Read this article in Hindi to learn about the two types of changes that occur in the number of chromosomes.
किसी जीव या विभिन्न जातियों के जीवन काल में आनुवंशिक पदार्थ या गुणसूत्रों (Chromosomes) की संख्या स्थिर होती है । कायिक कोशिकाओं में गुणसूत्रों के दो सेट (Set) होते है । इन्हें द्विगुणित (Diploid) कहते हैं । अर्धसूत्री विभाजन के पश्चात् द्विगुणित कोशिकाओं से युग्मक (Gametes) बनते हैं जिनमें गुणसूत्रों (Chromosomes) का एक समुच्चय (Set) होता है ।
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इन्हें अगुणित (Haploid) या एकगुणित (Monoploid) कहते हैं । यह देखा गया है कि कभी-कभी द्विगुणित अवस्था में आंतरिक या बाह्यकारकों के कारण द्विगुणित अवस्था में गुणसूत्रों (Chromosomes) की संख्या में वृद्धि या कमी हो जाती है । इस प्रकार से गुणसूत्रों में संख्यात्मक भिन्नता को बहुगुणिता या परिवर्तन कहते हैं ।
Type # 1. यूप्लॉइडी (Euploidy):
यूप्लॉयड्स (Euplids → Gr., eu = true or even; Ploid = unit)- यूप्लॉयड्स वे जीव हैं, जिनमें क्रोमोसोम्स के सैट्य या जीनोमस किसी भी संख्या में पाये जाते हैं, किन्तु सैट्य की संख्या सदैव संतुलित होती है जैसा कि n या n के गुणांक (Multiple of n) । यूप्लॉयड्स (Euploids) में मोनोप्लॉयड्स (Monoploids), डिप्लॉयड्स (Diploids) अथवा पोलीप्लॉयड्स (Polyploids) शामिल होते हैं ।
सामान्यतः द्विगुणित जीव (2n) में दो n + n अगुणित समुच्चय (Haploid Set) या जीनोम (Genome) उपस्थित होते हैं । दोनों जीनोम के गुणसूत्र समुच्चय आकारिकी रूप से सामान होते हैं तथा जीनोमों के गुणसूत्र (Chromosomes) समजात होते हैं ।
जब जीवों में गुणसूत्रों की संख्या इनके जीनोम के गुणांक में होती है तब इस सुगुणिता कहते है । दूसरे शब्दों में सुगुणिता में गुणसूत्रों (Chromosomes) की संख्या में सम्पूर्ण समुच्चयों (Sets) में भिन्नता पाई जाती है ।
ADVERTISEMENTS:
सुगुणिता गुणसूत्रों (Chromosomes) के समुच्चय के आधार पर निम्न प्रकार की होती है:
(i) मोनोप्लाइडी (Monoploidy (X)):
अगुणिता या एकगुणित (Haploidy or Monoploidy-n):
अगुणितों में गुणसूत्रों (Chromosomes) का एक प्रारम्भिक समुच्चय (Set) होता है तथा इन्हें अर्द्धयुग्मनजी (Hemizygous) कहा जाता है । एक विशेष जाति में एकगुणिता सामान्य होती है, लेकिन असामान्य रूप से उत्पन्न होती है । शैवाल, कवक तथा ब्रायोफाइटा पादपों में यह स्थिति सामान्य रूप से मिलती है ।
ADVERTISEMENTS:
अगुणिता असामान्य रूप से उन पौधों में मिलती है, जो द्विगुणित (Diploid) होते हैं । परागकणों को कृत्रिम माध्यम में संवर्धित कर अगुणित नवोद्भिदों (Haploid Seedlings) में विभोदित किया जाता है । एकगुणित का आनुवंशिकी तथा पादप प्रजनन (Plant Breeding) में विशेष महत्व है ।
अगुणिता के लक्षण (Characters of Haploidy):
(1) इनके बीज के परिमाण, परागकण का व्यास तथा केन्द्रक का आयतन द्विगुणितों की अपेक्षा कम होता है ।
(2) सामान्यतः अगुणित पादप आकार में छोटे व कम उत्तेजनशील होते हैं ।
(3) अगुणितों में सामान्य युग्मक कभी-कभी ही बन पाते हैं, लेकिन उनकी जीवन क्षमता अत्यधिक कम होती है ।
(4) इनकी पत्तियाँ छोटी तथा इनमें जनन क्षमता कम लेकिन बन्ध्यता अधिक होती है ।
