खाद्य स्पोइलेज: मतलब और कारण | Read this article in Hindi to learn about:- 1. भोज्य विकृति का अर्थ (Meaning of Food Spoilage) 2. भोज्य पदार्थों के नष्ट होने के कारण (Causes of Food Spoilage) 3. भोजन में विनाश के कारण होने वाले परिवर्तन (Changes that Take Place in Foods as a Result of Spoilage).

भोज्य विकृति का अर्थ (Meaning of Food Spoilage):

विकृति भोज्य पदार्थ (Spoiled Food) वह होते है, जो क्षतियुक्त (Damaged) अथवा चोटिल (Injured) हो जाते हैं तथा मनुष्यों के उपभोग (Consumption) के लिए अनपेक्षित (Undesirable) हो जाते हैं ।

भोज्य विकृति कीट आघात (Insect Damage) अनेक प्रकार की भौतिक चोटों (Physical Injuries) जैसे खरोंच (Bruising) तथा फ्रीजिंग (Freezing), एन्जाइम क्रियाशीलता अथवा सूक्ष्मजीवों द्वार होती है ।

सूक्ष्मजीवी विकृति प्रायः जीवाणुओं, यीस्ट्स तथा मोल्ड्स द्वारा होती है । विषाणुओं तथा माइकोप्लाज्मा द्वार भी पादपों तथा जन्तु ऊतकों को क्षति पहुँचती है, परन्तु इनके द्वारा होने वाली भोज्य विकृतियाँ अधिक महत्वपूर्ण नहीं होती हैं ।

ADVERTISEMENTS:

यीस्टस्, मोल्ड्स तथा जीवाणुओं में से सबसे अधिक विकृति (Spoilage) मोल्ड्स तथा जीवाणुओं द्वारा होती है । अपनी वृद्धि की आवश्यकताओं के अनुसार प्रत्येक सूक्ष्म-जीव विभिन्न प्रकार के भोज्य पदार्थों पर फैलना (Spread) चाहता है तथा उसी भोज्य पदार्थ में रहना चाहता है ।

भोज्य पदार्थों के नष्ट होने के कारण (Causes of Food Spoilage):

प्रायः भोज्य पदार्थ सूक्ष्मजीवियों (Micro-Organisms) द्वारा नष्ट किये जाते हैं । फलों (Fruits) का विच्छेदन (Decomposition) मोल्ड्स (Molds) द्वारा, माँस (Meat) का विच्छेदन जीवाणुओं (Bacteria) द्वारा, तरकारियों (Vegetables) का विनाश जीवाणुओं (Bacteria) तथा मोल्ड्स (Molds) दोनों के द्वारा, शर्करायुक्त घोलों का विनाश यीस्ट (Yeast) द्वारा होता है ।

उदाहरण के लिए, कुछ जीवाणु टमाटरों (Tomato) के विनाश में महत्वपूर्ण कार्य करते हैं । विनाश में जीवाणुओं की अपेक्षा मोल्ड्स (Molds) अधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं ।

भोज्य पदार्थों के विनाश का एक अन्य कारण ओटोलाइसिस (Autolysis) है अर्थात् वह क्रिया जिसमें फल (Fruit) बहुत अधिक पक (Ripe) जाते हैं ओटोलाइसिस (Autolysis) कहलाती है ।

ADVERTISEMENTS:

सामान्य विधि के फलों के पकने के लिए अनेक प्रकार के एन्जाइम्स (Enzymes) भाग लेते हैं, जिसके फलस्वरूप फल मुलायम (Soft) हो जाते हैं तथा उनमें मण्ड (Starch) एवं अम्ल (Acid) शर्कराओं (Sugars) में बदल जाते हैं ।

जब फल पाक जाते हैं तो कुछ एन्जाइम्स (Enzymes) अपनी क्रिया बराबर करते रहते हैं जिसके करण फल मुलायम (Soft) तथा गहरे (Dark) रंग के हो जाते हैं । यद्यपि इन फलों (Fruits) के अन्दर कोई सूक्ष्म जीव (Micro-Organisms) उपस्थित नहीं होता है ।

