Read this article in Hindi to learn about the process leading to the development of cognition and understanding in humans.

संज्ञानात्मक विकास एवं बोध से अभिप्राय संज्ञानों की उन्नति से है । संज्ञानात्मक विकास के अन्तर्गत स्मृति निर्णय प्रत्यक्षीकरण तर्कणा चिन्तन आदि के बिन्दुओं पर अध्ययन किया जाता है । विकासात्मक मनोविज्ञान का दृष्टिकोण यह प्रश्न उठाता है कि, ”क्या बच्चे वयस्कों की भांति ही विचार, स्मरण एव तर्क करते है”?

बीसवीं शताब्दी का मनोविज्ञान यह समझता था कि बच्चे वयस्कों की भांति ही स्मरण चिन्तन एवं तर्क करते हैं, विभिन्न समाजों में यह विश्वास किया जाता था कि मानसिक रूप से बच्चों से श्रेष्ठ वयस्क हैं, जैसे कि बने शारीरिक रूप से अत्यधिक श्रेष्ठ होते हैं ।

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इस सन्दर्भ में यह कहा जा सकता है, कि बच्चों और वयस्कों के संज्ञानात्मक प्रक्रम आहगरभूत ढंग से एक समान होते हैं, जबकि इसके विपरीत एक मनोवैज्ञानिक ने इन कथनों का खण्डन किया । उनके द्वारा किए गए अध्ययनों के अनुसार बच्चे वयस्कों की तरह चिन्तन अथवा तर्कणा नहीं करते हैं । उनके चिन्तन का ढंग वयस्कों से भिन्न होता है ।

गेस्टाल्टवादियों ने सर्वप्रथम बच्चों पर प्रयोग करके यह बताया कि प्रत्यक्षीकरण की योग्यता जन्मजात होती है । व्यवहारवादियों ने इस कथन की आलोचना की अपितु बीसवीं शताब्दी के पश्चात् हुए अध्ययनों से यह अनुमान लगाया गया कि शिशु Form or Pattern Perception की योग्यता रखते हैं ।

शिशु किसी अन्य प्रतिमानों की अपेक्षा में मानव चेहरे की ओर अधिक आकर्षित होते हैं । एक नवजात शिशु जन्म के दो दिन बाद ही अजनबी महिला के चेहरे एवं अपनी माँ के चेहरे में भेद कर सकता है । कुछ अध्ययनों से यह भी ज्ञात होता है, कि केवल दो महीने की आयु में ही शिशु गहराई के प्रत्यक्षीकरण की योग्यता रखता है ।

इन अध्ययनों से यह अवश्य ज्ञात होता है, कि मानव प्राणी शैशवावस्था तक संवेदना तथा प्रत्यक्षीकरण को योग्यता के साक्ष्य दर्शाने लगता है । इस प्रकार संज्ञानात्मक उन्नति में प्रत्यक्षीकरण पर अधिक शोध कार्य नहीं किये जाते ।

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अत: यह कहा जा सकता है, कि मनोवैज्ञानिकों ने बीसवीं शताब्दी के प्रारम्भ से ही तर्कणा स्मरण चिन्तन निर्णय प्रक्रम आदि को शोधों का विषय बनाया । इन प्रक्रमों का सम्बन्ध प्राय: बोध से होता है । यहाँ बोध का अभिप्राय पूर्वानुभवों के ज्ञान को नई परिस्थितियों में उपयोग करके विषय-वस्तु को समझने की योग्यता से है ।

बालक अपने वातावरण, अन्य व्यक्तियों और अपने आपको समझते हैं जो उनके समायोजन के प्रकार को प्रभावित करते हैं । यथा-जो बालक यातायात के साधनों के खतरे ऊँचाई के खतरों तथा खतरनाक पशुओं से खतरों को समझता है, वह सदैव सतर्क रहेगा, साथ-ही-साथ अच्छा समायोजन कर पायेगा ।

अपनी परिसीमाओं के बारे में ज्ञान बच्चे के व्यवहार को प्रभावित करता है । इसी प्रकार अन्य वस्तुओं तथा व्यक्तिगत व वातावरण के अनुसार परिवर्तनों हेतु समायोजन स्थापित कर सकता है, तथा जो बालक यह जानता है, कि वह तेरह वर्ष का है, तथा वय: सन्धि में इस प्रकार के शारीरिक परिवर्तन स्वाभाविक होते हैं, जैसे कि इस समय हो रहे हैं, तो वह बेखबर बालक की तुलना में कम डर, चिन्ता आदि का अनुभव करेगा ।

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