Here is an essay on the ‘Non-Cooperation Movement’ for class 6, 7, 8, 9, 10, 11 and 12. Find paragraphs, long and short essays on the ‘Non-Cooperation Movement’ especially written for school and college students in Hindi language.

ई॰स॰ १९२० में लोक्यान्य तिलक का निधन हुआ । इसके पश्चात राष्ट्रीय आंदोलन की बागडोर महात्मा गांधी के हाथ में आई । गांधीजी के प्रभावशाली नेतृत्व में यह आंदोलन अधिक व्यापक बना । भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के नए युग का प्रारंभ हुआ ।

दक्षिण अफ्रीका में कार्य:

गांधीजी ने अपना कार्य दक्षिण अफ्रीका में प्रारंभ किया । अफ्रीका में गोरे शासकों द्‌वारा वहाँ के अश्वेत लोगों और भारतीय निवासियों पर अन्याय एवं अत्याचार किए जाते थे । गांधीजी ने सत्याग्रह के मार्ग पर चलकर इस अन्याय के विरुद्ध वहाँ के लोगों को न्याय दिलवाया ।

भारत में गांधीजी का आगमन:

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ई॰स॰ १९१५ में गांधीजी दक्षिण अफ्रीका से भारत लौट आए । उन्होंने संपूर्ण भारत का भ्रमण किया । उन्होंने यहाँ के किसानों और श्रमिकों की समस्याओं को उठाया और इसके लिए सत्याग्रह का अभिनव मार्ग अपनाया ।

सत्याग्रह:

गांधीजी ने भारत में पहली बार सत्याग्रह पद्धति का उपयोग किया । इस नई पद्धति में अहिंसा के मार्ग पर चलकर अत्याचार एवं अन्याय का प्रतिकार करना महत्वपूर्ण था । प्रतिकार करते समय कष्ट और यातनाओं को संयम के साथ सहना पड़ता है ।

अन्याय करनेवाले व्यक्ति को सत्य और न्याय का बोध कराना और उसके मन में परिवर्तन करना सत्याग्रह के उद्देश्य हैं । गांधीजी की शिक्षा थी कि सत्याग्रही व्यक्ति को हिंसा और असत्य का आचरण नहीं करना चाहिए ।

सामान्य मनुष्य भी सत्याग्रह के मार्ग का अनुसरण कर सकता है । अत: भारत और विश्व की जनता ने अन्याय का प्रतिकार करने के लिए सत्याग्रह के मार्ग को स्वीकार किया । गांधीजी के सत्याग्रह का प्रभाव अश्वेतों के अधिकारों के लिए संघर्ष करनेवाले अमेरिका के मार्टिन लूथर और दक्षिण अफ्रीका के नेल्सन मंडेला जैसे नेताओं पर भी पड़ा ।

चांपरन सत्याग्रह:

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ई॰स॰ १९१७ में बिहार के चंपारन में अंग्रेजों के नील के बागान थे । बागानों के मालिकों ने नील उगाने के लिए किसानों के साथ कड़ाई बरती । गांधीजी ने इस शौषण के विरुद्ध सत्याग्रह किया और किसानों को न्याय दिलवाया ।

खेड़ा सत्याग्रह:

गुजरात के खड़ा जिले में लगातार अकाल पड़ा । फलस्वरूप फसलें पूरी तरह नष्ट हो गई थीं परंतु सरकार कड़ाई से लगान वसूल कर रही थी । तब वहाँ के किसानों ने ई॰स॰ १९१८ में लगान बंदी का आंदोलन प्रारंभ किया । गांधीजी ने इस आंदोलन का नेतृत्व किया । अल्पावधि में ही सरकार ने लगान माफ कर दिया ।

अहमदाबाद में श्रमिकों का संघर्ष:

