Read this article in Hindi to learn about the downfall of Bahmani kingdom during medieval period in India.

इस काल में बहमनी साम्राज्य का सबसे उल्लेखनीय व्यक्ति फिरोजशाह बहमनी (1397-1422) था । वह धार्मिक ज्ञान से, अर्थात कुरान की टीकाओं, इस्लामी कानून आदि से अच्छी तरह परिचित था और वनस्पतिशास्त्र, ज्यामिति, तर्कशास्त्र आदि विज्ञानों का विशेष शौक रखता था ।

वह एक अच्छा कातिब और शायर था और अकसर आशु-कविताएँ रचता था । फिरिश्ता के अनुसार वह फारसी अरबी और तुर्की में ही नहीं बल्कि तेलुगू, कन्नड़ और मराठी में भी सिद्धहस्त था । उसके हरम में विभिन्न देशों और क्षेत्रों की पत्नियों की एक बड़ी संख्या थी जिसमें अनेक हिंदू पत्नियाँ भी थीं । कहा गया है कि वह अपनी प्रत्येक पत्नी से उसी की भाषा में बातचीत करता था ।

फिरोजशाह बहमनी का संकल्प दकन को भारत की सांस्कृतिक राजधानी बनाने का था । दिल्ली सल्तनत के पतन ने उसकी सहायता की क्योंकि अनेक विद्वान दिल्ली से दकन चले गए । सुल्तान ने ईरान और ईराक के विद्वानों को भी प्रोत्साहन दिया ।

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वह कहा करता था कि बादशाह को अपने इर्दगिर्द सभी राष्ट्रों के विद्वान व्यक्तियों और सज्जनों को जमा रखना चाहिए ताकि उनकी सोहबत से वह जानकारियाँ पाता रहे और इस तरह दुनिया के विभिन्न क्षेत्रों की यात्रा से मिलने वाल कुछ लाभ उसे मिलते रहें ।

वह आम तौर पर उलमा, शायरों, इतिहास सुनानेवालों तथा दरबारियों में सबसे विद्वान और हाजिरजवाब लोगों की सोहबत में आधी रात तक का समय गुजारता था । उसने ओल्ड टेस्टामेट और न्यू टेस्टामेट दोनों पड़ रखा था और वह सभी धर्मों के मूलतत्वों का सम्मान करता था । उसे फिरिश्ता ने एक सच्चा मुसलमान कहा है जिसकी अकेली कमजोरी यह थी कि वह शराब पीने और संगीत सुनने का शौकीन था ।

प्रशासन में बड़े पैमाने पर हिंदुओं की भरती फिरोजशाह बहमनी का सबसे महत्वपूर्ण कदम था । कहते हैं कि उसी के समय से प्रशासन पर और खासकर राजस्व प्रशासन पर दकनी ब्राह्मण छा गए । यह दकनी हिंदू विदेशियों के आने से पड़ने वाले प्रभावों को प्रतिसंतुलित भी करते थे ।

फिरोजशाह बहमनी खगोलिकी को प्रोत्साहन देता था और उसने दौलताबाद के पास एक वैधशाला बनवाई थी । उसने अपने राज्य के प्रमुख बंदरगाहों-चौल और दाभोल पर काफी ध्यान दिया जहाँ फारस की खाड़ी और लाल सागर से व्यापारी जहाज आते थे और दुनिया के सभी हिस्सों से विलासिता की वस्तुएँ लाते थे ।

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खेड़ला के गोंड राजा नरसिंहराय को हराकर फिरोज बहमनी ने बरार की ओर बहमनी साम्राज्य का प्रसार आरंभ किया । राय ने उसे 5 हाथी, 50 मन सोना और 50 मन चाँदी उपहार में दिए । राय की एक बेटी भी फिरोज से ब्याही गई ।

खेड़ला नरसिंह को लौटाकर उसे साम्राज्य का एक अमीर बना लिया गया तथा उसे राजसी परिधान खिलअत दिया गया जिसमें जरी की कढ़ाई वाली एक टोपी भी शामिल थी । देवराय प्रथम की बेटी से फिरोजशाह बहमनी के विवाह का तथा बाद में विजयनगर के खिलाफ उसके युद्धों का उल्लेख किया गया हैं ।

लेकिन कृष्णा-गोदावरी वादी पर वर्चस्व का संघर्ष जारी रहा । 1419 में बहमनी साम्राज्य को एक धक्का लगा जब जैसा कि कहा जा चुका हैं, देवराय प्रथम के हाथो फिरोजशाह बहमनी पराजित हुआ । इस हार से फिरोज की स्थिति कमजोर हो गई और उसे अपने भाई अहमदशाह प्रथम के पक्ष में सत्ता छोड़नी पड़ी जिसे प्रसिद्ध सूफी संत गेसू दराज के संपर्क में रहने के कारण वली (संत) कहा जाता था ।

अहमदशाह ने दक्षिण भारत में पूर्वी समुद्रतट पर वर्चस्व के लिए संघर्ष जारी रखा । वह यह नहीं भूल सका कि पिछली दो लड़ाइयों में, जिनमें बहमनी सुल्तान हारा था, वारंगल ने विजयनगर का साथ दिया था । बदला लेने के लिए उसने वारंगल पर हमला किया उसके राजा को एक लड़ाई में हराकर मार डाला और उसके अधिकांश क्षेत्रों का अधिग्रहण कर लिया ।

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नवविजित क्षेत्रों पर अपने शासन को दृढ़ बनाने के लिए वह अपनी राजधानी को गुलबर्गा से बीदर ले गया । उसके बाद उसने मालवा, गोंडवाना और कोंकण की ओर अपनी दृष्टि घुमाई ।

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