Read this article in Hindi to learn about the three main sources of water. The sources are:- 1. धरातलीय जल (Surface Water) 2. भू-जल (Ground Water) 3. महासागर (Ocean).

जल के प्रमुख स्रोतों को नीचे वर्णित किया जा रहा है:

1. धरातलीय जल (Surface Water):

पृथ्वी के धरातल पर पानी की राशि स्थिर एवं गतिशील दोनों रूपों में पाई जाती है । जलीय स्वरूप के आधार पर भी पानी अनेक रूपों में मिलता है, उच्च पर्वतीय क्षेत्रों में हिम टोपियों व हिमनदों के रूप में व निम्नवर्ती भागों में द्रव अवस्था में मिलता है ।

धरातलीय पानी महाद्वीपीय भागों पर वितरित हैं । विश्व में सात महाद्वीपों में से अण्टार्कटिका महाद्वीप की भौगोलिक स्थिति दूसरे से भिन्न है जिस पर दो तिहाई से भी ज्यादा स्वच्छ पानी हिम के रूप में स्थित है जबकि ऑस्ट्रेलिया में स्थायी हिमक्षेत्र नहीं है ।

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अण्टार्कटिका एवं ग्रीनलैण्ड के अतिरिक्त दूसरे स्थलीय भागों में हिम राशि पाई जाती है जो हिम रेखा के ऊपर मिलती है । हिम रेखा की ऊंचाई विषुवत रेखा पर 5600 से 6000 मीटर पर हिमालय में 4300 से 5300 मीटर पर व दक्षिणी चिली एवं दक्षिणी ग्रीनलैण्ड में 666 मीटर पर मिलती है ।

इस तरह भू-सतह पर पानी विभिन्न दशाओं में वितरित है जिसका सामान्य वर्णन नीचे किया जा रहा है:

(i) नदियाँ:

नदी भूतल पर प्रवाहित एक जलधारा है जिसका स्रोत प्राय: कोई झील, हिमनद, झरना या बारिश का पानी होता है तथा किसी सागर अथवा झील में गिरती है । नदी शब्द संस्कृत के नद्य: से आया है । संस्कृत में ही इसे सरिता भी कहते हैं ।

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नदी दो प्रकार की होती है- सदानीरा या बरसाती । सदानीरा नदियों का स्रोत झील, झरना अथवा हिमनद होता है और सालों भर जलपूर्ण रहती हैं, जबकि बरसाती नदियां बरसात के पानी पर निर्भर करती हैं ।

गंगा, यमुना, कावेरी, ब्रह्मपुत्र, आमेजन, नील आदि सदानीरा नदियां हैं । नदी के साथ मनुष्य का गहरा सम्बन्ध है । नदियों से केवल फसल ही नहीं उपजाई जाती है और वे सभ्यता को जन्म देती हैं अपितु उसका लालन-पालन भी करती हैं ।

इसलिए मनुष्य हमेशा नदी को देवी के रुप में देखता आया है । नदियों का प्रवाह अपवाह क्षेत्र बेसिन के क्षेत्रफल, अपवाह बेसिन की आकृति, कुल वर्षा, वर्षा की तीव्रता व अपवाह बेसिन की सतही दशाओं द्वारा नियंत्रित होता है ।

(ii) झीलें:

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झील जल का वह स्थिर भाग है जो चारों तरफ से स्थलखंडों से घिरा होता है । झील की दूसरी विशेषता उसका स्थायित्व है । सामान्य रूप से झील भूतल के वे विस्तृत गड्ढे हैं जिनमें जल भरा होता है । झीलों का जल प्राय: स्थिर होता है ।

झीलों की एक महत्वपूर्ण विशेषता उनका खारापन होता है लेकिन अनेक झीलें मीठे पानी की भी होती हैं । झीलें भूपटल के किसी भी भाग पर हो सकती हैं । ये उच्च पर्वतों पर मिलती हैं, पठारों और मैदानों पर भी मिलती हैं तथा स्थल पर सागर तल से नीचे भी पाई जाती हैं ।

झीलें बनती हैं, विकसित होती हैं, धीरे-धीरे तलछट से भरकर दलदल में बदल जाती हैं तथा उत्थान होने पर समीपी स्थल के बराबर हो जाती हैं । ऐसी आशंका है कि संयुक्त राज्य अमेरिका की वृहत झीलें 45,000 वर्षों में समाप्त हो जाएंगी । भू-तल पर अधिकांश झीलें उत्तरी गोलार्ध में स्थित हैं ।

