Read this article in Hindi to learn about the coral reefs and coral bleaching.
प्रवाल भित्तियां (Coral Reefs):
प्रवाल भित्तियों की उत्पत्ति प्रवालों के द्वारा होती है । प्रवाल कैल्शियम कार्बोनेट का निर्माण करते हैं जो कठोर होकर प्रवाल भित्ति का रूप धारण कर लेते हैं । प्रवाल भित्तियां तटीय अपरदन व समुद्री तूफान की दशा में प्राकृतिक संरक्षणात्मक अवरोधक हैं । ये विविध प्रकार के जीव जन्तु व वनस्पतियां प्रदान करते हैं । इसके अतिरिक्त वे जैवजनित कैल्सियम कार्बोनेट का निर्माण करते हैं ।
भारत में प्रवाल भित्तियों के चार प्रमुख समूह (लगभग 1900 वर्ग किमी) हैं:
(i) मन्नार की खाड़ी की प्रवाल भित्तियाँ,
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(ii) कच्छ की खाड़ी की प्रवाल भित्तियाँ,
(iii) अंडमान तथा निकोबार द्वीप समूह की प्रवाल भित्तियाँ तथा
(iv) लक्षद्वीप समूह की प्रवाल भित्तियाँ ।
भारत का नेशनल कोरल रीफ रिसर्च सेंटर (National Coral Reef Research Centre) पोर्ट ब्लेयर में स्थित है ।
कौरल ब्लीचिंग महामारी (Coral Bleaching):
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प्रवाल भित्तियों में पाई जाने वाली महामारी को कौरल ब्लीचिंग कहते हैं । इस बीमारी का सबसे पहले पता 1983 में प्रशांत महासागर तथा केरिबियन सागर के द्वीपों में चला था । तत्पश्चात इसका पता फारस की खाड़ी तथा हिंद महासागर की प्रवाल भित्तियों में चला ।
इस बीमारी से प्रभावित प्रवाल अपने मुंह से कैल्शियम कार्बोनेट निकालना बद कर देते हैं और उनका रग पीला पड़ जाता है । कौरल ब्लीचिंग से प्रभावित प्रवाल भित्तियों में अपरदन की प्रक्रिया सबल हो जाती है ।
अभी तक इस बीमारी के मुख्य कारणों का पता नहीं चल पाया है, परंतु विशेषज्ञों के अनुसार सागरों में बढ़ता हुआ प्रदूषण तथा सागरों के जल में तापमान वृद्धि इसका मुख्य कारण माने जाते हैं ।
यद्यपि प्रभावित प्रवाल इस बीमारी से जल्दी छुटकारा लेते हैं, परंतु 1990 से इस बीमारी पर नियंत्रण पाने के लिये गंभीरता से शोध कार्य किया जा रहा है ।
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यह रोग सर्वप्रथम 1983 में प्रशांत महासागर में देखा गया । 1987 में इसे कैरीबियाई सागर तथा मैक्सिको की खाड़ी में पहचाना गया । वर्तमान में ऊष्णकटिबंधीय सागरों का प्रवाल निर्माण इस रोग से प्रभावित है ।
प्रवाल विरंजन का कारण ज्ञात नहीं है ।
वैश्विक तापन एवं समुद्रीय प्रदूषण को इसका प्रमुख कारण माना जाता था प्रवाल विरंजन के प्रमुख कारण निम्नानुसार हैं:
1. वैश्विक तापन (Global Warming):
प्रवाल भित्तियाँ 18०C से 30०C के तापमान में पनपती है । विरंजन अधिकांशतः उच्च समुद्री जल में होता है जहाँ पर तापमान अपेक्षातया अधिक होता है (कैरीबियाई सागर, फारस की खाडी, जावा सागर, कोरल सागर तथा सोलोमन द्वीप) ।
2. समुद्री प्रदूषण (Marine Pollution):
मानव द्वारा समुद्र में विभिन्न पदार्थों के फेंके जाने से भी समुद्री जल की गुणवत्ता में परिवर्तन आता है अथवा यह जल के भौतिक व जैविक पर्यावरण को प्रभावित करता है । इसे भी प्रवाल विरंजन का एक कारण माना जाता है ।
3. सूर्य का प्रत्यक्ष प्रभाव (Exposure to Sun):
सूर्य से सीधे संपर्क में आने से उथले जल में कई जुक्जैनाथिलाई रोग से ग्रस्त हो जाते हैं ।
4. अवसादन (Sedimentation):
कुछ दशाओं में प्रवाल निर्माण के समीप यदि अवसादन हो तो यह प्रवाल विरंजन का प्रमुख कारण बन जाता है ।
5. अजैविक पोषक तत्व (Inorganic Nutrients):
जब जल में अमोनिया व नाइट्रेट की मात्रा बढ जाती है तो इससे यूट्रोफिकेशन की प्रक्रिया में वृद्धि हो जाती है । यूट्रोफिकेशन की अधिकता से प्रवालों व उनके निर्माण को हानि होती है ।