मोनोप्लॉयड्स (Monoploids) पौधे सामान्यतः परिणाम में छोटे एवं निर्बल होते है । ये प्रजनन करने में सक्षम नहीं होते । उदाहरणार्थ- कुछ ऐल्गी, फंजाई (Algae and Fungi), ब्रायोफाइट्स, धतुरा तथा ट्रिटिकम आदि । जन्तुओं में मोनोप्लॉयडी कम पायी जाती है ।
कुछ कीट जैसे- मधुमक्खी तथा वेस्प्स (Honey Bee and Wasps) में प्रायः नर मोनोप्लॉयड्स (Monoploids) तथा मादा डिप्लॉयड्स होती है । अत: इनमें नर का जन्म पारथिनोजैनेसिस के (Parthenogenesis) के फलस्वरूप होता है ।
(ii) डिप्लाइडी (Diploidy (2X)):
उच्चश्रेणी के पादप द्विगुणित (Diploids) होते हैं । इनकी कायिक कोशिकाओं के केन्द्रक में दो पूर्ण जीनोम (n + n) के समुच्चय होते हैं ।
(iii) पॉलीप्लाइडी (Polyploidy):
जीव जिनकी कायिक अवस्था के केन्द्रक में दो से अधिक जीनोम उपस्थित होने पर वे बहुगुणित (Polyploids) कहलाते हैं तथा इस स्थिति को बहुगुणिता (Polyploids) कहते हैं । उदाहरण- 3n, 4n, 5n इत्यादि । उच्च श्रेणी के पौधों में बहुगुणिता सामान्यतया पाई जाती है लेकिन प्राणियों में यह दुर्लभ है ।
बहुगुणितों के सामान्य लक्षण (General Properties of Polyploids):
बहुगुणितों (Polyploids) में द्विगुणितों की अपेक्षा निम्न आकारिकी, कार्यकी तथा आनुवंशिकी लक्षणों में विशिष्टता होती है:
(1) पौधे के सभी अंगों के आकार में वृद्धि दिखाई देती हैं ।
(2) रंध्र कोशिकायें द्विगुणितों की अपेक्षा बड़ी होती है ।
(3) बहुगुणितों में स्तम्भ मोटा एवं दृढ़ होता है ।
(4) परागकण बड़े आकर के होते है ।
(5) पत्तियाँ चौड़ी, मोटी तथा गहरी हरी होती हैं ।
(6) पत्तियों पर यदि रोम होते हैं, तो मोटे तथा खुरदरे होते हैं ।
(7) पुष्प तथा उसके भागों के आकार बड़े होते हैं ।
एक डिप्लाइड जीव में गुणसूत्रों के दो से अधिक सेटों की उपस्थिति को पॉलीप्लॉइडी कहा जाता है ।
यह निम्न प्रकारों की हो सकती है:
(i) ट्रिप्लॉइड- गुणसूत्रों के तीन सेटों की उपस्थिति वाले जीव । (2n + n = 3n) उदाहरण- AAA, BBB ।
(ii) टेट्राप्लॉइड- गुणसूत्रों के चार सेटों की उपस्थिति वाले जीव । (2n + 2n = 4n) उदाहरण- AAAA, BBBB ।
(iii) पेन्टाप्लॉइड- गुणसूत्रों के पाँच सेटों की उपस्थिति वाले जीव । (2n + 2n = 5n) उदाहरण- AAAAA, BBBBB ।
(iv) हेक्जाप्लॉइड- गुणसूत्रों के छह सेटों की उपस्थिति वाले जीव । (2n + 4n = 6n) उदाहरण- AAAAAA, BBBBBB ।
पॉलीप्लॉयडी के प्रकार (Types of Polyploidy):
पॉलीप्लॉयडी तीन प्रकार की होती है, ये विभिन्न कारणों से हो सकता है:
पॉलीप्लॉयडी (Polyploidy):
(a) ऑटोपॉलीप्लॉयडी (Autopolyploidy),
(b) एलोपॉलीप्लॉयडी (Allopolyploidy),
(c) ऑटोएलोपॉलीप्लॉयडी (Autoallopolyploidy) ।
(a) स्वबहुगुणिता या ऑटोपॉलीप्लॉयडी (Autopolyploidy):
जब एक ही जाति (Species) के जीवों से उत्पन्न सन्तति में गुणसूत्रों के समुच्चय तीन या अधिक बार प्रदर्शित होते है, तब इस स्थिति को स्वबहुगुणिता (Autopolyploidy) कहते है ।
यह स्वत्रि-गुणिता (Autotriploidy) जिसमें संजीनों (Genomes) के तीन समान समुच्चय (AAA) मिलते है, स्वचतुर्गुणिता (Autotetraploidy) जिसमें चार समान समुच्चय (AAAA) मिलते है, आदि प्रकार की होती हैं ।
