Read this article in Hindi to learn about the various characteristics of middle adulthood observed in an individual.
Characteristic # 1. मध्य प्रौढ़ावस्था चिन्ता एवं भय की अवस्था है:
इस अवस्था को चिन्ता एवं भय की अवस्था कहा जाता है । वस्तुत: प्रौढ़ इस अवस्था को स्वीकार नहीं करना चाहता । स्त्रियाँ न केवल प्रजनन क्षमता को खो देती हैं, वरन् लैंगिक रुचियों में भी कमी आ जाती है । प्राय: स्त्रियों को अपने पति के अन्य स्त्रियों के साथ सम्बन्ध स्थापित होने का भय सताता रहता है । पति भी घर से बाहर अपने समय को अधिक-से-अधिक व्यतीत करते हैं ।
पुरुषों को अपनी शक्ति एवं स्वास्थ्य की चिन्ता लगी रहती है । किन्तु स्वयं तन्दुरुस्त होने की अभिव्यक्ति करते रहते हैं । ज्ञान का अभाव तथा मध्य प्रौढ़ावस्था का सामना करने की शक्ति का अभाव होने के कारण स्त्री एवं पुरुष को भय सताता रहता है ।
Characteristic # 2. मध्य प्रौढ़ावस्था पुनर्समायोजन का काल है:
इस आयु में होने वाले शारीरिक परिवर्तन के साथ प्रत्येक प्रौढ़ को शीघ्र या देर से समायोजन करना आवश्यक हो जाता है । शारीरिक परिवर्तन में तेजी आ जाने से स्वास्थ्य में भी गिरावट होने लगती है । इसलिए अपनी भूमिका से समायोजन करना अत्यन्त कठिन कार्य हो जाता है ।
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पुरुषों को सेवानिवृत्ति की प्रक्रिया के साथ समायोजन बिठाना पड़ता है, जबकि स्त्रियाँ सामाजिक भूमिका में परिवर्तन होने के कारण समायोजन करती हैं । भूमिका में परिवर्तन करना एक जटिल कार्य है, क्योंकि लम्बे समय तक एक विशेष भूमिका का निर्वाह करने के पश्चात् स्वभाव में स्थायित्व आ जाता है ।
इसलिए प्रौढ़ों की समायोजन स्थिति में लचीलापन होना आवश्यक है ताकि पुरानी आदतों में परिवर्तन लाकर नवीन कार्यों को नये ढंग से करने की जिम्मेदारी निभा सकें ।
Characteristic # 3. मध्य प्रौढ़ावस्था संक्रमण काल है:
तरुणावस्था के समान यह अवस्था भी संक्रमण की अवस्था है । इस समय मध्य प्रौढ़ अपने पुराने व्यवहार व शारीरिक गुणों को त्यागकर ऐसी अवस्था में प्रवेश करते हैं । जहाँ वह नये व्यवहारम, नये दृष्टिकोणों का विकास करते हैं । इसलिए शारीरिक परिवर्तनों के साथ व्यवहार में परिवर्तन लाना आवश्यक हो जाता है, जो कि समायोजन में सहायता करता है ।
Characteristic # 4. मध्य प्रौढ़ावस्था की रूढ़िबद्धता एवं सामाजिक अभिवृत्ति:
अनेक बार प्रौढ़ों की यह धारणा रहती है, कि यह अवस्था स्वास्थ्य गिरावट की अवस्था होती है, जबकि यह सब मानसिक एवं शारीरिक स्तर पर अधिक होता है ऐसी रूढ़ियों का भी मध्य प्रौढों में विश्वास बन जाता है । व्यक्ति की प्रजनन क्षमता के साथ इसी गिरावट युक्त रूढि को जोडकर देखा जाता है ।
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मध्य प्रौढ़ावस्था के सम्बन्ध में गलत अवधारणाएं इस अवस्था को कम समझने का प्रयास व्यक्ति की अभिक्षमताओं एवं योग्यताओं का निम्न मूल्याकन पारम्परिक धारणाएं व्यक्तिगत विचार आदि सामाजिक अवधारणाओं को प्रभावित करती है ।
वर्तमान समय में इस अवस्था के प्रति दो प्रकार के विचारकों ने अपने मत प्रस्तुत किए हैं-प्रथम, व्यक्ति को जवान एवं क्रियाशील रहना चाहिए तथा द्वितीय उसे अपनी उम्र को शालीनता एवं जीवन को आरामदायक रूप में धीरे-धीरे स्वीकार कर लेना चाहिए ।
Characteristic # 5. मध्य आयु सन्तुलन व असन्तुलन का काल है:
प्रौढ़ अवस्था में आयु सन्तुलन एवं असन्तुलन की स्थिति होने के कारण शारीरिक एवं मानसिक दोनों प्रकार के परिवर्तन होने लगते हैं । नवीन भूमिका एवं बदली हुई जीवनशैली व्यक्ति के स्वभाव में परिवर्तन उत्पन कर असन्तुलन की स्थिति ला देता है । स्त्रियों में मासिक धर्म के बंद होने के कारण शारीरिक विकार दिखाई देने लगते हैं, जो कि मानसिक रूप से चिड़चिड़ापन उत्पन्न कर देते हैं ।
इसके साथ ही जीवन का अकेलापन उन्हें मानसिक अवसाद की ओर ले जाता है, जबकि पुरुषों में यह भावना सेवानिवृत्ति एवं भूमिका में परिवर्तन के कारण होती है जिससे असन्तुलन की स्थिति उत्पन्न हो जाती है ।
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इसके अतिरिक्त पति-पत्नी में विलगाव, विवाह-विच्छेद, परिवार विघटन, पारिवारिक सदस्य की क्षति या दुर्घटना आदि ऐसी स्थितियाँ हैं, जो स्त्री एवं पुरुष दोनों के जीवन में असन्तुलन की परिस्थतियाँ उत्पन्ना कर देती हैं ।
Characteristic # 6. मध्य आयु चिन्ता का काल है:
इस अवस्था को चिन्ता की अवस्था इसलिए कहा जाता है क्योंकि इस समय पुरुष अपने जीवन के अन्तिम लैंगिक सुखों को प्राप्त करने हेतु अपनी पत्नी के प्रति बफादार नहीं रहते जो कि भिन्न-भिन्न परिस्थितियों में दोनों के लिए चिन्ता-काल बन जाते हैं अथवा वे परस्पर तलाक लेकर किसी अन्य स्त्री या पुरुष के साथ विवाह कर लेते हैं ।
अत: यह चिन्तनीय स्थिति भी बन जाती है । इसके अतिरिक्त इस अवस्था को चिन्ता-काल इसलिए भी कहा जाता है कि इस उस सीमा में व्यक्ति को अधिक कार्य करने पड़ते हैं ।
अधिक चिन्ता या परेशानी या लापरवाही आदि जीवनयापन करने में विषमता उत्पन कर देते हैं, जिसके कारण व्यक्ति शारीरिक क्षमता से टूटने के साथ-साथ मानसिक रूप से भी टूट चुका होता है । ऐसे में आकस्मिक मृत्यु भी हो सकती है, या फिर गम्भीर रोग का शिकार हो चुका होता है ।
7. मध्य अवस्था विषमयुक्त है:
यह अवस्था वह होती है जिसमें व्यक्ति न तो युवा होता है और न ही वृद्ध अर्थात् इन दोनों के मध्य की अवस्था होने के कारण इसे प्रौढ़ावस्था का नाम दिया गया है । व्यक्ति के मन में यही बात पनपना प्रारम्भ हो जाती है कि उसकी सामाजिक स्थिति क्या होगी ?
वह इन सब चिन्ताओं से बचने के लिए अपने वस्त्र, रहन-सहन पहनावा इस प्रकार का रखना प्रारम्भ कर देता है, ताकि वह अधिक युवा दिख सके । साथ ही प्रौढ़ व्यक्ति यह भी प्रदर्शित करते हैं कि समाज में वह उतनी क्षमता व योग्यता के साथ कार्य कर सकते हें । इन सब कारणों से इस अवस्था को विषम अवस्था कहा गया है ।
8. मध्य अवस्था उपलब्धियों की अवस्था है:
यह समय वह होता है, जब व्यक्ति अपने किये गये कार्यों का आंकलन करता है और उनका किसी-न-किसी रूप में फल प्राप्त करना चाहता । जीवन की विषम परिस्थितियों में उसने कुछ कार्य किए है । वह उनका स्वाद इस अवस्था में लेना चाहता है ।
उसे इस प्रकार की सन्तुष्टि केवल धन कमाने, सामाजिक सफलता प्राप्त करने या सत्ता एवं प्रसिद्ध से नहीं वरन् जीवन के लक्ष्यों को प्राप्त करने से होती ।
इस अवस्था में वह अपने बच्चों की शिक्षा उनका भविष्य एवं उनके सम्बन्धी को पूरा कर लेना चाहता है और इनके पूर्ण पर वह अपनी उपलब्धियों का स्वयं मनन करता है, तथा सन्तुष्ट होता है । अपने क्षेत्र में किये गये कार्यों से उसे प्रसन्नता प्राप्त होती है तथा समाज द्वारा आदर व सम्मान प्राप्त होता है ।