Read this article in Hindi to learn about the significance of gene cloning.

(1) यूरोकाइनेस जीन की क्लोनिंग (Cloning of Urokinase Gene):

यूरोकाइनेस एक एन्जाइम होता है, जो कि रक्त के थक्के को घोलने में सहायता करता है । जीवाणु (Bacteria) वंशों में विकसित किया गया है, जिसमें यह क्षमता होती है कि इस एन्जाइम को अत्यधिक मात्रा में संश्लेषित कर सके ।

संजीव कोशिकाओं में से यूरोकाइनेज को पृथक् करने का मूल्य अधिक होता है क्योंकि मानव (Human) कोशिकाओं को जिनका उपयोग पृथक्करण के लिए होता है, उसके संवर्धन का मूल्य अत्यधिक होता है ।

(2) पेनिसिलीन G एसाइलेज जीन का क्लोनिंग (Cloning of Penicillin G Acylase Gene):

सिलीन G एसाइलेज (Acylase) जीन पेनिसिलीन (Penicillin) G को 6-APA (अमीनो पेनिसिलेनिक ऐसिड = Aminopenicillanic Acid) में परिवर्तित करता है, जोकि नवीन संश्लेषित पेनिसिलीन (Novel Synthetic Penicillin) उत्पादन के लिए एक उपयोगी अध:स्तर (Substrate) पर होता है ।

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अत: 6-APA एवं इसके फलस्वरूप पेनिसिलीन एसाइलेज एन्जाइम (Enzyme) का प्रतिजैविक उद्योग (Antibiotic Industry) में महत्व होता है । यह आनुवंशक/जीन (Gene) ईश्चेरीशिया कोलाई (Escherichia Coli) वंश (Strain) ATCC 11105 में जाता है और यदि बहुविधि प्लाज्मिड वाहक (Plasmid Vector) में स्थानान्तरित होता है, तब एन्जाइम (Enzyme) क्रियाशीलता में वृद्धि हो जाएगी ।

जीन/आनुवंशक (Gene), ईश्चेरीशिया कोलाई (Escherichia Coli) में पाए जाने वाले प्लाज्मिड pBR 322 से क्लोण्ड होता है जोकि 50 प्रतिलिपि प्रति कोशिका (Cell) की दर से करता है, जबकि एन्जाइम उत्पादन में 6 गुना वृद्धि होती है । यह तंत्र अधिक स्थिर होता है और धनात्मक प्रोत्साहित करने वाले परिणाम प्राप्त होते हैं ।

(3) मानव मलेरिया जीन का क्लोनिंग (Cloning of Human Malarial Gene):

मलेरिया परजीवी के कारण मानव (Human) स्वास्थ्य रक्षा को संकट एवं भय है । प्लाज्मोडियम फेल्सीपेरम (Plasmodium Falciparum) के लिए कोई भी मलेरिया प्रतिरोधी वैक्सीन विकसित (Develop) नहीं हुई है ।

आधुनिक समय में प्लाज्मोडियम फेल्सीपेरम (Plasmodium Falciparum) स्पोरोज्वाइट (Sporozoite) के सतही प्रोटीन के लिए आनुवंशक/जीन कूट के क्लोनिंग के कारण वैक्सीन के विकास की आशा है ।

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मानव (Human) पोषक में मलेरिया परजीवी अनेक प्रति आनुवंशिक अवस्थाओं से गुजरता है, जैसा कि:

(a) स्पोरोजोइट (Sporozoite)- वह रूप जिसमें मच्छर के काटने पर शरीर में प्रवेश करता है- स्पोरोजोइट यकृत में प्रवेश करने के पश्चात् गुणन कर मीरीज्वाइट (Merozoite) में विकसित होती है ।

(b) मीरोज्वाइट (Merozoite)- इसके उपरान्त लाल रक्ताणुओं में प्रवेश कर गुणन करता है । छोटे अंशों में मीरोच्वाट्स लाल रक्ताणुओं (Red Blood Corpuscles) में बनते हैं और बाद में गैमीटोसायट (Gametocyte) को बनाते हैं ।