प्रथम विश्व युद्ध की समयावधि में महँगाई में प्रचंड वृद्धि हुई थी । फिर भी मिल मालिकों ने श्रमिकों का वेतन नहीं बढ़ाया था । परिणामस्वरूप श्रमिकों में असंतोष व्याप्त हुआ था । गांधीजी ने श्रमिकों को हड़ताल और अनशन करने का सुझाव दिया । परिणाम यह हुआ कि मिल मालिक पीछे हट गए । उन्होंने श्रमिकों का वेतन बढ़ाया ।

रौलट एक्ट के विरुद्ध सत्याग्रह:

भारतीय जनता में दिन-प्रतिदिन अंग्रेजों के विरुद्ध असंतोष बढ़ता ही गया । उसे रोकने के लिए अंग्रेज सरकार ने रौलट नामक अधिकारी की अध्यक्षता में समिति का गठन किया और इस समिति की सिफारिशों के अनुसार नया कानून बनाया । इसे ‘रौलट एक्ट’ कहते हैं ।

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इस कानून के तहत सरकार को किसी भी भारतीय व्यक्ति को बिना पूछताछ किए बंदी बनाने का अधिकार दिया गया था । इस कानून के तहत दंडित व्यक्ति को अपील करने का अधिकार नहीं था । इस काले कानून के विरुद्ध संपूर्ण देश में आक्रोश की लहर दौड़ गई । इस कानून का निषेध करने हेतु गांधीजी ने सत्याग्रह की घोषणा की । उन्होंने ६ अप्रैल १९१९ को बंद का आह्वान किया । भारतीयों ने इस आह्वान को प्रचंड समर्थन दिया ।

जलियाँवाला बाग हत्याकांड:

रौलट एक्ट के विरोध में शुरू किए गए संघर्ष ने पंजाब प्रांत में प्रखर रूप धारण किया । सरकार ने दमन तंत्र का प्रारंभ किया । गांधीजी के पंजाब प्रवेश पर प्रतिबंध लगाया गया । जनरल डायर ने अमृतसर में सभाएँ लेने पर प्रतिबंध लगाया । अमृतसर में डा॰ सत्यपाल, डा॰ सैफुद्दीन जैसे प्रमुख नेताओं को बंदी बनाया गया ।

इन घटनाओं का विरोध करने हेतु १३ अप्रैल १९१९ को बैसाखी त्योहार के अवसर पर जलियाँवाला बाग में एक सभा का आयोजन किया गया था । जनरल डायर ने सभा में आए हुए निशस्त्र लोगों पर अंधाधुंध गोलियाँ चलाई । इस नरमेध में लगभग चार सौ स्त्री-पुरुष मारे गए ।

अनगिनत लोग घायल हुए । इस नरमेध के लिए पंजाब का शासक माइकल ओडवायर उत्तरदायी था । इस हत्याकांड का निषेध करते हुए रवींद्रनाथ ठाकुर ने अंग्रेज सरकार द्‌वारा उन्हें प्रदान की गई ‘सर’ की उपाधि लौटा दी ।

संपूर्ण पंजाब में सैनिक कानून लागू किया गया । कालांतर में भारतीयों ने इस हत्याकांड की जाँच किए जाने की माँग की । फलस्वरूप अंग्रेजों ने हंटर आयोग का गठन किया । इस हत्याकांड ने देशव्यापी असहयोग आंदोलन को जन्म दिया ।

खिलाफत आंदोलन:

तुर्किस्तान का सुलतान विश्व के मुसलमानों के खलीफा अर्थात धर्मगुरु थे । प्रथम विश्व युद्ध के पश्चात पराजित राष्ट्र समूह के द्‌वारा तुर्किस्तान पर अपमानजनक संधि लादी गई और तुर्की साम्राज्य का विघटन किया गया था । परिणामस्वरूप मुस्लिमों में क्रोध की लहर फैल गई ।

खलीफा को समर्थन देने के लिए भारतीय मुस्लिमों ने जिस आंदोलन को प्रारंभ किया; उसे खिलाफत आंदोलन कहते है । गांधीजी को लगा कि यदि इस मुद्दे को लेकर हिंदू- मुस्लिम एकता के आधार पर राष्ट्रीय आंदोलन प्रारंभ किया जाए तो सरकार निश्चित रूप से सही रास्ते पर आएगी ।

