Here is an essay on the ‘Armed Revolutionary Movement’ for class 7, 8, 9, 10, 11 and 12. Find paragraphs, long and short essays on the ‘Armed Revolutionary Movement’ especially written for school and college students in Hindi language.
भारत में अंग्रेजी शासन के विरोध में विभिन्न मार्गो से आंदोलन हुए । उनमें एक मार्ग सशस्त्र क्रांति का था । हमने ई॰स॰ १८५७ के पूर्व अंग्रेजी सत्ता के विरुद्ध हुए विद्रोहों और ई॰स॰ १८५७ के विद्रोह का अध्ययन किया है । इसके बाद के कालखंड में अंग्रेज सरकार के विरूध रामसिंह कूका ने पंजाब में विद्रोह किया था ।
महाराष्ट्र में वासुदेव बलवंत फड़के ने रामोशियों (पिंडारियों) को संगठित कर अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह किया था । ई॰स॰ १८९७ में पुणे में प्लेग की महामारी फैली थी । इसकी रोकथाम करने के नाम पर प्लेग कमिश्नर रैंड ने अत्याचार और दमन का परिचय दिया था । इसका प्रतिशोध लेने हेतु चाफेकर भाइयों ने रैंड की हत्या की ।
लगभग इसी समय बिहार के मुंडा आदिवासियों ने अंग्रेजों के विरुद्ध बहुत बड़ा विद्रोह किया था । बंगाल विभाजन के बाद अंग्रेजों के प्रति भारतीयों का आक्रोश अधिक प्रखर हुआ । परिणामस्वरूप विद्रोह के स्थान पर राष्ट्रीय स्तर के व्यापक आंदोलन का प्रारंभ हुआ । देश के विभिन्न भागों में क्रांतिकारी विचारों से ओतप्रोत युवक अपने गुप्त संगठन स्थापित करने लगे थे ।
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अंग्रेज अधिकारियों पर दबाव रखना, अंग्रेजी शासन व्यवस्था को अस्तव्यस्त कर देना, अंग्रेज सरकार के प्रति लोगों में व्याप्त भय को समाप्त करना, अंग्रेजी सत्ता को उलट देना उनके प्रमुख उद्देश्य थे । उनमें मुंबई और पश्चिम बंगाल में क्रांतिकारियों के संगम विशेष रूप से कार्यरत थे ।
Essay # 1. अभिनव भारत:
ई॰स॰ १९०० में स्वातंत्र्यवीर विनायक दामोदर सावरकर ने क्रांतिकारियों के ‘मित्र मेला’ नामक गुप्त संगठन की स्थापना की । ई॰स॰ १९०४ में इस संगठन को ‘अभिनव भारत’ यह नाम दिया गया । वे उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बहाने इंग्लैंड गए ।
वहाँ से वे अभिनव भारत संगठन के भारतीय सदस्यों को क्रांतिकारी साहित्य, पिस्तुल आदि सामग्री भेजने लगे । उन्होंने प्रसिद्ध इतालवी क्रांतिकारी जोसेफ मैजिनी का प्रेरणादायी चरित्र लिखा । इसी भांति उन्होंने ‘१८५७ का स्वातंत्र्यसमर’ नामक ग्रंथ लिखा; जिसमें उन्होंने ई॰स॰ १८५७ के विद्रोह को प्रथम भारतीय स्वतंत्रता युद्ध के रूप में प्रतिपादित किया ।
सरकार को अभिनव भारत संगठन की गतिविधियों की भनक लगी । सरकार ने बाबाराव सावरकर को बंदी बनाया । इस दंड का प्रतिशोध लेने के लिए अनंत लक्ष्मण कान्हेरे नामक युवक ने नाशिक के कलेक्टर जैक्सन की हत्या की ।
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सरकार ने अभिनव भारत संगम से जुड़े सदस्यों की धरपकड़ शुरू की । सरकार ने जैक्सन की हत्या का संबंध स्वातंत्र्यवीर सावरकर के साथ जोड़ दिया और उन्हें बंदी बनाव उनपर अभियोग चलाया । न्यायालय ने उन्हें पचास वर्ष सश्रम कारावास का दंड दिया ।
Essay # 2. बंगाल में क्रांतिकारी आंदोलन:
