Read this essay in Hindi to learn about the various reasons which led to the revolt for freedom in India.
राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रारंभिक समय में वैधानिक आंदोलन की ओर अंग्रेजों ने ध्यान नहीं दिया । परिणामस्वरूप वैधानिक आंदोलन की सीमाएँ स्पष्ट हुई । अत: महाराष्ट्र के लोकमान्य तिलक, बंगाल के बिपिनचंद्र पाल, अरविंद घोष, पंजाब के लाला लाजपत राय जैसे गरम दल के नेताओं ने स्पष्ट रूप से यह विचार प्रकट किया कि अंग्रेजों के विरूध चलाए जा रहे संघर्ष को अधिक प्रखर बनाना चाहिए । भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में ई॰स॰ १९०५ से १९२० के बीच का कालखंड गरम सिद्धांतवादी कालखंड के रूप में जाना जाता है ।
Essay # 1. गरम दल का क्रमिक विकास:
प्रारंभिक समय में गरम दल के नेताओं ने भारत के लोगों में राजनीतिक जागृति लाने हेतु समाचारपत्र, राष्ट्रीय पर्व और राष्ट्रीय शिक्षा जैसे माध्यमों का उपयोग किया । लोकमान्य तिलक ने ‘केसरी’ और ‘मराठा’ समाचारपत्रों के साथ-साथ गणेशोत्सव और शिवजयंती जैसे पर्वों का आयोजन किया ।
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इन राष्ट्रीय पर्वों का उद्देश्य आपसी सभी भेदों को भूलकर लोगों का इकट्ठे आना और उनमें राष्ट्रीय जागृति उत्पन्न करना था । तत्कालीन गणेशोत्सव के कार्यक्रमों द्वारा लोगों में राजनीतिक जागृति उत्पन्न करने के प्रयास किए जाते थे ।
लोकमान्य तिलक लोगों को कर्मनिष्ठ बनने पर बल देते थे । इसी कर्मयोग को बताने के लिए उन्होंने मंडाले के कारावास में ‘गीतारहस्य’ नामक ग्रंथ लिखा । समाज में राष्ट्रीयता का भाव दृढ़ करने हेतु गरम दल के नेताओं ने शैक्षिक संस्थाओं की स्थापना कीं ।
इस राष्ट्रीय शिक्षा का उद्देश्य अपने देश के प्रति अभिमान को जागृत करना था । गरम दल के कालखंड में यह आंदोलन अधिक व्यापक हो गया । श्रमिक वर्ग में भी राजनीतिक विचारों को दृढ़ करने में गरम दल के नेताओं को सफलता प्राप्त हुई ।
Essay # 2. बंगाल का विभाजन:
बंगाल बहुत बड़ा प्रांत था । इतने विशाल प्रांत का प्रशासन चलाना कठिन कार्य था । अत: ई॰स॰ १९०५ में वाइसराय लार्ड कर्जन ने बंगाल प्रांत के विभाजन की घोषणा की । उसके द्वारा किए गए विभाजन के अनुसार मुस्लिम बहुसंख्य क्षेत्र को पूर्व बंगाल और हिंदू बहुसंख्य क्षेत्र को पश्चिम बंगाल बनाया जाना था ।
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बंगाल के विभाजन का कारण यद्यपि प्रशासकीय सुविधा बताया जा रहा था परंतु वास्तव में कर्जन का उद्देश्य हिंदू-मुस्लिमों के बीच फूट डालकर स्वतंत्रता आंदोलन को दुर्बल बनाना था ।
Essay # 3. बंग भंग आंदोलन:
बंग भंग को लेकर बंगाल में लोगों का आक्रोश फूट पड़ा । विभाजन का दिवस १६ अक्तूबर को ‘राष्ट्रीय शोक दिवस’ के रूप में मनाया गया । निषेध सभाओं द्वारा अंग्रेजी शासन की भर्त्सना की गई । सभी ओर ‘वंदे मातरम्’ गीत गाया जाने लगा ।
