पिघलती है, तो एक बड़ी मात्रा में समीप के पदार्थ से ऊष्मा (Heat) अवशोषित करती है अर्थात ”जब बर्फ (0C) पिघलती है तो बर्फ का प्रत्येक किलोग्राम 335 K.J ऊर्जा शोषित करके उसी तापमान (0C) ताप के पानी में बदल जाता है ।”

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यह ऊर्जा निकटतम पास वाले पदार्थ से शोषित की जाती है । इसे बर्फ पिघलने का ताप अर्थात द्रवण ऊष्मा (Heat of Fusion) कहते है । किसी पदार्थ को ठण्डा करने के लेए बर्फ की आवश्यक मात्रा आसनीपूर्वक ज्ञात की जा सकती है |

उदाहरण:

100 कि.ग्रा. दूध को 62.8C से 4.4C तक ठण्डा करना है । यदि बर्फ के पानी का तापमान 1.67C तथा दूध की विशिष्ट ऊष्मा (Specific Heat) 0.93 है तो इस दूध को ठण्डा करने के लिए आवश्यक बर्फ की मात्रा जात कराये ।

हल (Solution):

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ताप की मात्रा जो दूध से निकालनी है:

= दूध की मात्रा × ताप का अन्तर (C) दूध की विशिष्ट ऊष्मा × ग्राह्य (Sensible Heat) ऊष्मा

= (100) (62.8 – 4.4) (0.93) (4.187)

= 100 × 58.4 × 0.93 × 4.187

= 22740 k.J.

एक किलोग्राम बर्फ से ठण्डा करने हेतु उपलब्ध ऊर्जा = 335 + (1.67 × 4.187)

= 342.28 k.J.

बर्फ की कुल आवश्यक मात्रा = 22740/342.28 = 66.49 kg.

नोट:

1 kg. पानी का C ताप परिवर्तन में 4.187 kJ ऊर्जा का हस्तान्तरण होता है ।

यदि बर्फ के स्थान पर 0C ताप का प्रशीतित जल उपयोग में लाया जाये तथा निकलने वाले पानी का तापमान 1.67C हो तो प्रयुक्त होने वाले जल की मात्रा

22740/1.67 × 4.187 = 3253 kg होगी । जो बर्फ की तुलना में 49 गुणा है । जिसका प्रयुक्त होने के समय तापमान 0C तथा प्रयोग होने के बाद तापमान 1.67C है ।

इस विधि का मुख्य दोष यह है कि जब कभी पदार्थ 0C तापमान से कम ताप पर ठण्डा करना होता है तो यह विधि उपयोगी नहीं होती क्योंकि इस विधि का प्रयोग करके बर्फ का तापमान 0C से कम नहीं किया जा सकता है । अ इस विधि का प्रयोग ०७६५ या अधिक तापमान तक पदार्थ को ठण्डा करने में किया जाता है ।

(ii) बर्फ व नमक के मिश्रण से प्रशीतन (Refrigeration Using Ice and Salt):

इसमें बर्फ व नमक का मिश्रण प्रयोग करते हैं । इस विधि में तापमान 0C से काफी कम किया जा सकता है तथा 0C से कम तापमान की सीमा इस बात पर निर्भर करती है कि बर्फ में नमक की मात्रा कितने प्रतिशत है । बर्फ में मिलाये गये नमक की मात्रा में वृद्धि करने पर मिश्रण का तापमान 0C से काफी कम हो जाता है ।

मिश्रण में नमक की प्रतिशत मात्रा बढ़ने के साथ-साथ मिश्रण के तापमान में कमी होती जाती है । अर्थात बर्फ में जितना अधिक नमक मिलाया जाता है मिश्रण का तापमान उसी अनुपात में कम हो जाता है ।

बर्फ में 5% नमक मिला देने पर मिश्रण का तापमान 0C से घट कर -1.7C तक आ जाता है । जैसे-जैसे नमक की मात्रा बढ़ाते जाते हैं मिश्रण का तापमान कम होता जाता है । बर्फ में 1.5% नमक होने पर -11.60C तथा 25% नमक होने पर -23.3C तापमान प्राप्त होता है ।