फलस्वरूप गांधीजी ने खिलाफत आंदोलन को समर्थन दिया । सरकार से असहयोग करने के प्रस्ताव को गांधीजी ने खिलाफत कमिटी के सम्मुख रखा जिसे खिलाफत कमिटी ने स्वीकार क्यिा । अंगस्त १९२० में असहयोग आंदोलन प्रारंभ हुआ ।

असहयोग का राष्ट्रव्यापी संघर्ष:

ई॰स॰ १९२० को नागपुर में हुए अधिवेशन में राष्ट्रीय कांग्रेस ने असहयोग आंदोलन के प्रस्ताव को पारित किया और असहयोग आंदोलन की बागडोर महात्मा गांधीजी को सौंपी गई । इस प्रस्ताव के अनुसार सरकारी कार्यालयों, विदेशी वस्तुओं, सरकारी विद्‌यालयों-महाविद्‌यालयों न्यायालयों पर बहिष्कार करने, का कार्यक्रम निश्चित किया गया ।

असहयोग आंदोलन की यात्रा:

संपूर्ण देश में असहयोग आंदोलन को प्रचंड समर्थन प्राप्त हुआ । मोतीलाल नेहरू, चित्तरंजन दास आदि विख्यात वकीलों ने न्यायालयों का बहिष्कार किया । इस आंदोलन में छात्र बड़ी संख्या में सम्मिलित हुए । संपूर्ण देश में राष्ट्रीय शिक्षा प्रदान करनेवाले विद्‌यालयों और महाविद्‌यालयों की स्थापना की गई । असहयोग आंदोलन में सभी वर्ग सम्मिलित होने लगे ।

अंग्रेज सरकार ने बड़ी मात्रा में दमनतंत्र आरंभ किया । उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले में चौरीचौरा नामक स्थान पर पुलिस ने शांतिपूर्ण ढंग से निकाले गए जुलूस पर गोली चलाई । परिणामस्वरूप क्रोधित भीड़ ने पुलिस चौकी में आग लगाई ।

इस घटना में रन्क्र पुलिस अधिकारी सहित २२ पुलिसकर्मी मारे गए । इस घटना से गांधीजी को दु:ख हुआ । फलत: फरवरी, १९२२ में उन्होंने इस आंदोलन को स्थगित कर दिया । इसके बाद सरकार ने उन्हें बंदी बनाया ।

राजद्रोह के आरोप के तहत गांधीजी पर मुकदमा चलाकर उन्हें ६ वर्ष के लिए कारावास का दंड दिया गया । आगे चलकर फरवरी १९२४ में उन्हें स्वास्थ्य के कारण रिहा किया गया । गांधीजी ने असहयोग आंदोलन के साथ-साथ रचनात्मक कार्यक्रम भी प्रारंभ किए ।

इसमें मुख्य रूप से स्वदेशी वस्तुओं का प्रसार, हिंदू-मुस्लिम एकता, शराब बंदी, अस्पृश्यता निवारण, खादी का प्रसार राष्ट्रीय शिक्षा आदि का समावेश था । इस रचनात्मक कार्यक्रम के फलस्वरूप ग्रामीण क्षेत्रों में राष्ट्रीय आंदोलन अधिक दृढ़ हुआ ।

स्वराज्य दल:

मोतीलाल नेहरू और चित्तरंजन दास के मन में यह विचार उत्पन्न हुआ कि सरकार को घेरने के लिए चुनाव में भाग लेकर विधान मंडल में प्रवेश करना चाहिए । इस उद्‌देश्य से राष्ट्रीय कांग्रेस के अंतर्गत ई॰स॰ १९२२ में स्वराज्य दल की स्थापना की गई । ई॰स॰ १९२३ में हुए चुनाव में स्वराज्य दल के अनेक प्रत्याशी जीतकर केंद्रीय और प्रांतीय विधान मंडल में पहुँचे ।