एकता के प्रतीक के रूप में रक्षा बंधन के कार्यक्रम आयोजित किए गए । विदेशी माल का बहिष्कार किया गया । छात्रों ने सरकारी विद्यालयों और महाविद्यालयों का बहिष्कार किया और बड़ी मात्रा. में वे इस आंदोलन में सम्मिलित हुए । राष्ट्रीय भावना जागृत करनेवाली शिक्षा संस्थाओं की स्थापनाएँ की गईं ।
इस बंग भंग आंदोलन का नेतृत्व सुरेंद्रनाथ बनर्जी, आनंदमोहन बोस, रवींद्रनाथ ठाकुर आदि ने किया । बंग भंग विरोधी आंदोलन ने राष्ट्रीय आंदोलन को व्यापक बनाया । अब यह आंदोलन राष्ट्रव्यापी बन गया । कालांतर में इस आंदोलन की प्रखरता को देखकर अंग्रेजों ने ई॰स॰ १९११ को बंगाल का विभाजन रद्द किया ।
Essay # 4. भारत सेवक समाज:
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ई॰स॰ १९०५ में नामदार गोपाल कृष्ण गोखले ने ‘भारत सेवक समाज’ की स्थापना की । लोगों मैं देशभक्ति को जागृत कर स्वार्थत्याग की शिक्षा देना, धर्मों और जातियों के बीच के वैमनस्य को समाप्त कर सद्भाव उत्पन्न करना, शिक्षा का प्रसार करना संस्था के उद्देश्यथे । इंग्लैंड जाकर गोखले ने ब्रिटिश जनता के समुख भारत की दुर्दशा, निर्धनता और सरकार की दमननीति को रखा ।
Essay # 5. राष्ट्रीय कांग्रेस की चतु:सूत्री:
ई॰स॰ १९०५ में हुए राष्ट्रीय कांग्रेस अधिवेशन के अध्यक्ष नामदार गोखले थे । उन्होंने बंग भंग आंदोलन का समर्थन किया । ई॰स॰ १९०६ में हुए राष्ट्रीय कांग्रेस अधिवेशन के अध्यक्ष दादभाई नौरोजी थे । अध्यक्ष के रूप में बोलते हुए उन्होंने ‘स्वराज्य’ को राष्ट्रीय कांग्रेस का उद्देश्य घोषित किया ।
‘एकजुट होकर रहो, स्वराज्य प्राप्त करो और इसके लिए अविरत आंदोलन करो’ यह संदेश उन्होंने भारतीय जनता को दिया । इसी अधिवेशन में राष्ट्रीय कांग्रेस ने पूर्ण सहमति से स्वराज्य, स्वदेशी बहिष्कार और राष्ट्रीय शिक्षा इस चतुःसूत्री को स्वीकार किया ।
Essay # 6. नरम और गरम दल में मतभेद:
राष्ट्रीय कांग्रेस में इस मुद्दे पर मतभेद उत्पन्न होने लगे थे कि अंग्रेजों की अत्याचार एवं अन्यायपूर्ण नीति का विरोध किस प्रकार करना चाहिए । एक दल का यह विचार था कि यद्यपि अंग्रेज सरकार ने राष्ट्रीय कांग्रेस की मार्गे मान्य नहीं की हैं फिर भी राष्ट्रीय कांग्रेस को वैधानिक मार्ग पर चलकर ही कार्य करना चाहिए ।
इस दल को ‘नरम दल’ कहते है । इसके विपरीत दूसरा दल था; जिसका मानना था कि आवेदनों और प्रार्थनाओं का अंग्रेज शासकों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा । अत: राष्ट्रीय आंदोलन को प्रखर बनाना चाहिए, इसे सामान्य जनता तक ले जाना चाहिए तथा लोगों में राजनीतिक चेतना उत्पन्न कर उन्हें आंदोलन में सम्मिलित करवा लेना चाहिए । साथ ही जनदबाव के सम्मुख अंग्रेज सरकार को झुकने के लिए बाध्य करना चाहिए । इस दल को ‘गरम दल’ कहते है । नरम दल ने स्वंतत्रता आंदोलन की नींव रखी तो गरम दल ने इस आंदोलन को आगे बढ़ाया ।
Essay # 7. सूरत अधिवेशन:
ये मतभेद ई॰स॰ १८०७ में सूरत में हुए राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन में चरम सीमा तक पहुँच गए । नरम दल के नेताओं ने स्वदेशी और बहिष्कार इन मुद्दों को अलग रखने का प्रयास किया । गरम दल ने इसे विफल बनाने का प्रयास किया । परिणामस्वरूप अधिवेशन में तनाव उत्पन्न हुआ और दोनों दलों के बीच समझौता नहीं हो सका । फलत: राष्ट्रीय कांग्रेस में दरार पड़ गई ।
Essay # 8. अंग्रेज सरकार का दमान तंत्र:
बंग भंग के पश्चात आरंभ हुए प्रभावी आंदोलन को देखकर अंग्रेज सरकार विचलित हो गई थी । अत: इस आंदोलन की रोकथाम हेतु अंग्रेज सरकार ने दमनतंत्र को अपनाया । सरकार ने सार्वजनिक सभाओं पर प्रतिबंध लगाया, इस कानून का उल्लंघन करनेवाले को कठोर दंड दिए, विद्यालयीन ‘छात्रों को भी कोड़ों से पीटा, समाचारपत्रों पर अनेक प्रकार के प्रतिबंध लगाए । सरकार की आलोचना करने के आरोप में अनेक छापाखाने जब्त किए ।
लेखकों एव संपादकों को कारावास में ठूँसा । सरकार ने गरम दल के नेताओं के विरूध कड़ी कार्यवाही की । लोकमान्य तिलक पर राजद्रोह का आरोप लगाया और उन्हें छह वर्ष के लिए मंडाले के कारावास में भेजा । बिपिनचंद्र पाल को कारावास का दंड दिया गया तथा लाला लाजपत राय पंजाब से निष्कासित किए गए ।
Essay # 9. मुस्लिम लीग की स्थापना:
बंग भंग आंदोलन को लेकर राष्ट्रीय कांग्रेस को प्राप्त जनता के प्रचंड समर्थन को देखकर अंग्रेज सत्ताधीश विचलित हो गए । अंग्रेजों ने पुन: ‘फूट डालो और राज्य करो’ की नीति अपनाई । अब अंग्रेज कहने लगे कि मुस्लिमों के हितों को पूर्ण करने के लिए मुस्लिमों का स्वतंत्र राजनीतिक संगठन होना चाहिए ।
अंग्रेज सरकार से यह प्रोत्साहन पाक मुस्लिम समाज कें उच्चवर्गियों के एक प्रतिनिधि मंडल ने आगाखान के नेतृत्व में गवर्नर जनरल लार्ड मिंटो से भेंट की । फलत: लार्ड मिटी और अन्य अंग्रेज अधिकरियों की प्रेरणा से ई॰स॰ १९०६ में ‘मुस्लिम लीग’ की स्थापना हुई । लीग की स्थापना में आगा खान जैसे धर्मगुरु तथा मोहसीन-उल-मुल्क, नवाब सलीम उल्ला जैसे जमींदारों और रियासतदारों का वर्चस्व था ।
Essay # 10. ई॰स॰ १९०९ का कानून:
सरकार ने ई॰स॰ १९०९ में एक कानून पारित किया । इस कानून को ‘मोर्ले-मिंटो सुधार कानून’ कहते है । इस कानून के अनुसार विधान मंडल में भारतीय प्रतिनिधियों की संख्या में वृद्धि की गई और कुछ निर्वाचित भारतीय प्रतिनिधियों का समावेश किए जाने का प्रावधान किया गया । इसी भांति मुस्लिमों के लिए स्वतंत्र निर्वाचन क्षेत्र निर्मित किया गया । अंग्रेजों की इस भेदनीति के कारण भारत में अलगाववादी प्रवृत्ति का बीजारोपण हुआ ।
Essay # 11. भारतीयों की एकजुटता:
कारावास का दंड पूरा कर लोकमान्य तिलक ई॰स॰ १९१४ में भारत लौट आए । इसके पश्चात गरम दल और नरम दल को इकट्ठे लाने के प्रयास प्रारंभ हुए । ई॰स॰ १९१६ में ये दोनों दल राष्ट्रीय कांग्रेस में पुन: एक हुए । इसी वर्ष लखनऊ में राष्ट्रीय कांग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच समझौता हुआ । इसे ‘लखनऊ समझौता’ कहते हैं ।