ओटोलाइसिस की क्रिया तरकारियों (Vegetables) की अपेक्षा फलों (Fruits) में अधिक पायी जाती है, विशिष्ट रूप से केला (Banana) तथा नाशपाती (Pear) आदि ।

भोजन में विनाश के कारण होने वाले परिवर्तन (Changes that Take Place in Foods as a Result of Spoilage):

भोजन में सभी प्रकार के उत्पाद आते हैं ।

ADVERTISEMENTS:

इनके विनाश किस प्रकार से होता है, ये निम्नलिखित हैं:

(1) सब्जियों की विकृति (Spoilage of Vegetables):

सब्जियों का पोषक तत्वों के आधार पर मोल्ड्स, यीस्ट तथा एक अथवा सभी सूक्ष्मधारियों द्वारा उनमें विकृति उत्पन्न हो जाती है । सब्जियों में पानी की अधिक प्रतिशत मात्रा होने से जीवाणु विकृति होती है । अधिकतर सब्जियों की pH रेन्ज भी अनेक जीवाणुओं की वृद्धि रेन्ज के अनुसार होती है ।

अत: सब्जियों में विकृति अधिकतर जीवाणुओं द्वारा होती है । इरवीनिया (Erwinia) की जातियाँ प्राय: सब्जियों में विकृति करती हैं और इस प्रकार सूक्ष्म-जीवों द्वारा उत्पन्न विकृति बेक्टीरियल सोफ्ट रॉट (Bacterial Soft Rot) कहलाती है ।

इस प्रकार की विकृति प्रायः इरवीनिया केरोटोवोरा (Erwinia Carotovora) तथा स्युडोमोनाज मार्जिनेलिस (Pseudomona Marginalis) द्वार होती है । इनमें से इरबीनिया केरोटोवोरा अधिक हानि पहुँचाता है ।

इसके अतिरिक्त बेसीलस (Bacillus) तथा क्लोस्ट्रीडियम द्वारा द्वितीयक विकृति हो जाती है । यह विकृति उत्पन्न करने वाले सूक्ष्म-जीव पेक्टिन्स (Pectins) को तोड़कर Soft, Mushy Consistancy, Bad Odour तथा Water Soaked Appearance प्रदर्शित करते है ।

इस रोग से प्रभावित सब्जियों के उदाहरण प्याज (Onion), लहसुन (Garlic), सेम (Beans), गाजर (Carrot), चुकन्दर (Beets), लेट्यूस (Lettuce), आलू (Potato), बन्दगोभी (Cabbage), टमाटर (Tomato), कुकम्बर्स (Cucumbers), पीपर्स (Peppers) तथा तरबूज (Watermelons) है ।

अनेक जावाणु जैसे इरवीनिया केरोटोवोरा (Eriwinia Carotovora), ई॰ क्राइसेन्थेमी (E. Chrysanthemi) आलुओं (Potatoes) में गलन (Rot) रोग उत्पन्न करते हैं जिसे ”ब्लेक लेग” (Black Leg) कहते हैं । कुछ महत्वपूर्ण जीवाणु भी सब्जियों के खेतों तथा भण्डारण (Storage) में विकृति उत्पन्न करते हैं ।

शकरकन्द (Sweet Potato) में सिरेटोसिस्टिस (Ceratocystis) द्वारा ब्लेक रोट तथा प्याज (Onion) में नेक रॉट (Neck Rot) बोट्राइटिस एली (Botrytis Allii) द्वारा तथा लेट्‌यूस (Lettuce) में ब्रीमिया जातियों (Bremia sp.) द्वार डाउनी मिलड्यूज (Downy Mildews) नामक रोग हो जाते हैं ।

