Read this article in Hindi to learn about:- 1. जिन चिकित्सा का अर्थ (Meaning of Gene Therapy) 2. जीन-चिकित्सा के लिए रोगों का चुनाव (Selection of Diseases for Gene Therapy) 3. प्रकार (Types) 4. उपयोग (Uses).

जिन चिकित्सा का अर्थ (Meaning of Gene Therapy):

किसी खराब या अनियन्त्रित जीन को उसके विकल्प जीन से बदलने की प्रक्रिया को जीन-थिरैपी (Gene Therapy) कहते हैं । मनुष्य 5000 से अधिक एकल जीन म्यूटेशनों (Single Gene Mutation) से उत्पन्न बीमारियों, जैसे- सिस्टिक फाइब्रोसिस (Cystic Fibrosis), सिकल सेल ऐनीमिया (Sickle Cell Anaemia), हन्टिंग्टन कोरिया (Huntington’s Chored), हन्टर्स सिन्ड्रोम (Hunter’s Syndrome), हीमोफिलिया (Haemophilia) आदि से पीड़ित होता है ।

इसके अलावा कई अन्य विसंगतियाँ, जैसे- कैंसर (Cancer), ब्लड प्रेशर, एथेरोस्क्लेरोरिसस (Atherosclerosis) तथा दिमागी बीमारियाँ आदि भी आनुवंशिकता पर आधारित हो सकती हैं ।

शरीर में मैलिग्नैन्ट कोशिकाओं (Malignant Cells) की उत्पत्ति दो प्रकार के जीनों में म्यूटेशन के कारण हो सकती हैं:

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(1) ओन्कोजीन्स (Oncogene),

(2) ट्‌यूमर निरोधक जीन (Tumer Suppressor Gene) ।

जीन-थिरैपी में किसी आनुवंशिक रोग (Genetic Disease) अथवा किसी अर्जित विकार (Acquired Disorder) को ठीक करने के उद्देश्य से कोशिकाओं में सम्बन्धित जीन के सामान्य क्रियाशील एलील (Functional Allele) का प्रवेश कराते हैं ।

जीन थिरैपी निम्न चरण होते हैं:

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(i) जीन का विलगन एवं क्लोनिंग (Isolation & Cloning) ।

(ii) आनुवंशिक रोग उत्पन्न करने वाले जीन की पहचान ।

(iii) जीन-थिरैपी की उपयुक्त विधि का विकास ।

(iv) इस जीन के उत्पाद की रोग में भूमिका ज्ञात करना ।

जीन-चिकित्सा के लिए रोगों का चुनाव (Selection of Diseases for Gene Therapy):

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जीन-थिरैपी के लिए रोगों (Diseases) को निम्न आधार पर चुनते हैं:

(i) जीन का नियमन (Regulation) बहुत परिशुद्ध (Precise) न हो ।

(ii) रोग प्राण घातक हों ।

(iii) जीन को कोशिका में पहुँचाने की युक्ति विकसित हो चुकी हो ।

(iv) रोग उत्पन्न करने वाले जीन क्लोन किया जा चुका है ।

जीन-चिकित्सा के प्रकार (Types of Gene Therapy):

जीन थिरैपी या जीन-चिकित्सा दो प्रकार की होती हैं:

(1) जनन लाइन जिन चिकित्सा (Germ Line Gene Therapy):

इसमें सामान्य जीन (Gene) को जनन कोशिकाओं (शुक्राणु या अण्डे) या जायगोट (Zygote) में प्रवेश कराते हैं । यह जीन इन कोशिकाओं के जीन (Gene) में समकालिक हो जाता है । अत: थिरैपी के कारण उत्पन्न परिवर्तन वंशागत (Heritable) होता है ।

यह थिरैपी बहुत ही लाभकारी होती है । किन्तु वर्तमान समय में, कई तकनीकी के अभाव व नैतिक कारणों से इस तकनीक का प्रयोग मानव में नही किया जाता है । प्रायोगिक तौर पर इसका प्रयोग प्रयोगशाला जन्तुओं, जैसे- चूहा (Rat), खरगोश आदि पर किया जाता है ।

