Read this article in Hindi to learn about the emotions which lead to bodily changes in an individual.

संवेग में शारीरिक परिवर्तन होते हैं । ये शारीरिक परिवर्तन दो प्रकार के हैं- बाह्य शारीरिक परिवर्तन और आन्तरिक शारीरिक परिवर्तन । संवेग और इन शारीरिक परिवर्तनों के परस्पर सम्बन्ध के विषय में मनोवैज्ञानिकों के भिन्न-भिन्न मत हैं । अब इन दोनों प्रकार के शारीरिक परिवर्तनों का क्रमश: वर्णन किया जायेगा ।

1. बाहरी शारीरिक परिवर्तन (External Bodily Changes):

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संवेग में शारीरिक अवस्था में इतना परिवर्तन दिखाई पड़ता है, कि कुछ मनोवैज्ञानिकों ने तो शारीरिक परिवर्तन अथवा उसकी चेतना को ही संवेग मान लिया है । बहुधा शारीरिक परिवर्तनों को देखकर ही संवेगों को पहचाना जाता है । आप कैसे जानते हैं, कि अमुक व्यक्ति को क्रोध आ रहा है या अमुक व्यक्ति शोक में डूबा हुआ है? बच्चा आपको देखकर हर्षित हो उठा ।

इन सब प्रश्नों के उत्तर में आप यही कहेंगे कि आपने बाह्य शारीरिक परिवर्तनों को देखकर संवेग का अनुमान लगाया है । प्रसन्नता में आपका चेहरा खिल जाता है । इस प्रकार सवेगों से व्यक्ति के चेहरे में आँख, नाक, मुँह, ललाट आदि की भावभंगिमा में अन्तर दिखाई पड़ता है ।

उसकी आवाज में अन्तर आ जाता है और शरीर का आसन (Posture) बदल जाता है । ये संवेग की अभिव्यक्ति में बाह्य परिवर्तन हैं । इस विषय की जानकारी विस्तारपूर्वक जानना आवश्यक है ।

(i) चेहरे की अभिव्यक्ति (Facial Expression):

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संवेगों की पहचान करने में चेहरे की प्रतिक्रिया काफी सहायक होती है, चेहरे की अभिव्यक्ति को देखकर संवेगों को पहचाना जाता है । संवेगों को कितना भी छिपाया जाये परन्तु तीव्र संवेग से हुए चेहरे के परिवर्तनों को अनुभवी खो से नहीं छिपाया जा सकता ।

संवेग के वशीभूत होने पर व्यक्ति की मुखमुद्रा में सबसे पहले परिवर्तन आता है । संवेग की दशा में चेहरे की माँसपेशियाँ सिकुड़ या फैल जाती हैं । जब सुखद संवेग होता है, तो चेहरा खुशी से खिल उठता है तथा जब दु:खद संवेग होता है, तो चेहरा लटक जाता है । इसी प्रकार लज्जा का संवेग होने पर मुख लाल हो जाता है आदि ।

विभिन्न संवेगों की पहचान चेहरे के द्वारा आसानी से की जा सकती है । चेहरे की किस अभिव्यक्ति का क्या अर्थ है? इस सम्बन्ध में बहुत से मनोवैज्ञानिकों ने प्रयोग किये तथा फेलकी ने 86 संवेगात्मक चित्रों को 100 व्यक्तियों को पहचानने को दिया और विभिन्न संवेगों की सूची बनाकर कहा कि जिस चित्र से जो संवेग अभिव्यक्त होता है वह उसके सामने लिख दो ।

इस प्रयोग में संवेगों को पहचानने में 71 से 93 प्रतिशत सफलता प्राप्त हुई । केनर के प्रयोगों का भी लगभग इसी प्रकार का परिणाम निकला परन्तु लैण्डिस ने अपने प्रयोगों से यह सिद्ध किया कि संवेगों को पहचानने में चेहरे की अभिव्यक्ति की अपेक्षा पहचानने वाले की प्रवृत्ति ही अधिक दिखाई पड़ती है ।

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फर्नबर्ज ने अपने प्रयोगों के द्वारा यह बताया कि चेहरे के परिवर्तनों को देखकर केवल यही कहा जा सकता है, कि कोई व्यक्ति संवेग की अवस्था में है या नहीं हम यह नहीं कह सकते कि वह संवेग की कौन-सी अवस्था में है । उपरोक्त विचारों से यह बात स्पष्ट है कि केवल चेहरे की अभिव्यक्तियों से भिन्न-भिन्न संवेगों को पहचानना कठिन है, परन्तु इन प्रयोगों द्वारा मिले परिणामों में कुछ दोष व्याप्त हैं ।