उदाहरण के लिए यदि एक द्विगुणित जाति में गुणसूत्रों के दों समान समुच्चय AA हैं, तो एक स्वत्रिग्णेत में तीन समान समुच्चय AAA, एक स्वचतुर्गुणित में चार समान समुच्चय AAAA तथा स्वपंचगुणित में पाँच समान समुच्चय AAAAA होंगे ।
वे बहुगुणित, जिनमें गुणसूत्रों के समान प्रकार के प्रारम्भिक समुच्चय दो से अधिक पाये जाते हैं, स्वबहुगुणित कहलाते हैं । अर्थात् ऐसे जीव जिनमें गुणज संजीन (Multiple Genome) एक ही प्रकार के होते हैं । इस स्थिति को स्वबहुगुणित (Autopolyploidy) कहते हैं ।
इन स्वबहुगुणित पादपों में अतिरिक्त उपस्थित सभी जीनोम की संख्या मातृ जीनोम के समान होती है । इनमें गुणसूत्रों की संख्या अनियमित अर्धसूत्री विभाजन के कारण बढ़ती हैं । जीनोम (Genome) की संख्या के आधार पर ये स्वत्रिगुणित (Autotriploid-AAA), स्वचर्तुगुणित (Autotetraploid-AAAA), स्वपंचगुणित (Autopentaploid-AAAAA) आदि में विभाजित किया जा सकता है ।
स्वबहुगुणितों के लक्षण (Characters of Autopolyploids):
द्विगुणितों (Diploids) की तुलना में स्वबहुगुणितों के सामान्य लक्षण निम्न हैं:
(i) अधिक ऊँचे गुणिता स्तर पर (At Higher Ploidy Levels) विपरीत प्रभाव उत्पन्न होते है और उनके कारण पौधों की मृत्यु हो जाती है ।
(ii) पुष्प व फल बड़े लेकिन द्विगुणितों की अपेक्षा कम संख्या में बनते हैं ।
(iii) इनकी कोशिका का आकार द्विगुणितों की अपेक्षा बड़ा होता है । रंध्रों के द्वार कोशिकाओं का आकार बड़ा होता है लेकिन प्रति इकाई क्षेत्र में रंध्रों की संख्या द्विगुणितों की अपेक्षा कम होती है ।
(iv) स्वत्रिगुणित पादप बन्ध्य होते हैं । अत: बीजों का बनना असम्भव होता है । प्रकृति में त्रिगुणित प्रायः कायिक विधि (Vegetative Method) द्वारा प्रवर्धित (Propogated) होते है । उदाहरण गुलदाउदी (Chryanthemum), गुलाब (Rose), केला (Musa), संतरा (Citrus) इत्यादि ।
(v) कुछ अवस्थाओं में कमजोर होते हैं, लेकिन अधिकांश पौधे में अधिक उत्तेजनशीलता एवं अधिक वृद्धि दर्शाते हैं ।
(vi) पौधों की वृद्धि धीमी होने के कारण पुष्प देर से खिलते हैं और अधिक समय तक खिले रहते हैं ।
(vii) पत्तियाँ बड़ी व अपेक्षाकृत मोटी होती है ।
(viii) परागकण बड़े आकार के होते है ।
(ix) इनका शुष्क भार द्विगुणित पादपों की तुलना में कम होता है क्योंकि कोशिकाओं में जल की मात्रा अधिक होती है ।
(x) हरित लवक प्रतिकोशिका अधिक होते हैं ।
स्वबहुगुणिता की उत्पत्ति (Origin of Autopolyploidy):
स्वबहुगुणिता (Autopolyloidy) स्वतः उत्पत्ति होती है या प्रेरित (Induced) किया जा सकता है:
(I) स्वत:उत्पत्ति (Spontaneous Origin):
स्वबहुगुणिता (Autopolyloidy) स्वतः उत्पत्ति निम्न प्रकार से होती है:
1. अण्ड कोशिका एक से अधिक स्पर्म द्वारा निषेचित हो जाती है । यदि एक सामान्य अगुणित अण्ड दो अगुणित स्पर्म द्वारा निषेचित (Fertilized) हो जाता है, तो स्वत्रिगुणित (Autotriploids) बनता है ।
2. जनन कोशिकाओं में समसूत्री विभाजन के असफल होने से अन्यूनकृत (Unreduced) युग्मक बनते हैं । यदि द्विगुणित एवं अगुणित युग्मक संलयित होते हैं तो त्रिगुणित बनते हैं ।
3. दो द्विगुणित युग्मकों के निषेचन (Fertilisation) से स्वचर्तुगुणित बनते हैं ।
(II) प्रेरक उत्पत्ति (Induced Origin):