यह थिरैपी निम्न चरणों में सम्पन्न होती हैं:

(i) अन्दर प्रवेश करायी गयी जीन का होस्ट कोशिका के जीनोम में समाकलन ।

(ii) अण्डे का इन-विट्रो (In-Vitro) निषेचन ।

(iii) सामान्य जीन का जायगोट के बाद भी किसी अवस्था में, वाइरस या माइक्रोइंजेक्शन (Microinjection) द्वारा कोशिका में प्रवेश ।

जीनोम में समाकलन के बाद यह जरूरी नहीं है कि नया जीन (Gene) अपना कार्य करने योग्य अवस्था में आ जायेगा । केवल कुछ जन्तुओं में ही यह कार्य कर सकता है ।

(2) कायिक कोशा जीन चिकित्सा (Somatic Cell Gene Therapy):

इस थिरैपी में जीन (Gene) को रोगी की सोमैटिक कोशिकाओं (Somatic Cells) विशेष रूप से जिन ऊतकों में सम्बन्धित जीन (Gene) की अभिव्यक्ति स्वास्थ के लिए अनिवार्य हो, में प्रवेश कराते हैं ।

इस विधि से रोगी में रोग के लक्षण कम हो जाते हैं या रोगी एकदम ठीक हो सकता है, परन्तु प्रविष्ट कराया गया जीन (Gene) अगली पीढ़ी में अपने लक्षण वंशागत नहीं कर पाता है ।

इस थिरैपी में मुख्यतः तीन चरण प्रयुक्त होते हैं:

(i) रोगी के रोगग्रस्त ऊतक की कुछ कोशिकाओं (Cells) को अलग करना ।

(ii) सामान्य जीन (Gene) की प्रतियों, जिससे सम्बन्धित बीमारी हो, को कोशिका में प्रवेश कराना ।

(iii) नई ट्रांसजेनिक कोशिकाओं (Transgenic Cells) के रोगी के शरीर में पहुंचाना (Reintroduce) करना ।

कायिक कोशिका जीन उपचार (Somatic Cell Gene Therapy):

(1) समायोजन/संवर्धन जीन उपचार (Addition or Augmentation Gene Therapy),

(2) लक्ष्यबद्व जीन स्थानान्तरण (Targeted Gene Transfer) ।

(1) समायोजन/संवर्धन जीन उपचार (Addition or Augmentation Gene Therapy):

इस प्रकार की थिरैपी में सामान्य क्रियाशील जीन (Gene) को रोगग्रस्त कोशा में प्रवेश कराते हैं, जिसके परिणामस्वरूप कोशिका में खराब जीन के साथ-साथ सामान्य जीन (Gene) भी पहुँच जाता है ।

इस उपचार की दो मुख्य विधियाँ हैं:

सम्बन्धित जीन (Gene) की सामान्य क्रियाशील एलील (Functional Allele) को रोगी से प्राप्त स्तम्भ कोशिकाओं (Stem Cells) में प्रविष्ट कराते हैं, जैसे- लिम्फोसाइटों, बोन मैरी कोशिकाओं आदि में ।

अब इन कोशिकाओं को रोगी में प्रतिरोपित करते हैं । यह विधि सबसे पहले SCID (तीव्र संयुक्त प्रतिरक्षा ह्रास सिण्ड्रोम) (Severe Combined Immune Deficiency Syndrome) रोग (Disease) के उपचार के लिए प्रयुक्त की गयी थी । यह रोग (Disease) एडिनोसिन डीएमिनेस (ADA, Adenosine Deaminase) की कमी के कारण होता है ।

अत: इसके उपचार के लिए सर्वप्रथम:

(i) अन्त में ADA जीन (Gene) के लक्षणों को प्रदर्शित करने वाली सफल लिम्फोसाइटों में अलग करके उन्हें रोगी के शरीर में प्रतिरोपित किया गया । रोगी के शरीर में ADA जीन (Gene) की अभिव्यक्ति के कारण रोगी के प्रतिरक्षा तन्त्र में सुधार पाया गया ।

