भूमिगत जल द्वारा निर्मित स्थलरूप | Landforms Produced by the Action of Groundwater

धरातल के नीचे चट्‌टानों के छिद्रों और दरारों में स्थित जल को भूमिगत जल कहते हैं । इनसे बनी स्थलाकृतियों को कार्स्ट स्थलाकृतियाँ कहते हैं, जो यूगोस्लाविया के एड्रियाटिक तट के चूना-पत्थर क्षेत्र की स्थलाकृतियों के नाम के आधार पर रखा गया है ।

भूमिगत जल का अपरदनात्मक व निक्षेपणात्मक कार्य नदी, हिमानी, सागरीय लहरों अथवा पवन के कार्यों जितना तीव्र व महत्वपूर्ण नहीं होता ।

भूमिगत जल के प्रभाव के लिए कुछ जरूरी शर्तें निम्नलिखित हैं:

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1. चूना-पत्थर या डोलोमाइट की चट्‌टानें ।

2. पर्याप्त स्थलाकृतिक उच्चावच ।

3. पर्याप्त वर्षा क्षेत्र ।

4. घुलनशील चट्‌टानों में संधियों का विकास ।

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भूमिगत जल द्वारा निर्मित स्थलरूप निम्न हैं:

i. लैपीज (Lapies):

घुलनक्रिया के फलस्वरूप ऊपरी सतह अत्यधिक ऊबड़-खाबड़ तथा पतली शिखरिकाओं वाली हो जाती है । इस तरह की स्थलाकृति को क्लिंट या लैपीज कहते हैं ।

ii. घोलरंध्र (Sink Holes):

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जल की घुलन क्रिया के कारण सतह पर अनेक छोटे-छोटे छिद्रों का विकास हो जाता है, जिसे घोलरंध्र कहते हैं । गहरे घोलरंध्रों को विलयन रंध्र कहते हैं । विस्तृत आकार वाले घोलरंध्रों को ‘डोलाइन’ कहते हैं, जो कई घोलरंध्रों के मिलने से बनता है ।

जब कई डोलाइन मिलकर एक बड़ा आकार धारण कर लेते हैं, तो उसे ‘युवाला’ की संज्ञा दी जाती है । पोलिए या पोल्जे युवाला से बड़ी स्थलाकृति है । विश्व में सबसे बड़ा ‘पोल्जे’ बाल्कन क्षेत्र का ‘लिवनो’ पोल्जे है ।

iii. कन्दरा (Caverns):

भूमिगत जल के अपरदन द्वारा निर्मित स्थलाकृतियों में सबसे महत्वपूर्ण स्थलाकृति कन्दरा है । इनका निर्माण घुलन क्रिया तथा अपघर्षण द्वारा होता है । ये ऊपरी सतह के नीचे एक रिक्त स्थान होती है तथा इनके अन्दर निरन्तर जल का प्रवाह होता रहता है ।

कन्दराओं में जल के टपकने से कन्दरा की छत के सहारे चूने का जमाव लटकता रहता है, जिसे ‘स्टैलेक्टाइट’ कहते हैं । कन्दरा के फर्श पर चूने के जमाव से निर्मित स्तंभ ‘स्टैलेग्माइट’ कहलाता है । इन दोनों के मिल जाने से कंदरा स्तंभ (Cave Pillers) का निर्माण होता है ।

iv. अंधी घाटी (Blind Valley):

कार्स्ट प्रदेशों में नदियों का जल विलयन रंध्रों से नीचे की ओर रिसने लगता है तथा नदियों की आगे की घाटी शुष्क रह जाती है, जिसे शुष्क घाटी कहते हैं जबकि घाटी के पिछले भाग को अंधी घाटी कहा जाता है ।

v. टेरा रोसा (Terra Rossa):

जब वर्षा का जल विलयन क्रिया द्वारा चट्‌टानों के कुछ अंशों को घुलाकर भूमि के अंदर प्रवेश करता है तो सतह के ऊपरी मिट्‌टी की एक पतली परत का विकास होता है, जिसे टेरा रोसा कहा जाता है । इस मिट्‌टी में क्ले, चूना एवं लोहा की प्रधानता होती है ।

vi. हम्स (Hums):

जब चूना पत्थर प्रदेशों में घुलन क्रिया द्वारा अधिकांश चूना पत्थर चट्‌टानें घुल जाती हैं तो अंततः एक ऐसी सतह का विकास होता है, जो अघुलनशील सिलिका प्रधान चट्‌टानों से निर्मित होता है । ऐसी सतह की तुलना सम्प्राय मैदान से की जा सकती है ।

इस सतह के मध्य यत्र-तत्र कठोर चट्‌टानों के अवशिष्ट टीले दिखाई पड़ते हैं, जिन्हें फ्रांस एवं यूगोस्लाविया में हम्स कहा जाता है । इसे प्यूटोरिको एवं मध्य अमेरिकी देशों में हे-स्टेक (Hay Stack) एवं क्यूबा में मोगोट्‌स (Mogotes) कहा जाता है ।

सागरीय जल (Sea Water):

सागरीय जल का कार्य कई कारकों द्वारा संपन्न होता है । इनमें सागरीय लहर, धाराएँ, ज्वारीय तरंग तथा सुनामी शामिल हैं । इन सबमें सागरीय लहरों का कार्य सर्वाधिक महत्वपूर्ण है ।