बर्फ व नमक के मिश्रण की सहायता से पदार्थों के प्रशीतन के लिए तीन विधियों का प्रयोग किया जा सकता है:

1. Ice Bunker Method:

Insulted शीतग्रह में छत के समीप एक टंकी लगा दी जाती है जिसमें बर्फ व नमक का मिश्रण भरा जाता है । ऊपर वाली मिश्रण युक्त टंकी जिसे Ice Bunker कहा जाता है, को पाईप द्वारा नीचे फर्श पर रखी दूसरी टकी से जोड दिया जाता है ।

दुग्ध पदार्थ शीतग्रह के फर्श पर रखे जाते है । ये दुग्ध पदार्थ Ice Bunker से ठण्डी होकर नीचे आयी हवा के सम्पर्क में आता है । फलस्वरूप पदार्थ ठण्डा होता है तथा हवा गर्म होती है । गर्म हवा ऊपर उठती है तथा Ice Bunker के सम्पर्क में आकर ठण्डी होती है ।

यह ठण्डी हवा वापिस लौट कर फिर से फर्श पर रखे पदार्थ को ठण्डा करती है । इस प्रकार शीतग्रह में Convection Current पैदा हो जाता है तथा पदार्थ ठण्डा होता रहता है । Ice Bunker का बर्फ गर्म हवा के सम्पर्क में आकर पिघलता है तथा पानी फर्श पर रखे टैंक में एकत्र होता रहता है ।

2. Gravity Brine Method:

Insulted शीतग्रह में छत के समीप टकी में सूखी बर्फ (Dry Ice-Solid Carbon dioxide) भर दी जाती है । इस टंकी के चारों ओर Brine Coil लगा दी जाती है जो नीचे फर्श पर फैली Coils से जुडी रहती है । पदार्थ फर्श पर फैली Coils पर रखा जाता है ।

इन Coils में भरा Brine Solution पदार्थ से गर्मी लेकर ऊपर को चढ़ता है । छत के पास लगे टैंक में भरी सूखी बर्फ से ठण्डा ब्राईन घनत्व बढने के कारण नीचे की तरफ आ जाता है । यहाँ पर ठण्डा ब्राईन दुग्ध पदार्थ से गर्मी लेकर फिर घनत्व घटने के कारण हल्का होकर ऊपर टंकी के पास वाले ब्राईन Coils में चला जाता है जहां यह फिर से ठण्डा हो जाता है ।

इस प्रकार Brine Circulation उस समय तक चलता रहता है, जब तक कि पदार्थ का तापक्रम शीतग्रह के तापक्रम के बराबर होता है ।

3. Insulted Ice House:

यह Ice Bunker Method से इस प्रकार भिन्न है कि इस विधि में Ice Tank में न होकर फर्श पर ही होता है । सामान्यतया इस टैंक को कमरे (शीतग्रह) के एक कोने में लगाया जाता है । दूसरी तरफ पदार्थों को रखा जाता है । पदार्थ Ice Tank से ठण्डी होकर आने वाली हवा से ठण्डा होकर हवा को गर्म करता है जो फिर से Ice Tank के सम्पर्क में आकर ठण्डी होती है तथा जा कर पदार्थ को ठण्डा करती है ।

4. Insulted Ice Box:

एक Insulted Ice Box में बर्फ के टुकड़े डाल कर दूध को बोतलें, बटर की टिक्कीया तथा अन्य पदार्थ थोडी मात्रा में रखे जाते है । ये सब बर्फ द्वारा ठण्डे बने रहते हैं । इन पदार्थों को Insulted Ice Box में 24 घन्टे तक ठीक अवस्था में रखा जा सकता है । इसके बाद बर्फ का पानी निकाल कर नया बर्फ भर दिया जाता है । छोटे दुकानदार गर्मी के मौसम में दुग्ध पदार्थ तथा फलों का रस आदि पेय पदार्थों को ठण्डा रखने के लिए इस विधि का प्रयोग करते हैं ।