कोल्चसिन एक एल्केलोइड है जो लिलिएसी कुल के पादप कोल्चिकम ऑटमनेल (Colchicum Autumnale) के बीजों तथा घनकन्द से प्राप्त किया जाता है । इसका उपयोग अनेकों फसलों (Crops) में गुणसूत्रों संख्या दुगुनी करने में किया गया है ।
कोल्चिसिन का उपचार निम्न प्रकार से किया जाता है:
(i) कोल्चिसिन के 0.001 से 1 प्रतिशत या 2% घोल में बीजों को 1-10 दिन तक भीगोया जाता है । अन्त में बीजों को जल से धो कर बोया जाता है ।
(ii) कोल्चिसिन के 0.1 से 1 प्रतिशत घोल में भीगी हुई रुई से पादप (Plant) के वृद्धि क्षेत्रों को उपचारित किया जाता है ।
(iii) कोल्चिसिन के घोल को कलिकाओं पर छिड़का जाता है ।
(iv) 0.5 से 1 प्रतिशत कोल्चिसिन युक्त लेनोलिन पेस्ट (Lanolin Paste) को कायिक भागों (Vegetative Parts) पर मल्हम की भाँति लगाया जाता है ।
कोल्चिसिन समसूत्री विभाजन के तर्कु तन्तुओं (Spindle Fibres) के निर्माण को बाधित करता है तथा पुन: गुणसूत्र केन्द्रक (Nucleus) में परिबद्ध होते हैं । इस प्रकार एक प्रत्यानयन केन्द्रक (Restitution Nucleus) की रचना होती है । इस बहुगुणित केन्द्रक (Restitution Nucleus) के समसूत्री विभाजन से बहुगुणित कोशिकाएँ बनती है ।
(III) अन्य रसायनिक पदार्थ (Other Chemical Substances):
विभिन्न रासायनिक पदार्थ जैसे- नाइट्रस ऑक्साइड (Nitrous Oxide), क्लोरल हाइड्रेट (Chloral Hydrate), सल्फेनिल एमाइड हेक्साक्लोरोसाइक्लोहेक्सेन आदि का उपयोग किया जाता है ।
(IV) विकिरण द्वारा (By Radiation):
पौधे के विभिन्न भागों जैसे कायिक कालिक एवं पुष्प कलिका के पराबैंगनी किरणों, एक्स रे किरणों (X-rays) व अन्य निम्न तरंग दैर्ध्य वाली किरणों के किरणन (Irradiation) से स्वबहुगुणिता को प्रेरित किया जा सकता है ।
(V) आघात द्वारा (By Injury):
एक पौधे के विभज्योतक भागों में आघात करने पर आघात बिन्दु की कोशिकाऐं (Cells) तीव्र विभाजन कर कैलस (Callus) बनाती है । कभी-कभी कैलस कोशिकाओं में समसूत्री विभाजन के समय कोशिका द्रव्य विभाजन (Cytokinesis) नहीं होता है । ऐसे ऊतक की कोशिकाएँ स्वबहुगुणित प्ररोह उत्पन्न करती हैं ।
(VI) तापक्रम प्रघात द्वारा (By Temperature Shocks):
कम या अधिक तापक्रम (Temperature) के एकान्तर प्रभाव से बहुगुणिता हो सकती है ।
(b) परबहुगुणिता (Allopolyploidy):
जब किसी जीव या कोशिका में दो से अधिक जीनोम्स या गुणसूत्र समुच्च पाए जाए जिनका उद्गम (Origin) अलग-अलग हों तथा जीनोम्स अलग-अलग प्रकार के हों, तब यह दशा परबहुगुणिता कहलाती है एवं कोशिका या जीव परबहुगुणित कहलाता है ।
उदा- एक ही कोशिका में जीनोम्स A तथा B दोनों जोडों AA में BB (परचतुर्गुणित) अथवा AA एवं C जीनोम्स अयुग्मित ABC (परत्रिगुणित) या युग्मित AA BB CC (परषष्टगुणित) पाए जाएं ।
परबहुगुणिता का उद्गम बहुधा संकरण द्वारा होता है । प्रकृति में अनेक फसलो के पौधे परबहुगुणित है, जैसे- गेहूँ, जौ, तम्बाकू, कपास आदि । इनके जीनोम्स अलग-अलग जातियों से प्राप्त हुए है ।
परबहुगुणितों के लक्षण (Characters of Allopolyploids):
1. परिबहुगुणित जातियाँ पर्यावरण के साथ अधिक सफलतापूर्वक स्थापित होती है ।
2. परबहुगुणितों में दोनों जनकों के लक्षणों का समावेश होता है ।
3. इन पौधों में उर्वरता (Fertility) सामान्य होती है ।
4. अधिकतर उत्पन्न पौधे में असंगजननता (Apomixis) पाई जाती है ।
