Here is an essay on ‘Language’ for class 11 and 12. Find paragraphs, long and short essays on ‘Language’ especially written for school and college students in Hindi language.

Essay on Language


Essay Contents:

  1. भाषा का आधारभूत स्वरूप (Basic Nature of Language)
  2. वाणी बनाम भाषा (Speech Vs. Language)
  3. भाषा के संज्ञानात्मक विकास की अवस्थाएँ (Stages of Cognitive Development of Language)
  4. भाषा विकास तथा संज्ञान की शैशवावस्था (Preliminary Stage of Language Development and Cognition)
  5. संज्ञानात्मक विचार का अभिप्राय (Meaning of Cognitive Thinking)
  6. भाषा एवं भाषा के उपयोग का विकास (Development of Language and Language Use)
  7. भाषा का उपयोग व विशेषताएँ (Characteristics of Language)


Essay # 1. भाषा का आधारभूत स्वरूप (Basic Nature of Language):

ADVERTISEMENTS:

भाषा के उपयोग के द्वारा हम दूसरी जातियों के प्राणियों से पृथक् हो जाते हैं । इस योग्यता में हम चिह्नों के अनेक सेटों, उन्हें एक-दूसरे से मिलाने के नियमों और सूचनाओं को अन्य व्यक्तियों तक पहुंचाने का क्रियाओं का उपयोग करते हैं । भाषा का संज्ञानों से घनिष्ठ सम्बन्ध होता है । क्या प्रतीकों का कोई एक सेट भाषा कहलायेगा? इसके लिए इसे अनेक अतिरिक्त कसौटियों पर खरा उतरना होता है ।

ये कसौटियाँ निम्नलिखित हैं:

(i) सूचना का संप्रेक्षण चिह्नों के द्वारा होना चाहिए अर्थात् शब्दों और वाक्यों के अर्थ अवश्य होने चाहिए ।

(ii) यथा, एक भाषा में स्वर तथा शब्द सीमित होते हैं । फिर भी इनमें बहुत-से वाक्यों का पुन: निर्माण करना सम्भव होता है ।

ADVERTISEMENTS:

(iii) शब्दों व स्वरों को मिलाने से जो संयुक्तियाँ उपलब्ध होती हैं, उनमें इनका उपयोग किया जाता है । इन वाक्यों को दूसरे स्थानों अथवा समय के बारे में सूचनाओं के लेन-देन में उपयोग किया जा सकता है । जब इन तीनों कसौटियों को पूर्ण करते हैं, तभी संचार की प्रणाली को भाषा की संज्ञा दी जाती है, अथवा नहीं ।


Essay # 2. वाणी बनाम भाषा (Speech Vs. Language):

साधारण रूप से वाणी तथा भाषा को एक-दूसरे के स्थान पर प्रयोग किया जाता है, किन्तु ये दोनों अलग पद हैं । भाषा एक विस्तृत संज्ञा है, जिसमें संचार के उन सभी माध्यमों को एकत्रित किया जाता है, जिनमें अन्य व्यक्तियों तक अर्थ पहुँचाने के लिए विचारों और भावों को चिह्नों के रूप में प्रयोग किया जाता है ।

इसके अन्तर्गत लिखना, बोलना, चिह्न-भाषा, इशारे, चेहरे की अभिव्यक्तियाँ, कला आदि को शामिल करते हैं । इसके अलावा वाणी भाषा का एक ऐसा रूप है, जिसमें अन्य व्यक्तियों तक अर्थ पहुँचाने के लिए स्वरों अथवा शब्दों का उपयोग किया जाता है ।


ADVERTISEMENTS:

Essay # 3. भाषा के संज्ञानात्मक विकास की अवस्थाएँ (Stages of Cognitive Development of Language):

भाषा के संज्ञानात्मक विकास प्रक्रम में निम्नलिखित तीन क्षेत्रों का समावेश होता है:

(i) स्वर प्रक्रियात्मक विकास शब्द बोलना (Functional Development Speaking):