इस समझौते के अनुसार राष्ट्रीय कांग्रेस ने मुस्लिमों को स्वतंत्र निर्वाचन क्षेत्र देना स्वीकार किया । दूसरी ओर मुस्लिम लीग ने भारत को राजनीतिक अधिकार प्राप्त करवाने के कार्य में राष्ट्रीय कांग्रेस को सहयोग देना स्वीकार किया ।
Essay # 12. होमरूल आंदोलन:
ई॰स॰ अगस्त १९१४ में यूरोप में प्रथम विश्व युद्ध प्रारंभ हुआ । इस युद्ध की आँच भारत तक पहुंची । प्रतिदिन की आवश्यक वस्तुओं के दाम बढ़ने लगे । सरकार ने नागरिकों पर अनेक प्रकार के प्रतिबंध लगाए । परिणामस्वरूप भारतीयों में असंतोष बढ़ता गया । इस स्थिति में डा॰ एनी बेसेंट और लोकमान्य तिलक ने होमरूल आंदोलन प्रारंभ किया ।
होमरूल से तात्पर्य है ‘हम अपना शासन स्वयं चलाएंगे’ । इसी को ‘स्वशासन’ कहते हैं । ऐसा आंदोलन आयरलैंड में उपनिवेशवाद के विरोध में हुआ था । इसी आधार पर भारतीय होमरूल आंदोलन ने अंग्रेजी शासन से स्वशासन के अधिकारों की माँग की । इसके लिए एनी बेसेंट और लोकमान्य तिलक ने संपूर्ण देश में तूफानी दौरे किए और स्वशासन की मांग को लोगों तक पहुँचाया ।
लोकमान्य तिलक ने स्पष्ट रूप से कहा: “स्वराज्य मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे प्राप्त करूँगा ही ।” होमरूल आंदोलन के कारण राष्ट्रीय आंदोलन में नई चेतना उत्पन्न हुई ।
Essay # 13. ई॰स॰ १९१७ की घोषणा:
भारत में बढ़ता जा रहा असंतोष होमरूल आंदोलन की बढ़ती लोकप्रियता, यूरोप में निर्मित युद्धजन्य स्थिति, इस पृष्ठभूमि में अंग्रेज सरकार ने भारतीयों को कुछ राजनीतिक अधिकार देना स्वीकार किया । ई॰स॰ १९१७ में भारत मंत्री मांटेग्यू ने घोषणा की कि अंग्रेज सरकार भारत को क्रमश: स्वशासन के अधिकार एवं दायित्वपूर्ण शासन पद्धति प्रदान करेगी ।
लोकमान्य तिलक ने भी घोषित किया कि यदि अंग्रेजी सत्ता भारतीयों की माँगों के प्रति सहानुभूति और समझदारी दर्शाती है तो भारतीय जनता भी अंग्रेज सरकार को सहयोग देगी । लोकमान्य तिलक द्वारा अपनाई गई इस नीति को ‘प्रतियोगी सहयोगिता’ कहते हैं । ई॰स॰ १९१९ में इंग्लैंड की संसद ने भारत में संवैधानिक परिवर्तन करने हेतु एक कानून पारित किया । इसे ‘मांटेग्यू-चेम्सफोर्ड’ कानून कहते हैं ।
Essay # 14. मांटेग्यू-चेम्सफोर्ड कानून:
इस कानून के अनुसार प्रांतीय स्तर पर भारतीय मंत्रियों को कुछ ऐसे मंत्रालय दिए गए जो महत्वपूर्ण नहीं थे परंतु वित्त, राजस्व, गृह जैसे महत्वपूर्ण मंत्रालय गवर्नर के अधीन रखे गए थे । सभी की यही अपेक्षा थी कि ई॰स॰ १९१९ के कानून के अनुसार भारत में दायित्वपूर्ण शासन पद्धति का प्रारंभ होगा परंतु प्रत्यक्षत: इस कानून ने सभी को निराश किया ।
लोकमान्य तिलक ने ‘न ही यह स्वराज्य है और ना ही उसकी नींव’ यह कहकर इस कानून की आलोचना की । सभी भारतीयों को यह बोध हुआ कि यदि सरकार को सही रास्ते पर लाना है तो इसके लिए राष्ट्रव्यापी आंदोलन की आवश्यकता है और भारत नए आंदोलन हेतु तत्पर हुआ ।