5. फसलों की नई एवं उन्नत जातियों को तैयार किया जाता है ।
सामान्य तम्बाकू (Tobacco):
निकोटिआना टेबैकम (Nicotiana Tabacum) परचतुर्गुणित (4x) है जिसका उद्गम दो द्विगुणित जातियों के प्राकृतिक संकरण से बना है ।
परबहुगुणित कोशिकाओं में अर्धसूत्री-विभाजन के समय अधिकतर बहुयुगल (Multivalent) तथा एकल (Univalent) नहीं बनतें । परबहुगुणित आनुवंशकीय स्तर पर स्थिर होते हैं । परत्रिगुणित बहुधा बाध्य होते है । आपस में सम्बंधित जातियों के जीनोम्स अलग-अलग प्रकार के होते है ।
परन्तु इनके गुणसूत्रों में कुछ समानता या आंशिक समजातियता (Partial Homology) पाई जाती है । अत: ये गुणसूत्र आंशिक समजात (होमिओलोगस) (Homoeologous) कहलाते है तथा जीनोम्स हेमिओलोगस जीनोम्स कहलाती है ।
पष्टगुणित गेहूँ में तीन प्रकार की जीनोम्स पाई जाती है (n = 21 = 3x) ये तीनों जीनोम्स भी आपस में होमिओलोगस होती है, परन्तु अर्धसूत्री-विभाजन के समसूत्रयुग्मन अपने ही समूह के समजात गुणसूत्रों में होता है ।
षष्टगुणित गेहूँ का प्राकृतिक उद्गम (Natural Origin):
यह बहुगुणिता का एक रोचक उदाहरण है तथा उद्गम निम्न प्रकार से माना जाता है:
पौधों में परबहुगुणिता (Allopolyploidy in Plants):
परबहुगुणिता द्वारा निम्न फसलों का विकास किया गया है:
(a) रैफेनोब्रैसिका (Raphanobrassica):
कृत्रिम परबहुगुणिता का एक लोकप्रिय उदाहरण रैफेनोब्रैसिका (Raphanobrassica) है । रूसी वैज्ञानिक (Scientist) जी. डी. कार्पिचेन्को (G.D. Karpechenko) ने मूली (रैफेनस) व गोभी (ब्रैसिका) के संकरण तथा पश्चात् कॉल्चिसीन द्वारा क्रोमोसोम द्विगुणन से एक अन्तरावंशीय (Intergenetic) परबहुगुणित पौधा रैफेनोब्रैसिका (Raphanobrassica) संश्लिष्ट किया है ।
दुर्भाग्यवश इस बहुगुणित पौधे में दोनों जनकों के अनुपयोगी लक्षणों (Useless Characteristics) का संयोग हुआ है । इनमें जड़ गोभी की तथा वायव (Aerial) भाग मूली का था ।
(b) गेहूँ का उदविकास (Evolution of Wheat):
परबहुगुणिता का एक अन्य उदाहरण सामान्य गेहूं (Normal Wheat) के रूप में मिलता है, परन्तु कुछ समय से इसकी परबहुगुणिता प्रवृत्ति विवादास्पद हो गयी है ।
ट्रिटिकम (Triticum) वंश में तीन संजीन (Genomes) पाये जाते है:
(i) AA = ट्रिटिकम एजीलोपॉइडिस (T.Aegilopoides; 2n = 14),
(ii) BB = ऐजीलोप्स स्पेल्टाइडीस (Aegilops Speltoides) 2n = 14;B जीनोम (Genome) के प्रजनक अर्थात् Progenitor के विषय में कुछ सन्देह है और
(iii) DD = ऐजीलोप्स स्कुएरोसा (Aegilops Squarrosa 2n = 14) ।
अत: षटगुणित गेहूँ की संरचना AABBDD चतुर्गुणित (2n = 28) की AABB और द्विगुणित (2n = 14) की AA मानी जाती है । अब ऐसे प्रमाण (Evidence) उपलब्ध हैं, जिनसे सिद्ध होता है कि ऊपर वर्णन की गई A, B और D संजीनों में परस्पर अधिक भिन्नता नहीं होती हैं ।
इसलिए अब यह विश्वास किया जाने लगा है कि सामान्य गेहूँ (Normal Wheat) के तीनों द्विगुणित प्रजनकों (Progenitors) की एक सामान्य पूर्वज से ही व्युत्पत्ति होगी । इसी कारण सामान्य षटगुणित गेहूँ को अब एक परबहुगुणित न मानकर एक स्वबहुगुणित अथवा खण्डीय परबहुगुणित ही माना जाता है ।
(c) संश्लेषित परबहुगुणित (Synthesized Allopolyploids):