फिनलैंड में तो इतनी अधिक झीलें हैं कि इसे झीलों का देश ही कहा जाता है । यहाँ पर 1,87,888 झीलें हैं जिसमें से 60,000 झीलें बेहद बड़ी हैं । पृथ्वी पर अनेक झीलें कृत्रिम हैं जिन्हें मानव ने विद्युत उत्पादन के लिए, कृषि-कार्यों के लिए या अपने आमोद-प्रमोद के लिए बनाया है ।

तिब्बत की टिसो सिकरू संसार की सबसे ऊँची झील है जो तिब्बत के पठार पर 18,284 फीट की ऊँचाई पर स्थित है । इसके विपरीत मृत सागर संसार की सबसे नीची झील है, जो सागर तल से भी 1,300 फीट नीची है । इसकी तली सागर तल से 2,500 फीट निचाई पर है ।

कुछ झीलें अधिक गहरी होती हैं जैसे साइबेरिया की बैकाल झील, जिसकी गहराई 1.6 किलोमीटर से अधिक है । इसके विपरीत कुछ झीलें अत्यन्त उथली होती हैं । गर्मी के मौसम में सूख जाने के कारण ये मौसमी झील कही जा सकती हैं ।

क्षेत्रफल में झीलें छोटी-बड़ी, सभी तरह की होती है हिमानीकृत झील (टार्न झील) कुछ वर्ग मीटर तक ही विस्तृत होती हैं जबकि लाखों वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल वाली विस्तृत झीलें हैं । कैस्पियन सागर एक विस्तृत झील है जिसका क्षेत्रफल 4,30,000 वर्ग किलोमीटर है ।

महाद्वीपों के आन्तरिक भागों में स्थित विस्तृत झीलें जैसे कैस्पियन सागर, अरब सागर, मृत सागर, संयुक्त राज्य अमेरिका तथा कनाडा की वृहत झीलें, अफ्रीका की विक्टोरिया तथा साइबेरिया की बैकाल झीले आकार की दृष्टि से सागर के समान हैं ।

झीलों की उत्पत्ति हिमनदों से, ज्वालामुखी के भ्रंशन क्रिया व सम्पीडन आदि से होता है । इस श्रेणी में पूर्वी अफ्रीका की शिफ्ट घाटी में रुडोल्फ, अल्बर्ट, एडवर्ड व टंगानिका ताजा पानी की सबसे लम्बी ब बेकाल सबसे गहरी झील है । कैस्पियन सागर लवणीय पानी की सबसे लम्बी झील है । सांभर और चिल्का भारत की खारे पानी की विशाल झीलें हैं । महाराष्ट्र की लोनार झील क्रेटर झील है ।

महान झीलें:

उत्तरी अमेरिका की पाँच विशाल झीलों की एक श्रृंखला महान झीलों के नाम से जानी जाती हैं जो संयुक्त राज्य अमेरिका व कनाडा में स्थित हैं । सुपीरियर, मिशिगन, हयूगन, दूरी व ओरेरियो आदि पाँचों झीलें एक दूसरे से परस्पर अन्त:सम्बद्ध रूप में फैली हुई हैं ।

सुपीरियर झील इनमें सबसे बड़ी हैं, व ओंटेरियो सबसे छोटी झील है । महान् झीलें तकरीबन 244,650 वर्ग किमी. क्षेत्रफल पर फैली हुई हैं । इन झीलों में स्वच्छ ताजा पानी पाया जाता है । सुपीरियर झील संसार की सबसे बड़ी स्वच्छ पानी की झील है, जिसका क्षेत्रफल 82350 वर्ग किमी. है ।

संयुक्त राज्य अमेरिका के मिनिसोटा, विस्कॉन्सिन व मिशिगन राज्यों में सुपीरियर झील के कुल क्षेत्रफल का 53,600 वर्ग किमी. क्षेत्र पाया जाता है । इस झील का शेष क्षेत्र कनाडा में फैला हुआ है । भूगोलवेत्ताओं के अनुसार इन महान झीलों का निर्माण आज से लगभग 15,000 वर्ष पहले विस्तृत हिमानियों की बर्फ के पिघलने के वजह से हुआ था ।