पहला, प्रयोगशाला की कृत्रिम परिस्थिति में स्वाभाविक संवेग उत्पन्न करना कठिन है । दूसरे, भिन्न-भिन्न संस्कृतियों में भिन्न-भिन्न संवेगों को प्रदर्शित करने के प्रतिमान अलग-अलग हैं । तीसरे, यदि किसी प्रकार से प्रयोगशाला में कोई वास्तविक संवेग उत्पन्न हो भी जाये तो बड़ी तीव्र गति से उसका फोटोग्राफ लेने की आवश्यकता है ।

चौथे, संवेगों को पहचानने के लिए अनुभव और शिक्षण की भी आवश्यकता है । इन सभी विवरणों के बाद भी यह निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता कि चेहरे की अभिव्यक्तियों से संवेगों को नहीं पहचाना जा सकता ।

ल्योनार्डो-द-विन्सी (Leonard-Da-Vinci) के बनाये निम्नलिखित रेखाचित्र में आप खुशी और दु:ख के विरोधी संवेगों को सहज ही समझ सकते हैं:

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परन्तु इसका अर्थ यह नहीं है कि संवेगों की अभिव्यक्तियाँ जन्मजात होती हैं । जन्म से अन्धे और बहरे व्यक्ति पर प्रयोगों द्वारा स्पष्ट हो गया है कि संवेग की कौन-सी अभिव्यक्तियाँ जन्मजात और कौन-सी अर्जित हैं ? संवेग सम्बन्धी निर्णय करने में संस्कृति के प्रभाव को ध्यान में रखना भी जरूरी होता है । पहचानने वाले की बुद्धि आयु अनुभव और वातावरण का भी इसमें बड़ा महत्व है ।

(ii) स्वर अभिव्यक्ति (Vocal Expression):

स्वर ज्ञाता यह बात जानते है कि स्वर के सहारे केवल संवेगों को अभिव्यक्त ही नहीं किया जा सकता बल्कि ठीक उसी प्रकार के संवेग दूसरे व्यक्ति में भी उत्पन्न किये जा सकते हैं । विभिन्न संवेगों की अभिव्यक्ति में ध्यान, उच्चता (Pitch) और नाद (Loudness) क्रोध की अवस्था में आवाज भारी और कर्कश हो जाती है तथा प्रसन्नता में आवाज मधुर और लयात्मक हो जाती है ।

इस प्रकार आवाज को सुनकर तीव्र संवेगों से थोड़ा बहुत जाना जा सकता है । कभी-कभी संवेगों को भाषा भी बड़ी सफलता से व्यक्त कर देती है । भारत में गाँवों में ऐसे उदाहरण मिल जाते हैं । जैसे – जहाँ आल्हा के स्वरों ने लोगों में तलवारें बजवा दी हैं परन्तु केवल ध्वनि को ही किसी संवेग का चिह नहीं माना जा सकता है ।

(iii) आसनिक अभिव्यक्ति (Postural Expression):

संवेग की अवस्था में शरीर के आसन में भी कुछ परिवर्तन होते हैं । लेकिन ये आवश्यक नहीं है, कि परिवर्तन सभी समाज और वर्गों के सभी व्यक्तियों में एक समान हों उदाहरण के लिए भय के संवेग में भागना भी हो सकता है और जड़वत स्तम्भित हो जाना भी हो सकता है ।

क्रोध की अवस्था में छुाछ लोग गालियाँ देते हैं, कुछ तेजी से इधर-उधर घूमते और कुछ किसी को मार बैठते हैं । लेकिन संस्कृति के प्रभाव से विभिन्न समाजों में इनमें भारी अन्तर देखा जा सकता है ।

हाथ मलने, छिप जाने, भुजाओं को इधर-उधर फेंकने से संवेगों का पता चलता है, परन्तु इनमें से किस गति से, किस संस्कृति के, किस व्यक्ति में, क्या संवेग समझना चाहिए यह खोज का विषय है? फिर भी इतना कहा जा सकता है, कि शारीरिक आसनों में और संवेगों में सम्बन्ध अवश्य है ।

2. आन्तरिक शारीरिक परिवर्तन या अंतरावयव परिवर्तन (Internal Physical Changes or Visceral Changes):