प्रकृति (Nature) में मिलने वाले परबहुगुणितों की उत्पत्ति की खोज हेतु कुछ विशिष्ट प्राकृतिक परबहुगुणितों को कृत्रिम रूप से भी उत्पन्न किया गया है । सामान्य षटगुणित गेहूँ (Hexaploid Wheat) एवं चतुर्गुणित कपास ऐसे ही दो उदाहरण हैं ।
इन दोनों और कुछ अन्य उदाहरणों का वर्णन यहाँ संक्षेप में किया जायेगा:
उदाहरण:
(i) ट्रिटिकम स्पेल्टा (Triticum Spelta):
एक प्राकृतिक षटगुणित (Hexaploid) है । ई. एस. मैक्फैडेन (E. S. McFadden) एवं ई. आर. सीयर्स (E.R. Sears) तथा एच. किहारा. (H. Kihara) द्वारा 1946 में इसका कृत्रिम रूप से संश्लेषण किया गया था ।
इन्होंने चतुर्गुणित ऐमर गेहूँ (Tetraploid Emmer Wheat) तथा द्विगुणित (2n = 14) एजीलोप्स स्कुएरोसा (Aegelops Scurosa) का संकरण किया और प्राप्त हुई F1 संकर सन्तति में गुणसूत्र संख्या को दुगुना कर दिया । इस प्रकार जो षट्गुणित (Hexaploid) अथवा उभय-बहुगुणित (Amphipolyploid) संश्लेषित हुआ वह ट्रि. स्पेल्टा के समान पाया गया ।
जब इस संश्लेषित षटगुणित का प्रकृति में पाये जाने वाले ट्रि. स्पेल्टा के साथ संकरण किया गया, तो F1 संकर सन्तति (F1 Genera-Tion) पूर्णरूपेण जनन सक्षम थी और उसमें मियोसिस (Meiosis) के अन्तर्गत गुणसूत्रों (Chromosomes) को सामान्य युग्मित युग्लियों के रूप में पाया गया ।
इससे यह ज्ञात हुआ कि भूतकाल में, चतुर्गुणित गेहूं और एक जंगली घास (Goat Grass) या ऐजीलोप्स स्कुएरोसा (Aegelops Scurosa) के बीच प्राकृतिक संकरण तथा गुणसूत्र (Chromosomes) द्विगुणन के करण ही षटगुणित गेहूँ उत्पन्न हुआ होगा ।
(ii) गौसिपियम हिर्सुटम (Gossypium Hirsutum):
जिसे अपलैण्ड कपास (Upland Cotton) भी कहा जाता है, उभयद्विगुणिता का एक अन्य रोचक उदाहरण है । पुरानी दुनिया की कपास (Old World Cotton) में लम्बे गुणसूत्रों के 13 युग्म होते हैं, जबकि अमेरिकी कपास में अपेक्षाकृत छोटे गुणसूत्रों (Chromosomes) के 13 युग्म होते हैं ।
दीर्घ रेशे (Long Stapled) वाली नई दुनिया की कपास (New World Cotton) में 13 लम्बे और 13 छोटे (कुल 26) गुणसूत्र (Chromosomes) युग्म होते हैं । जे. ओ. बीस्ले (J.O. Beasley) ने अमेरिकी कपास और पुरानी दुनिया की कपास के बीच संकरण किया और F1 संकर सन्ततियों में गुणसूत्र (Chromosomes) संख्या को दुगुना किया ।
इस प्रकार जो उभयद्विगुणित उत्पन्न हुआ व नई दुनिया की शस्य (Cultivated) कपास के समान थी और जब इसका नई दुनिया की कपास के साथ संकरण किया गया, तो जननक्षम (Fertile) संकर प्राप्त हुए ।
इससे इस बात का प्रमाण मिला था, कि नई दुनिया (New World) की चतुर्गुणित कपास, गौसिपियम हिर्सुटम की उत्पत्ति भूतकाल में दो द्विगुणित जातियों अर्थात् गौ. हर्बेसियम (G. Herbaceum 2n = 26) और गौ. रैमीन्डिआई (G. Raimondi; 2n = 26) से हुई होगी ।
(d) मानव निर्मित एक नवीन अनाज, ट्रिटिकेल (Triticale, A New Man Made Cereal):
मनुष्य द्वारा संश्लिष्ट ऐसे फसली पौधे (Crop Plant) की उत्पत्ति का उदाहरण, जिसमें व्यावहारिक मूल्य के लक्षण विद्यमान होने की संभावना है, ट्रिटिकेल (Triticale) है । इसे मुन्जिंग (Muntzing) ने सीकेल सीरिएले (Secale Cereale = राई घास) तथा ट्रिटिकम वल्गरी (गेहूँ) के संकरण तथा तत्पश्चात् संकर में क्रोमोसोम (Chromosomes) द्विगुणन से उत्पन्न किया गया है ।