उन्होंने विधान मंडल में शासन की अन्यायपूर्ण नीतियों के प्रति प्रखर विरोध जताया । उन्होंने यह माँग की कि भविष्य में भारत को उत्तरदायी शासन पद्धति सौंपी जाए भारतीयों की समस्याओं का हल निकालने हेतु गोलमेज परिषद बुलाई जाए और राजनीतिक बंदियों को मुक्त किया जाए । उन्होंने विधान मंडल में इन माँगों के प्रस्ताव पारित करवाए । अंग्रेजी शासन ने स्वराज्य दल के अधिकांश प्रस्ताव ठुकरा दिए ।

साइमन कमीशन:

ई॰स॰ १९१९ के मांटेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार कानून द्‌वारा किए गए सुधार असंतोषजनक थे । इस कारण भारतीय जनता में क्रोध व्याप्त था । ई॰स॰ १९२७ में अंग्रेज सरकार ने साइमन कमीशन का गठन किया । इस साइमन में एक भी भारतीय सदस्य नहीं था । अत: भारत के राजनीतिक दलों ने साइमन कमीशन का बहिष्कार करने का निर्णय किया ।

विभिन्न स्थानों पर प्रदर्शन किए गए । ‘साइमन गो बैक’, ‘साइमन वापस जाओ’ के नारों से प्रखर विरोध प्रकट किया गया । प्रदर्शनकारियों पर लाठियाँ चलाई गईं । लाहौर में किए गए लाठी चालान में लाला लाजपत राय घायल हुए । कुछ दिनों के बाद उनका देहांत हो गया ।

नेहरू प्रतिवेदन:

भारतमंत्री बर्कनहेड ने आलोचना करते हुए कहा था कि नेता एकत्रित विचारों से संविधान नहीं बना सकते । इस चुनौती को स्वीकार करते हुए सर्वदलीय समिति का गठन किया गया । इस समिति के अध्यक्ष मोतीलाल नेहरू थे । इस समिति द्‌वारा किए गए प्रतिवेदन को ‘प्रतिवेदन’ (रिपोर्ट) कहते है ।

इस प्रतिवेदन में यह प्रस्ताव रखा गया था कि अंग्रेजी शासन में स्वराज्य करें । राष्ट्रीय कांग्रेस ने इस प्रतिवेदन को किया और चेतावनी कि सरकार ने इसे ई॰स॰ १९२९ के अंत तक स्वीकार नहीं किया तो असहयोग आंदोलन प्रारंभ किया जाएगा । इस पृष्ठभूमि में ई॰स॰ १९२९ के दिसंबर में पं॰ जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में हुआ लाहौर अधिवेशन ऐतिहासिक सिद्ध हुआ ।

पूर्ण स्वराज्य की माँग:

राष्ट्रीय कांग्रेस का अब तक का अद्देश्य-औपनिवेशिक स्वराज्य असंख्य युवा कार्यकताओं को स्वीकार नहीं था । पूर्ण स्वराज्य की माँग करनेवाले युवा कार्यकर्ताओं के नेता पं॰ जवाहरलाल नेहरू और सुभाषचंद्र बोस थे ।

युवा कार्यकर्ताओं के प्रभाव के फलस्वरूप राष्ट्रीय कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में पूर्ण स्वराज्य का प्रस्ताव पारित हुआ । इस प्रस्ताव द्‌वारा राष्ट्रीय कांग्रेस ने औपनिवेशिक स्वराज्य का अपना उद्देश्य त्याग दिया और अब राष्ट्रीय कांग्रेस का उद्देश्य ‘भारत की पूर्ण स्वतंत्रता’ बन गया ।

यह निश्चित किया गया कि २६ जनवरी, यह दिन स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया जाए । अंग्रेजी सत्ता से भारत को मुक्त करने के लिए अहिंसा के मार्ग पर चलकर स्वतंत्रता का संघर्ष करने की प्रतिज्ञा २६ जनवरी १९३० को संपूर्ण देश में की गई । इस कारण देश में सर्वत्र चेतना का वातावरण उत्पन्न हुआ ।

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