पृथ्वी की जलविद्युत प्रणाली | Hydrological System of the Earth in Hindi!
पृथ्वी का जल विभिन्न तंत्रों में विभाजित है, अर्थात जल पृथ्वी के धरातल, महासागरों, सागरों, मृदा भूगृत, वायुमंडल में ठोस, तरल तथा गैस (वाष्प) के रूप में पाया जाता है । भूमंडल के 71 प्रतिशत भाग पर जल फैला हुआ है भू-धरातल पर विभिन्न अवस्थाओं में पाया जाता है |
अधिकतर जल (99.5%) महासागरों में पाया जाता है जबकि शेष एक प्रतिशत से भी कम जल नदियों, झीलों, मृदा तथा वायुमंडल में पाया जाता है । जल चक्र के द्वारा जल का स्थान एवं स्वरूप बदलता रहता है । जल-अपवाह मृदा में नमी बनी रहती है जौ पेड़-पौधों के लिए अनिवार्य है । जल-अपवाह के द्वारा ही पौष्टिक रासायनिक तत्वों का संचार होता है । वायुमंडल में पाए जाने वाले जल का मौसम तथा जलवायु पर गहरा प्रभाव पडता है ।
ADVERTISEMENTS:
तालिका 1.2 जलचक्र में जल-वास का समय:
महासागर (The Oceans):
विश्व के कुल जल का 97.5 प्रतिशत जल (तरल, हिम एवं वाष्प के रूप में) महासागरी में पाया जाता है । सागर में जल-निवास का समय लगभग तीन हजार वर्ष माना जाता है । यद्यपि सागर की ऊपरी परत का जल बहुत कम समय में वाष्प का रूप धारण कर लेता है । इसके विरीत गहरे सागरों की तलहटियों में पाए जाने वाले जल को वाष्प में बदलने के लिये हजारों वर्ष लग जाते हैं ।
हिम (Ice):
ADVERTISEMENTS:
जो पानी सागरों में नहीं उसका लगभग 80 प्रतिशत भाग हिम के रूप में पाया जाता है । विश्व का अधिकतर हिम अंटार्कटिका तथा ग्रीनलैंड में पाया जाता है । हिम के पिघलने की प्रक्रिया के आधार पर हिम के जल को वाष्प में बदलने में लगभग दस हजार वर्ष लगते हैं । यदि आज के सभी ग्लेशियर पिघल जाए तो सागर के जल में 2 प्रतिशत की वृद्धि होगी तथा सागर का स्तर लगभग 100 मीटर ऊँचा हो जाएगा ।
भूगत जल (Ground Water):
मृदा (मिट्टी) के छिद्रों तथा धरातल के नीचे पाए जाने वाले जल को भूगत जल कहते हैं । विश्व का जो जल सागरों में नहीं उसका 20 प्रतिशत जल भूगृत जल है । मिट्टी के छिद्रों में विश्व का केवल 0.005 प्रतिशत जल पाया जाता है । इस सूक्ष्म मात्रा के बावजूद नदियों के संपूर्ण जल की तुलना में मृदा में अधिक जल पाया जाता है ।
भूगृत जल को दो भागो में विभाजित किया जा सकता है:
ADVERTISEMENTS:
(i) मृदा के छिद्रों में पाया जाने वाला जल तथा
(ii) धरातल की परतों के नीचे पाया जाने वाला जल ।
मृदा के छिद्रों में पाये जाने वाले जल को वाष्प बनने में 15 दिन से लेकर एक वर्ष तक लग सकता है | मृदा में पाया जने वाला जल केवल इसलिये महत्वपूर्ण नहीं है कि वह बह कर नदियों में जाता है, बल्कि इसलिए भी कहता रखता है क्योंकि वनस्पति तथा जीव-जंतुओं का आधार इसी पर है ।
झीलें (Lakes):
पृथ्वी के कुल जल का केवल 0.017 प्रतिशत भाग ही झीलों में पाया जाता है । इस जल का लगभग आधे से कुछ अधिक भाग मीठे पानी की झीलों में तथा शेष खारे-पानी की झीलों में पाया जाता है । मीठे पानी का लगभग 75 प्रतिशत जल उत्तरी अमेरिका की ग्रेट लेक्स रूस की बेकाल तथा पूर्वी अफ्रीका की झीलों में पाया जाता है । बड़ी झीलों में जल-वास का समय दस वर्ष माना जाता है, जबकि केस्पियन सागर (झील) का निवास-समय लगभग 200 वर्ष है ।
वायुमंडल (Atmosphere):
वायुमंडल में पृथ्वी के कुल जल का एक सूक्ष्म भाग ही वायुमंडल में पाया जाता है, जिसकी मात्रा केवल 0.0001 प्रतिशत है फिर भी वायुमंडल में पाये जाने वाला जल पृथ्वी की नदियों के कुल जल से अधिक है । प्रति दिन पृथ्वी से लगभग 2.5mm जल वाष्प बनकर वायुमंडल में प्रवेश करता है और 2.5mm वर्षण के रूप में वायुमंडल में धरती (पृथ्वी) पर गिरता है । वायुमंडल जल के आवास का समय लगभग नौ दिन माना जाता है ।
नदियाँ (Rivers):
विश्व के कुल जल का केवल 0.0001 प्रतिशत भाग ही नदियों में पाया जाता है । नदियों का जल अपने अपवाह के दौरान मिट्टी एवं चट्टानों का अपर्दन करके अवसादों को अपने साथ बहा कर ले जाता है । वास्तव में पृथ्वी धरातल पर पाई जाने वाली भू-आकृतियों में सबसे अधिक परिवर्तन बहता हुआ जल (नदियाँ) ही करती हैं ।
जीव (Living Organism):
जीवों में पाई जाने वाली कुल जल की मात्रा बहुत कम है फिर भी किसी भी समय वनस्पति से वायुमंडल में इतना जल भी जा सकता है जितना विश्व की नदियों में जल अपवाह होता है । वनस्पति में जल का आवास बहुत कम समय के लिये होता है जिसके वनस्पति में पाये जाने वाले जल की महत्ता और भी बढ़ जाती है । इस प्रकार पेड़-पौधे तथा पशु-पक्षियों की जल चक्र में विशेष महत्ता है ।