विभिन्न प्रकार के कवक (Fungi) सब्जियों में अनेक प्रकार के रोग उत्पन्न करते हैं जैसे- प्याज, गाजर, लहसुन, टमाटर, लेट्यूस, बन्दगोभी, फूलगोभी, मूली, शलजम, कुकम्बर, पीपर, शकरकन्द, सेम, तरबूज आदि । प्रायः कवक फलों एवं तरकारियों के क्रेक (Crack) वाले भागों में प्रवेश करते हैं ।

(2) जन्तु उत्पाद में विकृति (Spoilage of Animal Products):

जानवरों से प्राप्त होने वाले प्रमुख उत्पाद मांस (Meat), अण्डे (Eggs) तथा दूध (Milk) हैं । माँस (Meat) में प्यूट्रेफैक्शन (Putrefaction) प्रोटीयस (Proteus), सूडोमोनाज (Pseudomonas) तथा रस्चेरीचिया (Escherichia) के कारण होता है ।

अण्डों (Eggs) का विनाश प्रायः मोल्ड्स (Molds) द्वार होता है, अण्डों (Eggs) की सतह पर प्रायः पेनीसीलियम (Penicillium) के स्पोर्स (Spores) देखे जाते हैं, अंकुरण करके कवक तन्तुओं (Mycelium) को अण्डों (Eggs) के अन्दर प्रवेश करा देते हैं ।

दूध (Milk) एवं दूध से निर्मित पदार्थों का विनाश जीवाणुओं जैसे- बेसीलस (Bacillus), क्लोस्टेरीडियम (Clostaridium), प्रोटीयस (Proteus), स्युडोमोनाज (Pseudomonas) तथा एस्चेरीचिया (Escherichia) द्वारा होता है । उन पदार्थों में शर्करा (Sugar) की मात्रा बहुत कम होती है ।

अत: बहुत कम मात्रा में अम्ल (Acid) के कारण प्यूट्रीफाइंग (Putrefying) जातियों (Species) की क्रिया रुक जाती है, ये जीवधारी एन्जाइम क्रिया (Enzyme Action) द्वार प्रोटीन्स (Proteins) पर आक्रमण करते हैं, जिनमें अमीनो अम्ल (Amino Acid), अमोनिया (Ammonia), हाइड्रोजन सल्फाइड (H2S), मरकेप्टेन्स (Mercaptans) आदि का निर्माण होता है ।

इनमें से कुछ पदार्थ वाष्पशील (Volatile) होते हैं । अत: इन्हें विशिष्ट गन्ध (Smell) द्वारा पहचाना जा सकता है । वसाओं (Fats) का विच्छेदन (Decomposition) नमी (Moisture) की कमी के कारण बहुत धीरे-धीरे होता है ।

कुछ जीवाणु जैसे स्युडोमीनाज फ्लोरिसेन्स (Pseudomonas Fluorescens) लिपोलाइटिक एन्जाइम्स (Lipolytic Enzymes) उत्पन्न करते हैं जो मक्खन (Butter) तथा अन्य वसीय (Fatty Acid) का निर्माण करते हैं । मक्खन में ब्यूटाइरिक अम्ल (Butyric Acid) द्वारा विकृत गन्धिता (Rancidity) होती है जिसके कारण मक्खन (Butter) में दुर्गन्ध आने लगती है ।

स्वाद (Taste) खराब हो जाता है । सूकर माँस (Bacon) तथा चरागाह (Ham) का विनाश मोल्ड्स (Molds) द्वारा होता है तथा स्ट्रेप्टोकोकाई (Streptococci) एवं लेक्टोबेसीलस (Lactobacillus) के कारण इनका स्वाद (Taste) खट्टा हो जाता है ।

(3) फलों में विकृति (Spoilage of Fruits):

विनाश के कारण फल मुलायम (Soft) हो जाते हैं । उनमें ऑक्सीकरण (Oxidation) होता है और रंग भूरा (Brown) हो जाता है । फलों की शर्कराओं (Sugars) में किण्वन (Fermentation) होता है जिससे अम्ल (Acid), एल्कोहॉल (Alcohol) तथा कार्बन डाइऑक्साड (CO2) बनते हैं । इनमें कोई विशिष्ट प्रकार की दुर्गन्ध उत्पन्न नहीं होती है । फलों के विनाश के लिए मोल्ड्स (Molds) उत्तरदायी होते हैं ।

