देवी पार्वती पर निबंध | Essay on Goddess Parvati in Hindi Language!

1. प्रस्तावना ।

2. उनका आदर्श जीवन चरित्र ।

3. उपसंहार ।

1. प्रस्तावना:

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हमारी भारतीय संस्कृति में पार्वती को भगवान् शंकर की पत्नी के रूप में पूज्य स्थान प्राप्त है । हिन्दू महिलाएं पार्वती को अपना आदर्श मानकर मनोनुकूल वर प्राप्ति के लिए व्रत-उपवास रखती हैं । पार्वती ने अपनी तपस्या द्वारा यह सन्देश दिया कि हिन्दू-धर्म में पति की कामना गृहस्थ जीवन में आध्यात्मिक दृष्टि से भी की जाती है ।

पति की मंगल कामना के लिए भी किया गया तप, पूजा-पाठ, व्रत-उपवास उसी तरह मनोवांछित फल की प्राप्ति कराता है, जिस प्रकार पार्वती को शिव की प्राप्ति हुई थी । पार्वती का स्वरूप सती, कौशिकी, गौरी, काली, दुर्गा आदि रूपों में मी अमिव्यक्त होता है ।

2. उनका आदर्श जीवन-चरित्र:

पार्वती पूर्व जन्म में दक्षकन्या सती के रूप में भगवान् शंकर की पत्नी थीं । दक्ष ने प्रजापति के पद पर आसीन होने की स्थिति में यज्ञ का अयोजन कर देव, गन्धर्व, किन्नर आदि को सपत्नीक, ससम्मान आमन्त्रित किया था । किन्तु द्वेषवश भगवान् शंकर को आमन्त्रित नहीं किया । इस अपमान से क्षुब्ध होकर सती ने यज्ञ में अपनी प्राणाहुति देकर विरोध जताया ।

भगवान् शंकर सती की जली हुई देह लेकर हिमालय पर्वत तथा समस्त जगहों पर ताण्डव नर्तन करते हुए सती की मृत्यु का शोक व्यक्त करते रहे । सती के शरीर के अंश जहां-जहां भी गिरे, वे स्थान तीर्थ के रूप में प्रसिद्ध हो गये ।

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अगले जन्म में पार्वती पर्वतराज हिमालय तथा मेनका देवी के गर्भ से उत्पन्न हुई । शैलजा, गिरिजा आदि नामों से वह प्रसिद्ध हुईं । इस जन्म में शिव को प्राप्त करने के लिए उन्होंने वर्षों भूखे-प्यासे रहकर कठोर तप किया । यहां तक कि पत्तों का भी त्याग कर दिया । अवधूत शिव को प्राप्त करने की कामना पार्वती के उस आदर्श रूप को प्रस्तुत करती है, जिसमें सुन्दरता की अपेक्षा शिव के गुणों पर दृष्टि जाती है ।

पार्वती के रूप में जन्म लेना देवताओं की इच्छा तथा संसार के हित में था; क्योंकि उन्हें शंकरजी के संयोग से कार्त्तिकेय को जन्म देकर तारकासुर का वध करना था । वहीं गणेशजी जैसे ऋद्धि-सिद्धि सम्पन्न देवता को भी संसार के कल्याणार्थ जन्म लेना था ।

अत: पार्वती और शंकर का विवाह होना सृष्टि द्वारा तय इसलिए भी था; क्योंकि उन्हें दुर्गा व काली अवतार में ध्रूमलोचन, चण्ड-मुण्ड, महिषासुर, रक्तबीज जैसे राक्षसों का वध करना था और राक्षसों के आतंक से तीनों लोकों को मुक्ति दिलानी थी । कौशिकी के रूप में प्रकट हुई पार्वती बाद में काली व दुर्गा के अवतारों में भी अपने भक्तजनों के उद्धार के लिए अस्तित्व में आयी थीं ।

3. उपसंहार:

हिन्दू-धर्म के समस्त देवी-देवताओं में शिव जैसे कल्याणकारी देवता एवं अपने पति के हर कार्य में सहयोग देने वाली पार्वती विशेष महत्त्व रखती हैं । गणेश तथा कार्त्तिकेय जैसे पुत्रों के जन्मदाता शिव-पार्वती ही हो सकते हैं ।

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कठोर तप से शिव को प्राप्त करने का आत्मबल, साहस, सहनशीलता, संयम, धैर्य पार्वती के चरित्र में ही प्राप्त हो सकते थे और पार्वती ने अपने कठोर तप से शिव को ही नहीं, अपितु अन्य देवी-देवताओं को प्रसन्न कर उनकी दृष्टि में अपनी श्रेष्ठता साबित की ।

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