Read this article in Hindi to learn about the extinction of wildlife and species.
वन्य प्राणियों के विलोपन (Extinction of Wildlife):
चार्ल्स डार्विन के जैविक विकास के सिद्धान्त के अनुसार केवल नई जीव जातियाँ ही लुप्त नहीं होती बल्कि कुछ पुरानी जीव जातियाँ भी लुप्त होती रहती हैं । विलोपन से तात्पर्य किसी जीव जाति का पृथ्वी से पूर्ण विनाश होता है अर्थात उस जीव जाति का कोई भी प्राणी पृथ्वी पर जीवित नहीं है । वर्तमान समय में मानव सबसे अधिक सबल प्राणी है ।
वन्य प्राणियों के विलोपन के मुख्य निम्न तीन कारण हैं:
(i) प्राकृतिक विलोपन, इसमें हिमाच्छादन, जलवायु परिवर्तन, ज्वालामुखी उद्भेदन रोग, महामारी, प्रतिस्पद्धियों की संख्या में वृद्धि, प्राकृतिक शत्रु, खाद्य भोजन की कमी तथा प्रजातियों द्वारा आक्रमण शामिल है ।
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(ii) सामूहिक विनाश जो लाखों-करोड़ों वर्षा में होता है ।
(iii) मानवीय विलोपन जो शिकार करने, पकडने तथा मानव की असीमित माँगों की आपूर्ति करने के कारण होता ।
जो वन्य-प्राणी विलोपन के लिये अतिसंवदनशील होती हैं, उनकी निम्न विशेषताएँ पाई जाती हैं:
(a) वन्य-प्राणी के शरीर का आकार बहुत बडा हो जैसे भारतीय हाथी तथा बंगाल का टाइगर ।
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(b) वन्य-प्राणी की छोटी जनसंख्या तथा पुनरुत्पादकता में कमी होना; जैसे- नीली ह्वेल तथा विशाल काया वाला पांडा
(c) आहार-श्रृंखला के ऊँचे स्तर पर निर्भर करने वाले प्राणी, जैसे-बंगाली बाघ, सफेद पेट वाली बडी ईगल
(d) निर्धारित मार्ग पर पलायन करने वाले वन्य प्राणी तथा-पक्षी ।
(e) सीमित क्षेत्र में पाये जाने वाले जीव-जंतु, उदाहरण के लिये टैगा एवं टुंड्रा के करेबु तथा द्वीपों पर रहने वाले पशु-पक्षी ।
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आश्चर्य की बात नहीं, मानव स्वयं ही बहुत-से जीव-जंतुओं तथा पशु-पक्षियों के विनाश एवं विलोपन का कारण बना हुआ है । मानव के द्वारा किया गया पर्यावरण हास जैविक विलोपन मुख्य कारण है । एक अनुमान के अनुसार 1900 ई॰ से प्रतिदिन औसतन एक जीव जाति पृथ्वी से लुप्त हो जाती है ।
प्राणियों में विलोपन के बहुत-से कारण हैं, जिनमें से निम्न प्रमुख हैं:
(i) प्राकृतिक आवास का नष्ट होना,
(ii) भोजन के लिये जंगली जानवरों का शिकार करना,
(iii) जंगलों में आग लगना,
(iv) बिदेशी जीव-जातियों का प्रसारण करना,
(v) शिक्षा का अभाव,
(vi) कानून को सख्ती से लागू न करना ।
जनसंख्या में तीव्र गति से वृद्धि, औद्योगीकरण, नगरीकरण, ऊँचा जीवन स्तर, उपभोक्तावाद तथा आधुनिकता का पशु-पक्षियों के प्राकृतिक आवास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है, पशुओं के बहुत-से प्राकृतिक आवास नष्ट हो गये हैं । उदाहरण के लिये कृषि भूमि, घास के मैदानों, उद्योगों तथा यातायात के लिये सड़कों तथा रेलों के विकास के लिये जंगल काटे जाते हैं ।
जंगलों के काटने से पशु-पक्षियों के प्राकृतिक निवास-स्थानों का विनाश होता है । बहुत-से उपयोगी तथा सफाई करने वाले पशु-पक्षी जैसे गिद्ध, कौआ तथा चील भी लुप्त होते जा रहे हैं ।
पुराने पाषाण युग में मानव अपने भोजन की तलाश में पशु-पक्षियों का आखेट करता था, फिर भी उससे पर्यावरण में अधिक परिवर्तन नहीं होता था और आज के समय में मानव के पास घातक हथियार हैं जिनसे भारी संख्या में पशु-पक्षियों का आखेट कर सकता है ।
मानव पशुओं को मांस, खाल, हाथी दाँत, फर, पंख, सींग इत्यादि के लिये शिकार करता है परिणामस्वरूप बहुत-से पशु-पक्षी लुप्त हो रहे हैं । जंगलों में अकस्मात् आग के लगने अथवा जंगल जलाकर भूमि को कृषि के लिये विकसित करने से भी बहुत-सी जीव-जातियों का विलोपन हो जाता है ।
जीवजातियों का विलोपन (Extinction of Species):