सागरीय जल द्वारा निर्मित स्थलरूप निम्न हैं:

i. तटीय कगार या भृगु (Coastal Cliffs):

जब समुद्र तट बिल्कुल खड़ा हो तो उसे क्लिफ या भृगु कहते हैं ।

ii. तटीय कन्दरा (Coastal Caves):

तटीय चट्‌टानों के विभिन्न भागों में जहाँ संधियाँ, भ्रंश व कमजोर संरचना मिलती है, वहाँ सागरीय तरंगें तेजी से अपरदन करती है, जिससे वहाँ तटीय कन्दरा का निर्माण होता है ।

iii. स्टैक (Stack):

कन्दराओं के मिलने से बने प्राकृतिक मेहराबों की प्रकृति अस्थायी होती है । इस मेहराब के ध्वस्त होने के बाद चट्‌टान का जो भाग समुद्र जल में स्तंभ के समान शेष रह जाता है, स्टैक कहलाता है ।

iv. पुलीन (Beach):

तटीय भागों में भाटा जलस्तर और समुद्री तट रेखा के मध्य बालू, बजरी, गोलाश्म आदि पदार्थों के अस्थायी जमाव से बनी स्थलाकृति को पुलीन कहते हैं ।

v. रोधिका (Bars):

तरंगों और धाराओं द्वारा निक्षेप के कारण निर्मित कटक या बाँध को रोधिका कहते हैं । जब रोधिकाओं का निर्माण तट से दूर एवं तट के प्रायः समानान्तर होती है तो उन्हें अपतट रोधिका कहते हैं । जब किसी द्वीप के चारों ओर अपरदित पदार्थों के जमाव से रोधिका का निर्माण होता है, तो वह लूप रोधिका कहलाती है ।

vi. संयोजक रोधिका (Connecting Bars):

दो सुदूरवर्ती तटों अथवा किसी द्वीप को तटों से जोड़ने वाली रोधिका को संयोजक रोधिका कहते हैं । जब इसके दोनों छोर स्थल भाग से मिल जाते हैं तो उनके द्वारा घिरे हुए क्षेत्र में समुद्री खारे जल वाली लैगून झील (Lagoon Lake) का निर्माण हो जाता है ।

भारत में इसका उदाहरण ओडिशा की चिल्का झील, आंध्र प्रदेश की पुलीकट झील तथा केरल की बेम्बानद झील है । तट से किसी द्वीप को मिलाने वाली रोधिका ‘टोम्बोलो’ (Tombolo) कहलाती है ।

vii. तट रेखा (Coast Line):

समुद्र तट और समुद्री किनारे के मध्य की सीमा रेखा को तटरेखा कहते हैं । यह रेखा समुद्र की ओर समुद्र तट का निर्माण करती है । समुद्री तरंगों द्वारा तट रेखा में निरन्तर परिवर्तन होते रहते हैं । समुद्री तट पर अधिक अवरोधी चट्‌टानों से अंतरीप (Cape) तथा कम अवरोधी चट्‌टानों से खाड़ियों (Gulf and Bays) का निर्माण होता है ।

तट रेखाओं के निम्न मुख्य प्रकार हैं:

a. फियर्ड तट (Feared Coast):

किसी हिमानीकृत उच्चभूमि के सागरीय जल के नीचे अंशतः धँस जाने से फियर्ड तट का निर्माण होता है । इनके किनारे, खड़ी दीवार के समान होते हैं । नॉर्वे का तट फियर्ड तट का सुन्दर उदाहरण है ।

b. रिया तट (Ria Coast):

नदियों द्वारा अपरदित उच्चभूमि के धँस जाने से रिया तट का निर्माण होता है । ये ‘V’ आकार की घाटी तथा ढलुए किनारे वाली होती है । इनकी गहराई समुद्र की ओर क्रमशः बढ़ती जाती है । प्रायद्वीपीय भारत के पश्चिमी तट का उत्तरी भाग रिया तट का अच्छा उदाहरण है ।

c. डॉल्मेशियन तट (Dalmatian Coast):

समानान्तर पर्वतीय कटकों वाले तटों के धँसाव से डॉल्मेशियन तट का निर्माण होता है । यूगोस्लाविया का डॉल्मेशियन तट इसका सर्वोत्तम उदाहरण है ।

d. हैफा तट या निमग्न निम्नभूमि का तट (Haifa Coast):

सागरीय तटीय भाग में किसी निम्न भूमि के डूब जाने से निर्मित तट को निमग्न निम्न भूमि का तट कहते हैं । यह तट कटा-फटा नहीं होता तथा इस पर घाटियों का अभाव पाया जाता है । इस पर रोधिकाओं की समानान्तर शृंखला मिलती है, जिससे सागरीय जल घिरकर लैगून झीलों का निर्माण करता है । यूरोप का बाल्टिक तट हैफा तट का अच्छा उदाहरण है ।

e. निर्गत समुद्र तट:

स्थलखंड के ऊपर उठने या समुद्री जलस्तर के नीचे गिरने से निर्गत समुद्र तट का निर्माण होता है । इस प्रकार के तट पर स्पिट, लैगून, पुलिन, क्लिफ और मेहराब मिलते हैं । भारत में गुजरात का काठियावाड़ तट निर्गत समुद्र तट का अच्छा उदाहरण है ।

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