(ii) इसके बाद रोगी (Patient) के लिम्फोसाइट को प्राप्त किया गया और

(iii) ADA जीन के सामान्य एलील को अलग करके क्लोन किया गया ।

(iv) फिर इस प्रतियों (Copies) को एक त्रुटिपूर्ण (Defective) रिट्रोवाइरस के जीनोम में समाकलित किया गया । यहाँ रिट्रोवाइरस के अधिकांश जीनों को ADA जीन से प्रतिस्थापित कर दिया गया था ।

(v) उनको रिकॉम्बिनेण्ट रिट्रोवाइरसों (Recombinant Retrovirus) से संक्रमित किया गया ।

इस विधि (Method) की कुछ अपनी समस्याएं हैं, जो निम्न हैं:

(i) समाकलित जीन का स्थायित्व ।

(ii) प्रायः रिट्रोवाइरस वाहक अधिक सुरक्षित नहीं होते हैं । इन्हें अधिक सुरक्षित बनाने के लिए इनसे आत्मघाती वाहक (Suicidal Vectors) बनाये गये हैं, जो जीन स्थानान्तरण के बाद द्विगुणन नहीं करते हैं ।

(iii) जीन अभिव्यक्ति का उपयुक्त नियमन न होना ।

(iv) स्तम्भ कोशिकाओं (Stem Cells) का कम आकृति में ट्रांसफेक्शन करना ।

(v) जीन के लक्षणों की अभिव्यक्ति का समय ।

इन समस्याओं के कारण आजकल ट्रांसफेक्शन (जीन स्थानान्तरण) की अन्य विधियों का प्रयोग किया जाता है ।

जीन स्थानान्तरण (Gene Transfer) के लिए प्रयुक्त कुछ अन्य विधियों का वर्णन निम्नलिखित हैं:

(i) लिपोफेक्शन (Lipofection):

कोशिकाओं में लिपोसोमों द्वारा जीन स्थानान्तरण (Gene Transfer) (DNA प्रवेश कराने) को लिपोफेक्शन कहते हैं । लिपोसोम फॉस्फोलिपिडों (Phospholipid) की बनी छोटी-छोटी वेसाइकल (Vesicles) को कहते हैं ।

इनका निर्माण निम्न प्रकार से हो सकता है:

(a) एनआयनिक (Anionic) फास्फोलिपिडों (Phospholipid) जैसे- फॉस्फेटिडिल सीरीन (Phosphatidyl Serine, PS) का Ca++ आयनों (Ions) से अभिक्रिया तथा द्विकला तकनीक (Two Phase Techniques) DNA खण्डों को लिपोसोमों (Liposome) में बन्द किया जा सकता है ।

(b) लिपोसोमों की झिल्लियों में विशेष लिजेण्ड प्रोटीनों (Special Ligand Proteins) का समावेश करने से लिपोसोम (Liposome) केवल विशिष्ट ऊतकों/कोशिकाओं में ही DNA समाकलित करते हैं ।

(ii) इलेक्ट्रोपोरेशन (Electroporation):

इलेक्ट्रोपोरेशन विधि में कई बार DNA तथा कोशिका के मिश्रण को अत्यन्त कम समय कुछ मिली सेकेण्ड, (Milliseconds), के लिए अति उच्च वोल्टेज (High Voltage) से प्रभावित करते हैं । अति उच्च वोल्टेज के प्रभाव से कोशिका झिल्ली में कुछ क्षणों के लिए छिद्र बन जाते हैं, जिनके द्वारा DNA अणु (Cell) कोशिका में प्रवेश करते हैं । कोशिकाओं (Cell) को कोल्सेमिड (Colcemid) से उपचारित करने पर जीन स्थानान्तरण की बढ़ जाती हैं ।