वर्तमान समय तक इन झीलों के आकार में पूछी की विविध आकस्मिक शक्तियों की वजह से बदलाव हो गया है । आधुनिक समय में आंतरिक पानी परिवहन के रूप में इन झीलों का अत्यधिक उपयोग किया जाता है ।

सुपीरियर एवं हयूगन के मध्य सू व ईरी एवं ओण्टेरियो के मध्य बेलेण्ड नहर बनाकर संयोजित किया गया है । इन झीलों के तट पर अनेक नगर एवं बन्दरगाह विकसित हो गए हैं । परिवहन तथा पानी की उपलब्धता के वजह से यहाँ इस्पात उत्पादक केंद्र स्थापित हो गए हैं ।

इरी झील के तट पर बफैलो, क्लीवलैण्ड डेट्रायट एवं मिशीगन झील के तट पर शिकागो, गैरी आदि मुख्य औद्योगिक नगर व मिलबाउकी प्रमुख बन्दरगाह व ओण्टेरियो पर विकसित हो गए हैं ।

टोरंटो बन्दरगाह आदि सुपीरियर झील के तट पर स्थित डुलुथ एवं मिन्नसोटा प्रमुख इस्पात उत्पादक केंद्र हैं । इरी व ओण्टेरियो झीलों के बीच प्रवाहित नियाग्रा, नदी पर संसार प्रसिद्ध नियाग्रा प्रपात स्थित है ।

(iii) हिम क्षेत्रों के रूप में धरातलीय जलराशियां:

धरातल पर नदियों, झीलों में पाए जाने वाले जल के अलावा हिम के रूप में भी स्थलीय हिस्सों पर एक बड़ी पानी राशि पाई जाती है । यह जलराशि उत्तरी ध्रुव पर आर्कटिक क्षेत्र व ग्रीनलैण्ड पर व दक्षिणी ध्रुव व अण्टार्कटिका पर पाई जाती है ।

इसके अलावा उच्च पर्वतीय क्षेत्रों पर स्थित हिम टोपियों व हिमनद भी प्रमुख पानी राशियाँ हैं । आर्कटिक पानी क्षेत्र में उपस्थित कनाड़ा, रूस, ग्रीनलैण्ड, स्कैन्डेनेविया आइसलैण्ड तथा अलास्का के हिमावतरि स्थलीय भाग सम्मिलित हैं । इनमें ग्रीनलैण्ड सबसे बड़ा हिम आवरित क्षेत्र है ।

दक्षिणी गोलार्द्ध में उपस्थित अण्टार्कटिका महाद्वीप संसार का पाँचवा बड़ा महाद्वीप है, इसका 95 प्रतिशत भाग ओसतन 2000 मीटर मोटी हिमपरत से आवरित है । यहाँ सम्पूर्ण पृथ्वी का तकरीबन 90 प्रतिशत शुद्ध पानी पाया जाता है पर संसार में तापमान बढ़ोतरी की वजह से यह हिम पिघल रही है ।

आर्कटिक व अण्टार्कटिका के अलावा हिमालय, आल्पस, रॉकी जख एण्डीज, की पर कीलिमंजारो आदि पर्वतों पर भी हिम टोपियों व हिमनदों के रूप में पानी की मात्रा पाई जाती है । विभिन्न नदियों में जल का स्रोत हिमराशियों पर निर्भर करता है ।

जीव जगत के लिए जिस जल की आवश्यकता होती है, उसका भण्डार सीमित है । जहाँ शुद्ध जल का 80 प्रतिशत हिस्सा हिम के रूप में है वहीं इसका काफी बड़ा भाग लवणीय भी है ।

आधुनिक समय में जबकि एक तरफ जनसंख्या तीव्रता से बढ़ती जा रही है जिससे पानी की लगातार माँग बढ़ रही है वहीं दूसरी तरफ पानी की गुणवत्ता में भी ह्रास हो रहा है । संसार की विशाल स्वच्छ पानी राशि के रूप में स्थित हिमनद संसार तापमान में बढ़ोतरी से पिघल रहे हैं जिनका सम्पर्क प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष तौर पर लवणीय सागरों से है । अण्टार्कटिका की हिम पिघल रही है ।