संवेगों की दशा में बाह्य शारीरिक परिवर्तनों के साथ-साथ कुछ आन्तरिक शारीरिक परिवर्तन भी होते हैं । इन शारीरिक परिवर्तनों को हम संवेगों की दशा में स्वयं अनुभव करते हैं ।

क्रोध की अवस्था में हमारे हृदय की धड़कन बढ़ जाती है तथा आश्चर्य की अवस्था में साँस रुक जाती है । परन्तु आन्तरिक संवेगों के परिवर्तनों को यन्त्रों से नापकर ही निश्चित रूप से जाना जा सकता है । अब हम कुछ आन्तरिक शारीरिक परिवर्तनों के विषय में जानकारी प्राप्त करेंगे ।

(i) हृदय गति में परिवर्तन (Change in Heart Beat):

संवेगों की दशाएँ हृदय की गति में अवश्य ही कुछ न कुछ परिवर्तन होता है । संवेग में रक्त संचार में परिवर्तन हो जाता है क्योंकि संवेग में हृदय की धड़कन बढ़ जाती है । रक्त नलियों में संकुचन और प्रसारण होने के कारण संवेगावस्था में शरीर के अंग विशेष में अधिक रक्त जाने लगता है ।

इसी कारण क्रोध में चेहरा लाल हो जाता है । स्कॉट (Scott) के प्रयोगों में कामोत्तेजक चित्र दिखलाने से सभी लोगों में रक्तचाप बढ़ गया ।

(ii) रक्तचाप में परिवर्तन (Change in Blood Pressure):

संवेगों में व्यक्ति के रक्तचाप में स्पष्ट रूप से परिवर्तन दिखाई पड़ता है । रक्तचाप को प्लेथिस्मोग्राफ (Plethysmograph) नामक यन्त्र से नापा जाता है । बहुत से मनोवैज्ञानिक रक्तचाप से ही संवेगावस्था का पता लगाते हैं । रक्तचाप को नापकर व्यक्ति से झूठसच का भी पता लगाया जाता है ।

परन्तु यह केवल अनभ्यस्त झूठ बोलने वालों में ही सम्भव है क्योंकि झूठ बोलने से वे घबरा जाते हैं और उनका रक्तचाप बढ़ जाता है । वहीं जिन व्यक्तियों को झूठ बोलने की आदत पड़ जाती है, झूठ बोलने पर उन व्यक्तियों के रक्तचाप में अन्तर दिखाई नहीं पड़ता ।

कुछ प्रयोगों द्वारा यह भी ज्ञात हुआ है, कि यह आवश्यक नहीं कि संवेगावस्था में रक्तचाप भी परिवर्तित हो । युद्ध भूमि में घायल सैनिकों पर निरीक्षण करने से यह ज्ञात हुआ कि युद्ध में असाधारण संवेगात्मक आघात सहन करने पर भी सैनिकों के रक्तचाप में विशेष परिवर्तन नहीं हुआ था, जबकि उनको देखने आने वाले सम्बन्धियों के रक्तचाप में अन्तर दिखाई पड़ा ।

(iii) रक्त रसायन में परिवर्तन (Changes in Blood Chemistry):

रक्तचाप बढ़ने के अतिरिक्त संवेगावस्था में रक्त में रासायनिक परिवर्तन भी होते हैं । कैनन आदि कुछ मनोवैज्ञानिकों द्वारा कुत्ते बिल्ली आदि पशुओं पर प्रयोगों में यह सिद्ध हुआ कि संवेग की दशा में श्वेत और लाल रुधिर कणों में रासायनिक परिवर्तन हो जाते हैं ।

संवेग की दशा में अधिवृक्क (Adrenal) ग्रन्थियों से अधिवृक्की (Adrenalin) नामक रस स्रावित होता है, जिससे रक्त में शर्करा तत्व बढ़ जाता है और व्यक्ति को अधिक शक्ति अनुभव होने लगती है । अधिवृक्ककी के प्रभाव से मूत्र आदि में भी कुछ शर्करा तत्व दिखाई पड़ता है, जिससे रक्तचाप बढ़ जाता है, हृदय की गति तीव्र हो जाती है तथा त्वचा में छोटी-छोटी रक्त नलियाँ सिकुड़ने लगती हैं ।

(iv) श्वांस गति में परिवर्तन (Change in Rate of Respiration):

संवेग की अवस्था में श्वास गति में भी परिवर्तन होता है । इस परिवर्तन को नीमाग्राफ नामक यन्त्र से नापा जाता है । संवेग की अवस्था में श्वांस की गति में परिवर्तन के साथ-साथ श्वांस की तीव्रता में भी परिवर्तन होता है । शोक की स्थिति में श्वांस धीमी पड़ जाती है । भय अथवा आश्चर्य में एक क्षण को श्वास धीमी पड़ जाती है ।