(iii) सूक्ष्म-इंजेक्शन (Micro-Injection):

इस विधि द्वारा DNA को सीधे कोशिका (Cell) के केन्द्रक में प्रविष्ट करा सकते हैं । इस विधि में कम शक्ति (Low Power) के स्टीरियोस्कोपी विच्छेदन माइक्रोस्कोप (Sterio-Scopic Dissecting Micro-Scope), दो सूक्ष्म-मैनिपुलेटर (Micromani-Pulator) जिसमें से एक से काँच के सूक्ष्म-पिपेट (Micro-Pipette) तथा दूसरे से काँच की इंजेक्शन सुई (Injection Needle) को नियन्त्रित करते हैं, की आवश्यकता होती हैं ।

सूक्ष्म पिपेट की सहायता से कोशिका (Cell) को आंशिक चूषण (Partial Suction) द्वारा स्थिर रखते हैं और इंजेक्शन सुई से DNA/जीन को कोशिका (Cell) के केन्द्रक में इन्जेक्ट (Inject) करते हैं ।

(iv) कैल्शियम फॉस्फेट अवक्षेपण विधि (Calcium Phosphate Precipitation Method):

DNA का कोशिका (Cell) में प्रवेश कैल्शियम फॉस्फेट अवक्षेपण द्वारा भी किया जा सकता है । इसमें DNA को पहले फॉस्फेट बफर में घोलते हैं । फिर इसमें कैल्शियम क्लोराइड (CaCl2) घोल मिलाते हैं जिससे कैल्शियम फॉस्फेट बनता है जो कि अघुलनशील होता है ।

इसके साथ-साथ DNA अणु भी अवक्षेपित हो जाते हैं । इस अवक्षेप के कणों को कोशिकाएँ (Cells) फैगोसाइटोसिस (Phagocytosis) द्वारा ग्रहण कर लेती हैं । जीन उपचार पद्धति से कैंसर (Cancer) तथा AIDS का उपचार (Treatment) भी किया जा सकता है ।

AIDS के उपचार में उपयुक्त इण्टरल्यूकिन जीनों (Interleukin Genes) को प्रविष्ट कराकर प्रतिरक्षा तन्त्र को मजबूत करते हैं । इसी प्रकार कैंसर उपचार (Treatment) के लिए टॉक्सिन (Toxin) कोडित करने वाले जीन को कैंसर कोशिकाओं में प्रविष्ट कराते हैं ।

(2) लक्ष्यबद्ध जीन स्थानान्तरण (Targeted Gene Transfer):

इसमें सम्बन्धित जीन (Gene) के सामान्य ऐलील को जीनोम में पूर्व निर्धारित स्थल पर समाकलित करते हैं । होमोलॉगस रीकॉम्बिनेशन (Homologous Recombination) द्वारा जीनोम में पहले से उपस्थित खराब ऐलील को नये सामान्य ऐलील (Allele) में बदल दिया जाता है ।

इसके लिए निम्न प्रकार के वेक्टरो (Vectors) का प्रयोग किया जाता है:

(i) निवेशन वेक्टर (Insertion Vectors):

इन वेक्टरों (Vector) का लीनियर (Linear) अवस्था में उनके दोनों सिरों पर उस क्रम के भाग होते है जहाँ सामान्य एलील को समाकलित करना होता है, जबकि स्थानान्तरित किया जाने वाला सामान्य क्रमों के बीच में उपस्थित होता है । सिरों वाले क्रमों में होमोलोगस रीकॉम्बिनेशन होता है, जिससे स्थानान्तरित किए जा रहे जीन का द्विगुणन होता है ।

प्रायः इस वेक्टर (Vector) का निवेशन (Insertion) खराब एलील की जगह न होकर उसके पड़ोस में होता है । इस प्रक्रिया को निवेशनी रिकॉम्बिनेशन (Insertional Recombination) कहते हैं । इन्हीं वेक्टरों (Vector) का जीन उपचार में उपयोग किया जाता है ।