(iii) सूखी बर्फ का प्रयोग (Use of Dry Ice):

सूखी बर्फ से अभिप्राय ठोस कार्बनडाईआक्साईड (Solid Carbon dioxide) गैस से है । यह गैस द्रव में परिवर्तित हुए बिना प्रशीतनकारी प्रभाव छोड कर कार्बनडाईआक्साईड (CO2) गैसीय अवस्था में परिवर्तित हो जाती है तथा वायु मंडल में मिल जाती है । यह बर्फ से हल्की होती है ।

ठोस अवस्था से गैसीय अवस्था में परिवर्तन के लिए यह पास वाले पदार्थ से 573 kJ/kg ऊष्मा शोषित करके (-) 78.5C तापमान पर गैस में परिवर्तित हो जाती है । जबकि बर्फ 0C पर मात्र 335 kJ/kg ऊष्मा शोषित करके 0C के द्रव में परिवर्तित हो जाता है ।

इसका उत्पादन (Manufacturing) बडे-बडे खडों (Blockers) में किया जाता है । इसके खंडो को Insulted Cabinates में संग्रहित किया जाता है । इसका मुख्य उपयोग ट्रकों में शीतलन के लिए तथा आईसक्रीम परिवहन के साधनों में होता है । यह एक अत्याधिक ठण्डा पदार्थ है अतः इसे हाथों से नहीं छूना चाहिए । वस्तुओं को ठण्डा करने के लिए सूखी बर्फ एवं पदार्थों के मध्य गत्ते की दीवार लगा देनी चाहिए ।

B. कृत्रिम प्रशीतन (Artificial Refrigeration):

कृत्रिम प्रशीतन की दो प्रणालियाँ प्रयोग में लायी जाती हैं:

1. Vapour Compression System

2. Vapour Absorption System

दोनों प्रणालियाँ एक दूसरी से भिन्न है । डेरी उद्योग में सामान्य रूप से अधिकतर Compression System का ही प्रयोग होता है । इसका मुख्य कारण यह है कि यह प्रणाली Absorption System की तुलना में अधिक सरल, सुगम, स्थायी तथा आसानी से नियन्त्रित होने वाली है । इसका सिद्धान्त बडा सरल व आसानी से समझ में आने वाला है ।

कृत्रिम प्रशीतन का सिद्धान्त (Principle of Artificial Refrigeration):

प्रशीतन की क्रिया विधि एवं सिद्धान्त को एक Insulted Brine Tank के अन्दर बिछे कुण्डलों में तरल अमोनिया के वाष्पीकरण द्वारा आसानी से समझा जा सकता है । प्रस्तुत चित्रानुसार (चित्र) (Coils) को तरल अमोनिया सिलिण्डर से एक Valve द्वारा जोड़ दिया गया है ।

सिलिंडर में तरल अमोनिया दबाव के साथ भरी हुई है जो वाल्व दारा नियन्त्रित होकर Coils में जाती है । Coils का दूसरा सिरा खले वातावरण में रखा जाता है जबकि Coils का बीच का भाग Brine Solution के टैंक में Brine में डूबा हुआ है । तरल अमोनिया Coils मध्य भाग में वातावरणीय दवाब पर (-) 33.3C तापमान पर उबलती है ।

जिससे अमोनिया तरल रूप से वाष्प रूप में परिवर्तित हो जाती है । उबलती अमोनिया वाष्पीकरण के लिए Coils में मध्य भाग में टैंक में भरे Brine Solution से ऊष्मा का शोषण करके पर्याप्त गुप्त उष्मा मिलने पर वाष्पीकृत हो जाती है ।

इसके लिए यह 570 British Thermal Unit प्रति Pound (BTU/lb) या 1315 kJ/kg ऊष्मा ब्राईन से शोषित करता है । परिणामतः Brine हो जाता है तथा इस प्रकार प्रशीतन क्रिया पूरी हो जाती है ।

