Read this article in Hindi to learn about:- 1. Meaning of Case Study 2. Characteristics of Case Study 3. Sources of Information 4. Merits 5. Limitations.
Contents:
- व्यक्तिगत अध्ययन पद्धति का अर्थ (Meaning of Case Study)
- वैयक्तिक अध्ययन पद्धति की विशेषताएँ (Characteristics of Case Study)
- वैयक्तिक अध्ययन पद्धति में सूचनाओं के स्रोत (Sources of Information in Case Study)
- वैयक्तिक अध्ययन पद्धति के गुण (Merits of Case Study)
- व्यक्तिगत अध्ययन पद्धति की सीमाएं (Limitations of Case Study)
1. व्यक्तिगत अध्ययन पद्धति का अर्थ (Meaning of Case Study):
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मनोवैज्ञानिक क्षेत्रों में जो भी अध्ययन किये जाते हैं, उन्हें प्रमुख रूप से दो वर्गों में वर्गीकृत किया जा सकता है- गणनात्मक अध्ययन तथा गुणात्मक अध्ययन । गणनात्मक अध्ययन वे होते हैं, जो गणना या सांख्यिकी पर आधारित होते हैं । इसके विपरीत गुणात्मक अध्ययन वे होते हैं, जो गुणदोषों पर आधारित होते हैं ।
व्यक्तिगत अध्ययन पद्धति गुणात्मक अध्ययन पद्धति है, जिसमें अध्ययन इकाई का अध्ययन उसमें पाये जाने वाले गुणदोषों के आधार पर किया जाता है । व्यक्तिगत अध्ययन पद्धति में एक समय में केवल किसी एक इकाई को ही अध्ययन के लिए चुन लिया जाता है ।
फिर इस एक का ही सम्पूर्ण अध्ययन किया जाता है । दूसरे शब्दों में अध्ययन के लिए चुनी गई इकाई के जितने भी सम्भावित पक्ष होते हैं, उन सभी पक्षों का गहनता और सूक्ष्मता के साथ अध्ययन किया जाता है । इसीलिए बर्गेस ने व्यक्तिगत अध्ययन पद्धति को ‘सामाजिक सूक्ष्म दर्शक यन्त्र’ कहकर सम्बोधित किया है ।
व्यक्तिगत अध्ययन पद्धति का प्रयोग अनेक विद्वानों ने अपने अध्ययनों में किया है, जैसे-लीप्ले, हरबर्ट, स्पेन्सर, विलियम हीली, रेडफील्ड, ऑस्कर लेविस इत्यादि ।
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मनोवैज्ञानिक एवं समाजशास्त्रीय अध्ययनों में व्यक्तिगत अध्ययन पद्धति का सर्वप्रथम प्रयोग लीप्ले ने किया था । इसके पश्चात् हरबर्ट स्पेन्सर हीली रैडफील्ड तथा लेविस इत्यादि विद्वानों ने इस पद्धति का प्रयोग विभिन्न प्रकार के अध्ययनों में किया ।
व्यक्तिगत अध्ययन पद्धति जैसा कि इसके नाम से ही स्पष्ट है, इसमें एक समय में किसी एक इकाई को चुनकर उसका गहनता तथा सूक्ष्मता के साथ अध्ययन किया जाता है । अध्ययन की इकाई कोई व्यक्ति, संस्था, अथवा समूह कुछ भी हो सकता है ।
दूसरे शब्दों में यह कह सकते हैं, कि वैयक्तिक अध्ययन पद्धति अपने आप में किसी इकाई का गहन और सूक्ष्मदर्शी अध्ययन है । पी.वी.यंग के अनुसार, ”वैयक्तिक अध्ययन किसी सामाजिक इकाई-चाहे वह एक व्यक्ति परिवार संस्था सांस्कृतिक वर्ग अथवा समस्त जाति हो – के जीवन के अनुसन्धान व उसकी विवेचना करने की पद्धति को कहते हैं ।”
बीसेप्न एवं बीसेप्न के शब्दों में, ”वैयक्तिक अध्ययन एक गुणात्मक विवेचना का रूप है, जिसमें व्यक्ति परिस्थिति अथवा संस्था का अत्यन्त सावधानी सहित पूर्ण निरीक्षण किया जाता है ।” गिडिंग्स के शब्दों में, “अध्ययन किया जाने वाला वैयक्तिक विषय केवल एक व्यक्ति अथवा उसके जीवन की एक घटना या विचारपूर्ण दृष्टि से एक राष्ट्र का इतिहास का एक युग भी हो सकता है ।”
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उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर यह कहा जा सकता है, कि वैयक्तिक अध्ययन पद्धति वह पद्धति है, जिसमें एक समय में केवल किसी एक सामाजिक इकाई का सम्पूर्ण रूप में गहनता तथा सूक्ष्मता के साथ अध्ययन किया जाता है ।