(c) गैमीटोसायट (Gametocyte)- इनको मच्छर के द्वारा प्राप्त कर दूसरा चक्र प्रारम्भ किया जाता है ।

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अत: वैक्सीन विकसित हो सकती है और इन अवस्थाओं में से किसी एक को नियन्त्रित कर सकती है और उस अवस्था के अनुसार प्रतिस्पोरोज्वाइट वैक्सीन कहलाती है और टीकाकृत व्यक्ति में मलेरिया को रोकती है और फैलने से रक्षा करती है । एण्टीमीरोज्वाइट (Antimerozoite) वैक्सीन जो रोगी को ठीक कर सकती है, लेकिन मलेरिया को फैलने से नहीं रोक सकती है ।

प्रतिगैमीटोसाइट/एण्टीगैमीटोसायट (Antigametocyte) वैक्सीन यह रोगी को बिना सहायता किए मलेरिया को फैलने से रोकता है । इन वैक्सीन में से प्रतिस्पोरोज्वाइट/एण्टीस्पोसेज्वाइट (Antisporozoite) वैक्सीन अवलोकन में है क्योंकि जीन क्लोनिंग का आशय सर्कमस्पोरोज्वाइट प्रोटीन, Cs (Cirumsporozoite Protein, Cs) से होता है ।

यह सीधे लाल रक्ताणु/इरिथ्रोसाइट रूप के परजीवी को डी.एन.ए. से प्राप्त किया जाता है, इसकी अपेक्षा mRNA से cDNA की अपेक्षा प्राप्त होता है । समय के अनुसार यह वैक्सीन (Vaccine) के संश्लेषण में Cs प्रोटीन के संश्लेषण के द्वारा सहायता करती है ।

(4) मानव ल्यूकोसाइट इण्टरफेरॉन जीन का क्लोनिंग (Cloning of Human Leucocyte Interferon Gene):

इण्टरफेरॉन एक प्रतिविषाणु (Antiviral) कारक है, जो कोशिका में प्रतिरोधी दशा को उत्प्रेरित करता है और इस प्रकार मनुष्यों में विषाणु मध्यस्थ विकृतियों को नियन्त्रण करने में सहायता करता है । मनुष्य में दो मुख्य प्रकार के इण्टरफेरॉन (Interferon) के वर्ग-ल्यूकोसाइट इण्टरफेरॉन (Leucocyte Interferon) एवं फाइब्रोब्लास्ट इण्टफेरॉन (Fibroblast Interferon) ज्ञात है ।

वर्तमान में मानव ल्यूकोसाइट (Leucocytes) जो इण्टरफेरॉन के उत्पादन में सम्मिलित होता है, इण्टरफेरॉन (Interferon) के लिए mRNA को पृथक् किया जाता है और cDNA के उत्पादन के लिए उपयोग होता है [डी.एन.ए. की प्रतिलिपि या संपूरक डी.एन.ए. (Complementary DNA)] यह cDNA प्लाज्मिड वाहक pBR 332 में क्लोण्ड (Cloned) किया जाता है और इसमें से एक क्लोन कुशलतापूर्वक जैविकीय सक्रिय इण्टरफेरॉन (Interferon) का उत्पादन 10,000 इण्टरफेरॉन (Interferon) की इकाई की सक्रियता कोशिका के प्रति ग्राम की दर से करता है । इन क्लोन (Clone) की उपलब्धता के पूर्व 50gm इण्टरफेरॉन का मूल्य 16 मिलियन संयुक्त राज्य अमेरिका डॉलर के समान था ।

(5) हैपेटाइटिस B-विषाणु जीनोम का क्लोनिंग (Cloning of Hepatitis-B Virus Genome):