मार्च 2002 में लन्दन के वैज्ञानिकों ने बताया कि अण्टार्कटिका के पूर्वी से जुड़ा लार्सन बी हिमनद टूट गया है । जो 1500 वर्ष पुरानी 1250 वर्ग मील क्षेत्रफल वाली विशाल हिम राशि है । इसके अलावा महसागरों, झीलों व नदियों को लोगों ने अपशिष्ट निस्तारण का उपयुक्त स्थान बना लिया है ।

लगातार बढ़ते कृषि क्षेत्र हेतु सिंचाई विकास कर तेज भू-जल दोहन किया है जिससे पानी संकट खड़ा हो गया है । अत: पानी की गुणवत्ता में सुधार तथा पेयजल की पर्याप्त मात्रा की उपलब्धता पर हमें विशेष ध्यान देना होगा ।

2. भू-जल (Ground Water):

भू-जल सिंचाई का एक महत्वपूर्ण स्रोत होता है और वह देश की 50% से अधिक सिंचाई की पूर्ति करता है । खाद्यान्न उत्पादन के मामले में आत्मनिर्भरता की स्थिति तक पहुंचने में पिछले तीन दशकों में भू-जल सिंचाई का योगदान उल्लेखनीय रहा है ।

आने वाले वर्षों में सिंचित कृषि के विस्तार तथा खाद्य उत्पादन के राष्ट्रीय लक्ष्यों की पूर्ति के लिए भू-जल प्रयोग में कई गुना वृद्धि होने की संभावना है । हालांकि भू-जल वार्षिक आधार पर पुन:पूर्ति योग्य स्रोत है फिर भी स्थान और समय की दृष्टि से इसकी उपलब्धता असमान है ।

इसलिए भू-जल संसाधन के विकास की योजना तैयार करने के लिए भू-जल संसाधन और सिंचाई क्षमता का एकदम सही आकलन करना एक पूर्वापेक्षा है । भू-जल की प्राप्ति ओर संचलन पर जल भू-वैज्ञानिक, जल-वैज्ञानिक और जलवायुपरक जैसे बहुविध तत्वों का नियंत्रण रहता है ।

पुन:पूरण और निस्सारण का सही आकलन करना दुष्कर होता है क्योंकि उनके प्रत्यक्ष मापन के लिए फिलहाल कोई तकनीक उपलब्ध नहीं हैं । इसलिए भू-जल संसाधन के आकलन के लिए प्रयुक्त सभी विधियां परोक्ष हैं ।

क्योंकि भू-जल एक गतिशील और पुन: पूर्तियोग्य संसाधन है इसलिए इसका आकलन प्राय: वार्षिक पुन:पूरण के घटक पर आधारित रहता है जिसे उपर्युक्त भू-जल संरचनाओं के बल पर विकसित किया जा सकता है । भू-जल संसाधनों के परिमाणन के लिए जलधारक चट्टान, जिसे जलमृत कहते हैं के निर्माण के व्यवहार और विशेषताओं की सही जानकारी जरूरी है ।

एक जलभृत के दो प्रमुख कार्य होते हैं:

(i) पानी का संक्रमण करना (नाली का कार्य) तथा

(ii) संग्रह करना (भण्डारण का कार्य) । अबाधित जलभृतों के भीतर भू-जल संसाधनों को स्थिर और गतिशील के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है । स्थिर संसाधनों को जलभृत के पारगम्य भाग में जल स्तर उतार-चढ़ाव के क्षेत्र के नीचे उपलब्ध भू-जल की मात्र के रूप में परिभाषित किया जा सकता है ।

गतिशील संसाधनों को जलस्तर उतार-चढ़ाव के क्षेत्र में उपलब्ध भू-जल की मात्र के रूप में परिभाषित किया जा सकता है । पुन:पूर्तियोग्य भू-जल संसाधन अतिवार्यत: एक गतिशील संसाधन है जिसकी प्रतिवर्ष अथवा नियतकालिक आधार पर वर्षा, सिंचाई प्रत्यावर्ती प्रवाह, नहर रिसाव तालाब रिसाव, अन्त:स्रावी रिसाव आदि से पुन:पूर्ति होती है ।