2. वैयक्तिक अध्ययन पद्धति की विशेषताएँ (Characteristics of Case Study):
वैयक्तिक अध्ययन पद्धति की प्रमुख निम्नलिखित विशेषताओं का उल्लेख किया जा सकता है:
(1) गुणात्मक अध्ययन न कि संख्यात्मक:
जैसा कि परिभाषाओं से स्पष्ट है, कि इस पद्धति के द्वारा सामाजिक घटना का गुणात्मक अध्ययन किया जाता है, न कि परिमाणात्मक या संख्यात्मक । निष्कर्षो का आधार संख्याएं नहीं होतीं, बल्कि सामाजिक घटना का गहन अवलोकन इस पद्धति के अध्ययन की इकाई का वर्णात्मक रूप में जीवन इतिहास प्रस्तुत किया जाता है, जिसमें अतीत की दशाओं का वर्तमान से सम्बद्ध किया जाता है ।
इस प्रकार वैयक्तिक अध्ययन पद्धति गहन अवलोकन के आधार पर घटना का प्राकृतिक इतिहास प्रस्तुत करती है ।
(2) समस्या का गहन अध्ययन:
इस पद्धति की महत्वपूर्ण विशेषता यह है, कि यह अध्ययन की इकाई के बारे में सब कुछ जानने का प्रयास करती है, न कि उसके किसी पक्ष या सामाजिक सर्वेक्षण की भांति दूर से किया गया ऊपरी अध्ययन ।
इसलिए वैयक्तिक पद्धति दीर्घकालीन अध्ययन होते हैं । इसलिए बर्गेस ने इसे सामाजिक सूक्ष्म अध्ययन कहा है । अध्ययनकर्त्ता सामाजिक घटना में अपने अवलोकन के द्वारा अन्दर तक प्रविष्ट होने की चेष्टा करता है ।
(3) वैयक्तिक अध्ययन:
वैयक्तिक अध्ययन बहुत अधिक प्रणालीबद्ध नहीं होते, बल्कि अनुसम्यगनकर्त्ता अपने वैयक्तिक, अनुसन्धान के प्रति उसकी सूझ-बूझ से प्रभावित होते हैं । अत: यह अध्ययन व्यक्तिगत होते हैं । इस प्रकार के अध्ययन अधिकांशत: एकाकी अध्ययनकर्त्ता के द्वारा किये जाते हैं ।
(4) सामूहिक अध्ययन:
वैयक्तिक अध्ययन इकाई की सम्पूर्णता का अध्ययन है । इसकी सर्वाधिक उल्लेखनीय विशेषता अध्ययन की इकाई की समग्रता को बनाये रखते हुए उसका सम्पूर्ण अध्ययन करना है ।
3. वैयक्तिक अध्ययन पद्धति में सूचनाओं के स्रोत (Sources of Information in Case Study):
यह पद्धति अपने आप में बड़ी अनोखी पद्धति है । इसमें सूचना एकत्रित करने के निम्नलिखित स्रोत हैं:
(1) प्राथमिक सामग्री:
अध्ययनकर्त्ता द्वारा अध्ययन क्षेत्र में जाकर साक्षात्कार निरीक्षण तथा अनुसूची के माध्यम से सामग्री एकत्रित करना ।
(2) द्वितीयक सामग्री:
इसके अन्तर्गत लिखित तथा प्रकाशित सामग्री आती है इसके निम्नलिखित स्रोत है:
(i) जीवनी,
(ii) पत्र,
(iii) डायरियाँ,
(iv) संस्मरण,
(v) आत्मकथाएँ,
(vi) लेख,
(vii) फोटो एलबम,
(viii) केस को दिये गये प्रमाण-पत्र,
(ix) वंशावली, इनाम तथा
(x) केस से सम्बन्धित संस्थाओं की उनके विषय में रिपोर्ट तथा रिकॉर्ड इत्यादि ।
4. वैयक्तिक अध्ययन पद्धति के गुण (Merits of Case Study):
यह कहना उचित ही होगा कि, ”वैयक्तिक जीवन अध्ययन पद्धति के विरोध में चाहे कुछ भी कहा गया हो पर यह सत्य है, कि सामाजिक वातावरण के अध्ययन में यह प्रणाली आधारभूत रहेगी ।”
वैयक्तिक अध्ययन पद्धति को आज किसी समस्या के सूक्ष्म अध्ययन के लिए अत्यन्त उपयोगी समझा जा रहा है, और किसी भी गहन सूक्ष्म अध्ययन के लिए यह प्रणाली ही सर्वोत्तम है ।
इस बात को और स्पष्ट रूप में समझने के लिए हम व्यक्तिगत अध्ययन पद्धति का महत्व/गुण निम्नलिखित रूप में प्रस्तुत कर सकते हैं:
(1) समस्या का सूक्ष्म व गहन अध्ययन:
व्यक्तिगत अध्ययन के अन्तर्गत व्यक्तिगत इकाइयों का अति गहन एवं सूक्ष्म अध्ययन किया जाता है । इस प्रणाली के अन्तर्गत इकाइयों के केवल विशिष्ट पहलुओं का अध्ययन नहीं वरन् वस्तुओं के सभी पहलुओं का हर दृष्टि से अध्ययन किया जाता है, और इस रूप में यह अति गहन अध्ययन होता है ।
