Read this article in Hindi to learn about the two main theories of gene expression. The theories are:- 1. एक जिन एक एन्जाइम सिद्धान्त (One Gene-One Enzyme Theory) 2. एक जीव एक पॉलीपेप्टाइड सिद्धांत (One Gene One Polypeptide Concept).

कुछ वैज्ञानिकों ने जीनों की अभिव्यक्ति की क्रियाविधि से संबंधित परिकल्पनाएँ प्रस्तुत की है ।

जिनमें से प्रमुख निम्नलिखित हैं:

(1) एक जीन एक एन्जाइम सिद्धान्त (One Gene-One Enzyme Theory),

ADVERTISEMENTS:

(2) एक जीन एक पॉली पेप्टाइड सिद्धान्त (One Gene One Polypeptide Theory) ।

(1) एक जिन एक एन्जाइम सिद्धान्त (One Gene-One Enzyme Theory):

बीडल एवं टॉटम ने अपने प्रयोगों द्वारा प्रतिपादित किया कि एन्जाइमों (जो कि प्रोटीन होते हैं) के संश्लेषण के लिए सूचनाएं जीन में निहित होती हैं । इनके सिद्धान्त के अनुसार जीवों के शरीर में एक जिन एक विकर का संश्लेषण करके उसके द्वारा जीवों की विभिन्न क्रियाओं या लक्षणों को नियंत्रित करते हैं ।

प्रसिद्ध वैज्ञानिक जार्ज बिडल एवं टॉटम ने न्यूरोस्पोरा (Neurospora) नामक कवक (Fungus) पर जीन क्रिया का अध्ययन किया और उन्होंने स्पष्ट रूप से बताया कि इस कवक में सुचारू रूप से वृद्धि बायोटिन (Biotin) नामक प्रोटीन, शर्करा (Sugar) सुगर सरल यौगिक तथा अमोनिया (Ammonia) के संवर्धन में होती है ।

ADVERTISEMENTS:

इस कवक (Fungus) के कोशिकाद्रव्य (Cytoplasm) में 20 प्रकार के अमीनो अम्ल (Amino Acids) पाये जाते हैं । ये अम्ल प्रायः स्वतंत्र अवस्था में पाये जाते हैं अथवा प्रोटीन्स (Proteins), प्यूरीन्स (Purines), पिरेमिडीन्स (Pyramidines) DNA या RNA के रूप में उपस्थित होते हैं ।

यह सभी पदार्थ संवर्द्धन माध्यम (Culture Medium) में उपस्थित नहीं होते हैं । अत: स्पष्ट हो जाता है कि इनका संश्लेषण न्यूरोस्पोरा (Neurospora) द्वारा ही होता है ।

यदि न्यूरोस्पोरा (Neurospora) कवक के एस्कोस्पोर्स (Ascospores) को उत्परिवर्तन (Mutagen) द्वारा उपचारित करके संवर्द्धन माध्यम में उगाया जाता है तो उनमें वृद्धि नहीं होती है, क्योंकि माध्यम (Medium) में आर्जिनीन (Argenine) पदार्थ नहीं होता है ।

जब इन एस्कोस्पोर्स को आर्जिनीनयुक्त माध्यम पर रखा जाता है, तो यह वृद्धि करने लगते हैं । अत: स्पष्ट हो जाता है कि एस्कोस्पोर्स में कुछ ऐसे जीन्स (Genes) होते हैं जिनमें उत्परिवर्तन (Mutation) के फलस्वरूप आर्जिनीन (Arginine) संश्लेषण करने की क्षमता आ जाती है ।

ADVERTISEMENTS:

इस क्रिया में सात विकर (Enzymes) भाग लेते हैं और एक अलग जीन (Gene) द्वारा प्रत्येक विकर (Enzyme) का संश्लेषण होता है । अत: एक जीन एक एन्जाइम सिद्धान्त सिद्ध हो जाता है ।

(2) एक जीव एक पॉलीपेप्टाइड सिद्धांत (One Gene One Polypeptide Concept):

आधुनिक अनुसंधान से यह सिद्ध हो गया है कि सभी प्रोटीन (एन्जाइम) एक ही श्रृंखलाओं से भी बनते हैं । उदाहरण के लिए, हीमोग्लोबिन दो पोलीपेप्टाइड श्रृंखला का बना होता है और प्रत्येक पोलीपेप्टाइड श्रृंखला का संश्लेषण अलग-अलग जीनों द्वारा स्वतंत्र रूप से होता है ।