हाल ही में नई संश्लिष्ट गौण परबहुगुणित (Secondary Polyploids) किस्में (Varieties) उत्पन्न की गई हैं, जिनमें शस्य उपयोगी (Useful) होने की अन्त:शक्तियाँ विद्यमान हैं ।
इनमें ब्रैसिका नेपस (N = 19) X ब्रैसिका जन्सिया (N = 18) के संकरण से उत्पादित ब्रैसिका नेपोजन्सिया (N = 37); ब्रैसिका ओलेरेसिया (N = 9) X ब्रैसिका नेपस (N = 19) के संकरण से ब्रैसिका ओलेरेसियानेपस (N = 28); ब्रैसिका कैम्पेस्ट्रिस (N = 10) X ब्रैसिका जन्सिया (N = 18) के संकरण से ब्रैसिका जन्सिया कैम्पेस्ट्रिस (N = 28) तथा ब्रैसिका नेपस (Brassia Napus) (N = 19) के संकरण से उत्पादित ब्रैसिका नेपोकैम्पोट्रिस (N = 29) सम्मिलित है ।
(c) स्वपरबहुगुणिता (Autoallopolyploidy):
यह स्थिति स्वबहुगुणिता (Autopolyploidy) तथा परबहुगुणिता (Allopolyploidy) के परस्पर मिलने से बनती है । स्वपरबहुगुणिता-जीवों में गुणसूत्रों की स्थिति विभिन्न प्रकार की हो सकती है तथा इन्हें AA AA BB या AA BB BB अथवा AA AA BB BB प्रकार से प्रदर्शित किया जा सकता है ।
रासायनिक-पदार्थों के उपचार में पॉलीप्लॉयडी उत्पन्न करना (Production of Polyploidy by Chemical-Treatment):
कॉल्चिसीन (Colchicine) एक ऐल्केलॉइड होता है, जो कुल-लिलिऐसी (Family-Liliaceae) के कॉल्चिकम ऑटमनेल (Colchicum Autumnale) नामक पौधे के कन्दों (Tubers) से निकाला जाता है ।
कॉल्चिसीन का प्रयोग औषधि के रूप में गठिया, जिगर तथा तिल्ली के रोगों के उपचार के लिए भी किया जाता है । कॉल्चिसीन का महत्त्वपूर्ण प्रभाव क्रोमोसोम्स की संख्या दुगुनी करने में होता है ।
इसके अतिरिक्त निम्नलिखित रासायनिक पदार्थ भी पौधों में पॉलीप्लॉयडी उत्पन्न करने के लिए प्रयोग में लाए जाते हैं:
1. क्लोरोफॉर्म (Chloroform),
2. निकोटिन सल्फेट (Nicotine Sulphate),
3. वेरेट्रिन सल्फेट (Veretrine Sulphate),
4. हॉर्मोन्स (Hormones) ।
उपरोक्त रासायनिक पदार्थों के प्रयोग में कोशिकाओं में तर्कु (Spindle) का निर्माण नहीं हो पाता है, जिससे ऐनाफेज (Anaphase) अवस्था में दोनों केन्द्रकें आपस में संयोजित (Fused) हो जाती हैं, जिसके फलस्वरूप क्रोमोसोम्स की संख्या दुगुनी हो जाती है ।
बहुगुणित-पौधों के उत्पादन की विधियाँ (Methods of Production of Polyploid Plants):
संश्लेषित-परबहुगुणित पौधे:
कृत्रिम- संकरण तथा गुणसूत्र द्विगुणन के द्वारा नई-नई जातियों अथवा वंशों के परबहुगुणित पौधे प्राप्त किए जा सकते है ।
उदाहरण:
(i) रैफेनोब्रैसिका (Raphanobrassica) 2n=36, यह मूली (रफैनस सटाइवस n = 9) तथा पत्तागोभी ब्रैसिका ओलीरेशिया n = 9 से उत्पन्न किया गया उभयगुणित संकर है ।
(ii) ट्रिटिकेल (Triticale)- यह मानव द्वारा निर्मित अनाज कहलाता है जो चतुर्गुणित गेहूँ ट्रिटिकम (2n = 28) तथा द्विगुणित राई (Rye)-सीकेल (2n = 14) के संकरण तथा गुणसूत्र द्विगुणन से प्राप्त किया गया है । इस धान्य का एग्रोनोमिक महत्व बहुत अधिक है । ट्रिटिकम ड्यूरम सीकेल सीरेल (2n = 14) ट्रिटिकेल 2n = 42 ।
(iii) निकोटियाना डिग्लुटा (Nicotiana Digluta) 2n = 72, यह जंगली द्विगुणित जाति निग्लुटिनोजा 2n = 24 को नि. टेबेकम के साथ संकरण कर प्राप्त की गई है ।