बंगाल में ‘अनुशीलन समिति’ नामक क्रांतिकारी संगठन कार्यरत था । अनुशीलन समिति की पाँच सौ से अधिक शाखाएँ थीं । इस संगठन के प्रमुख अरविंद घोष के भाई बारीन्द्रकुमार घोष थे । इस संगठन को अरविंद घोष के सुझाव एवं मार्गदर्शन प्राप्त होते थे । कोलकाता का माणिकताला इस समिति का बम बनाने का केंद्र था ।
ई॰स॰ १९०८ में अनुशीलन समिति के सदस्यों-खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चाकी ने किंग्जफोर्ड नामक न्यायाधीश की हत्या की योजना बनाई परंतु उन्होंने जिस गाड़ी पर बम फेंके; वह किंग्जफोर्ड की गाड़ी नहीं थी । इस बम हमले में गाड़ी में बैठी दो अंग्रेज महिलाओं की मृत्यु हुई । प्रफुल्ल चाकी ने स्वयं को गोली मार दी ।
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खुदीराम बोस पुलिस के हाथ लगे । उन्हें फाँसी दी गई । इस कांड की छानबीन करते समय पुलिस को अनुशीलन समिति की गतिविधियों की जानकारी प्राप्त हुई । उन्होंने इस संगठन के सदस्यों की धरपकड़ प्रारंभ कर दी । अरविंद घोष को भी बंदी बनाया गया परंतु सरकार यह सिद्ध करने में विफल रही कि बम तैयार करने में अरविंद बाबू का हाथ था । फलत: न्यायालय ने उन्हें बरी कर दिया ।
अन्य सदस्यों को लंबी अवधि की सजाएं दी गई । रासबिहारी बोस और सचींद्रनाथ सन्याल ने क्रांतिकारी संगठनों का जाल बंगाल के बाहर फैलाया । पंजाब, दिल्ली, उत्तर प्रदेश में क्रांतिकारी गतिविधियों के केंद्र खुले ।
रासबिहारी बोस और उनके सहयोगियों ने वाइसराय लार्ड हार्डिग्ज पर बम फेंकने का साहसिक कार्य किया परंतु इस हमले में लार्ड हार्डिंग्ज बच गया । मद्रास (चेन्नई) प्रांत में भी क्रांति का कार्य चल रहा था । वांची अय्यर नामक क्रांतिकारी ने अंग्रेज अधिकारी एश की हत्या की । इसके पश्चात उसने स्वयं को गोली मारकर आत्मबलिदान किया ।
Essay # 3. इंडिया हाउस:
भारत में चलनेवाली क्रांतिकारी गतिविधियों को विदेशों में रहनेवाले भारतीय क्रांतिकारियों से सहायता मिलती थी । लंदन में स्थित इंडिया हाउस भी ऐसा ही महत्वपूर्ण सहायक करें था । इसकी स्थापना पं॰ श्यामजी कृष्ण वर्मा नाम के भारतीय देशभक्त ने की थी । यह संस्था इंग्लैंड में शिक्षा प्राप्त करनेवाले भारतीय युवकों को छात्रवृत्तियाँ देती थीं ।
यह छात्रवृत्ति स्वातंत्र्यवीर सावरकर को भी मिलती थी । जर्मनी के स्टुटगार्ट में आयोजित विश्व समाजवादी परिषद में मादाम कामा ने भारत की स्वतंत्रता का प्रश्न उपस्थित किया और इस परिषद में भारत का झंडा लहराया । इंडिया हाउस से जुड़ा हुआ दूसरा युवा क्रांतिकारी मदनलाल धींगरा थे । उन्होंने अंग्रेज अधिकारी कर्जन वाईली की हत्या की । अत: धींगरा को फाँसी दी गई ।
Essay # 4. गदर आंदोलन:
प्रथम विश्व युद्ध के कालखंड में अंग्रेजों के विरुद्ध क्रांतिकारी कार्यों को गति प्राप्त हुई थी । क्रांतिकारियों को लगता था कि अंग्रेजों के शत्रुओं का सहयोग प्राप्त कर भारत में सत्ता परिवर्तन किया जा सकता है । इस प्रयास में भारतीय सैनिकों को भी साथ ले सकते हैं । इस अवसर का लाभ उठाने की दृष्टि से क्रांतिकारी संगठनों की स्थापनाएँ हुई । उनमें ‘गदर’ एक प्रमुख संगठन था ।