सामान्य अनुभवों में संवेगों की उत्तेजना से श्वास रुकने धीमी पड़ने या उत्तेजना होने के अनुभव होते हैं । सामान्य दशा में श्वास प्रश्वास का अनुभव 1.4 का होता है परन्तु संवेग की दशा में यह 1:2 और कभी-कभी 1:1 भी हो जाता है । स्कैग्स के प्रयोगों में प्रत्याशा में श्वास की गति बढ़ गई । ब्लाज के प्रयोगों में प्रत्याशा में श्वास की गति कुछ देर रुक-सी गई ।

(v) वैद्युतिक त्वक् अनुक्रिया (Galvanic Skin Response):

पहले के समय में मनोवैज्ञानिक वैद्युतिक त्वक् अनुक्रिया को संवेगावस्था की एक विशेषता समझते थे बाद में यह ज्ञात हो गया कि वह शारीरिक और मानसिक परिश्रम में भी दिखाई पड़ती है ।

परन्तु संवेगावस्था में वैद्युतिक त्वक् अनुक्रिया निश्चित रूप से उपस्थित रहती है और उससे संवेगावस्था का कुछ-न-कुछ आभास अवश्य होता है । वैद्युतिक त्वक् अनुक्रिया का अर्थ त्वचा की विद्युत के अवरोध की क्रिया है । इसको साइकोगालवनो-मीटर से नापा जाता है ।

(vi) रसपरिपाक परिवर्तन (Metabolic Changes):

रसपरिपाक परिवर्तन से तात्पर्य पाचन क्रिया में परिवर्तन से है । संवेगावस्था में परिपाक परिवर्तन का अपना महत्वपूर्ण स्थान है । इस सन्दर्भ में कैनन ने बिल्ली पर प्रयोग किया । खाना खाने के बाद अब बिल्ली के पेट में रसपरिपाक की क्रिया अच्छी तरह से हो रही थी तब उसके सामने एक कुत्ता लाया गया ।

कुत्ते को देखते ही भय के कारण बिल्ली के पेट में रसपरिपाक की क्रिया रुक गई । अन्य प्रयोगों से यह तो ज्ञात होता है, कि संवेगावस्था से रसपरिपाक की किया रुक गई अर्थात् यह बात तो स्पष्ट हुई कि संवेगावस्था में परिवर्तन होने पर रसपरिपाक की क्रिया में भी अवश्य ही परिवर्तन होगा । परन्तु यह स्पष्ट नही हो पाया कि यह परिवर्तन भिन्न-भिन्न संवेगों में

भिन्न-भिन्न प्रकार का होता है या नहीं । रसपरिपाक की क्रिया में मनोविनोद और प्रसन्नता की स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं होता है । आश्चर्य आदि के संवेगों में रसपरिपाक की क्रिया में वृद्धि हो जाती है और भय तथा दु:ख के संवेगों में रसपरिपाक की प्रक्रिया रुक-सी जाती है ।

(vii) मस्तिष्क तरंगों में परिवर्तन (Change in Brain Waves):

संवेगावस्था में मस्तिष्क तरंगों में भी परिवर्तन होता है । यन्त्र से मापने पर यह पता चला कि संवेग की दशा में मस्तिष्क तरंग की बारम्बारता में परिवर्तन होता है ।

नीचे दिये हुए चार्ट से और भी स्पष्ट हो जायेगा:

उपर्युक्त संवेगावस्था में वर्णन किये गये मुख्य बाह्य तथा आन्तरिक शारीरिक परिवर्तनों के अतिरिक्त कभी-कभी कुछ अन्य शारीरिक परिवर्तन भी दिखाई पड़ते हैं । जैसे-साधारणतया यह देखने में आता है, कि अत्यधिक भयभीत होने पर जीवधारी मलमूत्र त्याग देते हैं ।

यह प्रवृत्ति मनुष्य और पशुपक्षियों सभी प्राणियों में दिखाई पड़ती है । संवेगों के बाह्य और आन्तरिक शारीरिक परिवर्तन के इस वर्णन से यह तो बात स्पष्ट है, कि संवेगावस्था में शारीरिक परिवर्तन होते हैं परन्तु किस परिस्थिति में किस संवेग में कौन-सा परिवर्तन होगा, इस विषय में निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता ।

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