इनग्राम ने यह प्रतिपादित किया कि एक जीन एक पोलीपेप्टाइड श्रृंखला के संश्लेषण को नियंत्रित करता है न कि सम्पूर्ण एन्जाइम या प्रोटीन अणु को । वैज्ञानिकों ने उस कार्यशील DNA खण्ड को सिस्ट्रान (Cistron) नाम प्रदान किया, जो एक पोलीपेप्टाइड श्रृंखला के संश्लेषण से नियंत्रित करता है या एक t-RNA or m-RNA के लिए कोड करता है ।

इस सिद्धांत को समझने के लिए नीग्रो जाति के मनुष्यों में होने वाला हंसियाकार रक्त अल्पता (Sickle Shaped Anemia) नामक रोग इसका एक उपयुक्त उदाहरण है । शिरा रुधिर या अशुद्ध रुधिर (Venous Blood) में लाल रुधिर कणिकाओं की आकृति में परिवर्तन इसका एक विशेष गुण है ।

ऑक्सीजल की कमी के फलस्वरूप एरिथ्रोसाइट्स (Erythrocytes) अपनी सामान्य आकृति से विचलित होकर दरांती के समान (Sickle Shaped) हो जाते हैं, जिससे कणिकाएँ भिन्नित हो जाती हैं और हीमोलाइटिक रुधिर क्षीणता (Hemolytic Anaemia) उत्पन्न हो जाती है ।

हीमोग्लोबिन एक प्रोटीन (Protein) होती है जो लगभग अमीनो अम्ल के 600 अणुओं की बनी होती है, ये अणु (Molecules) चार पोलीपेप्टॉइड श्रृंखलाओं में विन्यस्त होते हैं ।

विषाणु, अन्त:कोशिकीय (Intracellular) अविकल्पी परजीवी (Obligate Parasites) हैं, जो नाभिकीय अम्ल व प्रोटीन से मिलकर बने होते हैं । कोशिका से बाहर यह अक्रिय (Inert) रहते हैं । कोशिका से बाहर के अक्रिय विषाणु से विरिऑन (Virion) कहा जाता है ।

टोबेको मोजेक वाइरस (Tobacco Mosaic Virus) सबसे पहले खोजा जाने वाला विषाणु था । एडॉल्फ मेयर (Adolf Mayer) ने 1880 में बताया कि रोगी पौधे के रस द्वारा टोबेको मोजक रोग स्वस्थ पौधे में संचारित हो जाता है ।

इवानोवस्की (Iwanowsky) को विषाणु की खोज का श्रेय दिया जाता है । उसने बताया कि रोगी पौधे के रस (Sap) को अगर बैक्टीरियल फिल्टर (Bacterial Filter) से छान लिया जाये, तब भी रस में स्वस्थ पौधे के संक्रमित करने की क्षमता होती है । स्टेनले (Stanley) ने सर्वप्रथम विषाणुओं को क्रिस्टल रूप में प्राप्त किया ।

विषाणुओं में केवल एक प्रकार का नाभिकीय अम्ल (अर्थात्‌ डी. एन. ए. या आर. एन. ए.) पाया जाता है । उनमें कोशिकीय संरचना का अभाव होता है ।

चूँकि विषाणुओं में अपनी कोशिकीय मशीनरी नहीं होती, अत: अपनी जीन की अभिव्यक्ति के लिए अपने जनन के लिए वह पोषक कोशिका की कोशिकीय मशीनरी (जैसे- राइबोसोम, एंजाइम आदि) का इस्तेमाल करते हैं । विषाणु जीन की क्रिया भी विषाणु को पोषक कोशिका (Host Cell) को संक्रमित करने योग्य बनाने के लिए होती है ।

कोशिका के अन्दर विषाणुओं की क्रिया दो प्रकार की होती है:

(1) लाइटिक चक्र (Lytic Cycle),

(2) लाइसोजेनिक चक्र (Lysogenic Cycle) ।

कुछ विषाणु रिवर्स ट्रांसक्रिप्शन (Reverse Transcription) क्रिया का प्रदर्शन करते हैं । जिसमें अनेक विषाणु जीनों (Viral Genes) पहचान की जा चुकी है, जो कोशिका में कैंसर उत्पन्न करने में सक्षम होती है । आश्चर्य की बात यह है कि कुछ छोटे-मोटे बदलावों के साथ इस तरह की जीन सामान्य कोशिकाओं में भी उपस्थित होती हैं ।