लगभग 3 से 6 माह के मध्य शिशु बबलाना प्रारम्भ कर देता है । इसमें वह उन सभी स्वरों को मिले-जुले रूप में प्रयोग करता है जिन्हें वयस्क अपनी भाषा में सामान्यत: उपयोग करता है । जबकि नौ-दस माह की उस में उसका बबलाना बढ़ जाता है तथा इन स्वरों में बालक की मातृ-संस्कृति की भाषा में प्रयोग होना शुरू हो जाता है । एक साल की आयु में वे बोलने लगते हैं ।

एक से दो वर्ष की आयु के बीच बच्चों के शब्द भण्डार में तेज गति से वृद्धि होने लगती है, जबकि डेढ़ वर्ष की आयु तक शिशु का शब्द भण्डार पचास से अधिक शब्दों तक बढ़ जाता है ।

उनके शब्दकोश में पशुओं, खिलौनों, भोज्य पदार्थों, शरीर के अंगों तथा रिश्तों से जुड़े नाम पाये जाते हैं । बच्चे इनमें से विभिन्न शब्दों के Holopharses का उपयोग करके निर्माण करते हैं । यहाँ Holopharses उन एकल शब्द उच्चारणों को बताया गया है, जो इशारों के साथ मिलकर विभिन्न अर्थ देते हैं ।

शोध यह बताते हैं, कि इशारे आरम्भिक भाषा विकास का मुख्य संघटक होते हैं । प्राय: इस अवस्था में बच्चे का उच्चारण आधा अधूरा होता है तथा उनके शब्द बहुत ही सामान्य प्रारूप लेते हैं जिस प्रकार एक बच्चा अपनी माँ को माँ तथा पिता को पापा कहकर पुकारता है ।

अत: प्रश्न यह उठता है, कि बच्चे संज्ञा को पहले अर्जित करते हैं, या पहले क्रिया को अर्जित करते हैं । इसका जवाब संस्कृति पर निर्भर करता है । Gentner (1982) के अनुसार अमेरिका में बच्चे पहले संज्ञा को तत्पश्चात् क्रिया को अर्जित करते हैं, यथा Tardif 1996, के अनुसार लगभग 22 माह की उस वाले जापानी बच्चे अपनी वाणी में संज्ञाओं के स्थान पर अधिक संख्या में क्रियाओं का प्रयोग करते हैं ।

इस प्रकार संज्ञाओं तथा क्रियाओं के अर्जन का क्रम एक संस्कृति से दूसरी संस्कृति में हस्तान्तरित हो सकता है ।

(ii) शब्दार्थ विकास:

दो वर्ष के पश्चात् शिशु के शब्दकोश में बहुत तीव्र गति से वृद्धि होती है । वह दिन-प्रतिदिन नये-नये शब्दों को सीखता है, कुछ ही दिनों में उसका शब्दकोश 5० शब्दों से अधिक हो जाता है । वह दो शब्दों को जोड़कर प्रयोग करने लगता है ।

लगभग ढाई वर्ष की आयु में वह अनगिनत शब्दों का प्रयोग करने लगता है तथा तीन-चार शब्दों की संयुक्ति को बालक आराम से प्रयोग करने लगता है तथा वह नये-नये प्रकार के शब्दों को सीखने लगता है, जिनकी सहायता से वह अपने मतों तथा विचारों को अभिव्यक्त कर सकता है ।

वह नकारात्मक वाक्यों को बनाना भी शुरू कर देता है । साथ ही हाँ तथा ना वाले वाक्यों की सहायता से अपनी इच्छा अभिव्यक्त करता है । वह अच्छा, बुरा, गन्दा, साफ इत्यादि विशेषणों का उपयोग भी करने लगता है ।

चुाछ समय पश्चात् वह उच्च निम्न पतला मोटा आदि शब्दों का प्रयोग सीखता है और तीन वर्ष की आयु तक उसका शब्दकोश हजारों शब्दों का हो जाता है । अब तक वह क्यों? कैसे? कहाँ? कब? कौन? आदि को प्रभावपूर्ण ढंग से उपयोग करना सीख जाता है ।

