Read this article in Hindi to learn about the expression of emotions in an individual.
मनुष्य में संवेगों का वर्णन स्थायीभाव के वर्णन के बिना अधूरा है । अत: इनका भी संक्षिप्त वर्णन प्रासंगिक होगा । सम्पूर्ण जीव का तीव्र उपद्रव संवेग है । वह एक मानसिक क्रिया है जिसमें अनुभूति और गत्यात्मक तत्परता होती है । वह व्यक्ति की आन्तरिक संरचना से निर्देशित अनुभव और क्रिया है वह आती है और चली जाती है तथा कुछ समय के लिए व्यक्ति को विक्षुब्ध कर जाती है ।
दूसरी ओर स्थायीभाव जैसा कि उसके नाम से स्पष्ट है, स्थायी (Permanent) तथा भाव (Emotion) है । कल वह मानसिक संरचना है, जो व्यक्त रहने के अवसर न होने पर भी सदैव बनी रहती है, यह अन्तर मानसिक सरचना के तथ्यों और मानसिक क्रियाओं से एक ओर स्नायुविन्यासों की संरचना अथवा स्नायु विन्यासों की व्याख्या में तथा दूसरी ओर इन संरचना से नियमित अनुभवों और क्रियाओं में अन्तर है ।
डॉ.मैक्डूगल के शब्दों में, ”संवेग अनुभव का एक प्रकार कार्य की एक प्रणाली और क्रिया की एक विधि है । स्थायीभाव संरचना का एक तथ्य स्नायुविन्यासों की एक संगठित व्यवस्था है, जो कि कार्य करने के बीच में न्यूनाधिक शान्त दशा में रहती है ।”
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स्थायी भाव संवेगों के रूप को निश्चित करता है । इस प्रकार स्थायी भाव संवेगों का कारण है और संवेग स्थायी भाव के अनुगामी हैं, परन्तु दूसरी ओर संवेग भी स्थायी भाव का कारण है और स्थायी भाव संवेग अनुगामी है क्योंकि संवेग से ही स्थायी भाव बनता है ।
एक वस्तु अथवा व्यक्ति की ओर हमारे जिस प्रकार के संवेग होंगे उसी प्रकार का स्थायी भाव बन जायेगा मानव में नैसर्गिक रूप में संवेग होते है । यह सरल संवेग कहलाते हैं; जैसे – भय, आश्चर्य, क्रोध, शोक आदि । इसके अतिरिक्त कुछ संवेग स्वयं विकसित होते हैं; जैसे – ईष्या, प्रेम, घृणा इत्यादि ।
जैसे-जैसे व्यक्ति का सामाजिक परिस्थितियों में विकास होता है, ये संवेग विभिन्न वस्तुओं की ओर प्रेरित होते हैं । उदाहरण के लिए वह किसी से डरता है और किसी से उसे मिलकर हर्ष होता है । जब एक ही वस्तु अथवा व्यक्ति से लगे अनेक संवेग मिलकर एक स्थायी स्नायुविन्यास का रूप धारण कर लेते हैं तब उस वस्तु का व्यक्ति की ओर उन संवेगों के अनुरूप एक स्थायी भाव बन जाता है ।
उपर्युक्त व्याख्या में आपने संवेग एवं अनुभूतियों के सम्बन्ध में विस्तार से जानकारी प्राप्त की तथापि कुछ स्मरण संकेतों की सहायता से आप संवेग एवं अनुभूति के ज्ञान में और अधिक वृद्धि कर सकेंगे ।
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संवेगात्मक दशाएँ सरल अथवा जटिल दोनों प्रकार की हो सकती हैं । सरल संवेगावस्था में एक ही संवेग होता है तथा जटिल संवेगावस्था में एक से अधिक संवेग उलझे होते हैं । उदाहरण के लिए दया में वात्सल्य और सहानुभूति मिली होती हैं तथा घृणा में क्रोध और अरुचि के साथ-साथ भय भी होता है । सरल संवेग स्वाभाविक होते हैं । जटिल संवेग सामाजिक परिस्थिति में विकसित होते हैं ।
सरल संवेग केवल बालकों के स्वभाव से ही देखे जा सकते है । जटिल संवेग क्रमश: विकास के साथ मिलते हैं । उदाहरण के लिए, एक बालक में ईर्ष्या का संवेग घर में दूसरे बालक के आने पर उत्पन्न होता है । इसी प्रकार सहानुभूति और सहानुभूति सामाजिक परिस्थिति में विकसित होते है ।
1. सरल संवेग (Simple Emotion):