फलों (Fruits) में कुछ विकृत दशाएँ (Spoilage Conditions) कटाई से पूर्व (Pre-Harvest) तथा कटाई के बाद (Post-Harvest) रोगों को प्रेरित करती हैं । जैसे बोट्राइटिस (Botrytis) स्ट्रोबेरी (Strawberry) के पुष्पों में आक्रान्त (Invade) करके फसल के कटने से पूर्व ग्रे मोल्ड रॉट (Gray Mold Rot) उत्पन्न करता है ।

कोलीटोट्राइकम (Colletotrichum) केलों की एपीडर्मिस से आक्रान्त कर केलों में एन्थेकनोज (Anthracnose) उत्पन्न करता है । ग्लियोस्पोरियम (Gloeosporium) सेबों (Apples) के लण्टिसिल्स (Lenticels) द्वारा आक्रान्त करके लेन्टीसिल रॉट (Lenticel Rot) को प्रेरित करता है ।

फसल के काटने के बाद बहुत अधिक मात्रा में बाजार की सब्जियाँ एवं फलों में विकृति (Spoilage) उत्पन्न होती है तथा कवक अधिकतर खरोंचें (Bruises) तथा क्षतिग्रस्त (Damaged) फलों में प्रवेश करते हैं । कुछ कवक विशिष्ट क्षेत्रों में ही प्रवेश में करते हैं ।

जैसे थिलेवियोप्सिस (Thillaviopsis) अनानास (Pineapple) के फलों व तनों से आक्रामण (Invade) होता है तथा ब्लैक रॉट (Black Rot) रोग उत्पन्न करता है ब्राउन क्राउन रॉट (Brown Crown Rot) कोलीटोट्राइकम (Colletotrichum) द्वारा इसी प्रकार से होता है ।

फलों का pH मान कम होता है जिससे जीवाणुओं की वृद्धि अधिक होती है तथा अधिक pH होने पर कवकों जैसे मोल्ड्स (Molds) तथा यीस्ट (Yeast) की अधिक वृद्धि होने के कारण फलों में अधिक विकृति (Spoilage) होने लगती है । नासपातियों (Pears) में इरवीनिया रॉट (Erwinia Rot) हो जाती है ।

खेतों में फलों के ऊपर यीस्ट पाया जाता है जिसके कारण फलों के उत्पादों (Products) में बहुत अधिक विकृति होती है । मीठे फलों में यीस्ट किण्वन द्वार उनकी शर्करों को ऐल्कोहॉल तथा Co2 में बदल देते हैं ।

मोल्ड्स की अपेक्षा यीस्ट में अधिक तेजी से वृद्धि होती है जिससे फलों की विकृति विधि में सहायता मिलती है । अनेक मोल्ड्स ऐल्कोहॉल की उपस्थिति में फलों में अधिक विकृति करते हैं ।

(4) तरकारियाँ एवं मण्डयुक्त भोजन (Vegetables and Starchy Foods):

तरकारियों में उनकी कोशिका भित्तियों (Cell Walls) एवं मण्ड का जल अपघटन (Hydrolysis) एन्जाइम्स (Enzymes) द्वारा होता है जिससे वे मुलायम हो जाती हैं । इस प्रकार से बनी शर्कराओं (Sugars) का किण्वन (Fermentation) कार्बनिक अम्लों (Organic Acids), कार्बन डाईऑक्साइड (Co2) तथा एल्कोहॉल (Alcohol) में होता है ।

इनका विनाश प्राय: मोल्ड्स (Molds) द्वारा होता है और इनमें विशिष्ट प्रकार की गन्ध (Odour) आने लगती है । डबलरोटी का विनाश मोल्ड्स (Molds) द्वारा होता है ।

(5) डेरी उत्पादों की विकृति (Spoilage of Dairy Products):