प्राय: जब शिशु तीन वर्ष तक विभिन्न नये शब्दों को सीखने में सक्षम रहते हैं, तब भी उनसे विभिन्न प्रकार की गलतियाँ हो जाती हैं । जैसे कि डेढ़ साल के बच्चे Over Extension में म्याऊँ-म्याऊँ शब्दों को न केवल बिल्ली के लिए अपितु कुत्ते के लिए प्रयोग कर सकते हैं ।

इसी Under Extension में बच्चे किसी शब्द को अधिक संकुचित रूप से प्रयोग में ला सकते हैं । जैसे कि डेढ़ वर्ष के शिशु को यह ज्ञात होता है, कि बिल्ली तो केवल अपनी घरेलू बिल्ली के लिए शब्द है, किसी और बिल्ली के लिए नही । अत: उनकी भाषा में त्रुटियाँ देखी जा सकती हैं ।

(iii) व्याकरण का विकास:

प्रत्येक भाषा का अपना व्याकरण होता है । व्याकरण की मदद से शब्दों और वाक्यों को व्यवस्थित किया जा सकता है । अपने विचारों को प्रदर्शित करने के लिए बच्चों को शब्दों के रूप में न केवल पहचानी जाने वाली ध्वनियों का ही प्रयोग करना होता है, अपितु उन्हें व्याकरण के नियमों का भी पालन करना होता है, जो छोटी आयु के शिशुओं के लिए एक मुसीबत होती है, वे इशारों के साथ एकल शब्दों का प्रयोग करते हैं । दो वर्ष की आयु तक शिशु Telegraphic Speech का उपयोग करते हैं ।

वे दो शब्दों वाले वाक्यों को बोलने लगते हैं । जैसे आ जा, पानी पियू, घूमी जाना आदि । बच्चा किताब की ओर देख कर यह कह सकता है, कि किताब दे दो । बच्चे एक वचन व बहुवचन का भेद भी सीख जाते हैं । चार वर्ष की आयु तक वे भाषा के आधारभूत तत्वों को जानने लग जाते हैं और अपने क्षेत्र की भाषा के व्याकरण के नियमों का प्रयोग भी करने लगते हैं ।

इस सन्दर्भ में यह कहा जा सकता है, कि बच्चों में भाषा विकास पहले स्वर प्रक्रियात्मक विकास तत्पश्चात् व्याकरण विकास दिखाई पड़ता है, इस बात को नकारा नहीं जा सकता कि चार साल का बालक व्याकरण के नियमों को जानने लगता है और इनका प्रयोग करने लगता है ।

किन्तु इसका अभिप्राय यह नहीं है, कि उसका शब्दार्थ विकास समाप्त हो जायेगा । व्याकरण सीखने के प्रक्रम के साथ पहले वाले प्रक्रम तो विकसित होते रहते हैं तथा ये प्रक्रम आजीवन चलते रहते हैं । यह दूसरी बात है, कि स्वर प्रक्रियात्मक विकास के लिए बच्चे में क्षमता सबसे पहले प्रदर्शन पाती है तत्पश्चात् शब्दार्थ विकास की क्षमता और अन्त में व्याकरण विकास की क्षमता प्रदर्शन पाती है ।


Essay # 4. भाषा विकास तथा संज्ञान की शैशवावस्था (Preliminary Stage of Language Development and Cognition):

शैशवावस्था में भाषा विकास संज्ञानात्मक विकास की एक निरन्तर चलने वाली विशेषता है । भाषा संज्ञानों में अनेक दृष्टिकोणों से अपनी मुख्य भूमिका अदा करती है ।

विचारों तथा भाषा के बीच सम्बन्ध निम्नलिखित दो दृष्टिकोणों द्वारा ज्ञात किया जा सकता है:

(i) भाषा सापेक्षकता दृष्टिकोण (Linguistic Relativity Viewpoint):