यह प्रक्रिया जब तक चलती रहती है जब तक कि Coils में तरल अमोनिया आती रहेगी तथा वाष्पीकरण के लिए इसे Brine Solution से पर्याप्त उष्मा मिलती रहेगी । जैसे ही Brine से तरल अमोनिया को वाष्पीकरण हेतु पर्याप्त उष्मा मिलना बन्द हो जाता है प्रशीतन क्रिया बन्द हो जाती है ।

प्रशीतन के Mechanical (Vapour) Compression System में भी अमोनिया को वाष्पीकृत करने का यही सिद्धान्त लागू होता है । प्रस्तुत विधि में अमोनिया को खुले वातावरण में निकलने के लिए छोड़ दिया जाता है जबकि Compression System में NH3 को खुले वातावरण में छोडने के स्थान पर, बन्द प्रणाली में Recirculate किया जाता है ।

इस प्रकार अमोनिया के प्राशीतनकारी प्रभाव का अधिकतम लाभ उठाया जा सकता है । बन्द प्रणाली में अमोनिया की बिल्कुल भी हानि (Loss) नहीं होती है ।

कृत्रिम प्रशीतन प्रणाली के उपयोग (Utilization of Artificial Refrigeration):

यान्त्रिक प्रणाली में प्रशीतक द्वारा प्रशीतन प्रभार दो प्रकार से उपयोग किया जा सकता है :

प्रशीतन में ठण्डी सतह को ठंडी की जाने वाली वस्तुओं के पास लाया जाता है ।

इसको लाने के मुख्य निम्नलिखित दो तरीके है:

1. प्रत्यक्ष विस्तार प्रणाली (Direct Expansion System)

2. अप्रत्यक्ष विस्तार प्रणाली (Indirect Expansion System)

प्रत्यक्ष विस्तार प्रणाली (Direct Expansion System):

इस प्रणाली के अन्दर ठंडी की जाने वाली वस्तुओं के सम्पर्क में प्रशीतक के पाइप को सीधा सम्पर्क में लाया जाता है अर्थात् शीत संग्रहलय (Cold Storage) में प्रशीतक के पाइप लगाये जाते है जिनमें अमोनिया प्रवाहित होती है और रखी हुई वस्तुओं को ठंडा करती है ।

यह आजकल काफी अपनाया जाता है क्योंकि यह सादा तथा सस्ता है और अन्य प्रणालियों (Systems) की अपेक्षा शीघ्र काम करने लगता है । इसकी कार्य-क्षमता भी अधिक है । इसके विपरीत इस प्रणाली में एक ही समय में अधिक काम करने के लिए काफी बडे संपीडक (Compressor) की जरूरत पडती है ।

इसमें दो प्रकार से विस्तार शीतक (Expansion) प्रयोग में लाये जाते हैं:

(a) भरने वाली प्रकार (Flooded Type)

(b) विस्तार प्रकार (Expanding Type)

इस प्रणाली को अधिकतर आइस-क्रीम फ्रीजर (Ice Cream Freezer) और ब्राईन घोल के शीतक (Brine Tank Coolers) के लिए प्रयोग करते है ।

2. अप्रत्यक्ष विस्तार प्रणाली या ब्राइन प्रणाली (Indirect Expansion System or Brine System) या द्वितीयक प्रशीतन (Secondary Refrigeration):

इस विधि में पहले प्रत्यक्ष विस्तार-कुण्डल (Direct Expansion Coils) की सहायता से टैंक में भरे हुए ब्राइन (Brine) को ठण्डा किया जाता है । इस ब्राइन को एक पम्प की सहायता से पाइप में ठण्डी की जाने वाली वस्तुओं के पास लाया जाता है अर्थात् ब्राइन को शीत संग्रहण गृह (Cold Storage Room) या दुग्ध शीतक (Milk Coolers) के कुण्डलों (Coils) में भेजा जाता है ।