डेरी उत्पादों जैसे दूध, मक्खन, क्रीम तथा चीज (पनीर) आदि की विकृति सूक्ष्म-जीवों द्वारा होती है । सभी विकृति करने वाले सूक्ष्म-जीवों (Micro-Organisms) जैसे मोल्ड्स एवं यीस्ट की वृद्धि के लिए दूध (Milk) सबसे उत्तम माध्यम (Medium) होता है ।

रॉ दूध (Raw Milk) को यदि एक सप्ताह तक रेफ्रीजरेटर तापमान पर रख दिया जाता है तो उसमें विभिन्न प्रकार के जीवाणु जैसे Enterococcus, Lactococcus, Streptococcus, Leuconostoc, Lactobacillus, Microbcaterium, Propionibacterium, Micrococcus, Pseudomonas तथा Bacillus आदि उत्पन्न हो जाते हैं ।

दूध की पायसीकरण (Pasteurization) विधि में ताप सह स्ट्रेन्स (Thermoduric Strains) को छोड़कर अन्य जीवाणु लुप्त हो जाते हैं । केवल Streptococci तथा Lactobacilli तथा Bacillus के स्पोर निर्माण करने वाले जीवाणु बाकी रह जाते हैं ।

पायसीकृत दूध की विकृति ताप प्रतिरोधक (Heat Resistant) Streptococci द्वारा होती है जो दूध के लेक्टोज (Lactose) को लेक्टिक अम्ल (Lactic Acid) में बदल देते हैं, जिससे दूध का pH 4.5 तक हो जाता है, जिससे दही जमने लगता है ।

इसके अतिरिक्त Lactobacilli तथा Lactococcus Lactis किण्वन क्रिया करते हैं जिससे pH मान 4.0 से भी कम हो जाता है । यदि दूध में मोल्ड्स (Molds) के स्पोर्स उपस्थित होते हैं तो वह खट्टे (Sour) दूध की सतह पर वृद्धि करने लगते हैं जिससे pH उदासीन होने लगता है । अत: प्रोटियोलाइटिक जीवाणु जैसे Pseudomonas spp. उत्पन्न होने लगते हैं जो दही (Curd) को घुलनशील बना देता है ।

(6) मक्खन की विकृति (Spoilage of Butter):

मक्खन (Butter) में लगभग 15%, जल 81%, वसा तथा 0.5% कार्बोहाइड्रेट्स तथा प्रोटीन्स होते हैं । इसकी विकृति दो प्रमुख प्रकार के जीवाणुओं द्वारा होती है । Pseudomonas Putrefaciens मक्खन की सतह पर वृद्धि करके “Surface Taint” अथवा शुद्धता (Putridity) दशा उत्पन्न करता है तथा Isovaleric Acid के बनने से विशेष गन्ध आने लगती है ।

दूसरी दशा “Rancidity” कहलाती है जो Pseudomonas Fragi की वृद्धि से उत्पन्न होती है । इसके अतिरिक्त मक्खन की विकृति Lactococcus Lacits तथा Pseudomonas Mephitica द्वारा भी होती है ।

कुछ प्रमुख कवक (Fungi) जैसे Aspergillus, Alternaria, Cladosporium, Rhizopus, Mucor Penicillium तथा Geotrichum मुख्य रूप से Geotrichum Candidum (Oospora Lactis) द्वारा भी मक्खन में विकृति (Spoilage) होती है ।

इन कवकों को मक्खन के ऊपर रंगों द्वार पहचाना जा सकता है । काला यीस्ट्स वंश टोरुला (Torula) द्वारा मक्खन रंगहीन हो जाता है । कुटीर चीज (Cottage Cheese) की विकृति जीवाणु, यीस्ट तथा मोल्डस द्वारा होती है जिसे ‘Slimy Curd’ कहते हैं ।

इसमें Alcaligenes sp., Pseudomonas Proteus, Enterobacter तथा Acinctole Acter spp. बहुत तीव्रता के साथ विकृति करती है । कुटीर चीज (Cottage Cheese) पर अनेक कवक जैसे Mucor, Alternaria, Penicillium तथा Geotrichum उगते हैं तथा विभिन्न प्रकार की गंध (Odour) देते हैं ।