Whorf (1956) इस दृष्टिकोण के प्रतिनिधि हैं । उनके अनुसार भाषा चिन्तन को निर्धारित करती है, अथवा इसे रूप प्रदान करती है । इस दृष्टिकोण के अनुसार जो लोग अनेक भाषाएँ प्रयोग में लाते हैं, वे विश्व को अनेक ढंग से प्रत्यक्षीकृत करते हैं क्योंकि उनका चिन्तन उनके शब्दों के माध्यम से निर्धारित होता है । जैसे अंग्रेजी में Hand एक ही शब्द है, किन्तु हिन्दी में हाथ के पर्यायवाची बहुत हैं ।

(ii) चिन्तन आधारित भाषा दृष्टिकोण (Thought Based Language Viewpoint):

इस दृष्टिकोण के अन्तर्गत चिन्तन भाषा का निर्धारण करता है । भाषा तो केवल उस ढंग को दर्शाती है, जिससे हम चिन्तन करते हैं ।

आधुनिक युग में Hunt and Agnoli (1991), Lucy (1992) आदि अध्ययनकर्ता इस तथ्य की पुष्टि करते हैं, कि भाषा की संरचनात्मक विशेषताएँ भौतिक विश्व में उपस्थित वस्तुओं तथा इन वस्तुओं के बीच सम्बन्धों के विषय में चिन्तन के ढंग को प्रभावित करती हैं । अत: भाषा संज्ञानों के महत्वपूर्ण दृष्टिकोणों को आकार देने में मुख्य भूमिका निभाती है ।


Essay # 5. संज्ञानात्मक विचार का अभिप्राय (Meaning of Cognitive Thinking):

संज्ञानात्मक विचार से अभिप्राय संज्ञानों की उन्नति से है । संज्ञानात्मक विचार के अन्तर्गत स्मृति निर्णय प्रत्यक्षीकरण तर्कणा चिन्तन आदि की उन्नति की चर्चा की जाती है । विकासात्मक मनोविज्ञान में प्रश्न यह उठता है कि ”क्या बच्चे वयस्कों की तरह ही विचार स्मरण तथा तर्कणा करते हैं?”

20वीं शताब्दी के प्रारम्भ तक विद्वान यह समझते थे कि बच्चे वयस्कों की तरह ही स्मरण चिन्तन तथा तर्क करते हैं । विभिन्न समाजों में यह विश्वास किया जाता था कि मानसिक रूप से बच्चों से श्रेष्ठ वयस्क हैं, जैसे कि बच्चे शारीरिक रूप से अत्यधिक श्रेष्ठ होते है ।

इस सन्दर्भ में यह कहा जा सकता है, कि बच्चों और वयस्कों के सज्ञानात्मक प्रक्रम आधारभूत ढ़ग से एक समान होते हैं जबकि इसके विपरीत एक मनोवैज्ञानिक ने इन कथनों का खण्डन किया । उनके द्वारा किए गए अध्ययनों के अनुसार बच्चे वयस्कों की तरह चिन्तन अथवा तर्कणा नहीं करते हैं । उनके चिन्तन का ढंग वयस्कों से भिन्न होता है ।

गेस्टाल्टवादियों ने सर्वप्रथम बच्चों पर प्रयोग करके यह बताया कि प्रत्यक्षीकरण की योग्यता जन्मजात होती है । व्यवहारवादियों ने इस कथन की आलोचना की अपितु बीसवीं शताब्दी के पश्चात् हुए अध्ययनों से यह अनुमान लगाया गया कि शिशु Form or Pattern Perception की योग्यता रखते हैं । शिशु किसी अन्य प्रतिमानों की अपेक्षा मानव चेहरे की ओर अधिक आकर्षित होते हैं ।

एक नवजात शिशु जन्म के दो दिन बाद ही अजनबी महिला के चेहरे एवं अपनी माँ के चेहरे में भेद कर सकता है । कुछ अध्ययनों से यह भी ज्ञात होता है, कि केवल दो महीने की आयु में ही शिशु गहराई के प्रत्यक्षीकरण की योग्यता रखता है ।

