Read this article in Hindi to learn about some specific emotions observed in children.

Emotion # 1. भय (Fear):

भय संवेग का जो विकास होता है वह सीखने व प्रशिक्षण दोनों से प्रभावित होता है । चार वर्ष के पहले साँप आदि का भय बच्चों में नहीं होता है । जोन्स व जोन्स का मानना है, कि अनुकरण व सम्बद्ध प्रत्यावर्तन विधि द्वारा संवेगों का ज्ञान होता है ।

दो वर्ष तक बच्चों में तीव्र आवाज, पीड़ा, सहारा छिन जाना तथा ऊँचे स्थान का डर पाया जाता है । जैसे-जैसे बच्चों की आयु बढ़ती जाती है, इन वस्तुओं के प्रति उनका भय कम होता जाता है तथा 6 वर्ष की आयु तक उपर्युक्त भय पूर्णतया समाप्त हो जाता है ।

जैसे-जैसे बालक में बौद्धिक विकास होता है, वैसे-वैसे उसमें भविष्य के प्रति आशकित होना शहर कर देते हैं । चार वर्ष के पश्चात् उनमें अंधेरे का भय, चोर का भय, अकेलेपन का भय, काल्पनिक वस्तुओं का भय मृत्यु का भय आदि बालक में प्रदर्शित होने लगते हैं ।

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इस प्रकार पूर्व स्कूल अवस्था में मूर्त वस्तुओं का भय कम होता जाता है और काल्पनिक वस्तुओं का भय बढ़ता जाता है । काल्पनिक वस्तुओं का भय मध्य बाल्यावस्था में भी बढ़ता जाता है ।

नागरला ने 10 माह से 66 माह के बच्चों पर इस अध्ययन से उन्होंने पाया कि आयु वृद्धि के साथ मूर्त पदार्थो का भय कम होता है, तथा कीड़े-मकोड़े, दण्ड अंधेरा, अकेले छूट जाने का भय बढ़ता जाता है ।

Emotion # 2. क्रोध (Anger):

अन्य संवेगों की अपेक्षा क्रोध का ज्यादा प्रदर्शन किया जाता है । बच्चा धीरे-धीरे यह भी सीख जाता है, कि क्रोध के प्रदर्शन के द्वारा वह दूसरे व्यक्तियों का ध्यान अपनी ओर आसानी से आकर्षित कर सकता है ।

जोन्स के अनुसार, 16 माह से 3 वर्ष के मध्य मल त्याग आदि के लिए नियत स्थान पर बैठना वस्तु का छिन जाना, मुँह धोना, अकेले छूट जाने आदि के प्रति क्रोध का प्रदर्शन करना आयु बढ़ने के साथ क्रोध की बाल प्रतिक्रियाओं के स्थान पर आन्तरिक प्रतिक्रियाएँ बढ़ती जाती हैं । जैसे-बात न करना, रूठ जाना आदि । क्रोध की समाप्ति के बाद भी चिड़चिड़ाहट बने रहना आदि ।

Emotion # 3. रोना (Crying):

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पूर्व स्कूल अवस्था में रोना मुख्यतया सामाजिक उद्दीपकों के कारण होता है । घर में बालक व्यस्कों अथवा छोटे बालकों (भाई-बहनों) के साथ हुए संघर्ष के कारण रोते हैं । गीसेल का मानना है, कि अन्तरवैयक्तिक सम्बन्धों में सुरक्षा के अभाव में बालकों में रोना अधिक पाया जाता है यदि बालकों की आवश्यकताओं की ओर शीघ्र ध्यान दिया जाये तब उनमें सुरक्षा की भावना का विकास किया जा सकता है ।

Emotion # 4. ईर्ष्या (Jealous):

ईर्ष्या सामाजिक कारणों के प्रति होती है । जब बालक असुरक्षा की भावना महसूस करता है, तब उसमें ईर्ष्या की भावना का विकास होता है । जब वह यह भी महसूस करता है, कि उसकी इच्छाओं की पूर्ति नहीं हो रही है और वह असुरक्षित अनुभव करता है, तब वह ईर्ष्या का प्रदर्शन करता है ।

जब वह अपने भाई-बहनों तथा अन्य कारणों से माता-पिता का ध्यान अपनी ओर नहीं पाता है, तब वह ईर्ष्या का प्रदर्शन करता है । अपने हमउम्र के साथियों के साथ खेल में रुचि लेने लगता है, तब ईर्ष्या का प्रदर्शन शारीरिक प्रहार द्वारा किया जाता है ।

Emotion # 5. स्नेह (Affection):

बालक अवांछित संवेगों से दूर रहने तथा वांछित संवेगों जैसे- प्रेम स्नेह, आदि को प्राप्त करने का प्रयत्न करता है । स्वस्थ बच्चे अधिक स्नेह का प्रदर्शन करते हैं ।

Emotion # 6. जिज्ञासा (Curiosity):

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जिज्ञासा के द्वारा बालक सीखता तथा अन्वेषण करता है । जिज्ञासु बालक अपने वातावरण की प्रत्येक चीज में रुचि रखता है । स्कूल जाने की अवस्था तक बालक की जिज्ञासा घर की तमाम चीजों की मैकेनिजम की ओर होती है । बालक प्रश्न पूछकर अपनी जिज्ञासा की सन्तुष्टि करता है । जिज्ञासा से बालक का जीवन रुचिपूर्ण और उद्दीप्त बनता है । यह बालक के बौद्धिक विकास में सहायक होता है ।

Emotion # 7. चिन्ता (Anxiety):

व्यक्ति की कष्टप्रद स्थिति चिन्ता कहलाती है, जिसमें वह मानसिक रूप से भविष्य की विपत्तियों की आशकाओं से व्याकुल रहता है । यह भय तथा परेशानी से ही विकसित होती है । तीव्र चिन्ता की स्थिति में बालक उन्हें छुपाने के साधन ढूँढते है ।

इन साधनों में वे विद्रोही, तंग करने वाले या शोर करने वाला व्यवहार प्रतिमानों को अपना लेते हैं । वे अधिक खा सकते हैं गीत संगीत से मन बहला सकते हैं तथा अपनी मानसिक मनोरचनाओं का उपभोग कर अपने चरित्र के विरुद्ध व्यवहार कर सकते हैं ।

स्नेह का प्रदर्शन किसी वस्तु, व्यक्ति, जानवर, खिलौने आदि के प्रति किया जाता है । आयु वृद्धि के साथ स्नेह प्रदर्शन केवल व्यक्तियों के प्रति किया जाता है । स्नेह की भावना आयु वृद्धि के साथ परिवर्तित होती रहती है ।

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