पहली प्रणाली की अपेक्षा इसमें ठण्डी की जाने वाली वस्तुओं का प्रशीतक के साथ मिलने का भय नहीं रहता है और रिसाव (Leak) से कम हानि होती है । तापमान का नियन्त्रण भी अधिक आसानी से हो जाता है । इसका सबसे मुख्य लाभ यह है कि इस विधि से ठंडे ब्राइन के रूप में प्रशीतन (Refrigeration) का संचय किया जा सकता है ।

छोटे संपीडन (Compressor) के कारण कभी-कभी भार (Load) अधिक हो जाता है । इस समय संचय किये हुए ब्राइन को प्रयोग में लाया जा सकता है जबकि ऐसा ऊपर बतायी गई विधि में प्रत्यक्ष विस्तार (Direct Expansion) विधि से कम होती है का आदान-प्रदान (Exchange) दो स्थानों पर होता है अर्थात् पहले ब्राइन जाता है और बाद में शीत भंडार गृह (Cold Storage) में वस्तुओं को ठंडा किया जाता है । यह विधि अधिक महंगी भी है ।

ब्राइन प्रणाली के प्रकार (Types of Brine System):

1. ब्राइन संचार प्रणाली (Brine Circulating System):

इस विधि में ब्राइन को टैंक या शीतक (Cooler) के अन्दर ठीक तापमान तक प्रत्यक्ष विस्तार कुण्डल (Direct Expansion Coils) के सम्पर्क में लाकर ठंडा किया जाता है । तल पम्प की सहायाता से कुण्डलों के द्वारा ठण्डी ब्राइन को शीत संग्रहण गृह, फ्रीजर, दुग्ध शीतक (Cold Storage Room, Freezer, Milk Cooler) इत्यादि में वस्तुओं के ठंडा करने के लिये भेजा जाता है ।

वहाँ से यह गर्म होकर वापस टैंक में आ जाती है जो कि फिर उसी प्रकार ठंडी की जाती है । इसी प्रकार यह चक्र (Cycle) लगातार चलता है जब तक कि यह प्रणाली कार्य करती है ।

2. ब्राइन संग्रहण प्रणाली (Brine Storage System):

यह विधि वहीं प्रयोग में लाई जाती है जहाँ पर थोड़े समय में अधिक प्रशीतन की आवश्यकता पड़ती है और संपीडक (Compressor) छोटा होता है । उदाहरण के लिये दुग्ध संयंत्र (Milk Plants) पर जहाँ कि दूध को शीघ्र ही थोड़े समय में ठंडा किया जाता है जिसके कारण प्रशीतन भार (Refrigeration Load), संपीडक (Compressor) के ऊपर अधिक हो जाता है । इसको कम करने के लिए ब्राइन को पहले से ही ठंडा करके टैंक के अन्दर संचय कर लिया जाता है ।

3. शीतलन टैंक प्रणाली (Cooling Tank System):

यह विधि ब्राइन संग्रहण प्रणाली (Brine Storage System) की भाँति होती है । अन्तर केवल इतना ही है कि इसमें संग्रहण टैंक (Storage Tank) छोटा होता है और ब्राइन अपेक्षाकृत कम शक्ति (Strength Tank) वाली प्रयोग में लाई जाती है ।

इस ब्राइन को उसी प्रकार से प्रत्यक्ष विस्तार कुण्डल (Brine Storage System) द्वारा ठंडा करते हैं और ब्राइन को Expansion Coils के ऊपर भी जमने दिया जाता है । यही कारण है कि इसमें छोटे टैंक की जरूरत पड़ती है ।

इस प्रकार कुण्डल (Coil) के ऊपर ब्राइन जमने से प्रशीतन (Refrigeration) को काफी अधिक मात्रा में छोटे टैंक के अन्दर संचय किया जा सकता है । यह विधि ब्राइन संग्रहण (Brine Storage) की भाँति अधिकतर प्रयोग में नहीं लाई जाती, क्योंकि इसमें अधिक सावधानी रखनी पडती है ।