चार्ल्स डार्विन के अनुसार जीवजातियों का उत्पन्न होना तथा लुप्त होना एक प्राकृतिक प्रक्रिया है । जीवजातियों के विलोपन के लिये बहुत-से जिम्मेदार हैं ।
उदाहरण के लिये:
(a) जलवायु परिवर्तन,
(b) महामारी का फैलना,
(c) अत्यधिक आखेट करना अथवा पशुओं को मारना एवं जंगलों काटना या जलाना ।
(i) लुप्त प्रजाति (Extinct Species):
ये वे प्रजातियाँ हैं जो सर्वेक्षण के पश्चात उन क्षेत्रों में पाई गई हैं जहाँ पर उनका अस्तित्व था । प्रजाति किसी स्थानीय क्षेत्र, देश, महाद्वीप अथवा संपूर्ण विश्व से लुप्त हो सकती है । अन्य में प्रजाति तब लुप्त मान लिया जाता है जब सर्वेक्षण के पश्चात उसकी प्रजाति का एक भी जीव प्राप्त है । इस प्रकार की प्रजातियों के उदाहरण एशियाई चीता, गुलाबी मस्तक वाला हिरन, मैमथ तथा डायनासौर हैं ।
(ii) सामान्य प्रजातियाँ (Normal Species):
इन प्रजातियों की जनसंख्या का स्तर उनके जिंदा रहने के लिए सामान्य समझा जाता है । इनमें शामिल हैं- मवेशी, बकरियां, भेडें, कुतरा जाने वाला नीम, आम, बबूल, पीपल, बरगद, टीक, चीड़, आदि ।
(iii) दुर्लभ प्रजातियाँ (Rare Species):
दुर्लभ प्रजातियां वे हैं जिनकी जनसंख्या कम है तथा सीमित क्षेत्रों में पाए जाते हैं । दुर्लभ प्रजातियाँ समय के साथ असुरक्षित बन सकती हैं तथा अंततः संकटापन्न बन सकती हैं । इन प्रजातियों को संरक्षण कार्यक्रम के दौरान विशेष सुरक्षा व देखभाल की आवश्यकता होती है ।
(iv) अत्यंत संकटापन्न (Critically Endangered Species):
अत्यंत संकटापन्न प्रजातियों का विवरण तालिका 4.1 और 4.2 में दिया गया है ।
किसी प्रजाति को अति संकटापन्न का दर्जा तब दिया जाता है जब उपलब्ध उत्तम प्रमाण निम्नलिखित के अनुसार हो:
(a) जनसंख्या में कमी (विगत 10 वर्षों में 90 प्रतिशत से अधिक)
(b) जनसंख्या का आकर (50 से कम प्रौढ़ संख्या)
(c) विगत 10 वर्षा में लुप्त होने की प्राथिकता 50 प्रतिशत को दर्शाता संख्यात्मक विश्लेषण ।
(v) संकटापन्न (Endangered Species):
एक प्रजाति को असुरक्षित माना जाता है जब उपलब्ध उत्तम प्रमाण किसी एक मापदंड को दर्शाते हैं ।
मापदंड (Criteria):
(a) जनसंख्या के आकार में कमी (पिछले 120 वर्षों में 70% की कमी) ।
(b) जनसंख्या का अनुमानित आकार 250 से कम प्रौढ़ों का होना ।
(c) विगत 20 वर्षों में जंगल में लुप्त होने की संभावना 20 प्रतिशत होने को प्रदर्शित करता संख्यात्मक विश्लेषण ।
(vi) असुरक्षित (Vulnerable Species):
किसी प्रजाति को असुरक्षित माना जाता है जब यह असुरक्षित होने के किसी एक मापदंड को निर्दिष्ट करता है:
(a) जनसंख्या में कमी (पिछले 10 वर्षों में 50 प्रतिशत से अधिक) ।
(b) प्रौढों की अनुमानित जनसंख्या 10,000 से कम होना ।
(c) विगत 100 वर्षों में जंगल में लुप्त होने की संभावना कम-से-कम 10 प्रतिशत होना ।
(vii) संकटमय (Near Threatened):
एक प्रजाति संकटापन्न के समीप है जब इसे मापदंड के लिए मूल्यांकित किया गया हो परंतु अब तक अत्यंत संकटापन्न या असुरक्षित के लिए अर्ह न हो परंतु भविष्य में संकटापन्न श्रेणी हेतु अर्हता प्राप्त कर ली हो ।
(viii) अल्पतम चिंता (Least Concern):
जब कोई प्रजाति अत्यंत असुरक्षित तथा संकटापन्न की श्रेणी में नहीं आती है, तो इसे अल्पतम चिता वाली प्रजाति कहा जाता है । व्यापक रूप से व अधिकता में पाए जाने वाली प्रजातियाँ इन श्रेणी में आती हैं ।
(ix) अपर्याप्त आंकड़े (Data Deficient):
जब किसी प्रजाति के वितरण और/अथवा जनसंख्या प्रस्थिति के बारे में लुप्त होने के खतरों से संबद्ध प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष अनुमान संबंधी आंकडे अपर्याप्त या अपूर्ण हो तो उसे आंकडों की अपर्याप्तता कहा जाता है । इस प्रकार अपूर्ण आकड़े युक्त प्रजाति संकटापन्न वर्ग नहीं है ।
(x) अमूल्यांकित (Not Evaluated):
एक प्रजाति को मूल्यांकित नहीं किया जाता जब इसे अभी तक प्रदत्त मापदंड के अन्तर्गत नहीं रखा गया हो ।