Read this article in Hindi to learn about the contribution of Deccan kingdom towards Indian culture during medieval period.
दकनी राज्यों को अनेक सांस्कृतिक योगदानों का श्रेय प्राप्त है । अली आदिलशाह (मृत्यु: 1580) को हिंदू और मुस्लिम संतों से चर्चाएँ करना पसंद था और उसे सूफी कहा जाता था । उसने अकबर से भी पहले कैथलिक मिशनरियों को अपने दरबार में निमंत्रित किया था । उसके पास एक उम्दा पुस्तकालय था जिसमें उसने संस्कृत के सुप्रसिद्ध विद्वान वामन पंडित को नियुक्त किया था । उसके अधिकारियों ने भी संस्कृत एवं मराठी को संरक्षण देना जारी रखा ।
अली आदिलशाह का उत्तराधिकारी इब्राहिम आदिलशाह द्वितीय (1580-1627) नौ साल की आयु में गद्दी पर बैठा । वह गरीबों पर बहुत मेहरबान था और अबला बाजा (गरीबों का दोस्त) कहलाता था । संगीत में उसकी गहरी दिलचस्पी थी और उसने एक किताब किताब-ए-नौरस शीर्षक से रची थी जिसमें विभिन्न रागों पर गीत लिखे गए थे ।
उसने नौरसपुर नाम से एक नई राजधानी बसाई जिसमें बड़ी संख्या में संगीतकारों को बसने के लिए निमंत्रित किया गया । अपने गीतों में उसने संगीत और ज्ञान की देवी सरस्वती की खुलकर वंदना की । अपने उदार दृष्टिकोण के कारण वह ‘जगतगुरु’ कहलाया ।
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वह हिंदू संतों और मंदिरों समेत सभी को संरक्षण देता था । इसमें वह दान भी शामिल था जो विठोबा की आराधना के केंद्र पंढरपुर को दिया गया था । यही महाराष्ट्र में भक्ति आदोलन का केंद्र बन गया था । इब्राहीम आदिलशाह की उदार, सहिष्णु नीति को उसके उत्तराधिकारियों ने जारी रखा ।
अहमदनगर राज्य की सेवा में मराठा परिवारों की महत्वपूर्ण भूमिका का उल्लेख पहले ही किया जा चुका है । गोलकुंडा के कुतबशाह कहे जानेवाले शाह भी सैनिक प्रशासनिक और कूटनीतिक उद्देश्यों से हिंदू-मुसलमान दोनों की सेवाओं का उपयोग करते थे । इब्राहीम कुतबशाह (मृत्यु: 1580) के राज्य में मुरहरी राव पेशवा के पद तक पहुँचा ।
यह पद मीर जुमला या वजीर के पद के ही नीचे था । जब से यह राजवंश कायम हुआ राज्य में नायकवारी जो सैनिक एवं भूस्वामी तत्त्व थे एक ताकत बनकर उभरे । 1672 से लेकर 1687 में मुगलों के अधिकार में जाने तक राज्य के प्रशासनिक और सैनिक मामलों पर दो भाइयों मदन्ना और अकन्ना का वर्चस्व था ।
गोलकुंडा साहित्यकारों का बौद्धिक शरणस्थल था । अकबर का समकालीन सुल्तान मुहम्मद कुली कुतबशाह साहित्य और वास्तुकला का बेहद शौकीन था । सुल्तान कला और साहित्य का संरक्षक होने के साथ-साथ स्वयं भी कोई माधारण कवि नहीं था । वह दकनी उर्दू, फ़ारसी और तेलुगू में रचना करता था और पीछे एक बड़ा-सा दीवान (काव्यसंग्रह) छोड़ गया है । काव्य में धर्मनिरपेक्षता का सुर लाने वाला वह पहला शायर था ।
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अल्लाह और पैगंबर की स्तुति करने के बाद उसने प्रकृति, प्रेम और अपने समय के सामाजिक जीवन के बारे में लिखा है । दक्खिनी (दकनी) रूप में उर्दू का विकास इस काल का एक महत्वपूर्ण विकास क्रम है । मुहम्मद कुली कुतबशाह के उत्तराधिकारियों तथा उस काल के दूसरे बहुत से कवियो और लेखकों ने भी एक साहित्यिक भाषा के रूप में उर्दू को अपनाया ।
फारसी के अलावा इन लेखकों ने रूपों, मुहावरों और विषयों के लिए तथा शब्दभंडार के लिए भी हिंदी और तेलुग पर भरोसा किया । बीजापुरी दरबार ने भी उर्दू को संरक्षण दिया । महाकवि नुसरती ने, जो सत्रहवीं सदी के मध्य के शायर हैं कनकनगर के शासक राजा मनोहर और मधुमालती की प्रेमगाथा लिखी है । दकन से उर्दू अठारहवीं सदी में उत्तर भारत आई ।
वास्तुकला को लें तो मुहम्मद कुली कुतबशाह ने अनेक इमारतें बनवाई जिनमें सबसे मशहूर चारमीनार है । 1591-92 में पूरी होने वाली यह इमारत मुहम्मद कुली कुतबशाह के बसाए हुए नए नगर हैदराबाद के मध्य में स्थित है । इसमें चार ऊँची मेहराबें हैं जो चार दिशाओं में हैं । उसके सौंदर्य का मुख्य आकर्षण चार मीनारें हैं, जो चारमंजिला और 48 मीटर ऊँची हैं । मेहराबों के दोहरे पर्दे पर बारीक नक्काशी की गई है ।
बीजापुर के शासकों ने वास्तुकला में हमेशा एक ऊँचे मानदंड और एक बेदाग सुरुचि का परिचय दिया । इस काल की बीजापुरी इमारतों में सबसे मशहूर इब्राहीम रौजा और गोल गुंबज (गुबद) हैं । ‘इब्राहीम रौजा’ इब्राहीम आदिलशाह का मकबरा है और इसकी शैली अपनी निखार की पराकाष्ठा पर पहुँची हुई है ।
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गोल गुंबज का निर्माण 1660 में हुआ था । यह अभी तक की सबसे बड़ी गुंबद है । इसके तमाम भागों में संतुलन है तथा विशाल गुंबद को कोनों पर स्थित लंबी पतली होती जाती मीनारें संतुलित किए हुए हैं । कहते हैं कि विशाल कक्ष के एक कोने में कोई फुसफुसाए तो दूसरे छोर पर वह साफ सुनाई देती है ।
दकन में चित्रकला भी फली-फूली और इब्राहीम आदिलशाह (1580-1627) के दौर में अपनी पराकाष्ठा पर जा पहुँची । इस तरह दकनी राज्य सत्रहवीं सदी में पंथगत हिंसा पर काबू पाने में सफल रहे, उन्होंने सांप्रदायिक सामंजस्य का ऊँचा मानदंड बनाए रखा । उनका योगदान संगीत साहित्य और वास्तुकला के क्षेत्रों में भी रहा ।