Read this article in Hindi to learn about:- 1. भारत में संसदीय सरकार का प्रारम्भ (Introduction to Parliamentary Government of India) 2. संसदीय और अध्यक्षीय सरकार (Parliamentary and Presidential Government) and Other Details.

भारत में संसदीय सरकार का प्रारम्भ (Introduction to Parliamentary Government of India):

प्रजातंत्र में शासन के प्रमुख रूप से दो रूप हो सकते हैं, जो कार्यपालिका और व्यवस्थापिका के सम्बन्धों के स्वरूप पर निर्भर है । एक तो यह कि व्यवस्थापिका के सदस्यों में से ही कुछ सदस्य कार्यपालिका का निर्माण करें, इसे संसदीय शासन प्रणाली कहते हैं क्योंकि कार्यपालिका संसद (व्यवस्थापिका) में से चुक जाती है और उसी के प्रति उत्तरदायी होती है ।

दूसरा रूप अध्यक्षात्मक या राष्ट्रपति शासन-प्रणाली है जिसमें कार्यपालिका व्यवस्थापिका से स्वतंत्र होती है और उसके प्रति उत्तरदायी भी नहीं होती । भारत, जापान, कनाडा और ब्रिटेन में संसदीय प्रजातन्त्र हैं जबकि अमेरिका, श्रीलंका, ब्राजील, रूस में अध्यक्षीय प्रजातन्त्र हैं ।

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भारत में प्रजातंत्र की संसदीय शासन व्यवस्था प्रचलित है जिसमें वास्तविक कार्यपालिका और नाममात्र की कार्यपालिका अलग-अलग होती है । राज्य के सभी कार्य नाममात्र की कार्यपालिका अर्थात राष्ट्रपति के नाम से किये जाते हैं लेकिन उनके पीछे वास्तविक शक्ति, वास्तविक कार्यपालिका अर्थात् मंत्रिपरिषद की होती है ।

संसदीय और अध्यक्षीय सरकार (Parliamentary and Presidential Government):

संसदीय और अध्यक्षीय सरकारों में निम्नलिखित प्रमुख अंतर होते है:

1. संसदीय प्रणाली में संसद में से सरकार निकलती है जबकि अध्यक्षीय प्रणाली में सरकार के सदस्य (मंत्री) संसद के सदस्य नहीं होते ।

2. संसदीय प्रणाली में सरकार विधायिका के प्रति पूर्णत: उत्तरदायी होती है जबकि अध्यक्षीय में वह अनुत्तरदायी और स्वतंत्र होती है ।

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3. संसदीय सरकार का कार्यकाल संवैधानिक रूप से विधायिका की इच्छा के अधीन होता है जबकि अध्यक्षीय सरकार का कार्यकाल विधायिका के नियंत्रण से मुक्त होता है ।

4. संसदीय सरकार में राष्ट्र प्रमुख (राष्ट्रपति) और राष्ट्राध्यक्ष (प्रधानमंत्री) अलग-अलग होते हैं, जबकि अध्यक्षीय सरकार में ये एक (राष्ट्रपति) ही होते हैं ।

ब्रिटिश और भारतीय संसदीय प्रणाली में अंतर (Differences in British and Indian Parliamentary System):

1. ब्रिटेन में साम्राज्यीय प्रणाली है अर्थात् राष्ट्रप्रमुख वंशानुगत राजा (या रानी) होता है जबकि भारत में गणतांत्रिक प्रणाली है अर्थात् राष्ट्रप्रमुख जनता द्वारा निर्वाचित (अप्रत्यक्ष रूप से) होता है ।

2. ब्रिटेन में संसद ही संप्रभु है जबकि भारत में संविधान संप्रभु है ।

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अवस्थी एवं अवस्थी के अनुसार भारत की संसद की संप्रभुता निम्नलिखित तथ्यों के संदर्भ में सीमित है:

1. संविधान का लिखित रूप में होना (ब्रिटेन का संविधान लिखित नहीं है तथा इसका आधार राजनीतिक सभा और सम्मेलन है) ।

2. संघीय प्रणाली (ब्रिटेन में एकात्मक प्रणाली है) ।

3. न्यायिक समीक्षा प्रणाली (ब्रिटेन में न्यायिक समीक्षा प्रणाली नहीं है) ।

4. मौलिक अधिकार तथा राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत भी भारतीय संसद के प्राधिकार को सीमित कर देते हैं ।

भारत के संसदीय शासन की प्रमुख विशेषताएं (Features of Indian Parliamentary System):

1. नाम-मात्र का राज्याध्यक्ष:

संसदीय शासन प्रणाली में नाममात्र की कार्यपालिका एक अनिवार्य व्यवस्था है । इसे राष्ट्रपति कहते हैं । वस्तुत: संसदीय शासन में मंत्रिपरिषद वास्तविक सरकार होती है और इसका निर्धारण लोकसभा (जनप्रतिनिधि) में बहुमत के आधार पर होता है । यह निर्धारित करने वाली सत्ता के रूप में राष्ट्रपति अनिवार्य आवश्यकता है ।

फिर यह जरूरी नहीं होता कि सरकार में लोकसभा का विश्वास सदैव अर्थात् पूरे कार्यकाल तक बना ही रहे । इस विश्वास या अविश्वास का पता लगवाने वाली स्वतन्त्र सत्ता के रूप में भी राष्ट्रपति की जरूरत होती है । सरकारों के आने-जाने से रिक्त हुऐ समय में भी शासन का कार्य सुचारु रूप से चलता रहे, राष्ट्रपति का पद उसकी पूर्ति भी करता है ।

2. वास्तविक कार्यपालिका बनाम संवैधानिक कार्यपालिका:

राष्ट्रपति निम्न सदन में बहुमत दल के नेता को प्रधानमंत्री नियुक्त करता है और उसके परामर्श से अन्य मंत्रियों की नियुक्ति करता है । केन्द्र सरकार के सारे काम राष्ट्रपति के नाम से किये जाते हैं लेकिन इन कार्यों का निर्णय मंत्रिपरिषद लेती है । अनुच्छेद 74 के अनुसार राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद के परामर्श के अनुसार कार्य करेगा ।

अंतत: वह परामर्श मानने के लिए बाध्य है । इस प्रकार वह स्वयं निर्णय नहीं लेता बल्कि रबर की मुहर के समान मंत्रिपरिषद के निर्णयों को विधि का रूप देता है । अनुच्छेद 74 के अनुसार राष्ट्रपति को सलाह देने के लिए मंत्रिपरिषद होगी जिसका नेता प्रधानमंत्री होगा ।

अनुच्छेद 75(3) के अनुसार मंत्रिपरिषद लोकसभा के प्रति सामूहिक रूप से उत्तरदायी हैं अर्थात मंत्रिपरिषद वही हो सकती है जिसे लोकसभा का विश्वास प्राप्त हो । इस प्रकार मंत्रिपरिषद लोकसभा (जनसदन) के विश्वास पर टिकी है न कि राष्ट्रपति की कृपा पर । स्पष्ट है कि संसदीय शासन में दोहरी कार्यपालिका का अस्तित्व होता है- एक संवैधानिक या नाममात्र की तथा दूसरी वास्तविक ।

3. सामूहिक उत्तरदायित्व:

संसदीय शासन की यह प्रमुख विशेषता है । भारत में अनुच्छेद 75(3) के तहत मंत्रिपरिषद सामूहिक रूप से लोकसभा के प्रति उत्तरदायी है ।

इससे आशय है कि:

i. मंत्रिपरिषद अर्थात् सरकार वही बनेगी जिसे लोकसभा के बहुमत का समर्थन हासिल हो ।

ii. मंत्रिपरिषद समस्त शासन संचालन के लिये लोकसभा के प्रति उत्तरदायी है । अर्थात् लोकसभा का उस पर नियन्त्रण रहता है जो प्रश्न पूछकर, बहस करके या प्रस्ताव लाकर सुनिश्चित होता है ।

iii. कोई एक मंत्री के विरूद्ध पारित प्रस्ताव सम्पूर्ण मंत्रिपरिषद के विरुद्ध माना जाता है ।

iv. लोकसभा के विश्वास पर्यन्त ही मंत्रिपरिषद सत्तासीन रहेगी ।

4. जनप्रतिनिधि सदन अधिक शक्तिशाली:

भारत में लोकसभा, जो कि जन प्रतिनिधि सदन है, अधिक शक्तिशाली है । राज्य सभा की तुलना में इसे अनेक उच्च शक्तियां प्राप्त है, जैसे- मंत्रिपरिषद का निर्धारण लोकसभा में बहुमत के आधार पर होता है ।

मंत्रिपरिषद लोकसभा के प्रति ही उत्तरदायी होती है । उसके विरूद्ध अविश्वास प्रस्ताव लोकसभा ही ला सकती है । धन और वित्त विधेयक सर्वप्रथम लोकसभा में रखे जाते हैं और उन पर अंतिम निर्णय लोकसभा ही करती है । संयुक्त अधिवेशन की अध्यक्षता का अधिकार लोकसभाध्यक्ष को ही है, राज्यसभा के सभापति को नहीं ।

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