अमेरिका और कनाडा में रहनेवाले भारतीयों ने ‘गदर’ संगठन की स्थापना की थी । इस संगठन के प्रमुख नेता लाला हरदयाल, भाई परमानंद, डा॰ पांडुरंग सदाशिव खानखोजे थे । गदर का अर्थ विद्रोह है । इस संगठन के मुखपत्र का नाम ‘गदर’ था । अंग्रेजी शासन के कारण भारत पर हुए दुष्परिणामों को इस मुखपत्र में बताया जाता ।
इसी तरह भारतीय क्रांतिकारियों के साहसिक कार्यो की जानकारी दी जाती । गदर मुखपत्र ने भारतीयों को राष्ट्र प्रेम और सशस्त्र क्रांति का संदेश दिया । अंग्रेजों के विरोध में विद्रोह करने हेतु ‘गदर’ संगठन के नेताओं ने युद्धजन्य स्थितियों का लाभ उठाने का निश्चय किया ।
उन्होंने अंग्रेजों के विरुद्ध पंजाब में विद्रोह की योजना बनाई । विद्रोह में सम्मिलित होने के लिए सेना के भारतीय सैनिकों को उद्यत किया । यह निर्णय किया गया कि रासबिहारी बोस और विष्णु गणेश पिंगले इस विद्रोह की बागडोर संभालेंगे परंतु मुखबिरी के कारण अंग्रेज सरकार को इस योजना की भनक लगी । पिंगले पुलिस के हाथ लगे । उन्हें फाँसी दी गई । रासबिहारी बच निकलने में सफल रहे । जापान पहुँचकर उन्होंने क्रांतिकारी गतिविधियाँ जारी रखीं ।
युद्धकाल में विदेशों में भी कुछ स्थानों पर क्रांतिकारी आंदोलन चल रह थे । बर्लिन में वीरेंद्रनाथ चट्टोपाध्याय, भूपेन दत्त और हरदयाल ने जर्मन विदेश मंत्रालय के सहयोग से अंग्रेजों के विरुद्ध योजना बनाई । ई॰स॰ १९१५ में महेंद्र प्रताप, बरकतुल्ला, ओबादुल्ला सिंधी ने काबुल में स्वतंत्र भारत की अस्थायी सरकार की स्थापना की थी ।
Essay # 5. काकोरी षड्यंत्र:
सरकार का दमनतंत्र क्रांतिकारी आंदोलन को समाप्त नहीं कर सका । गांधीजी ने असहयोग आंदोलन स्थगित किया था । इस कारण असंख्य युवक क्रांति के मार्ग की ओर मुड़े । चंद्रशेखर आजाद, रामप्रसाद ‘बिस्मिल’, योगेश चटर्जी, सचींद्रनाथ सन्याल आदि क्रांतिकारी एक हुए और क्रांति कार्यों के लिए आवश्यक धन इकट्ठा करने के लिए उन्होंने रेलगाड़ी में ले जा रहे सरकारी कोष को लूटा । उन्होंने यह कोष ९ अगस्त १९२५ को उत्तर प्रदेश के काकोरी रेल स्थानक के निकट हा ।
इसी को ‘काकोरी षड़यंत्र’ कहते हैं । सरकार ने शीघ्रता से छानबीन करते हुए क्रांतिकारियों को बंदी बनाया और उनपर अभियोग चलाए । अशफाक उल्ला, रामप्रसाद ‘बिस्मिल’, रोशनसिंह, राजेंद्र लाहिड़ी फाँसी पर चढ़ाए गए परंतु चंद्रशेखर आजाद पुलिस के हाथ नहीं लगे ।
Essauy # 6. हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन:
समाजवादी विचारों से प्रेरित युवकों ने देशव्यापी क्रांतिकारी संगठन बनाने का निश्चय किया । उन युवकों में चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव आदि प्रमुख थे । ये सभी क्रांतिकारी धमनिरपेक्ष विचारधारा से जुड़े हुए थे । ई॰स॰ १९२८ में इन युवकों ने दिल्ली के फिरोजशाह कोटला मैदान पर बैठक की ।
इस बैठक में उन्होंने ‘हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन’ नामक संगठन की स्थापना की । भारत को अंग्रेजों के शोषण से मुक्त करना इस संगठन का उद्देश्य था । साथ ही यह संगठन किसानों और श्रमिकों की शोषक बनी अन्यायपूर्ण सामाजिक, आर्थिक व्यवस्था को भी बदलना चाहता था ।