इन अध्ययनों से यह अवश्य ज्ञात होता है, कि मानव प्राणी शैशवावस्था तक संवेदना तथा प्रत्यक्षीकरण को योग्यता के साक्ष्य दर्शाने लगता है । इस प्रकार संज्ञानात्मक उन्नति में प्रत्यक्षीकरण पर अधिक शोध कार्य नहीं किये जाते ।

अत: यह कहा जा सकता है कि मनोवैज्ञानिकों ने बीसवीं शताब्दी के प्रारम्भ से ही तर्कणा स्मरण चिन्तन निर्णय प्रक्रम आदि को शोधों का विषय बनाया । इन प्रक्रमों का सम्बन्ध प्राय: बोध से होता है । यहाँ बोध का अभिप्राय पूर्वानुभवों के ज्ञान को नई परिस्थितियों में उपयोग करके विषय-वस्तु को समझने की योग्यता से है ।

बालक अपने वातावरण, अन्य व्यक्तियों और अपने आपको समझते हैं, जो उनके समायोजन के प्रकार को प्रभावित करते हैं । यथा, जो बालक यातायात के साधनों के खतरे, ऊंचाई के खतरों तथा खतरनाक पशुओं से खतरों को समझता है, वह सदैव सतर्क रहेगा, साथ ही साथ अच्छा समायोजन कर पायेगा अपनी परिसीमाओं के बारे में ज्ञान बच्चे के व्यवहार को प्रभावित करता है ।

इसी प्रकार अन्य वस्तुओं तथा व्यक्तिगत व वातावरण के अनुसार परिवर्तन हेतु समायोजन स्थापित कर सकता है तथा जो बालक यह जानता है कि वह तेरह वर्ष का है तथा वय: सन्धि में इस प्रकार के शारीरिक परिवर्तन स्वाभाविक होते हैं, जैसे कि इस समय हो रहे हैं, तो वह बेखबर बालक की तुलना में कम डर चिन्ता आदि का अनुभव करेगा ।


Essay # 6. भाषा एवं भाषा के उपयोग का विकास (Development of Language and Language Use):

इस अध्याय में अब तक की विषय-वस्तु के अन्तर्गत आपने विचार एवं भाषा की प्रकृति व अन्तसम्बन्ध प्रमुख सिद्धान्त, संज्ञानात्मक विकास की विभिन्न अवस्थाएँ एवं पियाजे, ज्योगोत्सकी तथा सूचना प्रक्रमण सम्बन्धी परिप्रेक्ष्यों का अध्ययन किया गया ।

तथापि भाषा के सम्बन्ध में उसके उपयोग एवं विकास सम्बन्धी बिन्दुओं पर चर्चा करनी आवश्यक है, जो कि निम्नवत् है:

विश्व में अनेकानेक भाषाओं का प्रचलन है । प्रत्येक प्राणी अपने अनुभवों एवं विचारों को किसी भाषा में परिवर्तित कर दूसरों तक अपने भावों का सम्प्रेषण करता है । थोड़ी देर के लिए आप सोचिए कि जो आप अभिव्यक्त करना चाहते हैं, और आपके पास भाषा न हो तो क्या होगा?

अर्थात् भाषा के अभाव में अपने संवेग विचारों एवं अनुभूतियों को संप्रेषित करने में आप असमर्थ होंगे । उदाहरण के लिए एक बच्चे के रूप में आप ने सबसे पहले माँ-माँ की ध्वनि का उच्चारण किया होगा । शनै: – शनै: इसी प्रक्रिया से गुजरते हुए आपने पापा शब्द का उच्चारण किया होगा ।

इसी क्रम के अग्रिम चरण को अपनाते हुए आपने जाने अनजाने दो शब्दों तीन शब्दों आदि के छोटे-छोटे वाक्यों का उच्चारण किया होगा और उम्र की बढ़ती अवधि के साथ आपने अन्य प्रकार के वाक्यों का शुद्ध अशुद्ध संप्रेषण करना प्रारम्भ किया । इस प्रकार अपने जीवन के चरणों को आपने भाषा एवं विचार मात्रा के अन्तर्गत स्वयं एवं दूसरों को आनन्द प्रदान किया होगा । आइए जाने कि भाषा के उपयोग सम्बन्धी विशेषताएँ क्या हैं?