निवेशनी वाहकों (Vector) को रेखीय अवस्था में उनके सिरों पर क्रम के अन्तर्गत रेस्ट्रिक्शन विदलन (Restriction Cleavage) किया जाता है जहाँ पर सामान्य युग्मविकल्पी (Allele) को समाकलित करना है जबकि स्थानान्तरित किये जाने वाला सामान्य युग्मविकल्पी इन क्रमों के बीच में स्थित होता है ।

सिरों पर स्थित क्रम में समजात पुनर्योजन (Homologous Recombination) होता है जिससे स्थानान्तरित (Transfer) किये जा रहे जीन का द्विगुणन (Duplication) होता है ।

निवेशन (Insertion) दोषपूर्ण युग्मविकल्पी (Allele) के स्थान पर नहीं होकर उसके पड़ोस में होता है । इस विधि (Method) को निवेशनी पुन:संयोजन (Insertion Recombination) कहते हैं । इन वाहक जीन्स का उपयोग जीन उपचार में किया जाता है ।

(ii) प्रतिस्थापन वेक्टर (Replacement Vectors):

इन वेक्टरों (Vector) की लीनियर (Linear) अवस्था में उनके दोनों सिरों पर स्थानान्तरित किए जा रहे जीन के सिर्फ आधे-आधे भाग उपस्थित होते हैं । इन्हीं क्रमों में होमोलोगस रिकॉम्बिनेशन (Homologous Recombination) होता है, जिससे कोशिका के जीनोम (Genome) में उपस्थित एलील का भाग वेक्टर में उपस्थित भाग से प्रतिस्थापित (Replace) हो जाता है, इसे प्रतिस्थापन रीकॉम्बिनेशन (Replacement Recombination) कहते हैं । इस विधि (Method) में सम्बन्धित जीन विदारित (Disrupted) हो जाता है, अत: जीन उपचार में इसका उपयोग प्रायः नहीं होता है ।

लक्ष्यबद्ध जीन स्थानान्तरण सबसे पहले 1985 में किया गया था, जिसमें मानव β-ग्लोबिन जीन का विदारण किया गया था । अब तक लगभग 100 से अधिक स्तनधारी जीनों (Gene) को इस तकनीक द्वारा रूपान्तरित किया गया है, परन्तु अभी इसका जीन उपचार के लिए उपयोग प्रायोगिक स्तर पर ही सीमित हैं ।

बिना द्विगुणन (Duplication) या विदारण के लक्ष्यबद्ध जीन स्थानान्तरण (Transfer) के लिए निम्न युक्ति का विकास किया गया है:

(1) सबसे पहले निवेशन वेक्टर की मदद से स्थानान्तरित किये जाने वाले जीन को कोशिका के जीनोम (Genome) में समाकलित करते हैं । इससे इस जीन (Gene) का द्विगुणन उत्पन्न होता है ।

(2) अब स्थानान्तरित किये गये तथा कोशिका जीनोम में पहले से उपस्थित एलीलों (एक ही क्रोमोसोम में) में रीकॉम्बिनेशन या सिस्टर क्रोमैटिडों (Sister Chromatids) में असमान विनिमय (Unequal Exchange) से उत्पन्न द्विगुणन-रहित सामान्य एलील (Allele) वाले क्रोमोसोम की कोशिकाओं का सलेक्शन (Selection) करते हैं ।

इस विधि (Method) से चूहे की भ्रूण स्तम्भ कोशिका लाइनों (Embryonic Stem Cell Lines) में HGPRT तथा अन्य कई जीनों का सफल स्थानान्तरण किया गया है (HGPRT- Hypoxathineguanine Phosphoribosyl Transferase) ।

जीन चिकित्सा के उपयोग (Uses of Gene Therapy):

(1) अस्थमा के लिए एन्टीसेन्स D.N.A. उपचार ।

(2) मेलेनोमा के लिए जिन उपचार ।

(3) कैंसर के लिए एन्टिसेन्स D.N.A. उपचार ।

(4) भ्रूण उपचार ।

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