(2) सामग्री की सम्पूर्णता:
वैयक्तिक अध्ययन पद्धति का महत्व इसलिए भी है, क्योंकि इसके द्वारा जो सामग्री एकत्रित की जाती है, वह अपने में सम्पूर्ण होती है । इतनी पर्याप्त मात्रा में सामग्री अन्य विधि से प्राप्त करना कठिन ही नहीं दुष्कर कार्य भी है ।
(3) महत्वपूर्ण परिकल्पनाओं का साधन:
व्यक्तिगत अध्ययन अनेक महत्वपूर्ण परिकल्पनाओं का निर्माण करने में एक साधन के रूप में कार्य करता है, इसमें अनेक इकाइयों का सूक्ष्म एवं विस्तृत अध्ययन किया जाता है और निष्कर्षों पर पहुँचा जाता है । इन्हीं निष्कर्षों के आधार पर अनेक परिकल्पनाओं का निर्माण सम्भव है, और किया भी जाता है ।
(4) अति महत्वपूर्ण प्रपत्रों का साधन:
व्यक्तिगत अध्ययन अनेक महत्वपूर्ण प्रपत्रों का निर्माण करने में हमारी सहायता करता है । यह महत्वपूर्ण प्रपत्र, अनुसूची, प्रश्नावली, साक्षात्कार निर्देशिका आदि हैं ।
किसी विशेष वर्ग की कुछ विशेष इकाइयों का अति सूक्ष्म अध्ययन करने के पश्चात् हमें अनेक महत्वपूर्ण बातों रुचियों मनोवृत्तियों आदि का पर्याप्त ज्ञान हो जाता है, और ऐसा होने पर अनेक महत्वपूर्ण प्रपत्रों का निर्माण करने में कोई विशेष कठिनाई नहीं होती ।
(5) इकाइयों का वर्गीकरण एवं विभाजन:
वैयक्तिक अध्ययन विभिन्न समूहों में विभाजित एवं वर्गीकृत करने में सहायता करता है । इकाइयों का चुनाव यदि सावधानी से किया जाये तो इसके बारे में लेखबद्ध सामग्री किसी इकाई की महत्वपूर्ण सामान्य एवं विशिष्ट अवस्थाओं की तुलना में एवं वर्गीकरण का आधार प्रदान कर सकती है ।
(6) व्यक्तिगत भावनाओं एवं मनोवृत्तियों का अध्ययन:
व्यक्तिगत अध्ययन के अन्तर्गत व्यक्तिगत भावनाओं एवं मनोवृत्तियों का गहन अध्ययन किया जाता है । एक व्यक्ति की किस-किस परिस्थिति में क्या-क्या भावनाएँ तथा किस प्रकार की मनोवृत्ति रहती है ? इस पद्धति से ही मालूम होता है ।
5. व्यक्तिगत अध्ययन पद्धति की सीमाएं (Limitations of Case Study):
यद्यपि इसमें कोई भी सन्देह नहीं है, कि वैयक्तिक अध्ययन पद्धति का अत्यधिक महत्व है, फिर भी इस प्रणाली की कुछ सीमाएँ भी हैं ।
इन सीमाओं को अग्रलिखित रूप में प्रस्तुत किया जाता है:
(1) केवल कुछ ही इकाइयों के आधार पर निष्कर्ष:
व्यक्तिगत अध्ययन की प्रथम सीमा यह है, कि इसके अन्तर्गत केवल कुछ थोड़ी-सी इकाइयों के अध्ययन के आधार पर ही निष्कर्ष निकाल लिये जाते हैं, और यदि उन विशेष परिस्थितियों को ध्यान में रखा जाये तथा निष्कर्षों को सामान्य रूप से सभी इकाइयों पर लागू किया जाये तो निश्चित ही धोखा खाने की सम्भावना रहती है ।
(2) अवैज्ञानिक विधि:
व्यक्तिगत अध्ययन अध्ययन पद्धति अवैज्ञानिक विधि ही नहीं वरन् असंगठित विधि भी है । वास्तव में इस प्रविधि में इकाइयों के चुनाव एवं सूरग्ना संकलन करने पर किसी भी प्रकार का नियन्त्रण नहीं रहता । साथ ही कोई निश्चित वैज्ञानिक एवं संगठित पद्धति का सहारा भी नहीं लिया जाता है । इस रूप में यह अवैज्ञानिक विधि भी है ।
(3) अधिक शुद्धता:
व्यकित अध्ययन में डायरी, पत्र, जीवन-इतिहास आदि से प्राप्त सामग्री का उपयोग होता है । लेकिन ये सब रिकॉर्ड एवं पत्र दोषपूर्ण होते हैं, जिन पर आधारित अध्ययन एवं निष्कर्षों का भी दोषपूर्ण एवं अशुद्ध होना स्वभाविक है ।
(4) दोषपूर्ण जीवन-इतिहास:
यह प्रणाली अपने अध्ययन में जीवन-इतिहास का प्रयोग करती है, परन्तु ये जीवन-इतिहास दोषपूर्ण एवं अवैज्ञानिक होते हैं ।