Essay # 7. भाषा का उपयोग व विशेषताएँ (Characteristics of Language):

भाषा की मूलभूत तीन विशेषताएँ हैं, जिसके द्वारा आप भाषा का उपयोग करना सीखते हैं:

(i) प्रतीकों की उपस्थिति (Presence of Symbols):

इस विशेषता में प्रतीकों का उपयोग होता है । प्रतीक किसी अन्य वस्तु या व्यक्ति को निरूपित करते हैं । उदाहरणस्वरूप आप जिस स्थान पर अध्ययन करते हैं, उसे शिक्षा-स्थान कहा जाता है । आप जहाँ रहते हैं, उसे घर तथा जहाँ पढ़ते हैं, उसे विद्यालय के नाम से पुकारा जाता है ।

उसी प्रकार खाद्य सामग्री को भोजन एवं पीने के पानी को जल आदि नामों से जाना जाता है । अब तक आपने असंख्य शब्दों को सुना होगा जो कि एक-दूसरे से सम्बप्टा रखते भी हैं और नहीं भी रखते हैं ।

किन्तु इन शब्दों को यथा सम्भव स्थान पर जोड़-तोड़ कर आप किसी घटना या विषय-वस्तु की व्याख्या करते हैं और उन वस्तु व घटनाओं को विशिष्ट शब्दों (प्रतीकों) के द्वारा पहचानना प्रारम्भ कर देते है । इसी प्रकार चिन्तन करते समय भी हम भाषा सम्बन्धी प्रतीकों का उपयोग करके सम्प्रेषण की प्रक्रिया अपनाते हैं ।

(ii) प्रतीकों को संगठित करने हेतु नियमों का समूह (Group Norms to Collect the Symbols):

भाषा के उपयोग की दूसरी विशेषता प्रतीकों को संगठित करने के लिए कुछ नियमों के समूह से सम्बन्ध रखती हैं । दो या दो से अधिक शब्दों को जोड़ने पर वाक्य की संरचना होती हैं, जो एक प्रस्तुतिकरण के भाव को अभिव्यक्त करते हैं । उनमें न केवल निश्चितता होती है वरन् एक स्वीकृत-क्रम की व्याख्या भी समाहित होती है ।

उदाहरण के लिए, एक व्यक्ति सम्भवत: यह कहेगा कि ”में कल प्रात: नौ बजे कानपुर जा रहा हूँ” न कि वह यह कहेगा कि “जा रहा हूँ कानपुर वे कल प्रात: के बजे” क्योंकि दूसरे वाक्य की अशुद्धि उसके विचारों का सम्प्रेषण उचित रूप में नहीं कर सकती । अत: भाषा का उपयोग प्रतीकों को संगठित करने के नियमों से जुडा है ।

(iii) सम्प्रेषण (Communication):

भाषा की तीसरी विशेषता को अपनाकर व्यक्ति इसका उपयोग अपने विचारों, अभिप्रायों, संवेगों, अनुभूतियों एवं योजनाओं को दूसरो तक सम्प्रेषित करने के लिए करता । अनेक अवसरों पर हम वाचिक एवं अवाचिक सम्प्रेषण की प्रक्रिया को भी अपनाते हैं ।

अर्थात अनेक बार हम भाव भगिमाओं व सकेतों की सहायता से सम्प्रेषण करते हैं तथा अनेक बार कुछ बोलकर चर्चा करके सम्प्रेषण करते हैं । मूक व बधिर व्यक्ति जो कि बोलने व सुनने में असमर्थ अत: वे अपने विचारों एवं भावों का सम्प्रेषण संकेतो की सहायता से करते हैं ।

इस प्रकार स्पष्ट है कि भाषा के उपयोग सम्बन्धी विशेषताओं के आधार पर हम अनेक प्रकार से अपनी बात विचारों एवं भावों को दूसरों तक पहुँचाते हैं ।


Home››Hindi››