क्रोमोसोम प्रतिकृति | Essay on Chromosome Replication in Hindi!

6000 वर्ष पुराने अनेक पुरातत्वीय प्रमाणों से ज्ञात होता है कि मनुष्य को यह पता था कि अनेक शारीरिक लक्षण माता-पिता से उनकी संतति (Offspring) में संचारित (Transmit) हो जाते हैं ।

लेकिन बीसवीं सदी के प्रारम्भ में ही मनुष्य आनुवंशिकी के सिद्धान्त और प्रक्रिया के सम्बन्ध में पर्याप्त ज्ञान जुटा सका । आज आनुवंशिकी (Genetics) विज्ञान की एक महत्वपूर्ण शाखा के रूप में पढ़ी जाती है । आनुवंशिकता के वाहकों यानी गुणसूत्रों का अध्ययन अति महत्वपूर्ण है ।

गुणसूत्र नाम की व्युत्पत्ति यूनानी भाषा के ‘क्रोमा’ शब्द से हुई है, जहाँ क्रोमा का आशय रंग से है तथा सोमा का आशय काय (Body) से है । गुणसूत्र (Chromosomes) (Chrom = Colour; Soma = Body) गहरी अभिरंजित संरचनाएँ हैं, जो केन्द्रक (Nucleus) में स्थित होती हैं तथा कोशिका विभाजन की मध्य अवस्था (Metaphase) से केन्द्रक के अन्दर कुछ स्पष्ट धागों के जाल के रूप में या गूँथे हुए जाल के समान दिखाई देते हैं ।

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इस संरचना में स्वत: द्विगुणन (Multiplication) की क्षमता होती है तथा इनका आकार एवं विशिष्टता अनेक विभाजनों (Divisions) के पश्चात् भी बनी रहती है ।

(i) ई. स्ट्रैसबर्गर ने कोशिका विभाजन के समय प्रकट होने वाली धागे के समान संरचना (Structure) की खोज की थी । क्योंकि ये संरचनाएँ क्षारीय रंजकों से रंग जाती हैं, इसलिए इन्हें गुणसूत्र कहा गया ।

अन्तरावस्था केन्द्रक (Interphase Nucleus) का क्रेमेटिन जालक (Chromatin Network) कोशिका विभाजन (Cell Division) के समय संघनित होकर धागों या छड़ों (Rods) के समान संरचनाएँ बनाती हैं ।

(ii) वाल्डेयर ने इन संरचनाओं को गुणसूत्र (Chromosome) नाम दिया, क्योंकि अभिरंजित (Stained) कोशिकाओं में गुणसूत्र सबसे अधिक गहरे रंग के दिखाई देते हैं ।

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गुणसूत्र पुनर्गुणन का सरल अर्थ, तो इसके भीतर उपस्थित DNA का पुनर्गुणन है । DNA में अपने आपको निर्मित कर लेने या अपना पुनर्गुणन करने का गुणधर्म होता है । DNA पुनर्गुणन के आगामी बिन्दु में DNA पुनर्गुणन (गुणसूत्र पुनर्गुणन) पर विशेष ध्यान दिया जायेगा ।

जीवाण्विक गुणसूत्र का पुनर्गुणन (Replication of Bacterial Chromosome):

अनुकूल स्थितियों में जीवाणु द्विभाजन द्वारा गुणन करते है । यह एक अति द्रुत विधि है । नवनिर्मित संतति जीवाणु से परिपक्व होने व दो में विभाजित होने में आवश्यक अवधि अथवा अनुक्रमिक पीढ़ियों के मध्य के समयान्तराल को पीढ़ी-काल कहा जाता है ।

यह 20 मिनट्‌स (जैसे- E-Coli, से लेकर 15-20 घंटे) (जैसे- माएकोबैक्टीरियम ट्‌यूबरकूलोसिस) तक होता है । जीवाण्विक गुणसूत्र तो मीजोसोम में संलग्न रहते हुए पुनर्गुणन करते है । यहाँ पुनर्गुणन तो एकल उदग्म होता है, अर्थात् DNA के दो स्ट्रैण्ड्स एक बिन्दु पर पृथक होते है ।

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पुनर्गुणन तो द्विदिशात्मकरुपेण अग्रसर होता है । DNA पुनर्गुणन के पूर्ण होने पर केन्द्राभ के दो संलग्नकारी बिन्दुओं के मध्य के क्षेत्र की वृद्धि द्वारा कोशिका की आकर वृद्धि आरम्भ हो जाती है । प्रक्रिया में मीजोसोम विभाजित होता है ।

संतति मीजोसोम्स की गति के साथ गुणसूत्र भी दूर गति करने लग जाते है । आरंभ में ये एकल Y-दुशाख के द्वारा मीजोसोम्स से संलग्न होते है । नवीन संलग्न ने बिन्दु समीप ही उत्पन्न होता है ।

DNA जीवों के शरीर में पाया जाने काला सबसे महत्वपूर्ण बायो-कैमिकल यौगिक (Bio-Chemical Compounds) है । सभी जीवों की जैव-क्रियाओं के सन्देश इसी में कोडेड (Coded) होते हैं । इसलिए इसे सन्देशों से निहित टेप कहा जाता है । सन 1884 में ऑस्कर-हर्टविग (Oskar-Hertwig) के अनुसार DNA के द्वारा ही अगली पीढ़ी में आनुवांशिक (Genetic) सूचनाएं पहुँचती हैं ।

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