भगत सिंह ने सामाजिक न्याय और समता पर आधारित समाज के निर्माण को महत्व दिया । संगठन के एक स्वतंत्र विभाग को शस्त्र इकट्ठे करने और योजनाओं को प्रत्यक्ष में उतारने का कार्य सौंपा गया था । इस विभाग का नाम ‘हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी’ था और चंद्रशेखर आजाद इस विभाग के प्रमुख थे ।
इस संगठन के सदस्यों ने कई क्रांतिकारी कार्य किए । लाला लाजपत राय की मृत्यु का प्रतिशोध लेने के लिए भगत सिंह और राजगुरु ने सैंडर्स नामक अधिकारी की गोली मारकर हत्या की । इस समय सरकार ने केंद्रीय विधान मंडल में नागरिकों के अधिकारों का हनन करनेवाले दो विधेयक रखे थे ।
इन विधेयकों का विरोध करने के लिए भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने केंद्रीय विधान मंडल में बम फेंके । सरकार ने तुरंत हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी के केंद्रों पर छापे मारे । इन छापों के कारण पुलिस को सैंडर्स की हत्या के सुराग मिले । सरकार ने क्रांतिकारियों की धरपकड़ प्रारंभ की । उनपर राजद्रोह के आरोप लगाकर उनपर मुकदमे चलाए ।
२३ मार्च १९३१ को भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को लाहौर की जेल में फाँसी दी गई । कुछ क्रांतिकारियों को आजीवन कारावास की सजाएँ सुनाई गई तथा अन्य क्रांतिकारियों को लंबी अवधि के कारावास का दंड दिया गया ।
अंत तक चंद्रशेखर आजाद पुलिस के हाथ नहीं लगे । आगे चलकर अल्फ्रेड पार्क में पुलिस के साथ हुई मुठभेड़ में उनका देहांत हो गया । चंद्रशेखर आजाद की मृत्यु के पश्चात पंजाब, उत्तर प्रदेश और बिहार प्रांतों में क्रांतिकारी आंदोलन कमजोर हुआ ।
Essay # 7. चटगाँव षड्यंत्र:
सूर्य सेन बंगाल के चटगाँव में कार्यरत क्रांतिकारी दल के प्रमुख थे । उन्होंने अनंत सिंह, गणेश घोष, कल्पना दल, प्रीतिलता वड्डेदार जैसे निष्ठावान क्रांतिकारियों की सेना बनाई । सूर्य सेन ने इनकी सहायता से चटगाँव के शस्त्रागार पर हमले की योजना बनाई । इस योजना के अनुसार क्रांतिकारियों ने १८ अप्रैल १९३० को चटगाँव के दो शस्त्रागारों के शस्त्रास्त्र अपने अधिकार में कर लिए ।
टेलीफोने और टेलीग्राफ व्यवस्था को काटकर पूरी संचार व्यवस्था को ठप्प कर दिया । इसके पश्चात उन्होंने अंग्रेजी सेना के साथ रोमांचक संघर्ष किया । १६ फरवरी १९३३ को सूर्य सेन और उनके कुछ सहयोगी पुलिस के हाथ लगे । सूर्य सेन और उनके बारह सहयोगियों को फाँसी की सजा दी गई । कल्पना दत्त आजीवन कारावास से दंडित की गईं । पुलिस के हाथ न लगते हुए प्रीतिलता स्वयं वीरगति को प्राप्त हुई ।
चटगाँव विद्रोह के फलस्वरूप क्रांतिकारी आंदोलन को गति प्राप्त हुई । विद्यालयीन छात्राओं-शांति घोष और सुनीति चौधरी ने जिला न्यायाधीश की हत्या की तथा बीना दास नामक युवती ने कोलकाता विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में गवर्नर पर गोलियाँ चलाई । ऐसी अनेक क्रांतिकारी गतिविधियाँ इस कालखंड में हुईं ।
ई॰स॰ १९४० को इंग्लैंड में सरदार उधम सिंह ने माइकेल ओडवायर की हत्या की । भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष में क्रांतिकारी आंदोलन का महत्वपूर्ण योगदान रहा है । अंग्रेजी सत्ता से लड़ते हुए क्रांतिकारियों ने साहस एवं संकल्प का परिचय दिया । उनका राष्ट्र प्रेम और बलिदान भाव अद्वितीय था । उनका बलिदान भारतीयों के लिए प्रेरणादायी सिद्ध हुआ ।