भू-जल संसाधनों की गणना करने के लिए प्रयुक्त प्रविधियां आमतौर पर जल-वैज्ञानिक बजट तकनीकों पर आधारित होती है । भू-जल अवस्था के लिए जल-वैज्ञानिक समीकरण जल सन्तुलन समीकरण का एक विशिष्ट रूप होता है जिसके लिए इन मदों के परिमाणन की जरूरत होती है भू-जल जलाशय में अन्तर्वाह तथा उसमें से बहिर्वाह तथा जलाशय के भीतर मौजूद भण्डार में बदलाव ।

इनमें से कुछेक मदें सीधी मापी जा सकती हैं, कुछ का निर्धारण सतही जल की मापित मात्र अथवा दरों के बीच के अन्तर के आधार पर किया जा सकता है तथा कुछ के आकलन के लिए परोक्ष विधियों की जरूरत रहती है ।

भू-जल की विशेषतायें:

इसकी विशेषताएं निम्नलिखित हैं:

(1) भू-जल प्राय: बैक्टीरिया रहित है ।

(2) भू-जल प्राय: सर्वत्र उपलब्ध है ।

(3) भू-जल कम खर्चीला किफायती संसाधन है ।

(4) भू-जल आपूर्ति का दीर्घकालीन एवं विश्वसनीय स्रोत है ।

(5) भू-जल की मात्रा सतही जल से अधिक है ।

(6) भू-जल पर प्रदूषण का प्रभाव अपेक्षाकृत कम पड़ता है ।

(7) भू-जल को तत्काल निकाला तथा उपयोग में लाया जा सकता है ।

(8) भू-जल पर सूखे का प्रभाव कम पड़ता है ।

(9) जल आपूर्ति के दौरान भू-जल की कोई क्षति नहीं होती है ।

(10) सूखाग्रस्त व अर्ध सूखाग्रस्त क्षेत्रों में यही जीवन आधार है ।

(11) शुष्क मौसम में यह नदियों के जल प्रवाह का स्रोत है ।

(12) भू-जल में बीमारी पैदा करने वाले जीवाणु व कीटाणु नहीं होते ।

(13) उपयोग से पहले भू-जल के शुद्धिकरण की आवश्यकता नगण्य होती है ।

(14) भू-जल रंगहीन व गंदलापन रहित है ।

(15) कम स्वच्छ सतही जल की तुलना में यह स्वास्थ्य के लिए अधिक उपयोगी है ।

3. महासागर (Ocean):

पृथ्वी का 70.87 प्रतिशत हिस्सा जलीय है जिसका 97.39 हिस्सा महासागरों के रूप में मौजूद है जिसमें कुल 13,48,000,000 किमी. पानी पाया जाता है । इस तरह पृथ्वी पर इतने विशाल जलीय हिस्से की वजह विद्वान इसे जलीय गृह भी कहते हैं ।

उत्तरी गोलार्द्ध में 40 फीसदी हिस्से पर पानी व 60 फीसदी हिस्से पर स्थल है जबकि दक्षिणी गोलार्द्ध में 81 फीसदी हिस्से पर पानी व 19 फीसदी हिस्से पर स्थल है जिसके कारण दक्षिणी गोलार्द्ध को जलीय गोलार्द्ध कहा जाता है ।

महासागरों में सबसे बड़ा प्रशान्त महासागर है जिसमें संसार का 53.9 प्रतिशत जलीय भाग मौजूद है जबकि अटलांटिक महासागर में 24.9 प्रतिशत व हिन्द महासागर में 21.1 प्रतिशत पानी उपस्थित है ।

इन तीनों महासागरों का पानी लवणीय हैं इनके अलावा उत्तरी ध्रुव एवं दक्षिणी ध्रुव महासागरों में पाए जाने वाले पानी का ज्यादातर हिस्से हिम के रूप में उपस्थित है । हिम क्षेत्र के रूप में आर्कटिक महासागर कुल जलीय क्षेत्र के 3.97 फीसदी हिस्से पर आवृत्त है ।

महासागरों के सीमान्त सागरों में भी पानी की बड़ी राशि मौजूद है इनमें प्रशान्त महासागरीय क्षेत्र में बेरिंग सागर, ओखोटस्क सागर, जापान सागर, चीन सागर, सुलू सागर, पीला सागर, जावा सागर, बादां सागर, सेलीबीज सागर, कैलिफोर्निया की खाड़ी व एल्यूशियन व बाल्टिक सागर, उत्तरी सागर, भूमध्य सागर, काला सागर, एजियन सागर, एड्रियाटिक सागर, बेफिन की खाड़ी, हडसन की खाड़ी, मैक्सिको की खाड़ी व कैरीबियन सागर महत्त्वपूर्ण हैं ।