(iv) गोसिपियस हिर्सटुम (Gossypium Hirsutum) 2n = 52- जिसे अपलैण्ड कपास भी कहा जाता है, उभय बहुगुणिता का एक अन्य रोचक उदाहरण है । पुरानी दुनिया की कपास में लम्बे गुणसूत्रों के 13 युग्म होते है ।
इन दोनों प्रकार की कपास की जातियों से संकरण किया गया तथा बन्ध्य संकर में गुणसूत्र द्विगुणन प्रेरित कर जनन संकर प्राप्त हुआ । प्राकृतिक चर्तुगुणित कपास की उत्पत्ति भी भूतकाल में दो द्विगुणित जातियों के संकरण से हुई होगी ।
बहुगुणिता के उपयोग (Uses of Polyploidy):
(1) बीज रहित त्रिगुणित फलों जैसे तरबूज का आर्थिक महत्व अधिक है ।
(2) बहुगुणिता के द्वारा रोग प्रतिरोध क्षमता भी बढ़ाई जा सकती है ।
(3) विदेशी गुणसूत्र (Alien Chromosome) का किसी जाति में संयोजन (Alien Addition) तथा विदेशी गुणसूत्र द्वारा किसी जाति के गुणसूत्र की प्रतिस्थापना (Alien Substitution) ।
ये दोनों विधियाँ पेड़-पौधो के सुधार के लिये पादप प्रजनकों द्वारा अपनाई जाती है । द्विगुणित पौधों में यह बहुत कठिन होता है, परन्तु बहुगुणित पौधों में यह अपेक्षाकृत सरल होता है ।
(4) परबहुगुणिता का विकास (Evolution) में बहुत महत्व है । प्रकृति में भी अनेक जातियाँ बहुगुणन द्वारा उत्पन्न हुई है । षष्टगुणित ब्रेड गेहूँ का उद्गम तथा विकास एक रोचक उदाहरण है । बहुगुणिता का एक अन्य उदाहरण कपास का विकास है ।
(5) चर्तुगुणित जातियाँ अपने द्विगुणित की अपेक्षा अधिक संकर ओज वाली होती है ।
(6) पुष्प तथा पत्तियों का आकार बड़ा होता है । अत: बहुगुणिता सजावटी पौधों में महत्वपूर्ण है ।
(7) बहुगुणित फलों में विटामिन की मात्रा भी अधिक होती है ।
(8) परबहुगुणिता प्रेरित कर नई आर्थिक रूप से अधिक महत्वपूर्ण किस्मों जातियाँ तथा वंश विकसित किए जा सकते है । जैसे- ट्रिटिकेल ।
Type # 2. ऐन्यूप्लॉइडी (Aneuploidy):
यह गुणसूत्रीय समुच्चय के एक या अधिक जोड़ों में परिवर्तन होता है ।
(वृद्धि या हानि) यह दो प्रकार का होता है:
(i) हाइपोप्लॉइडी (Hypoploidy):
गुणसूत्रों की सामान्य संख्या में कमी को हाइपोप्लॉइडी कहा जाता है ।
यह निम्न प्रकारों का हो सकता है:
(a) मोनोसोमी (Monosomy (2n-n))- गुणसूत्रों के डिप्लाइड सेट से एक गुणसूत्र की हानि को मोनोसोमी (Monosomy) कहा जाता है । इन्हें 2n-1 लिखा जाता है । एकल मोनोसोमिक, 2n-1, दोहरे मोनोसोमिक 2n-1-1 तथा तिहरे मोनोसोमिक, 2n-1-1-1 होते हैं ।
(b) नलीसोमी (Nullisomy (2n-2))- यह डिप्लॉइड सेट के गुणसूत्र के एक जोड़े की हानि होती है । इसे 2n-2 द्वारा अभिव्यक्त किया जाता है ।
(ii) हाइपर प्लॉइडी (Hyperploidy):
एक डिप्लॉइड सेट में एक या अधिक गुणसूत्रों की वृद्धि को हाइपर प्लॉइडी (Hyperploidy) कहा जाता है ।
यह निम्न प्रकारों का होता है:
(a) ट्राइसोमी (Trisomy)- यह डिप्लॉइड जीव में एक अतिरिक्त गुणसूत्र की वृद्धि होती है । इसे 2n + 1 द्वारा व्यक्त किया जाता है । ये n + 1 तथा n गुणसूत्रों की संख्या वाले युग्मकों के सग्मोकों से उत्पन्न होते हैं । वे एकल ट्राइसोमिक (Trisomic) (2n + 1), दोहरे ट्राइसोमिक (2n + 1 + 1) प्रत्येक जोड़े में एक गुणसूत्र की वृद्धि तथा तिहरे ट्राइसोमिक (2n + 1 + 1 + 1) हो सकते है ।
(b) टेट्रासोमी (Tetrasomy)- यह समजात गुणसूत्रों के एक अतिरिक्त जोड़े की वृद्धि होती है (2n + 2) । उदाहरण- ABC.ABC, AA ।