इन जीनों को प्रोटोओकोजीन (Protoonco-Genes) कहा जाता है । कोशिकीय आंकोजीन (Cellular Oncogenes) सामान्य कोशिका में कुछ वृद्धि कारकों (Growth Factor) का निर्माण करती हैं ।

कैंसर का प्रारंभ एक जटिल प्रक्रिया है, जिसमें विषाणु की आंकोजीन (Viral Oncogenes) या सक्रिय कोशिकीय ओंकोजीन (Activated Cellular Oncogene) के उत्पाद (Products) कोशिकाओं में अनियमित, अनियन्त्रित वृद्धि प्रारंभ कर देते हैं ।

प्रोकेरियोट् में जीन अभिव्यक्ति का नियमन (Regulation of Gene Expression in Prokaryotes):

सरल संरचना व कार्यिकी के करण प्रोकैरियोट्‌स में जीन्स की संख्या यूकैरियोट्स की अपेक्षा कम होती है । जीवाणु एस्चीरीचिया कोलाई (Escherichia Coli) में लगभग 4000 जीन्स पाये जाते हैं ।

इनमें से कुछ जीन्स ऐसे प्रोटीन्स को कोड करते हैं जिनकी एक कोशिका में हर समय आवश्यकता होती है । आधारभूत जैव रासायनिक क्रियाओं जैसे- ग्लाइकोलिसिस (Glycolysis) में कम आने वाले प्रोटीन्स अर्थात् एंजाइम की एक कोशिका को हर समय आवश्यकता होती है ।

अर्थात् इन एंजाइमों के संश्लेषण से संबंधित सूचना की कोशिका को हर समय आवश्यकता होती है । ऐसे जीन्स (Genes) जिनके द्वारा अनुलेखन (Transcription) का कार्य लगातार होता रहता है संगठनात्मक जीन (Constitutive Genes) कहलाते हैं ।

अन्य जीनों (Genes) के उत्पाद की आवश्यकता जीवाणु कोशिका की विशेष परिस्थितियों में ही होती है, अत: उनसे संबंधित अनुलेखन (Transcription) भी विशेष परिस्थितियों में ही होता है ।

एक उदाहरण द्वारा जीवाणु कोशिका में संसाधनों के किफायती उपयोग के लिए जीन अभिव्यक्ति नियमन को आसानी से समझा जा सकता है । गाय के बछड़े (Calf) के कोलोन (Colon) में रहने वाले जीवाणु एस्चीरीचिया कोलाई (Excherichia Coli) में लेक्टोज शर्करा के अपचय (Catabolism) से संबंधित सभी विकारों का उत्पादन नियमित रूप से होता रहता है ।

बछड़ा दूध पर निर्भर रहता है और लेक्टोज दूध में पायी जाने वाली प्रमुख शर्करा है । जीवाणु अपना भोजन इसी से प्राप्त करता है । लेकिन एक वयस्क गाय के कोलोन (Colon) में रहने वाले जीवाणु को लेक्टोज नहीं मिलता क्योंकि वयस्क गाय दूध नहीं पीती ।

ऐसी अवस्था में ऊर्जा दक्षता और संसाधनों के किफायती उपयोग के लिए वयस्क गाय के ई.कोलाई में लेक्टोज शर्करा के अपचय (Catabolism) से संबंधित विकरों (Enzymes) का संश्लेषण नहीं होता । स्पष्ट है कि जीवाणु में इन विकारों के संश्लेषण की क्षमता समाप्त नहीं होती ।

अगर यह क्षमता समाप्त हो गई तो भविष्य में लैक्टोल शर्करा के रूप में पर्याप्त भोजन कि उपस्थिति में भी जीवाणु कि भोजन कि कमी के कारण मृत्यु हो सकती है । दूसरी ओर जगर जीवाणु लैक्टोज कि अनुपस्थिति में भी इसके अपचय (Catabolism) से संबंधित विकर (Enzymes) बनाना जारी रखता है तो उसके महत्वपूर्ण संसाधनों का व्यर्थ में क्षय होता है ।

जीवाणु ई. कोलाई इस स्थिति से बखूबी निबटता है । इस समस्या के समाधान के लिए लैक्टोज शर्करा कि अनुपस्थिति में उसके अपचय (Catabolism) से संबंधित विकारों का उत्पादन बन्द कर दिया जाता है । यह कार्य जीन अभिव्यक्ति नियमन द्वारा ही होता है ।

Home››Genetics››Gene Expression››