(7) खाद्यान्न आटा तथा गुंथे हुए आटे की विकृति (Spoilage of Cereals, Flour and Dough):

खाद्यान्न एवं आटा में कार्बोहाइट्रेटस् तथा प्रोटीन्स प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं । अत: अधिक जीवाणु एवं कवक द्वारा विकृति नहीं होती है । केवल Bacillus तथा Molds ही इन्हें हानि पहुँचाते हैं ।

ताजे गुंथे हुए फ्रिज में रखे हुए आटे से निर्मित बटर मिल्क, बिस्कुट, स्वीट रोल्स तथा पीजा (Pizza) आदि विकृति लेक्टिक एसिड जीवाणुओं द्वारा होती है । जैसे Lactobacillus, Leuconostoc तथा Streptococcus आदि ।

(8) बेकरी उत्पाद विकृति (Spoilage of Bakery Products):

औद्योगिक स्तर पर डबल रोटी (Breads) तैयार की जाती हैं जिसमें जल की मात्रा बहुत कम होने से Molds द्वारा हानि होती है । जैसे ”ब्रेड मोल्ड” (Rhizopus Stolonifer) तथा ‘रेड ब्रेड मोल्ड’ (Neurospora Sitophila) द्वारा होता है । केक्स (Cakes) में शर्करा की मात्रा अधिक होने जीवाणु विकृति नहीं होती है ।

(9) भोजन का विषाक्तन (Food Poisoning):

जिस भोजन का विनाश हो जाता है प्राय: उसे खाने के काम में नहीं लिया जाता है, किन्तु कभी-कभी भोजन की आकृति (Shape), स्वाद (Taste) सामान्य होता है तो उसे खाने के प्रयोग में लाते हैं, अर्थात् फेंकते नहीं । दूसरी ओर ऐसे भोजन जिनमें विनाश के कोई चिन्ह दिखायी नहीं देते हैं, किन्तु उनको खाने से गेस्ट्रो-इण्टेस्टाइनल (Gastro-Intestinal) रोग हो जाता है ।

अधिकांश जीवधारी (Organisms) जो भोजन का विनाश करते हैं, हानि-रहित मृतोपजीवी (Saprophytes) होते हैं, किन्तु चार प्रकार के जीवाणु (Bacteria) जो भोजन पर आक्रमण करते हैं विभिन्न प्रकार की बीमारियाँ उत्पन्न करते हैं, अत: अनेक प्रकार के विषाक्तन (Poisoning) पाये जाते हैं जिनका रासायनिक विषाक्तन (Chemical Poisoning) पादप (Plant) अथवा जन्तु विषाक्तन (Animal Poisoning) जीवाणुओं द्वारा विषाक्तन में बाँटा गया है ।

रासायनिक विषाक्तन (Chemical Poisoning) के लक्षण भोजन को पकाने के लिए प्रयोग में लाये गये बर्तनों अथवा भोजन परोसने वाले बर्तनों के सम्पर्क में दो घण्टे तक रहने के बाद देखा जा सकता है, क्योंकि इन बर्तनों (Containers) में एण्टीमनी (Antimony) अथवा केडमियम (Cadmium) जैसी धातुएँ (Metals) होती हैं ।

भोजन बनाने वाले क्षेत्रों में कीटनाशियों के छिड़काव के करण विषाक्तन (Poisoning) को रिपोर्ट किया गया है क्योंकि कीटनाशक पदार्थों में सोडियम फ्लोराइड (Sodium Fluoride) होता है जिसका प्रभाव विषैला (Toxic) होता है ।

कभी-कभी भूल से मशरूम (Mushrooms) की किस्मों (Varieties) को भोजन के रूप में प्रयोग करने से विषाक्तन (Posioning) हो जाता है । अधिकांश विषाक्तन जीवाणुओं (Bacteria) अथवा उनसे निर्मित पदार्थों के कारण होता है ।