हैपेटाइटिस B विषाणु (Virus HBV) के द्वारा अत्यधिक घातक रोग (Disease) उत्पन्न किए जाते है, जैसे कि- स्फूर्जित दीर्घकालिक हैपेटाइटिस (Fuminant Chronic Hepatitis), सिरहोसिस (Cirrhosis) एवं प्रायमरी यकृत कैसर (Primary Live Cancer) आदि ।

वर्तमान में यह सम्भव हो सका है कि HBV के क्लोन (Clone) बना सके – HBV से संक्रमित रोगी से डी.एन.ए. (DNA) को प्राप्त किया जाता है । क्लोनिंग (Cloning) के लिए फेज/भक्षक (Phage) व्युत्पन्न एवं प्लाज्मिड वाहक का उपयोग किया जाता है ।

हिपेटाइटिस B वायरस (HVB) जिनोम की क्लोनिंग:

HBV जिनोम को प्लाज्मिड pBR 322 में क्लोन व इश्चॅरिचिया कोलाई (E. Coli) में प्रोपेगेट किया जा चुका है । इस क्लोन से उत्तम मात्रा में प्रतिजन उत्पादित किया जा सकता है, जो हिपैटाइटिस B कोर प्रतिरक्षी (HBA) से क्रिया करता है । इसलिए इसका हिपैटाइटिस B टीका बनाने में किया गया है, जो बाद में अनेक देशों में जनसंख्या के टीकाकरण (Vaccination) के लिए अनुमोदित किया गया था ।

(6) फूट व माउथ रोग (FMD) विषाणु हेतु टीका:

(FMD) तो जन्तुओं का एक अति गंभीर रोग है, जो पिकॉर्ना विषाणु समूह (Group) से संबंधित RNA वायरस के द्वारा होता है । यह केप्सिड द्वारा घिरे 8000 न्यूक्लिओटाइड्स के RNA अणु में बना है । VP1, VP2, VP5 व VP4 नामक चार प्रोटीन्स के 60 कॉपियों से केप्सिड बना होता है ।

VP1 में ही कुछ इम्युनोजेनिक सक्रियता रहती है । हेतु कोडिंग जीन (Coding Gene) की पहचान की जा चुकी है एवं pBR 322 पर क्लोन किया गया है । इश्चॅरिचिया कोलाई में रिकॉम्बिनेंट प्लाज्मिड को प्रवेश कराया गया है । इश्चॅरिचिया कोलाई (E. Coli) में रिकॉम्बिनेंट प्लाज्मिड को प्रवेश कराया गया था । VP1 के 1000 अणु प्रति बैक्टीरियल कोशिका संश्लेषित किये गये थे ।

(7) फार्मास्युक्टिकल्स का उत्पादन:

चिकित्सात्मक रूप से उपयोगी मानव पेप्टाइड्‌स एवं प्रोटीन्स (Proteins) (जैसे- मानव वृद्धि, हॉर्मोन्स (Hormone) इन्स्युलिन, सोमेटोस्टेटिन व इण्टरफेरीन) का उत्पादन बहुत महत्व का है ।

(8) मानव पेप्टालइट के जीन का क्लोनिंग (इन्सुलिन एवं मानव वृद्धि हॉर्मोन्स) (Cloning Genes of Human Peptide Hormones-Insulin and Human Growth Hormone):

इन्सुलिन (Insulin) व मधुमेह (Diabetes) के उपचार (Treatment) के लिए आवश्यक होती है क्योंकि यह शकर का विघटन करती है एवं वृद्धि हॉर्मोन जीन ई. कोलाई में अभिव्यक्त नहीं होते हैं, इनके क्लोनिंग (Cloning) के लिए विशेष प्रकार की योजनाएँ विकसित की गई थी ।

प्राणी इन्सुलिन मानव इन्सुलिन से भिन्न होती है, अत: मानव के उपभोग (Consumption) के लिए आदर्श नहीं है । मानव इन्सुलिन में दो पॉलिपेप्टाइड श्रृंखलाएँ (Polypeptide Chains) होती हैं, जिनके अमीनो अम्ल क्रम ज्ञात थे ।