बंगाल की खाड़ी, मोजाम्बिक चैनल, अरब सागर, लाल सागर, फारस की खाड़ी अदन की खाड़ी व अण्डमान सागर आदि हिन्द महासागर के प्रमुख सीमांत सागर हैं । आर्कटिक महासागर उत्तरी गोलार्द्ध में अलास्का से लेकर बैरिंग सागर तक 14056000 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है ।

इसका अधिकांश हिस्सा हिमावतरित है जो मध्यवर्ती हिस्से में ज्यादा सधन है । मध्य सागरीय पहाड़ी, तोमोनोसोम पहाड़ी व एल्फा पहाडियाँ इसमें समानांतर रूप में फैली हैं । इसमें मौजूद पानी का आयतन 13700000 घन किमी. है ।

आर्कटिक महासागर में 100 मीटर तक की ऊँचाई तक के हिमखण्ड प्रवाहित होते हैं सन् 1912 में ग्रेट ग्रीनलैण्ड हिम आवरण से पृथक एक विशाल हिमखण्ड से प्रसिद्ध टाइटेनिक जहाज टकरा गया था जिससे 1500 लोग मारे गए थे । यहाँ जलवायु अति शीत है ।

महासागरीय जल का घनत्व:

किसी पदार्थ के घनत्व से हमारा तात्पर्य उसके प्रति इकाई आयतन में उसका द्रव्यमान होता है, जिसे ग्राम प्रति धन सेंटीमीटर में प्रदर्शित किया जाता है । समुद्र के जल के घनत्व को किलोग्राम प्रति धन मीटर में व्यक्त किया जाता है । समुद्र विज्ञान में घनत्व को आपेक्षिक घनत्व के रूप में प्रयोग में लाया जाता है ।

शुद्ध जल अधिकतम घनत्व 4° सेल्सियस से 39° फा. पर प्राप्त करता है, जबकि समुद्र के जल का अधिकतम घनत्व अपेक्षाकृत निचले तापमान पर प्राप्त किया जाता है । शुद्ध जल का घनत्व केवल उसके तापमान तथा वायुदाब पर निर्भर करता है, किंतु समुद्री जल के घनत्व पर तापमान, वायुदाब के अतिरिक्त लवणता का भी प्रभाव पड़ता है ।

समुद्र के जल में लवणता जितनी अधिक होगी, उसका अधिकतम घनत्व उसी अनुपात में अधिक निचले तापमान पर अंकित किया जाएगा । यदि खारेपन की मात्रा 24.7% अथवा इससे अधिक हो, तब ऐसी दशा में तापमान घटने के साथ-साथ समुद्री जल का घनत्व बढ़ता जाता है ।

हिमांक तापमान पर पहुँच कर घनत्व में होने बाली वृद्धि रुक जाती है । समुद्र के जल के जमने में इस तथ्य का विशेष महत्व है । निश्चित तापमान और वायु दाब के बावजूद यदि लवणता में अंतर हो, तब निश्चय ही समुद्री जल के घनत्व में अंतर होगा ।

उदाहरण स्वरूप यदि समुद्र की ऊपरी सतह का जल निचली परतों की अपेक्षा अधिक ठण्डा कर दिया जाए तब अधिक ठण्डा जल नीचे चला जाता है और उसका स्थान लेने के लिए नीचे का गर्म जल ऊपर उठने लगता है ।

इसीलिए समुद्रों के ऊपरी सतह का जल तब तक हिमांक तक नहीं ठंडा होता, जब तक कि नीचे की परतों के जल का तापमान उसके बराबर न हो जाए । समुद्रों के जल का हिमांक नदियों के जल की अपेक्षा अधिक नीचा होने के अतिरिक्त 4° सेल्सियस तापमान से नीचे ठंडा होने पर भी सतह पर ही रहता है ।

अत्यधिक शीतल ध्रुवीय जल राशियों के नीचे धंसने समुद्र के नितल पर संचरण प्रक्रिया सम्पन्न होती है । इसका कारण यह है कि यदि लवणता 24.7% से कम न हो तो सर्वाधिक ठण्डे जल का घनत्व अधिकतम होता है ।

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