Read this article in Hindi to learn about the four main aspects of sensation in an individual. The aspects are: 1. Detection 2. Discrimination 3. Identification 4. Recognition.
Aspect # 1. ताड़ना (Detection):
उत्तेजना की अनुक्रिया का संवेदना के अन्तर्गत आभास होता है, क्योंकि मानव जिस जगत् में व्यवहार एवं आचरण करता है, उस वातावरण में उत्तेजकों की अनुक्रिया निरन्तर होती रहती है । मानव को जैसे ही इस बात की संवेदना होती है, वह तुरन्त मन मस्तिष्क के एक विचार से प्रेरित हो जाता है, कि कुछ हुआ है?
और वह इस प्रश्न के समाधान की ओर ध्यान देना शुरू कर देता है, किन्तु ध्यान देने से पूर्व उसके मस्तिष्क में ताड़ने की अनुक्रिया ने जन्म लिया जो कि प्रश्न के रूप में सामने आयी थी । इसीलिए वह समझ जाता है, कि उत्तेजना की अनुक्रिया संवेदना के अन्तर्गत हो रही है ।
किसी उत्तेजना का ताड़ना इस बात को जन्म देता है, कि उत्तेजना की ऊर्जा शक्ति की क्षमता कितनी है? जो कि उसकी ज्ञानेंन्द्री को संकेत दे रही है । विभिन्न वैज्ञानिकों द्वारा किये गये अध्ययनों से ज्ञात हुआ कि भौतिक ऊर्जा के उपरान्त उत्तेजना की उत्पत्ति का मापन क्या था?
ADVERTISEMENTS:
और कितनी कम भौतिक ऊर्जा के अन्तर्गत उत्तेजना का प्रत्यक्षीकरण हो सकता है । इस मापन क्षमता अथवा रेखा को सीमान्त (Threshold) कहा जाता है ।
यह संवेदना मुख्यत: दो भागों में विभाजित की गई है:
(a) प्रभाव सीमान्त (Absolute Threshold)
(b) उद्दीपक सीमान्त (Stimuli Threshold) ।
ADVERTISEMENTS:
डि.अमेटो (D’Amato) के कथनानुसार, “भन्नता सीमान्त उत्तेजना परिवर्तन की वह न्यूनतम मात्रा है, जिससे संवेदना के अन्तर को स्पष्ट किया जा सकता है ।”
Aspect # 2. विभेदीकरण (Discrimination):
वातावरण में उत्पन्न होने वाली संवेदना परिवर्तनशील होती है । इस परिवर्तन को प्राणी केवल तब ही पहचान सकता है, जबकि उसे उस संवेदना का अन्तर पता हो । यहाँ संवेदना के दूसरे पक्ष विभेदीकरण के अन्तर्गत हम यही बात जानने का प्रयास कर रहे हैं, अर्थात विभेदीकरण से अभिप्राय यह है, कि वातावरण में जो संवेदना होती है उसके दो समान प्रतिरूपों में क्या अन्तर है?
वि भेदीकरण की मुख्य समस्या भौतिक ऊर्जा के परिवर्तन के अन्तर्गत सीमान्त से सम्बन्धित है । विभेदीकरण के अन्तर्गत दो समान प्रतिरूपों में भेद किस प्रकार हो सकता है? अर्थात् उत्तेजकों के दोनों स्वरूपों का अन्तर पहचानने योग्य क्या पैमाना अथवा सूत्र है, जिसका उपयोग करके विभेदीकरण की समस्या को सुलझाया जा सकता है ।
उदाहरण के लिए सूर्य की ऊर्जा जो कि दो समय पर महसूस की जा सकती है । किन्तु दोनों समय के अन्तर पर ऊर्जा का विभेद क्या है? इस बात को प्राणी संवेदना द्वारा ही स्पष्ट कर सकता है ।
ADVERTISEMENTS:
इस सन्दर्भ में वेबर ने निम्न सूत्र का प्रतिपादन किया है:
उपर्युक्त सूत्र में ‘’ का अर्थ उत्तेजना अनुक्रिया की उस संवृद्धि से है, जिसके कारण प्रयासों में संवेदना की प्रतीति होती है । इस सूत्र में निश्चित प्रयोग स्थितियों तथा निश्चित उत्तेजना क्रिया पर ‘K’ का मान स्थिर है । इसमें ‘K’ एक स्थिरांक के रूप में है, जो कि उत्तेजना मूल्य के स्थिर समानुपात से सम्बन्ध रखता है ।
वेबर स्पष्ट करते हैं, कि (K) स्थिर अनुपात का मान भिन्न-भिन्न उत्तेजनाओं के लिए भिन्न-भन्न होता है ।
इन स्थिराकों को अटकिन्सन व अटकिन्सन एवं हिलगार्ड निम्न प्रकार स्ग्ष्ट करते हैं:
Aspect # 3. तादात्मीकरण (Identification):
संवेदना का तृतीय पक्ष तादात्मीकरण से सम्बन्धित है । प्राणी किसी-न-किसी पर्यावरण में अथवा वातावरण में रहता है, वह उस वातावरण के अनुरूप विभिन्न प्रकार की अनुक्रियाएँ निरन्तर करता रहता है, और उन क्रियाओं के फलस्वरूप संवेदना होने की प्रक्रिया भी निरन्तर बनी रहती है ।
जिस वातावरण के अनुरूप प्राणी में उत्तेजनाएँ होती हैं, वे किसी विशेष अनुक्रिया के अन्तर्गत होती हैं । जिसके आधार पर प्राणी यह जान पाता है, कि होने वाली उत्तेजनाओं से संवेदना का स्पा रूप है? इस प्रक्रिया को ही तादात्मीकरण सम्बन्धी पक्ष के अन्तर्गत रखा गया है ।
Aspect # 4. पहचान (Recognition):
इस जगत् में मानव को होने वाली उत्तेजनाओं का ज्ञान किसी वातावरण के अन्तर्गत होता है । यह ज्ञान तात्कालिक होता है, संवेदना को महसूस करने की प्रक्रिया को पहचान के अन्तर्गत रखा गया है । मानव उत्तेजनाओं सम्बन्धी विशेष अनुक्रिया के अन्तर्गत अहसास करता है, जो कि उसके अनुभवों के आधार पर होती है, तथा उसके पहचानने की क्षमता भी उत्तेजनाओं के फलस्वरूप होती है ।
अत : दैनिक जीवन में व्यक्तिगत अनुभवों के आधार पर भी व्यक्ति वस्तुओं को पहचानता है, या उनका प्रत्यक्षीकरण प्रस्तुत करता है ।