इस सूचना के आधार पर इन्सुलिन जीन की संरचना पर कार्य किया गया और रासायनिक रूप से संश्लेषित किया गया डी.एन.ए. (DNA) अंश/खण्ड जो इन्सुलिन जीन को प्रदर्शित करता है, ई. कोलाई के गैलोकोसाइडेज जीन से समायोजित किया और प्लाज्मिड (Plasmid) pBR 232 में क्लोण्ड किया गया । जीन अभिलेखित (Transcribed) अनुवादित (Translated) कर एक स्थिर प्रोटीन को निर्मित किया जिसका उपयोग मानव इन्सुलिन को प्राप्त करने में किया गया ।

यह अनुमान लगाया कि क्लोन जो विकसित हुआ है उससे 1,00,000 इन्सुलिन के अणुओं को विकसित किया जा सकता है । डॉ. सरन नारंग (Dr. Saran Narang) मानव इन्सुलिन जीन (Human Insulin Gene) के संश्लेषण पर कार्य कर रहे हैं ।

(9) कृषि में उपयोग:

जीवाणुओं (Bacteria) के नाइट्रोजन स्थिरीकरण से संबंधित जीन को मुख्य अनाज व फसलों में स्थानांतरित किया जा सकता है, जिससे महंगे उर्वरक के उपयोग बिना ही खाद्य-उत्पादन में क्रांति आ सके । अनाज में ‘निफ’ जीन (Nif-Gene) डालकर नाइट्रोजन फिक्सेशन (या स्थिरीकरण) ।

जीन-मैनीपुलेशन की सहायता से ऐसी अनाज की फसलें उगाई जा सकती हैं जिनमें पास रोग, सूखा कीट-पतंग तथा हर्बिसाइड (या शाक-विनाशी) से लड़ने की क्षमता (Capacity) होती है । ये फसलें आनुवंशिक रूप से परिवर्तित भोजन प्रदान करती है ।

(10) DNA टीके:

DNA टीक उन DNA क्रम का बना होता है, जो संबंधित इम्युनोजेनिक प्रोटीन को एन्कोड करता है । जीन (Gene) को संक्रामक जीव (जिसके विरुद्ध टीका चाहिए) के अलग किया जाता है एवं क्लोन किया जाता है ।

किसी यूकैरियॉट (वरीयत:मनुष्य) के प्रमोटर को जीन से संगलित किया जाता है ताकि मानव कोशिकाओं में इस जीन (Gene) की अभिव्यक्ति सहज हो । इस जीन रचना को मानव पेशी कोशिकाओं में डिलीवर किया जाता है एवं अभिव्यक्त कराया जाता है, जिससे इम्युनोजेनिक प्रोटीन का संश्लेषण होता है, जो ह्यूमोरल व सेल मीडियेटेड (दोनों) इम्युनिटी (Immunity) को प्रेरित करता है ।

(11) चिकित्सीय उपयोग:

बैक्टीरिया का उपयोग ‘जीवित कारखानों’ की तरह किया जा सकता है, जो इंसुलिन ग्रोथ-हॉरमोन इंटरफेरॉन्स विटामिन तथा एंटीबॉडी को बनाते हैं, इसके लिए जीवाणुओं में प्लाज्मिड के साथ-साथ उन जीन (Gene) को भी प्रवेश कराया जाता है, जो इन पदार्थों के लिए कोड करते हैं ।

भ्रूण में त्रुटिपूर्ण जीन- भ्रूण में त्रुटिपूर्ण जीन (Defected Gene) का पता लगाने के लिए भी रिकॉम्बिनेंट डीएनए तकनीक का उपयोग किया जाता है । इनमें से कुछ जीन (Gene) को सुधारा भी जा सकता है ।

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