सर्वप्रथम कुछ सरल संवेगों का अध्ययन करना उचित होगा:
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(i) भय (Fear):
भय उस परिस्थिति वस्तु अथवा पशु से उत्पन्न होता है, जिससे भूतकाल में कुछ हानि पहुँची हो भय किसी खतरनाक परिस्थिति से उत्पन्न होता है । इसी से मैक्डूगल ने इसको पलायन (Escape) की मूल प्रवृत्ति से सम्बन्धित माना है । भय को उत्पन्न करने वाली परिस्थिति में भयानक दृश्य, जोर की आवाज, प्राकृतिक विपदाएँ, खूँखार पशु आदि असंख्य परिस्थितियाँ आती हैं ।
भय आकस्मिक और तीव्र उत्तेजना से भी उत्पन्न होता है । अगर आप किसी घटना के लिए पहले से तैयार हैं तो उस स्थिति में भय कम उत्पन्न होता है । मनुष्य आकस्मिक और अपरिचित से डरता है । भय की संवेगावस्था में हृदय की तीव्र गति, शरीर का काँपना या पीला पडना, स्तब्ध हो जाना आदि विभिन्न क्रियाएँ आती हैं ।
(ii) क्रोध (Anger):
सामान्यत: क्रोध जीवन के किसी कार्य में बाधा आने पर या विफल होने पर उत्पन्न होता है । मैक्डूगल के अनुसार क्रोध का संवेग लड़ने की मूलप्रवृत्ति का वेदनात्मक पहलू है । यह आवश्यक नही है कि क्रोध केवल किसी वस्तु या जीव पर ही किया जाये ।
कभी-कभी व्यक्ति के सामने ऐसी परिस्थिति भी आ जाती है, कि उसे अपने ऊपर भी क्रोध आ जाता है । क्रोध के संवेग में होने वाली बाह्य क्रियाएँ भय के संवेग से अलग होती हैं । क्रोध की संवेगावस्था में मुठ्ठि बाँधना, भौंहें चढाना, गरजना, ठोकर मारना, काँपना आदि अनेक शारीरिक क्रियाएँ दिखाई पड़ती हैं । क्रोध में जीवन आक्रामक हो जाता है ।
(iii) आश्चर्य (Wonder):
जिस स्थिति की आपने कल्पना भी न की हो या कोई घटना ऐसी घटित हो जाये जिसका आपको अंदेशा ही न हो तो ऐसा होने पर मनुष्य को आश्चर्य होता है । जैसे चार पैर वाले बालक को देखकर सभी को आश्चर्य होगा क्योंकि किसी ने भी यह कल्पना नहीं की होगी कि बालक चार पैर का भी हो सकता है ।
(iv) शोक (Grief):
वांछित वस्तु की हानि से शोक का संवेग उत्पन्न होता है अर्थात् कोई कार्य एक अचानक हो जाये तो व्यक्ति को शोक होता है । जैसे कोई अत्यन्त प्रिय व्यक्ति मर जाये तो शोक होता है । व्यक्ति को उसकी इच्छाओं की असफलता पर भी शोक होता है । चेहरा उतर जाना, छाती सिकुड़ जाना, आँखों से औसू बहना, मूर्च्छित हो जाना आदि विविध मात्रा में शोक के चिह्न हैं ।
(v) हर्ष (Joy):
किसी वांछित वस्तु के प्राप्त होने या कोई इच्छा पूर्ण होने पर उत्पन्न होता है । हर्ष शोक की विपरीत संवेगावस्था है । संघर्ष करने के बाद मनुष्य को किसी कार्य में सफलता प्राप्त होती है, तो उसे हर्ष होता है । हर्ष के बाह्य लक्षण चेहरे पर मुस्कान और हास्य आखों में चमक आना उछलना-कूदना आदि हैं ।
2. जटिल संवेग (Complex Emotion):
जटिल संवेगों के उदाहरणस्वरूप यहाँ पर घृणा और प्रेम का वर्णन किया जायेगा ।
घृणा (Hate):
घृणा भी एक प्रकार की संवेगावस्था है । मैक्डूगल ने इसे मिश्रित संवेग की श्रेणी दी है । उनके मतानुसार पूणा में क्रोध भय और विरक्ति सम्मिलित हैं ।
उदाहरण के लिए, कुछ गोरे लोग काले लोगों से घृणा करते हैं । उन्हें काले लोगों की प्रत्येक बात बुरी लगती है । जब व्यक्ति किसी दूसरे से खुद को कमजोर समझता है, तो उसे उससे घृणा हो जाती है क्योंकि उससे क्रोध भय होता है । घृणा में व्यक्तित्व का संकुचन होता है क्योंकि आप प्रेम के पात्र से दूर भागना चाहते हैं ।