Read this article in Hindi to learn about the types of imitation.
अनेक मनोवैज्ञानिकों ने विभिन्न पहलुओं को ध्यान में रखकर कुछ वर्गीकरणों को स्पष्ट किया है:
(1) ड्रेवर (Drever) के अनुसार अनुकरण के निम्नलिखित दो प्रकार हैं:
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(i) अचेत अनुकरण (Unconscious Imitation):
जब अनुकरणकर्ता किसी व्यवहार का अनुकरण अचेतनयतया करता है, तो उसे अचेत अनुकरण कहते हैं । सहानुभूतिपूर्ण, विचार-चालक, आरम्भिक अनुकरण आदि इसी श्रेणी के हैं ।
(ii) सचेत अनुकरण (Conscious Imitation):
जब व्यक्ति जान-बूझकर किसी व्यवहार का अनुकरण करता है, तो वह सचेत अनुकरण कहलाता है । ऐच्छिक उद्देश्यपूर्ण अनुकरण इसी तरह के हैं ।
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(2) मैक्डूगल ने भी अनुकरण करने की विधियों को अग्र पाँच भागों में विभाजित किया है:
(i) विचारात्मक अनुकरण:
व्यक्ति के आदर्श विचारों से प्रेरित होना एवं उसको अपने जीवन में स्थान प्रदान करके अनुकरण करना विचारात्मक अनुकरण की श्रेणी में आता है । उदाहरण के लिये किसी विद्वान व्यक्ति से नैतिक नियमों के पालन के विचार सुनकर व्यक्ति उन विचारों का अनुकरण करने लगते हैं ।
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(ii) सहज अनुकरण:
सहज अनुकरण से अभिप्राय उस अधिगम से है, जिसमें किसी के व्यवहार को देखकर बिना किसी प्रयत्न के उस व्यवहार का अनुकरण किया गया है, सहज अनुकरण कहा जाता है । उदाहरणार्थ किसी व्यक्ति के मुस्कराने पर दूसरा व्यक्ति भी सहज ही मुस्कराने लगता है ।
(iii) विचारपूर्वक अनुकरण:
विचारपूर्वक अनुकरण वह है जिसमें व्यक्ति के व्यवहार विशेष की नकल कोई दूसरा व्यक्ति विचारपूर्वक करता है, अर्थात् इसके अन्तर्गत किसी व्यक्ति के विशेष व्यवहार का नकल सोच विचार करके की जाती है ।
(iv) विचार शून्य अनुकरण:
यह अनुकरण भावनाओं के अधिन होता है । अनेक व्यक्तियों को एक विशेष दिशा में दौडते देखकर व्यक्ति जब बिना विचार किये उसका अनुकरण करने लगता है । तब वह विचार शून्य अनुकरण कहलाता है ।
(v) निरर्थक अनुकरण:
निरर्थक अनुकरण वह अनुकरण होता है, जिससे कोई व्यक्ति दूसरे के व्यवहार को नकल बिना किसी उद्देश्य के करता है । नकल करने के पीछे उस व्यक्ति का कोई विशेष लक्ष्य नहीं होता, किन्तु वह नकल करना चाहता है । निरर्थक अनुकरण की श्रेणी में आता है ।
(3) कार्क पैट्रिक (Kark Patrick) के अनुसार, अनुकरण निम्नलिखित पाँच प्रकार के होते हैं:
1. सहज अनुकरण (Reflex Imitation);
2. स्वा भाविक अनुकरण (Spontaneous Imitation);
3. अभिनयात्मक अनुकरण (Dramatic Imitation);
4. ऐच्छिक अनुकरण (Voluntary Imitation);
5. आदर्शात्मक अनुकरण (Idealistic Imitation) |
इनकी चर्चा विस्तार में यहाँ करना जरूरी नहीं है ।
(4) जिन्सवर्ग (Ginsberg) ने अनुकरण को निम्नवत् वर्गीकृत किया है:
(i) जैविक अनुकरण (Biological Imitation):
यह वह अनुकरण है, जो जैविक समानता के कारण उत्पस होता है । इसे मूल प्रवृत्ति के सामान स्थान दिया जा सकता है । साधारणत: इस प्रकार का अनुकरण अचेतन स्तर (Unconscious Level) पर होता है । जैसे – उड़ना पीक्षयों की मूल प्रवृत्ति है । बड़े पक्षी को उड़ते देख छोटे पक्षी का उसकी नकल करके उड़ना जैविक अनुकरण कहलाता है ।
(ii) विचार-चालक (Ideo-Motor Imitation):
यह मैक्डूगल के बताए गए दूसरे प्रकार के अनुकरण के समान ही है ।
(iii) उद्देश्यपूर्ण अनुकरण (Purposeful Imitation):
यह मैक्डूगल के ऐच्छिक अनुकरण से मिलता जुलता है । जब अनुकरणकर्त्ता किसी उद्देश्य के कारण अपनी इच्छा से अनुकरण करता है, तो उसे उद्देश्यपूर्ण अनुकरण कहते हैं । इसके अनेक उदाहरण देखने को मिलते हैं, कई युवक फिल्म में हीरो बनने के उद्देश्य से किसी विशेष हीरो की चाल-ढाल, पोशाक, बातचीत के ढंग आदि का अनुकरण करते हैं ।
(iv) तादात्मीकरण (Identification):
मानव विकास की विभिन्न अवस्थाएँ होती हैं, जिनसे मानव गुजरता है । आपने इस तथ्य को पिछले विवरण के अन्तर्गत समझा भी होगा । मनुष्य अपने सम्पूर्ण जीवनकाल में जन्म से लेकर वृद्धावस्था तक अनेक प्रकार के संवेगों एवं प्रतिक्रियाओं से गुजरता है, एवं अपने जीवन से जुडे अनुभवों को सदैव संजोए के रखना चाहता है ।
चूंकि मानव किसी-न-किसी वातावरण में रहता है, उसकी संस्कृति, उसके विस्तार एवं अन्य प्रकार के किया कलापों को अपनाता है, अर्थात मनुष्य जिस वातावरण में रहता है, इसमें वह विभिन्न प्रकार की अनुक्रियाएँ करता रहता है । ये अनुक्रियाएँ सतत् होती हैं, जिनके फलस्वरूप संवेदना होने की प्रक्रिया भी निरन्तर बनी रहती है ।
जिस वातावरण के अनुरूप मनुष्य में उत्तेजनाएं होती हैं, वे किसी-न-किसी विशेष अनुक्रिया के अन्तर्गत होती हैं, जिनके आधार पर वह समझ पाता है, कि होने वाली उत्तेजनाओं से संवेदना का क्या सम्बन्ध है? यह प्रक्रिया ही तादात्मीकरण सम्बन्धी पक्ष को दर्शाती है ।
इस जगत में मनुष्य को होने वाली उत्तेजनाओं का ज्ञान स्पष्ट है, कि किसी वातावरण के अन्तर्गत ही होता है । यह ज्ञान निरन्तर होने के साथ-साथ तात्कालिक ज्ञान भी हो सकता है । संवेदना का अनुभव करने की प्रक्रिया को पहचान (Recognition) के अन्तर्गत रखा गया है ।
मनुष्य उत्तेजनाओं सम्बन्धी विशेष अनुक्रिया के अन्तर्गत यह महसूस करता है, जोकि उसके अनुभवों के परिणामस्वरूप होती है, और पहचानने की क्षमता भी उत्तेजनाओं के फलस्वरूप होती है । इस प्रकार मनुष्य अपनी पहचान का तादात्मीकरण करता है, तथा अपने दैनिक जीवन में व्यक्तिगत अनुभवों के आधार भी वस्तुओं की पहचान करता है, और उसका प्रत्यक्षीकरण भी करता है ।
नोट:
क्रमिक उपागम (Sequential Approach) को समझने के लिए अध्याय 5 में वर्णित पियाजे की संज्ञानात्मक उन्नति से सम्बन्धित चार अवस्थाओं का अध्यय करें ।